ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 784/2011/224
नमस्कार! दोस्तों, इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में हम प्रस्तुत कर रहे हैं लघु शृंखला 'चंदन का पलना, रेशम की डोरी'। इस शृंखला में आपनें बलराज साहनी पर फ़िल्माया तलत साहब का गाया फ़िल्म 'जवाब' का गीत सुना था। आज एक बार फिर बलराज साहब पर फ़िल्माई एक लोरी हम आपके लिए ले आये हैं, और इस बार आवाज़ है मन्ना डे की। एक समय ऐसा था जब किसी वयस्क चरित्र पर जब भी कोई गीत फ़िल्माया जाना होता तो संगीतकार और निर्माता मन्ना दा की खोज करते। इस बात का मन्ना दा नें एक साक्षात्कार में हँसते हुए ज़िक्र भी किया था कि मुझे बुड्ढों के लिए प्लेबैक करने को मिलते हैं। मन्ना दा की आवाज़ में कुछ ऐसी बात है कि नायक से ज़्यादा उनकी आवाज़ वयस्क चरित्रों पर फ़िट बैठती थी। लेकिन इससे उन्हें नुकसान कुछ नहीं हुआ, बल्कि कई अच्छे अच्छे अलग हट के गीत गाने को मिले। आज उनकी गाई जिस लोरी को हम सुनने जा रहे हैं, वह भी एक ऐसा ही अनमोल नग़मा है फ़िल्म-संगीत के धरोहर का। १९६९ की फ़िल्म 'एक फूल दो माली' का यह गीत है "तुझे सूरज कहूँ या चन्दा, तुझे दीप कहूँ या तारा, मेरा नाम करेगा रोशन जग में मेरा राजदुलारा"। प्रेम धवन के बोल और रवि का संगीत। इस गीत के बोल हैं तो बड़े साधारण, पर शायद हर माँ-बाप के दिल की आवाज़ है। हर माँ-बाप की यह उम्मीद होती है कि उसका बच्चा बड़ा हो कर बहुत नाम कमाये, उनका नाम रोशन करे। और यही बात इस गीत का मूल भाव है।
पिता-पुत्र के रिश्ते के इर्द-गिर्द घूमती 'एक फूल दो माली' देवेन्द्र गोयल की फ़िल्म थी, जिसमें बलराज साहनी, संजय ख़ान और साधना मुख्य भूमिकाओं में थे। बलराज साहनी को इस फ़िल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेता के फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार के लिए नामांकन मिला था। फ़िल्म की भूमिका कुछ इस तरह की थी कि सोमना (साधना), एक ग़रीब लड़की, अपनी विधवा माँ लीला के साथ भारत-नेपाल बॉर्डर की किसी पहाड़ी में रहती हैं और सेब के बाग़ में काम करती है जिसका मालिक है कैलाश नाथ कौशल (बलराज साहनी)। कौशल पर्वतारोहण का एक स्कूल भी चलाता है जिसमें अमर कुमार (संजय ख़ान) एक विद्यार्थी है। सोमना और अमर मिलते हैं, प्यार होता है, और दोनों शादी करने ही वाले होते हैं कि एक तूफ़ान में अमर और सह-पर्वतारोहियों के मौत की ख़बर आती है। पर उस वक़्त सोमना गर्भवती हो चुकी होती हैं। उसे और उसके बच्चे को बचाने के लिए कौशल उससे शादी कर लेते हैं और बच्चे को अपना नाम देते हैं। ख़ुद पिता न बन पाने की वजह से उनका सोमना के बच्चे के साथ कुछ इस तरह का लगाव हो जाता है कि कोई कह ही नहीं सकता कि वो उस बच्चे का पिता नहीं है। पर नियति को कुछ और ही मंज़ूर था। पाँच वर्ष बाद जब सोमना और कौशल अपने बेटे का छठा जनमदिन मना रहे होते हैं, उस पार्टी में अमर आ खड़ा होता है। आगे कहानी का क्या अंजाम होता है, यह तो आप ख़ुद ही देख लीजिएगा फ़िल्म की डी.वी.डी मँगवा कर, फ़िलहाल इस बेहद ख़ूबसूरत लोरी का आनन्द लीजिए मन्ना दा के स्वर में।
पहचानें अगला गीत, इस सूत्र के माध्यम से -
शैलेन्द्र, शंकर-जयकिशन और मोहम्मद रफ़ी के कम्बिनेशन की यह लोरी है, पर इसे शम्मी कपूर पर फ़िल्माई नहीं गई है। तो बताइए किस लोरी की हम बात कर रहे हैं? अतिरिक्त हिण्ट - इस लोरी के तीन संस्करण हैं - रफ़ी सोलो, लता सोलो, रफ़ी-लता डुएट।
पिछले अंक में
बहुत अच्छे उज्जवल
खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी
नमस्कार! दोस्तों, इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में हम प्रस्तुत कर रहे हैं लघु शृंखला 'चंदन का पलना, रेशम की डोरी'। इस शृंखला में आपनें बलराज साहनी पर फ़िल्माया तलत साहब का गाया फ़िल्म 'जवाब' का गीत सुना था। आज एक बार फिर बलराज साहब पर फ़िल्माई एक लोरी हम आपके लिए ले आये हैं, और इस बार आवाज़ है मन्ना डे की। एक समय ऐसा था जब किसी वयस्क चरित्र पर जब भी कोई गीत फ़िल्माया जाना होता तो संगीतकार और निर्माता मन्ना दा की खोज करते। इस बात का मन्ना दा नें एक साक्षात्कार में हँसते हुए ज़िक्र भी किया था कि मुझे बुड्ढों के लिए प्लेबैक करने को मिलते हैं। मन्ना दा की आवाज़ में कुछ ऐसी बात है कि नायक से ज़्यादा उनकी आवाज़ वयस्क चरित्रों पर फ़िट बैठती थी। लेकिन इससे उन्हें नुकसान कुछ नहीं हुआ, बल्कि कई अच्छे अच्छे अलग हट के गीत गाने को मिले। आज उनकी गाई जिस लोरी को हम सुनने जा रहे हैं, वह भी एक ऐसा ही अनमोल नग़मा है फ़िल्म-संगीत के धरोहर का। १९६९ की फ़िल्म 'एक फूल दो माली' का यह गीत है "तुझे सूरज कहूँ या चन्दा, तुझे दीप कहूँ या तारा, मेरा नाम करेगा रोशन जग में मेरा राजदुलारा"। प्रेम धवन के बोल और रवि का संगीत। इस गीत के बोल हैं तो बड़े साधारण, पर शायद हर माँ-बाप के दिल की आवाज़ है। हर माँ-बाप की यह उम्मीद होती है कि उसका बच्चा बड़ा हो कर बहुत नाम कमाये, उनका नाम रोशन करे। और यही बात इस गीत का मूल भाव है।
पिता-पुत्र के रिश्ते के इर्द-गिर्द घूमती 'एक फूल दो माली' देवेन्द्र गोयल की फ़िल्म थी, जिसमें बलराज साहनी, संजय ख़ान और साधना मुख्य भूमिकाओं में थे। बलराज साहनी को इस फ़िल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेता के फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार के लिए नामांकन मिला था। फ़िल्म की भूमिका कुछ इस तरह की थी कि सोमना (साधना), एक ग़रीब लड़की, अपनी विधवा माँ लीला के साथ भारत-नेपाल बॉर्डर की किसी पहाड़ी में रहती हैं और सेब के बाग़ में काम करती है जिसका मालिक है कैलाश नाथ कौशल (बलराज साहनी)। कौशल पर्वतारोहण का एक स्कूल भी चलाता है जिसमें अमर कुमार (संजय ख़ान) एक विद्यार्थी है। सोमना और अमर मिलते हैं, प्यार होता है, और दोनों शादी करने ही वाले होते हैं कि एक तूफ़ान में अमर और सह-पर्वतारोहियों के मौत की ख़बर आती है। पर उस वक़्त सोमना गर्भवती हो चुकी होती हैं। उसे और उसके बच्चे को बचाने के लिए कौशल उससे शादी कर लेते हैं और बच्चे को अपना नाम देते हैं। ख़ुद पिता न बन पाने की वजह से उनका सोमना के बच्चे के साथ कुछ इस तरह का लगाव हो जाता है कि कोई कह ही नहीं सकता कि वो उस बच्चे का पिता नहीं है। पर नियति को कुछ और ही मंज़ूर था। पाँच वर्ष बाद जब सोमना और कौशल अपने बेटे का छठा जनमदिन मना रहे होते हैं, उस पार्टी में अमर आ खड़ा होता है। आगे कहानी का क्या अंजाम होता है, यह तो आप ख़ुद ही देख लीजिएगा फ़िल्म की डी.वी.डी मँगवा कर, फ़िलहाल इस बेहद ख़ूबसूरत लोरी का आनन्द लीजिए मन्ना दा के स्वर में।
पहचानें अगला गीत, इस सूत्र के माध्यम से -
शैलेन्द्र, शंकर-जयकिशन और मोहम्मद रफ़ी के कम्बिनेशन की यह लोरी है, पर इसे शम्मी कपूर पर फ़िल्माई नहीं गई है। तो बताइए किस लोरी की हम बात कर रहे हैं? अतिरिक्त हिण्ट - इस लोरी के तीन संस्करण हैं - रफ़ी सोलो, लता सोलो, रफ़ी-लता डुएट।
पिछले अंक में
बहुत अच्छे उज्जवल
खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
जानती हूँ और भी बहुत प्यारी प्यारी लोरियाँ सुनने को मिलेगी....शायद कोई ऐसी भी जो मेरे पास नही है या ......कोई अनमोल मोती जिस पर मेरी नजर से बचकर स्मृतियों के किसी सीप मे छुपा हो अब तक.इस ब्लॉग की विशेषता है जो किसी ने न सुना हो अब तक .या भूला सा कोई मधुर गीत सामने रख कर चौंका देन.इसलिए मेरा आना अनवरत जारी है और.....रहेगा.आप लोग कमाल का काम कर रहे हैं और करते रहिये.मेरी शुभकामनाएं हमेशा आप सबके साथ है....रहेगी.