स्वरगोष्ठी – 121 में आज
एक कालजयी गीत जिसने संगीतकार को अमर कर दिया
सहगल ने गाया ‘भक्त सूरदास’ का गीत- ‘मधुकर श्याम हमारे चोर...’
संगीत-प्रेमियों की साप्ताहिक महफिल ‘स्वरगोष्ठी’ में एक नई लघु श्रृंखला के पहले अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र उपस्थित हूँ। इस नई लघु श्रृंखला का शीर्षक है- ‘एक कालजयी गीत जिसने संगीतकार को अमर कर दिया’। इस श्रृंखला की प्रत्येक कड़ी में हम एक ऐसा राग आधारित, गीत प्रस्तुत करेंगे जिसके संगीतकार को आज प्रायः भुला दिया गया है। ये सदाबहार गीत आज भी रेडियो पर प्रसारित होते रहते हैं। परन्तु वर्तमान पीढ़ी इन गीतों के सर्जक के बारे में प्रायः अनभिज्ञ है। इस श्रृंखला में हम आपका परिचय कुछ ऐसे ही गीतों और इनके संगीतकारों से कराएँगे। श्रृंखला की पहली कड़ी में आज हम आपको 1942 में प्रदर्शित फिल्म ‘भक्त सूरदास’ से राग भैरवी पर आधारित एक लोकप्रिय गीत सुनवाएँगे और इस गीत के संगीतकार ज्ञानदत्त का संक्षिप्त परिचय भी प्रस्तुत करेंगे।
ज्ञानदत्त |
चौथे दशक के उत्तरार्द्ध से पाँचवें दशक के पूर्वार्द्ध में अत्यन्त सक्रिय रहे संगीतकार ज्ञानदत्त आज जनमानस से विस्मृत हो चुके हैं। रणजीत मूवीटोन की 1937 में बनी फिल्म ‘तूफानी टोली’ से अपनी संगीतकार की पारी आरम्भ करने वाले ज्ञानदत्त रणजीत स्टुडियो के अनुबन्धित संगीत निर्देशक थे। वर्ष 1940 तक उन्होने रणजीत की लगभग 20 फिल्मों में संगीत दिया था। अपनी पहली फिल्म ‘तूफानी टोली’ में ज्ञानदत्त ने अभिनेत्री निम्मी की माँ और अपने समय की मशहूर तवायफ वहीदन बाई से उनका पहला फिल्मी गीत- ‘क्यों नैनन में नीर बहाए...’ गवाया था। बाद में महिला गायिकाओं में वहीदन बाई, ज्ञानदत्त की प्रमुख गायिका बन गईं। इसके साथ ही अपनी पहली फिल्म में पुरुष गायक के रूप में कान्तिलाल को अवसर दिया था। आगे चल कर ज्ञानदत्त की आरम्भिक फिल्मों में कान्तिलाल प्रमुख पुरुष गायक बने। महिला गायिकाओं में वहीदन बाई के अलावा कल्याणी, इन्दुबाला, इला देवी, राजकुमारी, खुर्शीद और सितारा आदि ने भी उनके गीतों को स्वर दिया।
कुन्दनलाल सहगल |
पाँचवें दशक के आरम्भ में ज्ञानदत्त ने रणजीत के अलावा अन्य फिल्म निर्माण संस्थाओं की कई उल्लेखनीय फिल्मों में भी संगीत निर्देशन किया था। वे मूलतः प्रेम और श्रृंगार के संगीतकार थे और उन्होने उस समय के इस प्रकार के गीतों की प्रचलित परिपाटी से हट कर अपने गीतों में सुगम और कर्णप्रियता के तत्व डालने की कोशिश की थी। उन्होने पाँचवें दशक की अपनी फिल्मों में धुन की भावप्रवणता पर अधिक ध्यान दिया। इस दौर की उनकी सबसे उल्लेखनीय फिल्म थी, 1942 में प्रदर्शित, ‘भक्त सूरदास’। इस फिल्म में कुन्दनलाल सहगल के गाये कई गीतों ने अपने समय में धूम मचा दी थी। फिल्म ‘भक्त सूरदास’ में सूरदास के कुछ लोकप्रिय पदों को शामिल किया गया था। ‘निस दिन बरसत नैन हमारे...’, ‘मैं नहीं माखन खायो...’ और ‘मधुकर श्याम हमारे चोर...’
जैसे प्रचलित पदों को कुन्दनलाल सहगल ने अपना भावपूर्ण स्वर दिया था। सहगल
के बारे में यह तथ्य सभी जानते हैं कि शराब के नशे में ही गीत रिकार्ड
कराते थे। ‘मधुकर श्याम हमारे चोर...’ गीत की रिकार्डिंग के समय भी
वे नशे में धुत थे। संगीतकार ज्ञानदत्त सहित साजिन्दे और अन्य
स्टुडियोकर्मी चिन्तित थे, किन्तु उन्होने सबको आश्वस्त किया और उस दशा में
भी गीत की इतनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी कि यह फिल्म का सबसे लोकप्रिय गीत
सिद्ध हुआ। संगीतकार ज्ञानदत्त ने इस गीत को भैरवी के स्वरों में और कहरवा
ताल में बाँधा है। गीत में सहगल की आवाज़ में भैरवी के कोमल स्वर खूब निखरे
हैं। यह गीत सात दशकों के बाद भी ताज़गी का अनुभव कराता है। लीजिए, पहले आप
फिल्म ‘भक्त सूरदास’ का राग भैरवी के स्वरों गूँथा यह गीत सुनिए।
राग भैरवी : फिल्म भक्त सूरदास : ‘मधुकर श्याम हमारे चोर...’ : संगीत – ज्ञानदत्त
राग भैरवी के आरोह स्वर- सा, रे॒ (कोमल), ग॒ (कोमल), म, प, ध॒ (कोमल), नि॒ (कोमल), सां तथा अवरोह के स्वर- सां, नि॒ (कोमल), ध॒ (कोमल), प, म ग (कोमल), रे॒ (कोमल), सा होते हैं। इस राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। यूँ तो इसके गायन-वादन का समय प्रातःकाल, सन्धिप्रकाश बेला में है, किन्तु आम तौर पर राग ‘भैरवी’ का गायन-वादन किसी संगीत-सभा अथवा समारोह के अन्त में किये जाने की परम्परा बन गई है। राग ‘भैरवी’ को ‘सदा सुहागिन राग’ भी कहा जाता है। और अब हम आपको सूरदास का यही भक्तिपद विश्वविख्यात संगीतज्ञ पण्डित भीमसेन जोशी के स्वरों में प्रस्तुत कर रहे हैं। आप यह मधुर गीत सुनिए और मुझे इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
राग भैरवी : भजन : ‘मधुकर श्याम हमारे चोर...’ : पण्डित भीमसेन जोशी
आज की पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ की 121वीं संगीत पहेली में हम आपको पाँचवें दशक की एक फिल्म के राग आधारित गीत का एक अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 130वें अंक तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 - संगीत के इस अंश को सुन कर पहचानिए कि यह किस राग पर आधारित है?
2 – गीत के इस अंश में प्रयुक्त ताल का नाम बताइए।
आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 123वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ के 119वें अंक में हमने आपको 1966 में प्रदर्शित फिल्म 'सौ साल बाद' के रागमाला गीत का एक अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग मेघ मल्हार और दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल कहरवा। इस बार की पहेली के उत्तर हमारे एकमात्र प्रतिभागी, लखनऊ के प्रकाश गोविन्द ने दिया है, किन्तु उनके प्रेषित दोनों उत्तरों में से एक सही नहीं हैं। प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए प्रकाश जी को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक धन्यवाद।
झरोखा अगले अंक का
मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर आज से एक नई लघु श्रृंखला ‘एक कालजयी गीत जिसने संगीतकार को अमर कर दिया’ का आरम्भ हुआ है। इस अंक में संगीतकार ज्ञानदत्त के परिचय के लिए हमने पंकज राग की पुस्तक ‘धुनों की यात्रा’ से कुछ सन्दर्भ लिये हैं। आगामी अंक में हम ऐसे ही एक विस्मृत संगीतकार के लोकप्रिय गीत के साथ उपस्थित होंगे। आप भी हमारे आगामी अंकों के लिए भारतीय शास्त्रीय, लोक अथवा फिल्म संगीत से जुड़े नये विषयों, रागों और अपनी प्रिय रचनाओं की फरमाइश कर सकते हैं। हम आपके सुझावों और फरमाइशों का स्वागत करते हैं। अगले अंक में रविवार को प्रातः 9-30 ‘स्वरगोष्ठी’ के इस मंच पर आप सभी संगीत-रसिकों की हमें प्रतीक्षा रहेगी।
प्रस्तुति - कृष्णमोहन मिश्र
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