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रागमाला गीत- ‘काली घोड़ी द्वारे खड़ी...’




स्वरगोष्ठी – 119 में आज



रागों के रंग रागमाला गीत के संग – 5


विकसित होते प्रेम की अनुभूति कराता गीत ‘काली घोड़ी द्वारे खड़ी...’


संगीत-प्रेमियों की साप्ताहिक महफिल ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नये अंक का साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र पुनः उपस्थित हूँ। छठें और सातवें दशक की हिन्दी फिल्मों में कई उल्लेखनीय रागमाला गीतों की रचना हुई थी। नौवें दशक की फिल्मों में रागमाला गीतों की संख्या अपेक्षाकृत कम थी। ‘स्वरगोष्ठी’ के 114वें अंक में हमने आपको 1981 में प्रदर्शित फिल्म ‘उमराव जान’ से लिये गए रागमाला गीत का रसास्वादन कराया था। आज का रागमाला गीत इसी दशक अर्थात 1981 में ही बनी फिल्म ‘चश्मेबद्दूर’ से लिया गया है। इस गीत में मुख्य रूप से राग काफी का अत्यन्त आकर्षक आधार है। जबकि गीत के दूसरे अन्तरे में मालकौंस और तीसरे में भैरवी के स्वरों का भी प्रयोग किया गया है।

येसुदास
रागमाला गीतों में रागों का चयन और उनका क्रम एक निश्चित उद्देश्य से किया जाता है। लघु श्रृंखला ‘रागों के रंग रागमाला गीतों के संग’ के अन्तर्गत अब तक हम आपको ऐसे गीत सुनवा चुके हैं, जिनमें प्रहर के क्रम में अथवा ऋतु परिवर्तन के क्रम में रागों का चयन किया गया था। परन्तु आज हम आपको जो गीत सुनवा रहे हैं, उसमें रागो का चयन फिल्म के प्रसंग के अनुसार किया गया है। आज हम आपको 1981 में प्रदर्शित, मनोरंजक फिल्म ‘चश्मेबद्दूर’ से लिया गया एक रागमाला गीत सुनवाएँगे। सई परांजपे द्वारा निर्देशित यह लोकप्रिय कामेडी अपने परिवार से दूर, छात्रावास में रह कर पढ़ाई कर रहे तीन नौजवानों की कहानी है। इस फिल्म के गीत इन्दु जैन ने लिखे और इन्हें राजकमल ने संगीतबद्ध किये थे। ‘राजश्री’ की फिल्मों में अपने स्तरीय संगीत से पहचाने जाने वाले संगीतकार राजकमल ने फिल्म ‘चश्मेबद्दूर’ के गीतों में रागों का स्पर्श देकर उन्हें स्मरणीय बना दिया। अपने विद्यार्थी-जीवन में राजकमल एक कुशल तबला वादक थे। इसके अलावा लोक संगीत का भी उन्होने गहन अध्ययन किया था। लोक संगीत के अध्ययन के लिए उन्हें सरकारी छात्रवृत्ति भी मिली थी। ‘दोस्त और दुश्मन’ (1971) से अपने फिल्म संगीत के सफर की शुरुआत करने वाले राजकमल को पहली भव्य सफलता ‘राजश्री’ की फिल्म ‘सावन को आने दो’ (1979) में मिली। इस फिल्म के संगीत में पर्याप्त विविधता थी और गीतों में पारिवारिक अभिरुचि का समावेश भी था। रागों का सरल रूपान्तरण भी इनके संगीत के एक विशेषता रही है। फिल्म संगीत में रागों का ग्राह्य प्रयोग उन्होने 1981 की फिल्म ‘चश्मेबद्दूर’ में किया। इस फिल्म के अन्य मधुर गीतों के साथ एक रागमाला गीत- ‘काली घोड़ी द्वारे खड़ी...’ भी था, जिसे येसुदास और हेमन्ती शुक्ला ने स्वर दिया। कवयित्री इन्दु जैन ने इस गीत में चुहलबाजी से युक्त हास्य बुना है।

हेमन्ती शुक्ला
संगीतकार राजकमल ने इस गीत में मुख्य रूप से राग काफी का आधार दिया है। गीत के आधे से अधिक भाग अर्थात गीत का स्थायी और प्रथम दो अन्तरे राग काफी पर आधारित है। गीत के इस भाग का फिल्मांकन ‘सरगम संगीत विद्यालय’ की कक्षा में किया गया है, जहाँ नायिका (दीप्ति नवल) अपने संगीत-गुरु (विनोद नागपाल) से संगीत-शिक्षा प्राप्त कर रही है। स्थायी की पंक्ति में ‘काली घोड़ी’ शब्द का संकेत नायक (फारुख शेख) की दुपहिया (काले रंग की बाइक) की ओर है। इस पंक्ति के अर्थ है कि नायक अब नायिका के निकट आ चुका है। गीत के तीसरे अन्तरे की शुरुआत पहले सरगम और फिर ‘काली घोड़ी पे गोरा सैयाँ चमके...’ पंक्तियों से होती है। इस अन्तरे में राग मालकौंस के स्वरों का प्रयोग है। दृश्य के अनुसार नायिका सड़क पर बस के इन्तजार में खड़ी है, तभी नायक अपनी काली घोड़ी (बाइक) से आता है और उसे बैठा कर चल देता है। इस अन्तरे में ‘काली घोड़ी द्वारे खड़ी’ के स्थान पर ‘काली घोड़ी दौड़ पड़ी...’ शब्दावली का प्रयोग हुआ है। गीत का चौथा अन्तरा- 'लागी चुनरिया उड़ उड़ जाए...' राग भैरवी पर आधारित है। इस अन्तरे में नायक-नायिका के प्रेम को और प्रगाढ़ होते दिखाया गया है। इस प्रकार संगीतकार राजकमल ने प्रसंग के अनुकूल क्रमशः विकसित होते प्रेम सम्बन्धों की अनुभूति कराने के लिए राग काफी, मालकौंस और भैरवी रागों का प्रयोग किया है। फिल्मों के रागमाला गीतों में फिल्म ‘चश्मेबद्दूर’ का यह गीत बेहद मधुर और रोचक भी है। अब आप यह गीत सुनिए और मुझे इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।

रागमाला गीत : फिल्म ‘चश्मेबद्दूर’ : ‘काली घोड़ी द्वारे खड़ी...’ : येसुदास और हेमन्ती शुक्ला



आज की पहेली 

‘स्वरगोष्ठी’ की 119वीं संगीत पहेली में हम आपको सातवें दशक की एक फिल्म के रागमाला गीत का एक अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको केवल इसी अंश से सम्बन्धित दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 121वें अंक में हम सही उत्तर और विजेताओं के नामों की घोषणा करेंगे। 120वें अंक तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला का विजेता 122वें अंक में घोषित किया जाएगा।


1 - संगीत के इस अंश को सुन कर पहचानिए कि यह गीतांश किस राग पर आधारित है?

2 – गीत के इस अंश में प्रयुक्त ताल का नाम बताइए।

आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 121वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।


पिछली पहेली के विजेता 

‘स्वरगोष्ठी’ के 117वें अंक में हमने आपको 1963 में प्रदर्शित भोजपुरी फिल्म 'गंगा मैया तोहें पियरी चढ़ाइबो' के शीर्षक गीत का एक अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- ताल दादरा और दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- संगीतकार चित्रगुप्त। दोनों प्रश्नो के सही उत्तर जबलपुर की क्षिति तिवारी, लखनऊ के प्रकाश गोविन्द और जौनपुर के डॉ. पी.के. त्रिपाठी ने दिया है। तीनों प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ।


झरोखा अगले अंक का 


मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी लघु श्रृंखला ‘रागों के रंग रागमाला गीत के संग’ का आगामी अंक श्रृंखला का समापन अंक होगा। इस रागमाला गीत में चार रागों की उपस्थिति है और यह एक युगलगीत है। आप भी हमारे आगामी अंकों के लिए भारतीय शास्त्रीय, लोक अथवा फिल्म संगीत से जुड़े नये विषयों, रागों और अपनी प्रिय रचनाओं की फरमाइश कर सकते हैं। हम आपके सुझावों और फरमाइशों का स्वागत करते हैं। अगले अंक में रविवार को प्रातः 9-30 ‘स्वरगोष्ठी’ के इस मंच पर आप सभी संगीत-रसिकों की हमें प्रतीक्षा रहेगी। 


प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र 

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