Skip to main content

जुदा हो गयी सदा के लिए "लंबी जुदाई" देकर गायिका रेशमा

गायिका रेशमा को श्रद्धांजली





"जो फूल यहाँ पर खिल न सके, वो फूल वहाँ खिल जायेंगे, हम इस दुनिया में मिल न सके तो उस दुनिया में मिल जायेंगे" - दोस्तों, कल सुबह जैसे ही गायिका रेशमा के निधन की ख़बर रेडियो पर सुनी तो उनके गाये इस गीत की पंक्ति जैसे कानों में बजने लगी। कहते हैं कि आवाज़ें सरहदों से आज़ाद हुआ करती हैं, रेशमा की आवाज़ भी एक ऐसी आवाज़ रही जिसने कभी भी सरहदों को नहीं माना। चाहे वो कहीं भी रहीं, उनकी आवाज़ ने दुनिया भर की फ़िज़ाओं में ख़ुशबू बिखेरी। उनकी आवाज़ मिट्टी की आवाज़ थी, जिसमें से मिट्टी की भीनी-भीनी सौंधी ख़ुशबू उड़ा करती। 

रेशमा का जन्म यहीं भारत में, राजस्थान में हुआ था और उनका बचपन भी राजस्थान में ही बीता। राजस्थान, जिसकी सीमा पाक़िस्तान के सरहद के बहुत करीब है; आज़ादी के बाद देश के बटवारे के बाद रेशमा सरहद के उस पार चली गईं। रेशमा का ताल्लुख़ बंजारा समुदाय से था जो कभी एक जगह नहीं ठहरता। बंजारे यायावर की तरह भटकते रहते हैं, कभी घर नहीं बनाते, और हर बार नई मंज़िल की तलाश में निकल पड़ते हैं। रेशमा को गायिकी की प्रतिभा अपने समुदाय से विरासत में मिली और वो सुफ़ियाना शैली में गाने लगीं। बचपन से ही रेशमा की आवाज़ में वह कशिश थी कि जब वो कोई आध्यात्मिल या रूहानी रचना गातीं तो लोगों के दिलों में ख़लिश सी पैदा कर देतीं। वो जब भी रूहानी अशार गातीं, वो उसमें डूब सी जातीं और उनकी यह तन्मयता और लगन उनकी आवाज़ में साफ़ छलक आता। रेशमा पढ़ना-लिखना नहीं जानती थीं, लेकिन संगीत की रियाज़ से जो कुछ सीखा है वो पढ़े लिखे लोग भी नहीं सीख पाये।

किसी गुमनान जंगली फूल की तरह महकती रही हैं रेशमा की आवाज़ और एक बार सेहवान में हज़रत कलंदरलाल शाह्बाज़ की दरगाह पर उनकी आवाज़ सुन अक्र जमा हो गए थे लोग। आपको बता दें कि सेहवान पाक़िस्तान का एक छोटा सा शहर है और हज़रत कलंदरलाल शाहबाज़ की दरगाह पर उस दिन शामिल थे पाक़िस्तान रेडियो के एक अधिकारी जिन्होंने रेशमा की आवाज़ सुनी और युं प्रभावित हुए कि रेडियो तक उन्होंने रेशमा की आवाज़ को पहुँचा ही दिया। और इस तरह से बंजारों के समुदाय से निकल कर उनकी आवाज़ रेडियो की तरंगों पर सवार होकर पूरी दुनिया में फैल गई, और लोग उन्हें जानने लगे। "दमादम मस्त कलंदर, अली दा पहला नंबर", "ओ रब्बा दिल आये मुश्किल के", "कौन रूठे यार मनाये", "रब्बा हुण की करिये", "ना दिल देंदी बेदर्दी नु" जैसे गीत बेहद मक़बूल हुए।

80 के दशक में संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने फ़िल्म 'हीरो' में रेशमा से गवाया "लम्बी जुदाई"। यह ग़मज़दा नग़मा जब रिलीज़ हुआ था तो लोगों ने इसे फ़ौरन हाथों-हाथ लिया। इस फ़िल्म के अन्य कई गीत सुपरहिट हुए, पर इस गीत में जो बात है, वह बात किसी अन्य गीत में नहीं। आज इस गीत के बने हुए 30 साल बीत चुके हैं, पर आज भी, जितनी बार भी हम इस गीत को सुनते हैं, कलेजा जैसे चीर कर रख देती है रेशमा की आवाज़। जुदाई के भाव पर बनने वाले तमाम फ़िल्मी गीतों में यह गीत एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस गीत में जुदाई के दर्द को रेशमा ने जिस तरह से उभारा है, उसे शायद फ़िल्म जगत की नामचीन गायिकायें न उभार सके। यह गीत जैसे ही मक़बूल हुआ, सारी दुनिया भर से उन्हें कॉनसर्ट्स के लिए बुलाया गया, और वो और भी मशहूर हो गईं।


गीतकार और शायर कैफ़ी आज़मी ने एक बार विविध भारती के किसी कार्यक्रम में रेशमा का ज़िक्र करते हुए कहा था - "अचानक एक दिन रेशमा की आवाज़ का झरना हिन्दुस्तान में इस तरह गिरने लगा कि हर म्युज़िक डिरेक्टर और हर नग़मानिगार के दिल में यह ख़्वाहिश जाग उठी कि काश कभी हमारे किसी गीत को यह आवाज़ मिल जाये! वक़्त गुज़रता रहा और भारत का हर सुरा और बेसुरा आदमी रेशमा के गाने गाता रहा। आते आते वह मुबारक़ दिन आ गया जब रेशमा भारत की महमान हुईं। कई म्युज़िक डिरेक्टर और फ़िल्मसाज़ उनके पास यही दरख़्वास्त लेकर पहुँचे कि आप हमारी फ़िल्म के कुछ गाने अपनी आवाज़ में रेकॉर्ड करवा दें। कानूनी मुश्किलों पर काबू पाने के बाद रेशमा ने कुछ गाने गाये भी। उनकी आवाज़ की एक ख़ुसूसियत यह है कि आप आँख बन्द करके सुने तो महसूस होगा कि आप किसी सेहरा में खड़े हैं और दूर से कोई ख़ानाबदोश जादूगरनी आप पर जादू कर रही है। लेकिन इसके लिए यह ज़रूरी है कि गाने के बोल और धुन, दोनों ऐसे हों कि जिन पर रेशमा की आवाज़ पूरी तरह गूंजने और तैरने लगे। म्युज़िक डिरेक्टर लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के डिरेक्शन में रेशमा ने यहाँ एक गाना रेकॉर्ड करवाया, जिसे सुन कर आपको रेशमा का वह मशहूर नग़मा ज़रूर याद आ जायेगा "हायो रब्बा नैयो लगदा दिल मेरा"। यह गाना है "लम्बी जुदाई"।"

करीब दो दशक बाद, साल 2006 में रेशमा भारत आयीं थीं और संगीतकार रूप कुमार राठौड़ के निर्देशन में फ़िल्म 'वह तेरा नाम था' के लिए एक गीत भी रेकॉर्ड करवाया था। गीत के बोल थे "अश्कां दी गली विच मुकाम दे गया"। इस तरह से हिन्दी फ़िल्मों के लिए रेशमा ने केवल दो ही गाये - "लम्बी जुदाई" और "अश्कां दी गली"। पर रेशमा जानी जाती हैं उनकी गाई लोक गीतों के लिए। आज वो भले इस फ़ानी दुनिया से बहुत दूर चली गईं हों, पर उनकी मिट्टी की ख़ुशबू लिए आवाज़ हमेशा इस मिट्टी को सुवासित करती रहेगी। गायिका रेशमा को 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के समूचे परिवार की तरफ़ से भावभीनी श्रद्धांजली, ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दें!





संदर्भ: रेशमा पर केन्द्रित 'आज के फ़नकार' कार्यक्रम (विविध भारती)

प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी

Comments

मेरी और से भी हार्दिक श्रद्धांजलि...
Pankaj Mukesh said…
REST IN PEACE !!!!!
Dhanyawaad, sujoy ji!!!!

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...