स्वरगोष्ठी – 126 में आज
भूले-बिसरे संगीतकार की कालजयी कृति – 6
राग काफी पर आधारित गीत- ‘कासे कहूँ मन की बात...’
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी लघु
श्रृंखला ‘भूले-बिसरे संगीतकार की कालजयी कृति’ की इस छठी कड़ी में मैं
कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस
श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपको राग-आधारित कुछ ऐसे फिल्मी गीत सुनवा रहे
हैं, जो आधी शताब्दी से भी अधिक अवधि बीत जाने के बावजूद सदाबहार गीत के
रूप में हमारे बीच प्रतिष्ठित हैं। ये गीत सदाबहार तो हैं, परन्तु इनके
संगीतकार हमारी स्मृतियों में धूमिल हो गए हैं। इस श्रृंखला को प्रस्तुत
करने का उद्देश्य ही यही है कि इन कालजयी, राग आधारित गीतों के माध्यम से
हम कुछ भूले-बिसरे संगीतकारों को स्मरण करें। आज के अंक में हम आपको राग
काफी पर आधारित एक मधुर फिल्मी गीत सुनवाएँगे और इस गीत के संगीतकार एन.
दत्ता का स्मरण करेंगे। इसके साथ ही सुप्रसिद्ध युवा गायिका विदुषी मीता
पण्डित से इसी राग में निबद्ध रस से भरी एक होरी भी सुनेगे।
एन. दत्ता |
1959 में बी.आर. चोपड़ा की सफलतम फिल्म ‘धूल का फूल’ प्रदर्शित हुई थी। इस फिल्म के गीत अपनी सरलता और मधुरता के बल पर बेहद लोकप्रिय हुए थे। एन. दत्ता अर्थात दत्ता नाईक इस फिल्म के संगीतकार थे। फिल्म जगत के यशस्वी गीतकार साहिर लुधियानवी के अर्थपूर्ण शब्दों को मधुर धुनों में पिरोने वाले संगीतकारों में रोशन, खय्याम और रवि के साथ एन. दत्ता का नाम लिया जाना आवश्यक है। फिल्मों में पदार्पण से पहले एन. दत्ता ने मुम्बई के देवधर संगीत विद्यालय से संगीत की विधिवत शिक्षा भी ग्रहण की थी। इसके उपरान्त कुछ समय तक फिल्म संगीत का व्यावहारिक प्रशिक्षण पाने के उद्देश्य से संगीतकार गुलाम हैदर और सचिनदेव बर्मन के सहायक के रूप में भी कार्य किया था। स्वतंत्र रूप से संगीत निर्देशन का अवसर उन्हें 1955 में प्रदर्शित दो फिल्मों, ‘मिलाप’ और ‘मैरीन ड्राइव’ में मिला। यह एन. दत्ता का सौभाग्य था कि आरम्भ में ही उन्हें बड़े बैनर की अर्थात राज खोसला की ‘मिलाप’ और जी.पी. सिप्पी की ‘मैरीन ड्राइव’ जैसी फिल्में मिली। इसके अलावा आरम्भ से ही उन्हें सुविख्यात शायर और गीतकार साहिर लुधियानवी का साथ मिला। आगे चल कर साहिर और दत्ता की जोड़ी ने फिल्म संगीत के भण्डार को अनेक मधुर गीतों से समृद्ध किया।
सुधा मल्होत्रा |
आरम्भिक दो फिल्मों के बाद एन. दत्ता ने 1956 में ‘चन्द्रकान्ता’, 1957 में ‘मोहिनी’, 1958 में ‘मिस्टर एक्स’ जैसी फिल्मों को विविधतापूर्ण संगीत से सँवारा। इस दौर में फिल्में बेशक बहुत सफल न रहीं, किन्तु दत्ता के संगीत का जादू खूब चला। वर्ष 1958 में दत्ता को बी.आर. चोपड़ा ने अपनी फिल्म ‘साधना’ के संगीत निर्देशन का प्रस्ताव दिया। यह फिल्म खूब चली और दत्ता का संगीत भी। इस फिल्म के कई गीतों में उन्होने रागों का स्पर्श भी किया था। फिल्म ‘साधना’ के स्तरीय संगीत से प्रभावित होकर बी.आर. चोपड़ा ने अपनी अगली फिल्म ‘धूल का फूल’ के संगीत का दायित्व भी दत्ता को सौंपा। इस फिल्म का निर्देशन यश चोपड़ा ने किया था। लोकप्रियता की दृष्टि से इस फिल्म के कई गीत सफल थे किन्तु राग के आधार की दृष्टि से इस फिल्म का ही नहीं, बल्कि अपने दौर का सर्वाधिक सफल गीत था- ‘कासे कहूँ मन की बात...’। इस गीत को दत्ता ने राग काफी के स्वरों का स्पष्ट आधार दिया था। गीत में सितार का अनूठा प्रयोग किया गया है। आरम्भ में राग काफी के स्वरों में छोटा सा आलाप और सरगम तथा अन्त में द्रुत तीनताल में मोहक गत के रूप में सितार का प्रयोग गीत का मुख्य आकर्षण है। यह गीत नृत्य पर फिल्माया गया है। नृत्यांगना हैं नाज़ और परदे पर सितार वादिका की भूमिका में अभिनेत्री पूर्णिमा हैं। दत्ता ने इस गीत में ठुमरी अंग का स्पर्श किया है। साहिर लुधियानवी की पारम्परिक ठुमरी जैसी शब्दावली, राग काफी के स्वरों की चाशनी में पगी इसकी धुन और गायिका सुधा मल्होत्रा की उदात्त आवाज़ इस गीत को कालजयी बना देता है। आइए, पहले हम सब इस गीत को सुनते हैं।
राग - काफी : फिल्म - धूल का फूल : ‘कासे कहूँ मन की बात...’ : संगीत – एन. दत्ता
मीता पण्डित |
आइए, अब थोड़ी चर्चा राग काफी की संरचना पर करते हैं। राग काफी, काफी थाट का आश्रय राग है और इसकी जाति है सम्पूर्ण-सम्पूर्ण, अर्थात आरोह-अवरोह में सात-सात स्वर प्रयोग किए जाते हैं। आरोह में सा रे ग(कोमल) म प ध नि(कोमल) सां तथा अवरोह में सां नि(कोमल) ध प म ग(कोमल) रे सा स्वरों का प्रयोग किया जाता है। इस राग का वादी स्वर पंचम और संवादी स्वर षडज होता है। कभी-कभी वादी कोमल गान्धार और संवादी कोमल निषाद का प्रयोग भी मिलता है। दक्षिण भारतीय संगीत का राग खरहरप्रिय राग काफी के समतुल्य राग है। राग काफी, ध्रुवपद और खयाल की अपेक्षा उपशास्त्रीय संगीत में अधिक प्रयोग किया जाता है। ठुमरियों में प्रायः दोनों गान्धार और दोनों धैवत का प्रयोग भी मिलता है। टप्पा गायन में शुद्ध गान्धार और शुद्ध निषाद का प्रयोग वक्र गति से किया जाता है। इस राग का गायन-वादन रात्रि के दूसरे प्रहर में किए जाने की परम्परा है। आइए अब हम आपका साक्षात्कार राग काफी के एक अलग रंग से कराते हैं। विदुषी मीता पण्डित ग्वालियर परम्परा की जानी-मानी युवा गायिका हैं। उन्होने राग काफी के स्वरों में एक होरी प्रस्तुत की है। राधा-कृष्ण की होली तो अत्यन्त प्रसिद्ध हैं, किन्तु मीता जी ने अपनी इस प्रस्तुति में राम और सीता की होली के दृश्य उपस्थित किया है। आप राग काफी की इस होरी का आनन्द लीजिए और मुझे इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
राग काफी होरी : ‘राम सिया फाग मचावत...’ : विदुषी मीता पण्डित
आज की पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ के 126वें अंक की पहेली में आज हम आपको एक बन्दिश का अंश सुनवा रहे है। इसे सुन कर आपको दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। 130वें अंक तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – संगीत रचना के इस अंश को सुन कर पहचानिए कि यह किस राग में निबद्ध है?
2 – इस संगीत रचना के ताल का नाम भी बताइए।
आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 128वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से या swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ के 124वें अंक की पहेली में हमने आपको उस्ताद सुल्तान खाँ की बजाई सारंगी पर आलाप का एक अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग कल्याण अथवा यमन और दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- वाद्य सारंगी। दोनों प्रश्नो के सही उत्तर लखनऊ के प्रकाश गोविन्द, जौनपुर के डॉ. पी.के. त्रिपाठी और जबलपुर की क्षिति तिवारी ने दिया है। तीनों प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
झरोखा अगले अंक का
मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी लघु श्रृंखला ‘भूले-बिसरे संगीतकार की कालजयी कृति’ के आगामी अंक में हम एक और लोकप्रिय राग पर आधारित एक सदाबहार फिल्मी गीत, इसके विस्मृत संगीतकार और इसी राग में निबद्ध एक मोहक खयाल रचना पर चर्चा करेंगे। अगले अंक में इस श्रृंखला की अगली कड़ी के साथ रविवार को प्रातः 9 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीत-रसिकों की प्रतीक्षा करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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