एक शताब्दी का हुआ भारतीय सिनेमा
‘राजा हरिश्चन्द्र’ से शुरू हुआ भारतीय सिनेमा का इतिहास
‘राजा हरिश्चन्द्र’ से शुरू हुआ भारतीय सिनेमा का इतिहास
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दादा साहेब फालके |
पिछली एक शताब्दी में भारतीय जनजीवन पर सिनेमा का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा है। सामान्य जीवन के हर क्षेत्र को सिनेमा ने सर्वाधिक प्रभावित किया है। यहाँ तक कि सिनेमा ने हमारे खान-पान, रहन-सहन, रीति-रिवाजों, पहनावे आदि पर भी गहरा प्रभाव डाला है। परम्परागत भारतीय कला-विधाएँ प्रत्येक युग में अभिव्यक्ति की सशक्त माध्यम रही हैं। इन पारम्परिक कला-विधाओं में नए-नए प्रयोग होते रहे और इनका परिमार्जन भी होता रहा। कुछ विधाएँ कला और तकनीक के साथ संयुक्त होकर विकसित होती है। ऐसी ही एक कला-विधा है- सिनेमा, जिसमें नाट्य, संगीत और अन्यान्य ललित कलाओं के साथ-साथ यान्त्रिक कौशल का भी योगदान होता है। यह सुखद आश्चर्य का विषय है कि भारत में सिनेमा का विकास, विश्व-सिनेमा के लगभग साथ-साथ हुआ। बीसवीं शताब्दी के पहले दशक में जब परदे पर चलती-फिरती तस्वीरों को देख पाना सम्भव हुआ तब भारत में भी इस नई विधा में प्रयोग आरम्भ हुआ। यन्त्र विदेशी, किन्तु कथानक, वेषभूषा और चरित्र विशुद्ध भारतीय, जनमानस के सुपरिचित थे। आवाज़ रहित सिनेमा के बावजूद दर्शक, सदियों से जनमानस में बसे पौराणिक चरित्रों को परदे पर देखते ही पहचान लेते थे।
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कार्यरत फालके |
भारतीय सिनेमा के इतिहास में ढुंडिराज गोविन्द फालके, उपाख्य दादा साहेब फालके द्वारा निर्मित मूक फिल्म ‘राजा हरिश्चन्द्र’ को भारत के प्रथम कथा-चलचित्र का सम्मान प्राप्त है। इस चलचित्र का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन 3 मई, 1913 को गिरगाँव, मुम्बई स्थित तत्कालीन कोरोनेशन सिनेमा में किया गया था। इस प्रदर्शन तिथि के अनुसार आज के दिन अर्थात 3 मई, 2013 भारतीय सिनेमा का शताब्दी वर्ष पूर्ण हो चुका है। ‘राजा हरिश्चन्द्र’ भारत में और भारतीयों द्वारा निर्मित प्रथम मूक, पूर्णकालिक कथा-फिल्म थी। इस फिल्म के निर्माता, निर्देशक, पटकथा लेखक आदि सब कुछ दादा साहब फालके ही थे। अयोध्या के राजा सत्यवादी हरिश्चन्द्र की लोकप्रिय पौराणिक कथा पर आधारित तत्कालीन गुजराती नाटककार रणछोड़ भाई उदयराम का नाटक उन दिनों रंगमंच पर बेहद सफल हुआ था। फालके ने इसी नाटक को अपनी फिल्म की पटकथा के रूप में विकसित किया था। चालीस मिनट की इस फिल्म में राजा हरिश्चन्द्र की भूमिका दत्तात्रेय दामोदर दुबके, महारानी तारामती की भूमिका पुरुष अभिनेता सालुके और विश्वामित्र की भूमिका जी.वी. साने ने निभाई थी। उन दिनों नाटकों में नारी चरित्रों का निर्वहन पुरुष कलाकार ही किया करते थे। जब नाटकों में महिला कलाकारों का पदार्पण सामाजिक दृष्टि से अच्छा नहीं माना जाता था, तो भला फिल्मों के लिए महिला कलाकार कहाँ से उपलब्ध होतीं।
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वीडियो : प्रथम भारतीय फिल्म ‘राजा हरिश्चन्द्र’ के कुछ सजीव दृश्य
Raja Harishchandra is a 1913 silent Indian film directed and
produced by Dadasaheb Phalke, and is the first full-length Indian feature film
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के स्तम्भ ‘भारतीय सिनेमा के सौ साल’ के अन्तर्गत आज हमने आपके लिए पहली भारतीय फिल्म 'राजा हरिश्चन्द्र' के साथ-साथ मूक युग की कुछ अन्य गतिविधियों के दृश्य प्रस्तुत किये। आपको हमारी यह प्रस्तुति कैसी लगी, हमें अवश्य लिखिएगा। आपकी प्रतिक्रिया, सुझाव और समालोचना से हम इस स्तम्भ को और भी सुरुचिपूर्ण रूप प्रदान कर सकते हैं। अपनी प्रतिक्रिया, समालोचना और सुझाव के लिए radioplaybackindia@live.com पर अपना सन्देश भेजें।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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