प्लेबैक वाणी -44 - संगीत समीक्षा - बॉम्बे टा'कीस
सिनेमा के १०० साल पूरे हुए, सभी सिने प्रेमियों के लिए ये हर्ष का समय है. फिल्म इंडस्ट्री भी इस बड़े मौके को अपने ही अंदाज़ में मना या भुना रही है. १०० सालों के इस अद्भुत सफर को एक अनूठी फिल्म के माध्यम से भी दर्शाया जा रहा है. बोम्बे टा'कीस नाम की इस फिल्म को एक नहीं दो नहीं, पूरे चार निर्देशक मिलकर संभाल रहे हैं, जाहिर है चारों निर्देशकों की चार मुक्तलिफ़ कहानियों का संकलन होगी ये फिल्म. ये चार निर्देशक हैं ज़ोया अख्तर, करण जोहर, अनुराग कश्यप और दिबाकर बैनर्जी. अमित त्रिवेदी का है संगीत तथा गीतकार हैं स्वानंद किरकिरे और अमिताभ भट्टाचार्य. चलिए देखते हैं फिल्म की एल्बम में बॉलीवुड के कितने रंग समाये हैं.
पहला गीत बच्चन हिंदी सिनेमा के सबसे बड़े सुपर स्टार अमिताभ बच्चन को समर्पित है...जी हाँ सही पहचाना वही जो रिश्ते में सबके बाप हैं. शब्दों में अमिताभ भट्टाचार्य ने सरल सीधे मगर असरदार शब्दों में हिंदी फिल्मों पर बच्चन साहब के जबरदस्त प्रभाव को बखूबी बयाँ किया है. अमित की तो बात ही निराली है, गीत का संगीत संयोजन कमाल का है. एकतारा का जबरदस्त प्रयोग गीत को वाकई इस दशक में पहुंचा देता है जब हिंदी सिनेमा का पर्याय ही अमिताभ बच्चन हुआ करते थे. बीच बीच में उनके मशहूर संवादों से गीत का मज़ा दुगुना हो जाता है. सुखविंदर की आवाज़ में बहुत दिनों बाद ऐसा दमदार गीत निकला है. खैर हम भी इस गीत के साथ अपनी इडस्ट्री और बच्चन साहब की ऊंची शख्सियत को सलाम करते हैं, और आगे बढते हैं अगले गीत की तरफ.
अक्कड बक्कड बोम्बे बो, अस्सी नब्बे पूरे सौ, सौ बरस का हुआ, ये खिलाड़ी न बूढा हुआ.....वाह स्वानंद साहब ने खूब बयाँ किया है सिनेमा के सौ बरसों का किस्सा. हालाँकि अमित की धुन इंग्लिश विन्गलिश के कैसे जाऊं मैं पराये देश से कुछ मिलती जुलती लगती है शुरुआत में, पर धीरे धीरे गीत अपनी लय पकड़ लेता है, सबसे बढ़िया बात ये है कि गीत अपनी रवानी में कहीं भी कमजोर नहीं पड़ता, और श्रोताओं को झूमने की वजह देता रहता है. मोहित की आवाज़ भी खूब जमी है गीत में....
मुर्रब्बा गीत के दो संस्करण हैं, आमतौर पर अमित के इन ट्रेडमार्क गीतों में शिल्प राव की आवाज़ जरूरी सी होती है, पर इस गीत में महिला स्वर है कविता सेठ की जिनका साथ दिया है खुद अमित ने. छोटा सा मगर बेहद प्रभावी गीत है ये भी. एक बार फिर संगीत संयोजन गीत की जान है. गीत ऐसा नहीं है जो जुबाँ पर चढ जाए पर अच्छा सुनने के शौक़ीन इसे अवश्य पसंद करेंगें .गीत का एक संस्करण जावेद बशीर की आवाज़ में भी है.
शीर्षक गीत बोम्बे टा'कीस एक बार फिल्मों के प्रति दर्शकों की दीवानगी को समर्पित है.कैलाश खेर और रिचा शर्मा की आवाजों में ये एक रेट्रो गीत है. स्वानंद के शब्द दिलचस्प हैं. पर मुझे इसका दूसरा संस्करण जिसमें ढेरों गायकों की आवाज़ समाहित है. शान और उदित की आवाजों के साथ कुछ अन्य गीतों की झलक में मिला जुला ये संस्करण अधिक फ़िल्मी लगता है.
वाकई इन सौ बरसों में फिल्मों के कितने चेहरे बदले पर सौ बरसों के बाद आज भी लगता है जैसे बस अभी तो शुरुआत ही है. फिल्मों का ये कारवाँ यूहीं चलता चले और मनोरंजन के इस अद्भुत लोक में दर्शकों को भरपूर आनंद मिलता रहे यही हम सब की कामना है. एल्बम को रेडियो प्लेबैक दे रहा है ४ की रेटिंग ५ में से.
एक सवाल श्रोताओं के लिए -
प्रस्तुत एल्बम में एक गीत एक फ़िल्मी नायक को समर्पित है, क्या आपको कोई अन्य गीत याद आता है जो किसी फ़िल्मी व्यक्तित्व पर केंदित है ?
संगीत समीक्षा - सजीव सारथी
आवाज़ - अमित तिवारी
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