अपने पूरे शबाब पर चल रहे संगीतकार अमित त्रिवेदी एक बार फिर हाज़िर हैं, एक के बाद एक अपने स्वाभाविक और विशिष्ट शैली के संगीत की बहार लेकर. पिछले सप्ताह हमने जिक्र किया घनचक्कर का, आज भी अमित हैं अपनी नई एल्बम लूटेरा के साथ, इस बार उनके जोडीदार हैं उनके सबसे पुराने साथ अमिताभ भट्टाचार्य. अमिताभ बेशक इन दिनों सभी बड़े संगीतकारों के साथ सफल जुगलबंदी कर रहे हैं पर जब भी उनका साथ अमित के साथ जुड़ता है तो उनमें भी एक नया जोश, एक नई रवानगी आ जाती है.
लूटेरा की कहानी ५० के दशक की है, और यहाँ संगीत में भी वही पुराने दिनों की महक आपको मिलेगी. पहले गीत संवार लूँ को ही लें. गीत के शब्द, धुन और गायिकी सभी सुनहरे पुराने दिनों की तरह श्रोताओं के बहा ले जाते हैं. गीत के संयोजन को भी पुराने दिनों की तरह लाईव ओर्केस्ट्रा के साथ हुआ है. मोनाली की आवाज़ का सुरीलापन भी गीत को और निखार देता है. आपको याद होगा मोनाली इंडियन आईडल में एक जबरदस्त प्रतिभागी बनकर उभरी थी, वो जीत तो नहीं पायी थी मगर प्रीतम के लिए ख्वाब देखे (रेस) गाकर उन्होंने पार्श्वगायन की दुनिया में कदम रखा. अमित ने इससे पहले उन्हें अगा बाई (आइय्या) में मौका दिया था, पर वो एक युगल गीत था. वास्तव में मोनाली का ये पहला गीत है जहाँ उनकी प्रतिभा उभरकर सामने आई है. संवार लूँ एक बेहद खूबसूरत गीत है जिसे हर उम्र के श्रोताओं का भरपूर प्यार मिलेगा ऐसी हमें पूरी उम्मीद है.
एक अच्छे गीत के बाद एक और अच्छा गीत....और यकीन मानिये एल्बम का ये अगला गीत एक मास्टरपीस है. अनकही में आवाज़ है स्वयं गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य की और क्या खूब गाया है उन्होंने. शब्द जैसे एक सुन्दर चित्र हो और अमित की ये कम्पोजीशन उनकी सबसे बहतरीन रचनाओं में से एक है. आने वाले एक लंबे अरसे तक श्रोता इस गीत को भूल नहीं पायेंगें. ख्वाबों का झरोखा , सच है या धोखा....
और ऐसे ही सच और धोखे के बीच झूलता है अगला गीत भी. शिकायतें में आवाजें हैं मोहन कानन और अमिताभ की. एक और सोफ्ट रोक्क् गीत जहाँ शब्द गहरे और दिलचस्प हैं. नाज़ुक से शब्द और मोहन की अलहदा गायिकी इस गीत को भी एक यादगार गीत में बदल देते हैं.....मगर रुकिए, क्योंकि मोंटा रे सुनने के बाद आप स्वाभाविक ही बाकी सब भूल जायेंगें. आवाज़ है एक और गीतकार स्वानंद किरकिरे की. गीत बांग्ला और हिंदी में है, दिशाहारा कोइम्बोका मोंटा रे के मायने होते हैं कि 'मेरा दिशाहीन दिल कितना पागल है'. बेहद बेहद सुन्दर गीत. ये शायद पहला गीत होगा जहाँ दो गीतकारों ने पार्श्वगायन किया हो. बधाई पूरी टीम को.
खुद अमित त्रिवेदी की दमदार आवाज़ में दर्द की पराकाष्ठा है जिन्दा में....एक बार फिर अमिताभ ने सरल मगर कारगर शब्द जड़े हैं. इन सभी गीतों की खासियत ये है कि इनमें पार्श्व में कम से कम वाध्यों का इस्तेमाल हुआ है, बस सब कुछ नापा तुला, उतना ही जितना जरूरी हो.....अंतिम गीत मन मर्जियाँ में शिल्पा राव के साथ अमिताभ किसी भी अन्य प्रोफेशनल गायक की तरह ही सुनाई देते हैं. एल्बम का एकमात्र युगल गीत रोमांटिक कम और थीमेटिक अधिक है.
वास्तव में ये हमारी राय में इस साल की पहली एल्बम है जिसमें सभी गीत एक से बढ़कर एक हैं. अमित और अमिताभ का एक और मास्टरपीस. हमारी सलाह मानिये तो आज ही इन गीतों को अपनी संगीत लाईब्रेरी का हिस्सा बनायें और बार बार सुनें.
एल्बम के बहतरीन गीत -
अनकही , संवार लूँ, जिंदा, मोंटा रे, शिकायतें
हमारी रेटिंग - ४.९ / ५
संगीत समीक्षा - सजीव सारथी
आवाज़ - अमित तिवारी
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