स्वरगोष्ठी – 124 में आज
भूले-बिसरे संगीतकार की कालजयी कृति – 4
राग भैरवी की रसभरी ठुमरी- ‘बाट चलत नई चुनरी रंग डारी श्याम...’
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक
स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी लघु श्रृंखला ‘भूले-बिसरे संगीतकार की कालजयी
कृति’ की यह चौथी कड़ी है और इस कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब
संगीत-रसिकों का एक बार पुनः हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज हम आपसे एक
अत्यन्त लोकप्रिय पारम्परिक ठुमरी के फिल्मी स्वरूप पर चर्चा करेंगे। राग
भैरवी की पारम्परिक ठुमरी- ‘बाट चलत नई चुनरी रंग डारी श्याम...’ का प्रयोग
दो फिल्मों, लड़की (1953) और रानी रूपमती (1959) में किया गया था। आज के
अंक में हम आपसे इस ठुमरी के पारम्परिक स्वरूप, फिल्म लड़की में गायिका गीता
दत्त की प्रस्तुति और फिल्म के संगीतकार धनीराम की चर्चा करेंगे। इसके साथ
ही हम सुप्रसिद्ध गायक पण्डित अजय चक्रवर्ती के स्वरों में इस ठुमरी का
शास्त्रीय और उपशास्त्रीय प्रयोग भी सुनेंगे।
1953 में विख्यात फिल्म निर्माण संस्था ए.वी.एम. की फिल्म ‘लड़की’ का प्रदर्शन हुआ था। यह फिल्म उत्कृष्ठ स्तर के संगीत के कारण अत्यन्त सफल हुई थी। फिल्म में शामिल परम्परागत ठुमरी- ‘बाट चलत नई कुनरी रंग डारी श्याम...’ एक सदाबहार गीत सिद्ध हुआ। इस गीत के संगीतकार धनीराम थे। यूँ तो इस फिल्म में एक और संगीतकार आर. सुदर्शनम् भी थे, किन्तु यह माना जाता है कि राग भैरवी की इस ठुमरी का फिल्मी रूपान्तरण धनीराम ने किया था। धनीराम कभी भी विख्यात संगीतकार नहीं थे। उनके कार्यकाल में प्रथम श्रेणी की फिल्में तो दूर, उन्हें द्वितीय या तृतीय श्रेणी की अधिक फिल्में भी नहीं मिलीं। धनीराम को फिल्में बेशक कम मिलीं, किन्तु जो भी मिलीं उनका आधार रागदारी संगीत ही रहा। रागों के सुगम रूपान्तरण में वे दक्ष थे। धनीराम ने अपने सांगीतिक जीवन का आरम्भ एच.एम.वी. रिकार्डिंग कम्पनी से किया था। फिल्मों में उनका प्रवेश 1945-46 के दौरान एक गायक के रूप में हुई। फिल्म ‘धमकी’ और ‘झुमके’ में उन्होने कुछ गीत गाये, किन्तु एक पार्श्वगायक के रूप में विशेष सफलता नहीं मिली। 1948 में प्रदर्शित फिल्म ‘पपीहा रे’ में पहली बार धनीराम संगीत निर्देशक की भूमिका में सामने आए। इस फिल्म में उन्होने बेहद कर्णप्रिय गीत दिये थे। उनके संगीत से सँवारी गई दूसरी फिल्म थी ‘धुवाँ’, जिसमें लता मंगेशकर ने भी राग आधारित गीत गाये थे। इसी वर्ष प्रदर्शित फिल्म ‘लड़की’ में धनीराम के संगीतबद्ध गीत थे। भारतभूषण, मीना कुमारी, अंजली देवी और किशोर कुमार अभिनीत इस फिल्म में उन्होने राग भैरवी की पारम्परिक ठुमरी का अत्यन्त सुगम और आकर्षक रूपान्तरण किया था। गायिका गीता दत्त ने इस ठुमरी गीत को अत्यन्त मधुरता से गाया था।
गीता दत्त |
उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम दो दशकों में दिल्ली में ठुमरी के कई गायक और रचनाकार हुए, जिन्होंने इस शैली को समृद्धि प्रदान की। इन्हीं में एक थे गोस्वामी श्रीलाल, जिन्होंने पछाहीं ठुमरी को एक नई दिशा दी। इनका जन्म 1860 में दिल्ली के एक संगीतज्ञ परिवार में हुआ था। संगीत की शिक्षा इन्हें अपने पिता गोस्वामी कीर्तिलाल से प्राप्त हुई थी। ये सितारवादन में भी प्रवीण थे। ‘कुँवरश्याम’ उपनाम से उन्होने अनेक ध्रुवपद, धमार, खयाल, ठुमरी आदि की रचनाएँ की। इनका संगीत व्यसन स्वान्तःसुखाय और अपने आराध्य भगवान् श्रीकृष्ण को सुनाने के लिए ही था। उन्होने अपने संगीत का प्रदर्शन आजीवन किशोरीरमण मन्दिर से बाहर कहीं नहीं किया। इनकी ठुमरी रचनाएँ कृष्णलीला प्रधान तथा स्वर, ताल और साहित्य की दृष्टि से सर्वोत्तम हैं। राग भैरवी की ठुमरी- ‘बाट चलत नई चुनरी रंग डारी श्याम...’ श्यामकुँवर की सुप्रसिद्ध रचना है। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भी देवालय संगीत की परम्परा कहीं-कहीं दीख पड़ती थी। संगीतज्ञ कुँवरश्याम इसी परम्परा के संवाहक और पोषक थे। कुँवरश्याम की इसी बहुचर्चित ठुमरी का 1953 की फिल्म 'लड़की' में धनीराम ने रूपान्तरण किया था, जिसे गीता दत्त ने अपना मोहक स्वर प्रदान किया गया था। अब आप इसी ठुमरी गीत का रसास्वादन कीजिए।
ठुमरी भैरवी : फिल्म लड़की : ‘बाट चलत नई चुनरी रंग डारी श्याम...’ : संगीत धनीराम
पण्डित अजय चक्रवर्ती |
यही ठुमरी 1957 की फिल्म 'रानी रूपमती' में भी शामिल की गई थी, जिसे कृष्णराव चोनकर और मोहम्मद रफ़ी ने स्वर दिया था। राग भैरवी की इस ठुमरी में श्रृंगार रस के साथ कृष्ण की मुग्धकारी लीला का अत्यन्त भावपूर्ण अन्दाज में चित्रण किया गया है। रचना का साहित्य पक्ष ब्रज भाषा की मधुरता से सराबोर है। गायिका गीता दत्त ने इस ठुमरी को बोल-बाँट के अंदाज़ में गाया है। अन्त के सरगम से ठुमरी का श्रृंगार पक्ष अधिक प्रबल हो जाता है। भारतीय संगीत जगत के अनेक संगीत विद्वानों ने इस ठुमरी अंग की रचना को गाकर अलग-अलग रंग भरे हैं। जिन उपशास्त्रीय गायकों ने इस ठुमरी को लोकप्रिय किया है उनमें उस्ताद मुनव्वर अली खाँ, उस्ताद मुर्तजा खाँ, उस्ताद शफकत अली खाँ आदि प्रमुख हैं। पटियाला कसूर घराने की समृद्ध गायकी के संवाहक पण्डित अजय चक्रवर्ती प्रायः अपनी संगीत सभा का समापन इसी ठुमरी से करते हैं। ऐसी ही एक संगीत सभा में उन्होने इसी ठुमरी के माध्यम से भारतीय संगीत की कुछ विशेषताओं को इंगित किया था। अब आप इसी कार्यक्रम की एक रिकार्डिंग सुनिए और मुझे आज की इस कड़ी को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
ठुमरी भैरवी : ‘बाट चलत नई चुनरी रंग डारी श्याम...’ : स्वर - पण्डित अजय चक्रवर्ती
आज की पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ के 124वें अंक की पहेली में आज हम आपको छठें दशक के उत्तरार्द्ध में बनी एक फिल्म के राग आधारित एक गीत का अंश सुनवा रहे है। इसे सुन कर आपको दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। 130वें अंक तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – वाद्य संगीत के इस आलाप को सुन कर पहचानिए कि यह किस राग पर आधारित है?
2 – यह किस वाद्य के स्वर हैं? वाद्य का नाम बताइए।
आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 126वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से या swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ के 122वें अंक की पहेली में हमने आपको 1949 में प्रदर्शित फिल्म ‘बाज़ार’ से लिये गए गीत का एक अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग पहाड़ी और दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल दीपचन्दी। दोनों प्रश्नो के सही उत्तर लखनऊ के प्रकाश गोविन्द, जौनपुर के डॉ. पी.के. त्रिपाठी और जबलपुर की क्षिति तिवारी ने दिया है। तीनों प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
झरोखा अगले अंक का
मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर
जारी लघु श्रृंखला ‘भूले-बिसरे संगीतकार की कालजयी कृति’ के आगामी अंक में
हम एक बेहद लोकप्रिय राग पर आधारित एक सदाबहार फिल्मी गीत, इसके विस्मृत
संगीतकार और इसी राग पर आधारित वाद्य संगीत पर एक मोहक रचना पर चर्चा
करेंगे। अगले अंक में इस श्रृंखला की अगली कड़ी के साथ रविवार को प्रातः
9-30 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीत-रसिकों की प्रतीक्षा
करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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