Skip to main content

एक दिन तुम बहुत बड़े बनोगे...और दिल से बहुत बड़े बने दादु हमारे

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 797/2011/237

'मेरे सुर में सुर मिला ले' शृंखला की सातवीं कड़ी में आप सभी का स्वागत है। रवीन्द्र जैन के लिखे और स्वरबद्ध किए गीतों की इस शृंखला में आइए आज आपको बतायें कि दादु को बम्बई में पहला मौका किस तरह से मिला। "झुनझुनवाला जी नें मुझे कहा कि तुम अभी थोड़ा धैर्य रखो, यहाँ बैठ के काम करो, अपने घर में जगह दी, और काम करता रहा, उनको धुनें बना बना के सुनाता था, उन्होंने एक फ़िल्म प्लैन की 'लोरी', जिसके लिए हम बम्बई गानें रेकॉर्ड करने आए थे, जिसका मुकेश जी नें दो गानें गाये। मुकेश जी का एक गाना मैं आपको सुनाता हूँ, जो कुछ मैं कलकत्ते से यहाँ लेके आया था - "दुख तेरा हो कि दुख मेरा हो, दुख की परिभाषा एक है, आँसू तेरे हों कि आँसू मेरे हों, आँसू की भाषा एक है"।" दोस्तों, 'लोरी' फ़िल्म तो रिलीज़ नहीं हुई, और दादु के संगीत की पहली फ़िल्म आई 'कांच और हीरा'। लेकिन उससे पहले उनका पहला गाना जा चुका था फ़िल्म 'पारस' में। इस बारे में दादु बताते हैं - "जी हाँ, जी हाँ, 'पारस' में मेरी रमेश सिप्पी साहब से मुलाक़ात हुई थी, संजीव ने मिलाया मुझे उनसे, संजीव यानि हरि भैया, संजीव कुमार जी। तो 'पारस' की शूटिंग् चल रही थी, तो मैंने कहा कि 'हरि भाई, मैं बम्बई आ गया हूँ, अब क्या करना है, यू हैव टू हेल्प मी आउट'। उन्होंने कहा कि ठीक है, आप 'पारस' की शूटिंग् के बाद शाम को हमारी सिप्पी साहब से मीटिंग् करवाई, और मैं कलकत्ते से जो कुछ गानें लाया था, उनको सुनाये। तो उन्होंने कहा कि ज़रूर हम साथ में काम करेंगे, और सिप्पी साहब को जो गाना पसंद आता था, उनके लिए १० रुपय मुझे देते थे कि यह गाना मेरा हो गया। तो उनमें से कौन कौन से गानें थे वो भी मैं आपको बताउँगा, जो पॉपुलर हुए हैं। तो पहला गाना रेकॉर्ड किया हमने, वो एक शायर की कहानी बना रहे थे जो एक गायक भी है, और उसमें रफ़ी साहब नें अपनी आवाज़ से नवाज़ा। १४ जनवरी का ज़िक्र है यह १९७१ का। रफ़ी साहब, मैं अब तक नहीं समझ पाया कि वो एक बेहतर कलाकार थे या एक बेहतर इंसान। दोनों ही ख़ूबियों के मालिक थे।"

तो दोस्तों, इस तरह से रवीन्द्र जैन का पहला गाना रफ़ी साहब की आवाज़ में रेकॉर्ड हुआ और रवीन्द्र जैन के पारी की शुरुआत हो गई और एक बड़े कलाकार बनने का सपना भी, बिल्कुल उनके उस गीत के बोलों की तरह कि "एक दिन तुम बहुत बड़े बनोगे, चाँद से चमक उठोगे"। दोस्तों, क्यों न आज के अंक में इसी गीत को सुना जाये। यह है १९७८ की फ़िल्म 'अखियों के झरोखों से' का हेमलता और शैलेन्द्र सिंह का गाया यह बहुत ही लोकप्रिय गीत। यह फ़िल्म अंग्रेज़ी फ़िल्म 'ए वाक टू रेमेम्बेर' का हिन्दी रीमेक थी जिसमें सचिन और रंजीता नें अभिनय किया था। वैसे इस फ़िल्म का सबसे लोकप्रिय गीत फ़िल्म का शीर्षक गीत ही रहा है जो हेमलता के करीयर का सर्वाधिक लोकप्रिय गीतों में से एक रहा। रवीन्द्र जैन द्वारा स्वरबद्ध गीत ज़्यादातर लोक-संगीत और शास्त्रीय संगीत पर आधारित हुआ करते थे, पर क्योंकि इस फ़िल्म का पार्श्व शहरी था, नायक-नायिका कॉलेज में पढ़ने वाले नौजवान थे, इसलिए इस फ़िल्म में आधुनिक संगीत की ज़रूरत थी। और दादु नें अपनी गुणवत्ता को कायम रखते हुए पाश्चात्य संगीत पर आधारित धुनें बनाई, और उन्होंने इस बात को साबित किया कि मेलडी और स्तर को बनाए रखते हुए भी आधुनिक संगीत दिया जा सकता है। प्रस्तुत गीत में तो अंग्रेज़ी के शब्दों तक का प्रयोग किया है दादु नें। याद है न "विल यू फ़ॉरगेट मी देन, हाउ आइ कैन..."? और हम भी कैसे भुला सकते हैं रवीन्द्र जैन जी के सुरीले गीतों को! आइए सुना जाए यह गीत।




पहचानें अगला गीत -हिरेन नाग निर्देशित इस फिल्म में ये गीत गाया था येसुदास ने

पिछले अंक में


खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें admin@radioplaybackindia.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें +91-9871123997 (सजीव सारथी) या +91-9878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

Sajeev said…
SWAGAT AMIT JI

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...