Skip to main content

दीपों के पर्व पर राग बागेश्री की चर्चा


स्वरगोष्ठी – 142 में आज

रागों में भक्तिरस – 10

‘मनमोहन श्याम सुन्दर रूप मनोहर सोहत अधर मुरलिया...’


   

रेडियो प्लेबैक इण्डिया के साप्ताहिक स्तम्भ स्वरगोष्ठी के मंच पर जारी लघु श्रृंखला रागों में भक्तिरस की दसवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, ज्योतिपर्व दीपावली के शुभ अवसर पर आप सब संगीतानुरागियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, अन्धकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देने वाला यह पर्व आप और आपके पूरे परिवार के लिए सुख-समृद्धि का कारक बने, हम यही कामना करते हैं। जारी श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपसे भारतीय संगीत के कुछ भक्तिरस प्रधान राग और उनमें निबद्ध रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं। साथ ही उस राग पर आधारित फिल्म संगीत के उदाहरण भी आपको सुनवा रहे हैं। श्रृंखला की आज की कड़ी में हम आपसे रात्रि के दूसरे प्रहर में गाये-बजाए जाने वाले राग बागेश्री की चर्चा करेंगे। आपके समक्ष इस राग के भक्तिरस-पक्ष को स्पष्ट करने के लिए हम तीन भक्तिरस से अभिप्रेरित रचनाएँ प्रस्तुत करेंगे। पहले आप सुनेंगे राग बागेश्री के स्वरों में एक बन्दिश, सुप्रसिद्ध गायिका अश्विनी भिड़े देशपाण्डे से और उसके बाद सुप्रसिद्ध पार्श्वगायिका लता मंगेशकर से इसी राग पर आधारित फिल्म रंगोली का एक गीत। इसके साथ ही राग बागेश्री का आनन्द वाद्य संगीत पर कराने के लिए युवा संगीतसाधक विकास भारद्वाज सितार-वादन भी प्रस्तुत करेंगे। 
   


अश्विनी भिड़े देशपाण्डे 
राग बागेश्री भारतीय संगीत का अत्यन्त मोहक राग है। कुछ लोग इस राग को बागेश्वरी नाम से भी पुकारते हैं, किन्तु सुप्रसिद्ध गायिका विदुषी गंगूबाई हंगल के मतानुसार इस राग का नाम बागेश्री अधिक उपयुक्त है। इस राग को काफी थाट से सम्बद्ध माना जाता है। राग के वर्तमान प्रचलित स्वरूप के आरोह में ऋषभ स्वर वर्जित होता है और पंचम स्वर का अल्पत्व प्रयोग किया जाता है। अवरोह में सातों स्वर प्रयोग होते हैं। इस प्रकार यह राग षाड़व-सम्पूर्ण जाति का होता है। कुछ विद्वान आरोह में ऋषभ के साथ पंचम स्वर भी वर्जित करते हैं। इस राग में गान्धार और निषाद स्वर कोमल तथा शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किए जाते हैं। कर्नाटक पद्यति में इस राग के समतुल्य राग नटकुरंजी है, जिसमें पंचम स्वर का प्रयोग नहीं किया जाता। राग बागेश्री में यदि पंचम और कोमल निषाद का प्रयोग न किया जाए तो यह राग आभोगी की अनुभूति कराता है। राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। रात्रि के दूसरे प्रहर में इस राग का गायन-वादन आदर्श माना जाता है। इस राग में भक्ति और श्रृंगार रस की रचनाएँ भली लगती है। अब हम आपको राग बागेश्री की एक मोहक बन्दिश का रसास्वादन कराते हैं। इसे प्रस्तुत कर रही हैं, जानी-मानी गायिका विदुषी अश्विनी भिड़े। इस खयाल रचना के बोल हैं- ‘मनमोहन श्याम सुन्दर रूप मनोहर सोहत अधर मुरलिया...’। अश्विनी जी जयपुर अतरौली परम्परा की गायकी में दक्ष हैं। खयाल के साथ-साथ ठुमरी और भजन गायकी में भी उन्हें महारत हासिल है। राग बागेश्री में प्रस्तुत इस बन्दिश में आपको भक्ति और श्रृंगार, दोनों भावों की सार्थक अनुभूति होगी।


राग बागेश्री : ‘मनमोहन श्याम, सुन्दर रूप...’ : अश्विनी भिड़े देशपाण्डे



राग बागेश्वरी अथवा बागेश्री का प्रयोग पाँचवें से सातवें दशक के बीच कई फिल्मों में किया गया। संगीतकार नौशाद ने 1946 में फिल्म ’शाहजहाँ’, दिलीप ढोलकिया ने फिल्म ‘प्राइवेट सेक्रेटरी’ में, सी. रामचन्द्र ने ‘अनारकली’ और ‘आज़ाद’ में, सलिल चौधरी ने ‘मधुमती’ में, मदनमोहन ने फिल्म ‘देख कबीरा रोया’ में, एस.एन. त्रिपाठी ने ‘संगीत सम्राट तानसेन’ में और शंकर जयकिशन ने 1962 की फिल्म ‘रंगोली’ में राग बागेश्री के स्वरों का अच्छा प्रयोग किया था। आज के अंक में हम आपको फिल्म ‘रंगोली’ से ही राग बागेश्री पर आधारित एक आकर्षक गीत ‘जाओ जाओ नन्द के लाला...’ प्रस्तुत करेंगे। गीतकार शैलेन्द्र के लिखे और शंकर-जयकिशन के संगीतबद्ध किये इस गीत में राधा-कृष्ण के छेड़-छाड़ का चित्रण है। यह गीत अभिनेत्री और नृत्यांगना वैजयन्तीमाला के नृत्य पर फिल्माया गया था। संगीतकार शंकर-जयकिशन ने गीत को राग बागेश्री के स्वरों और तीनताल में जिस खूबसूरती से बाँधा है, उतने ही मोहक अंदाज में लता मंगेशकर ने गाया है।
 

राग बागेश्री : ‘जाओ जाओ नन्द के लाला...’ : लता मंगेशकर : फिल्म रंगोली 




विकास भारद्वाज 
इस गीत के बाद हम राग बागेश्री का वाद्य संगीत पर एक अलग रंग प्रस्तुत करेंगे। तंत्रवाद्य सितार पर राग बागेश्री की एक रचना प्रस्तुत कर रहे हैं, प्रतिभावान युवा कलासाधक विकास भारद्वाज। कोटा, राजस्थान के विकास की प्रारम्भिक संगीत-शिक्षा कोटा की विदुषी सुधा अग्रवाल से और फिर उदयपुर के गुरु रामकृष्ण बोस एवं अजमेर के गुरु देवेन्द्र मिश्र से प्राप्त हुई। आगे चल कर सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ पण्डित नयन घोष विकास के गुरु बने, जो आज भी उनका मार्गदर्शन कर रहे हैं। विकास की संगीत-शिक्षा बहुमुखी रही है। आरम्भ में उनकी संगीत-शिक्षा कण्ठ संगीत के क्षेत्र में हुई। बाद में उन्होने सितार वादन में दक्षता प्राप्त की और सुप्रसिद्ध बाँसुरी वादक पण्डित पन्नालाल घोष पर शोधकार्य भी किया है। ऐसे ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी विकास भारद्वाज प्रस्तुत कर रहे हैं, सितार पर राग बागेश्री में तीनताल की एक गत।


राग बागेश्री : सितार पर तीनताल की गत : विकास भारद्वाज



  
आज की पहेली


‘स्वरगोष्ठी’ के 142वें अंक की पहेली में आज हम आपको वाद्य संगीत की एक रचना का अंश सुनवा रहे है। इसे सुन कर आपको दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। यह पाँचवें सेगमेंट की पहली पहेली है। 150वें अंक की समाप्ति तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।


1 – इस संगीत रचना के अंश में आपको किस राग के दर्शन हो रहे हैं?

2 – यह कौन सा संगीत वाद्य है? वाद्य का नाम बताइए।

आप अपने उत्तर केवल radioplaybackindia@live.com या swargoshthi@gmail.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 144वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अथवा radioplaybackindia@live.com या swargoshthi@gmail.com पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।

  
पिछली पहेली के विजेता


‘स्वरगोष्ठी’ के 140वें अंक की पहेली में हमने आपको सन्त नामदेव रचित और पण्डित भीमसेन जोशी के गाये एक भक्तिपद का अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग अहीर भैरव और दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- पण्डित भीमसेन जोशी। इस बार किसी भी प्रतिभागी ने प्रश्नो का सही उत्तर नहीं दिया।

यह 140वें अंक की पहेली वर्ष 2013 की चौथी श्रृंखला (सेगमंत) की अन्तिम पहेली थी। पहेली क्रमांक 131 से 140 तक प्रथम तीन स्थान पर निम्नलिखित प्रतिभागी रहे।

1- क्षिति तिवारी, जबलपुर – 16 अंक

2- डॉ. पी.के. त्रिपाठी, जौनपुर – 14 अंक

3- प्रकाश गोविन्द, लखनऊ – 10 अंक

तीनों प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।

  
झरोखा अगले अंक का



मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी लघु श्रृंखला ‘रागों में भक्तिरस’ के अन्तर्गत आज के अंक में हमने आपसे राग बागेश्वरी या बागेश्री भक्तिरस के पक्ष पर चर्चा की। आगामी अंक में हम एक और भक्तिरस प्रधान राग में गूँथी रचनाएँ लेकर उपस्थित होंगे। अगले अंक में इस लघु श्रृंखला की ग्यारहवीं कड़ी के साथ रविवार को प्रातः 9 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीत-रसिकों की प्रतीक्षा करेंगे।

  
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र

Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट