स्वरगोष्ठी – 117 में आज
रागों के रंग रागमाला गीत के संग – 4
‘ऋतु आए ऋतु जाए सखी री मन के मीत न आए...’
‘स्वरगोष्ठी’ के एक नये अंक के साथ मैं, कृष्णमोहन मिश्र अपने संगीत-प्रेमी
पाठकों-श्रोताओं के बीच एक बार पुनः उपस्थित हूँ। आज के अंक में हम एक बार
फिर लघु श्रृंखला ‘रागों के रंग रागमाला गीत के संग’ की अगली कड़ी प्रस्तुत
कर रहे हैं। श्रृंखला के पिछले दो अंकों में हमने जो गीत शामिल किये थे,
उनमे रागों के क्रम प्रहर के क्रमानुसार थे। परन्तु आज के रागमाला गीत में
रागों का क्रम बदलते मौसम के अनुसार है। इस गीत में ग्रीष्म ऋतु का राग गौड़
सारंग, वर्षा ऋतु का राग गौड़ मल्हार, पतझड़ का राग जोगिया और बसन्त ऋतु का
राग बहार क्रमशः शामिल किया गया है। रागमाला का यह गीत हमने 1953 प्रदर्शित
फिल्म ‘हमदर्द’ से लिया है। फिल्म के संगीतकार हैं, अनिल विश्वास और इसे
मन्ना डे और लता मंगेशकर ने गाया है।
अनिल विश्वास और लता मंगेशकर |
मन्ना डे |
फिल्म 'हमदर्द' के इस गीत के प्रसंग में अभिनेता शेखर एक अन्ध-गायक की भूमिका में हैं, जो नायिका निम्मी को संगीत की शिक्षा दे रहे हैं। गीत के पहले भाग के बोल हैं- ‘ऋतु आए ऋतु जाए सखी री, मन के मीत न आए...’। गीत के इस अन्तरे में ग्रीष्म ऋतु की दोपहरी का परिवेश चित्रित है और ऐसे परिवेश के चित्रण के लिए सर्वाधिक उपयुक्त राग गौड़ सारंग ही है। अनिल विश्वास ने गीत का दूसरा अन्तरा राग गौड़ मल्हार में निबद्ध किया था, जिसके बोल हैं- ‘बरखा ऋतु बैरी हमार...’। प्रचण्ड गर्मी के बाद जब वर्षा की बूँदें भूमि की तपिश को शान्त करने का प्रयत्न करती हैं, तब विरही मन और भी व्याकुल हो जाता है। गीत के इस भाग के शब्द भी परिवेश के अनुकूल रचे गए हैं। सुविधा की दृष्टि गीत के चारो अन्तरों को दो भाग में हमने बाँट दिया है। लीजिए गीत के प्रथम दो अन्तरे सुनिए।
रागमाला गीत : फिल्म हमदर्द : राग गौड़ सारंग और गौड़ मल्हार : मन्ना डे और लता मंगेशकर
गीतकार प्रेम धवन |
रागमाला गीत : फिल्म हमदर्द : राग जोगिया और बहार : मन्ना डे और लता मंगेशकर
आज की पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ की 117वीं संगीत पहेली में हम आपको आधी शताब्दी पूर्व के एक फिल्मी गीत का अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 120वें अंक तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 - संगीत के इस अंश को सुन कर पहचानिए कि यह गीत किस ताल में निबद्ध है?
2 – गीत के संगीतकार का नाम बताइए।
आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 119वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ के 115वें अंक में हमने आपको 1964 में प्रदर्शित फिल्म 'गोदान' से पार्श्वगायक मुकेश की आवाज़ में पारम्परिक चैती की धुन पर आधारित एक गीत का अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- संगीत शैली चैती और दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- संगीतकार पण्डित रविशंकर। दोनों प्रश्नो के सही उत्तर बैंगलुरु के पंकज मुकेश, जबलपुर की क्षिति तिवारी, लखनऊ के प्रकाश गोविन्द और जौनपुर के डॉ. पी.के. त्रिपाठी ने दिया है। चारो प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ।
झरोखा अगले अंक का
मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर
जारी लघु श्रृंखला ‘रागों के रंग रागमाला गीत के संग’ को हम एक बार फिर
विराम देंगे और उसके स्थान पर एक विशेष अंक प्रस्तुत करेंगे। दरअसल इस माह
एक क्षेत्रीय भाषा की फिल्म अपने प्रदर्शन की आधी शताब्दी पूर्ण कर चुकी
है। इस अवसर पर हम अपने एक अतिथि लेखक और युवा फिल्म पत्रकार रविराज पटेल
का शोधपरक् आलेख प्रस्तुत करेंगे। आप भी हमारे आगामी अंकों के लिए भारतीय
शास्त्रीय, लोक अथवा फिल्म संगीत से जुड़े नये विषयों, रागों और अपनी प्रिय
रचनाओं की फरमाइश कर सकते हैं। हम आपके सुझावों और फरमाइशों का स्वागत करते
हैं। अगले अंक में रविवार को प्रातः 9-30 ‘स्वरगोष्ठी’ के इस मंच पर आप
सभी संगीत-रसिकों की हमें प्रतीक्षा रहेगी।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
Comments