आमिर और नो वन किल्ल्ड जस्सिका के बाद एक बार फिर निर्देशक राजकुमार गुप्ता ने अपनी नई फिल्म के संगीत का जिम्मा भी जबरदस्त प्रतिभा के धनी अमित त्रिवेदी को सौंपा है. इमरान हाश्मी और विद्या बालन के अभिनय से सजी ये फिल्म है -घनचक्कर . फिल्म तो दिलचस्प लग रही है, आईये आज तफ्तीश करें कि इस फिल्म के संगीत एल्बम में श्रोताओं के लिए क्या कुछ नया है.
पहला गीत लेजी लेड अपने आरंभिक नोट से ही श्रोताओं को अपनी तरफ आकर्षित कर लेता है. संगीत संयोजन उत्कृष्ट है, खासकर बीच बीच में जो पंजाबी शब्दों के लाजवाब तडके दिए गए हैं वो तो कमाल ही हैं. बीट्स भी परफेक्ट है. अमिताभ के बोलों में नयापन भी है और पर्याप्त चुलबुलापन भी. पर तुरुप का इक्का है रिचा शर्मा की आवाज़. उनकी आवाज़ और गायकी ने गीत को एक अलग ही मुकाम दे दिया है. एक तो उनका ये नटखट अंदाज़ अब तक लगभग अनसुना ही था, उस पर एक लंबे अंतराल से उन्हें न सुनकर अचानक इस रूप में उनकी इस अदा से रूबरू होना श्रोताओं को खूब भाएगा. निश्चित ही ये गीत न सिर्फ चार्ट्स पर तेज़ी से चढेगा वरन एक लंबे समय तक हम सब को याद रहने वाला है. बधाई पूरी टीम को.
आगे बढ़ने से पहले आईये रिचा के बारे में कुछ बातें आपको बताते चलें. फरीदाबाद, हरियाणा में जन्मी रिचा ने गन्धर्व महाविद्यालय से गायन सीखा. उनकी पहचान कीर्तनों में गाकर बननी शुरू हुई, बॉलीवुड में उन्हें पहला मौका दिया रहमान ने फिल्म ताल में. नि मैं समझ गयी गीत बेहद लोकप्रिय हुआ. उनकी प्रतिभा के अलग अलग चेहरे हमें दिखे माहि वे (कांटे), बागबाँ रब है (बागबाँ), और निकल चली रे (सोच) जैसे गीतों में. पर हमारी राय में उनकी ताज़ा गीत लेजी लेड उनका अबतक का सबसे बहतरीन गीत बनकर उभरा है.
वापस लौटते हैं घनचक्कर पर. अगला गीत है अल्लाह मेहरबान जहाँ गीत के माध्यम से बढ़िया व्यंग उभरा है अमिताभ ने, कव्वाली नुमा सेट अप में अमित ने धुन में विविधता भरी है. दिव्या कुमार ने अच्छा निभाया है गीत को. एक और कबीले तारीफ गीत.
घनचक्कर बाबू जैसा कि नाम से जाहिर है कि शीर्षक गीत है, एक बार फिर अमिताभ ने दिलचस्प अंदाज़ में फिल्म के शीर्षक किरदार का खाका खीचा है और उतने ही मजेदार धुन और संयोजन से अपना जिम्मा संभाला है.अमित ने. गीत सिचुएशनल है और परदे पर इसे देखना और भी चुटीला होगा.
अंतिम गीत झोलू राम से अमित बहुत दिनों बाद मायिक के पीछे लेकर आये हैं ९० के दशक में तुम तो ठहरे परदेसी गाकर लोकप्रिय हुए अल्ताफ राजा को. हालाँकि ये प्रयोग उतना सफल नहीं रहा जितना रिचा वाला है, पर एक लंबे समय के अंतराल के बाद अल्ताफ को सुनना निश्चित ही अच्छा लगा, .पर गीत साधारण ही है जिसके कारण अल्ताफ की इस वापसी में अपेक्षित रंग नहीं उभर पाया.
एल्बम के बहतरीन गीत -
लेजी लेड, अल्लाह मेहरबान
हमारी रेटिंग - ३.७
संगीत समीक्षा - सजीव सारथी
संगीत समीक्षा - सजीव सारथी
आवाज़ - अमित तिवारी
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Comments
९० के दशक में अल्ताफ राजा "हम तो चले परदेसी" गाकर नहीं बल्कि "तुम तो ठहरे परदेसी" गाकर लोकप्रिय हुए थे।