स्वरगोष्ठी – 125 में आज
भूले-बिसरे संगीतकार की कालजयी कृति – 5
‘आँसू भरी है ये जीवन की राहें...’ राग यमन के सच्चे स्वरों का गीत
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी लघु
श्रृंखला ‘भूले-बिसरे संगीतकार की कालजयी कृति’ की यह पाँचवीं कड़ी है और इस
कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-रसिकों का एक बार पुनः हार्दिक
स्वागत करता हूँ। आज हमारी चर्चा का विषय होगा, राग यमन पर आधारित एक
सदाबहार गीत- ‘आँसू भरी है ये जीवन की राहें...’। 1958 में प्रदर्शित फिल्म
‘परिवरिश’ के इस कालजयी गीत के संगीतकार दत्ताराम वाडेकर थे, जिनके बारे
में वर्तमान पीढ़ी शायद परिचित हो। इसके साथ ही आज के अंक में हम राग यमन पर
चर्चा करेंगे और आपको सुप्रसिद्ध सारंगी वादक उस्ताद सुल्तान खाँ का
बजाया, राग यमन का भावपूर्ण आलाप भी सुनवाएँगे।
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दत्ताराम |
संगीतकार दत्ताराम की पहचान एक स्वतंत्र संगीतकार के रूप में कम, परन्तु सुप्रसिद्ध संगीतकार शंकर-जयकिशन के सहायक के रूप में अधिक हुई। इसके अलावा लोक-तालवाद्य ढप बजाने में वे सिद्धहस्त थे। फिल्म ‘जिस देश में गंगा बहती है’ के गीत
‘मेरा नाम राजू घराना अनाम...’ में उनका बजाया ढप सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ था। ढप के अलावा अन्य ताल-वाद्यों, तबला, ढोलक आदि के वादन में भी वे अत्यन्त कुशल थे। फिल्म ‘बेगुनाह’ के गीत
‘गोरी गोरी मैं पारियों की छोरी...’ और फिल्म ‘अब दिल्ली दूर नहीं’ के बाल गीत
‘चूँ चूँ करती आई चिड़िया...’ में उनका ढोलक वादन श्रोताओं को मचलने पर विवश करता है। दत्ताराम की संगीत-शिक्षा तबला वादन के क्षेत्र में ही हुई थी। पाँचवें दशक में वो मुम्बई आए और शंकर-जयकिशन के सहायक बन गए। उनकी पहली फिल्म ‘नगीना’ थी। स्वतंत्र संगीतकार के रूप में दत्ताराम ने 1957 में प्रदर्शित राज कपूर की फिल्म ‘अब दिल्ली दूर नहीं’ में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से अपने मधुर सम्बन्धों के कारण राज कपूर ने फिल्म ‘अब दिल्ली दूर नहीं’ का निर्माण किया था। फिल्म के संगीत के लिए राज कपूर ने शंकर-जयकिशन के इस प्रतिभावान सहायक को चुना। यह फिल्म तो नहीं चली, किन्तु इसके गीत खूब लोकप्रिय हुए। ऊपर जिस बाल गीत की चर्चा हुई है, वह तो आज भी बच्चों का सर्वप्रिय गीत बना हुआ है।
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मुकेश |
दत्ताराम को संगीत निर्देशन का दूसरा अवसर 1958 में प्रदर्शित फिल्म ‘परिवरिश’ में मिला। राज कपूर इस फिल्म के नायक थे। फिल्म के निर्माता-निर्देशक ने राज कपूर के आग्रह पर ही दत्ताराम को इस फिल्म के संगीत निर्देशक का दायित्व सौंपा था। इस फिल्म में दत्ताराम ने मुकेश, मन्ना डे और लता मंगेशकर की आवाज़ों में कई मधुर गीत रचे, किन्तु जो लोकप्रियता मुकेश के गाये गीत-
‘आँसू भरी है ये जीवन की राहें...’ को मिली वह अपने आप में कीर्तिमान है। मुकेश को दर्द भरे गीतों का महान गायक माना जाता है। आज भी यह गीत दर्द भरे गीतों की सूची में सिरमौर है। इस गीत पर राग यमन की छाया है। फिल्म संगीत के इतिहासकार पंकज राग ने अपनी पुस्तक ‘धुनों की यात्रा’ में इस गीत की रिकार्डिंग से जुड़े एक रोचक तथ्य का उल्लेख किया है। हुआ यह कि जिस दिन इस गीत को रिकार्ड करना था, उस दिन साजिन्दों की हड़ताल थी। उस समय स्टुडियो में सारंगी वादक ज़हूर अहमद, गायक मुकेश और दत्ताराम स्वयं तबला के साथ उपस्थित थे। इन्हीं साधनों के साथ गीत की अनौपचारिक रिकार्डिंग की गई। यूँतो इसे गीत का पूर्वाभ्यास माना गया किन्तु इस रिकार्डिंग को राज कपूर समेत अन्य लोगों ने जब सुना तो सभी अभिभूत हो गए। आज भी यह गीत मुकेश के गाये गीतों में शीर्ष स्थान पर है। लीजिए, पहले आप इस बहुचर्चित गीत को सुनिए।
राग यमन : फिल्म परिवरिश : ‘आँसू भरी है ये जीवन की राहें...’ : संगीत – दत्ताराम
फिल्म ‘परिवरिश’ के इस गीत राग यमन का स्पष्ट आधार है। राग यमन गोधूलि बेला अर्थात रात्रि के प्रथम प्रहर के आरम्भ के समय का राग है। तीव्र मध्यम के साथ सभी शुद्ध स्वरों वाले सम्पूर्ण जाति का यह राग कल्याण थाट का आश्रय राग माना जाता है। प्राचीन ग्रन्थों में राग का नाम कल्याण ही बताया गया है।
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उस्ताद सुल्तान खाँ |
विद्वानों के अनुसार प्राचीन काल में भारत से यह राग पर्शिया पहुँचा, जहाँ इसे यमन नाम मिला। मुगलकाल से इसका यमन अथवा इमन नाम प्रचलित हुआ। दक्षिण भारतीय पद्यति में यह राग कल्याणी नाम से जाना जाता है। राग यमन अथवा कल्याण के आरोह में षडज और पंचम का प्रयोग बहुत प्रबल नहीं होता। निषाद स्वर प्रबल होने और ऋषभ स्वर शुद्ध होने से पुकार का भाव और करुण रस की सहज अभिव्यक्ति होती है। जैसा कि उल्लेख किया गया कि इस राग में तीव्र मध्यम के साथ शेष सभी शुद्ध स्वरों का प्रयोग किया जाता है। परन्तु यदि तीव्र मध्यम के स्थान पर शुद्ध मध्यम का प्रयोग किया जाए तो यह राग बिलावल हो जाता है। अवरोह में यदि दोनों मध्यम का प्रयोग कर दिया जाए तो यह यमन कल्याण राग हो जाता है। यदि राग यमन के शुद्ध निषाद के स्थान पर कोमल निषाद का प्रयोग कर दिया जाए तो राग वाचस्पति की अनुभूति कराता है। राग यमन की स्वर-रचना के कारण ही फिल्म ‘परिवरिश’ के गीत-
‘आँसू भरी है ये जीवन की राहें...’ में करुण रस की गहरी अनुभूति होती है। राग यमन की अधिक स्पष्ट अनुभूति कराने का लिए अब हम आपको सारंगी पर इस राग का आलाप सुनवाते हैं। वादक हैं सुविख्यात सारंगी वादक उस्ताद सुल्तान खाँ। आप फिल्मी गीत के स्वरों को इस सार्थक आलाप में खोजने का प्रयास कीजिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
राग यमन : सारंगी पर आलाप : उस्ताद सुल्तान खाँ
आज की पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ की 125वीं संगीत पहेली में हम आपको छठें दशक की एक फिल्म के राग आधारित गीत का एक अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 130वें अंक तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 - संगीत के इस अंश को सुन कर पहचानिए कि यह गीत किस राग पर आधारित है?
2 – संगीत के इस अंश में प्रयुक्त ताल का नाम बताइए।
आप अपने उत्तर केवल
swargoshthi@gmail.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि तक भेजें।
comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 127वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए
comments के माध्यम से तथा
swargoshthi@gmail.com अथवा
radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ के 123वें अंक में हमने आपको 1953 में प्रदर्शित फिल्म 'लड़की' के राग आधारित गीत का एक अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग भैरवी और दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल तीनताल। दोनों प्रश्नो के उत्तर हमारे नियमित प्रतिभागी, लखनऊ के प्रकाश गोविन्द, जबलपुर की क्षिति तिवारी और जौनपुर के डॉ. पी.के. त्रिपाठी ने दिया है। तीनों प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
झरोखा अगले अंक का
मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर
जारी लघु श्रृंखला ‘भूले-बिसरे संगीतकार की कालजयी कृति’ के अगले अंक में
हम आपको एक और भूले-बिसरे संगीतकार का परिचय देते हुए उनका संगीतबद्ध एक
मोहक गीत लेकर उपस्थित होंगे। आप भी हमारी आगामी कड़ियों के लिए भारतीय
शास्त्रीय, लोक अथवा फिल्म संगीत से जुड़े नये विषयों, रागों और अपनी प्रिय
रचनाओं की फरमाइश कर सकते हैं। हम आपके सुझावों और फरमाइशों का स्वागत करते
हैं। अगले अंक में रविवार को प्रातः 9-30 ‘स्वरगोष्ठी’ के इस मंच पर आप
सभी संगीत-रसिकों की हमें प्रतीक्षा रहेगी।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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