स्वरगोष्ठी – 162 में आज
ग्रीष्म ऋतु के आगमन की अनुभूति कराते लोकगीत चैती, चैता और घाटो
‘नाहीं आवे पिया के खबरिया हो रामा, भावे ना सेजरिया...’
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चैती गीत : ‘फुलवा लोढ़न कैसे जइबे हो रामा, राजा जी के बगिया...’ : गायिका शारदा सिन्हा
चैत्र मास में गाये लाने वाले गीतों- चैती, चैता और घाटो के बारे में अवधी लोकगीतों के विद्वान राधाबल्लभ चतुर्वेदी ने अपनी पुस्तक ‘ऊँची अटरिया रंग भरी’ में लिखा है- “यह गीत विशेषतया चैत्र मास में गाया जाता है। प्रायः ठुमरी गायक भी इसे गाते हैं। इस गीत की शुरुआत चाँचर ताल में होती है और बाद में कहरवा ताल में दौड़ होती है। कुछ आवर्तन के बाद पुनः चाँचर ताल में आ जाते हैं। यही क्रम चलता रहता है।” चैता और घाटो गीतों की विशेषता का उल्लेख करते हुए लोकगीतों के विद्वान डॉ. कृष्णदेव उपाध्याय ने अपने ग्रन्थ ‘भोजपुरी लोकगीत’ के पहले भाग में लिखा है- “ऋतु परिवर्तन के बाद चैती, चैता और घाटो गीतों का गायन चित्त को आह्लादित कर देता है। इन गीतों के गाने का ढंग भी बिलकुल निराला होता है। इसके आरम्भ में ‘रामा’ और अन्त में ‘हो रामा’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। भोजपुरी गीतों में चैता अपनी मधुरिमा और कोमलता का सानी नहीं रखता।” आइए, अब हम आपको एक चैता गीत का गायन समूह में सुनवाते हैं। इसे उत्तर प्रदेश के पूर्वाञ्चल में स्थित सांस्कृतिक संगम, सलेमपुर के सदस्यों ने प्रस्तुत किया है। इस चैता गीत में लोक साहित्य का मोहक प्रयोग किया गया है। गीत के आरम्भिक पंक्तियों का भाव है- ‘चैत्र के सुहाने मौसम में अन्धकार में ही अँजोर अर्थात भोर के उजाले का भ्रम हो रहा है।’
चैता गीत : ‘चुवत अँधेरवें अँज़ोर हो रामा चैत महीनवा...’ : समूह स्वर
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घाटो गीत : 'नाहिं आवे पिया की खबरिया हो रामा, भावे ना सेजरिया...’ : व्यास लक्ष्मण यादव और साथी
आज की पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ के 162वें अंक की पहेली में आज हम आपको कम प्रचलित वाद्य पर एक रचना की प्रस्तुति का अंश सुनवा रहे है। इसे सुन कर आपको दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। 170वें अंक की पहेली के सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – संगीत रचना इस अंश को सुन कर वाद्य को पहचानिए और बताइए कि यह कौन सा वाद्य है?
2 – इस रचना में आपको किस राग का आभास हो रहा है?
आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 164वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली और श्रृंखला के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ की 160वीं कड़ी की पहेली में हमने आपको फिल्म ‘गोदान’ में शामिल एक चैती गीत का अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग तिलक कामोद और दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल दीपचंदी। इस अंक के दोनों प्रश्नो के सही उत्तर जबलपुर से क्षिति तिवारी, जौनपुर से डॉ. पी.के. त्रिपाठी, चंडीगढ़ से हरकीरत सिंह और हैदराबाद की डी. हरिणा माधवी ने दिया है। चारो प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
इसी के साथ ही 160वें अंक की पहेली सम्पन्न होने के बाद हमारी यह श्रृंखला (सेगमेंट) भी पूर्ण होती है। इस श्रृंखला में 20-20 अंक प्राप्त कर हैदराबाद की डी. हरिणा माधवी और जबलपुर की क्षिति तिवारी संयुक्त रूप से प्रथम स्थान की हकदार बनीं हैं। 15 अंक पाकर चण्डीगढ़ के हरकीरत सिंह ने दूसरा स्थान और 8 अंक अर्जित कर जौनपुर के डॉ. पी.के. त्रिपाठी ने तीसरा स्थान प्राप्त किया है। चारो प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के आज
के और पिछले अंक में हमने ऋतु के अनुकूल चैती गीतों की चर्चा की। अगले अंक
में हम एक विशेष संगीत वाद्य पर चर्चा करेंगे। इस प्राचीन किन्तु कम
प्रचलित वाद्य की बनावट और वादन शैली हमारी चर्चा के केन्द्र में होगा। आप
भी अपनी पसन्द के गीत-संगीत की फरमाइश हमे भेज सकते हैं। हमारी अगली
श्रृंखलाओं के लिए आप किसी नए विषय का सुझाव भी दे सकते हैं। अगले रविवार
को प्रातः 9 बजे एक नए अंक के साथ हम ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर सभी
संगीत-प्रेमियों की प्रतीक्षा करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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