ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 787/2011/227
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी नियमित व अनियमित श्रोता-पाठकों को हमारा सप्रेम नमस्कार! आज १४ नवंबर है, भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरु का जन्मदिन, जिसे हम सब 'बाल-दिवस' के रूप में मनाते हैं। संयोग देखिए कि इन दिनों हम जिस शृंखला को प्रस्तुत कर रहे हैं, उसका भी बच्चों के साथ ही ज़्यादा ताल्लुख़ है। पुरुष गायकों द्वारा गाई हुई फ़िल्मी लोरियों पर आधारित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'चंदन का पलना, रेशम की डोरी' की सातवीं कड़ी में आज हम लेकर आये हैं किशोर कुमार की आवाज़ में फ़िल्म 'कुवारा बाप' की लोरी "आ री आजा, निन्दिया तू ले चल कहीं, उड़नखटोले में, दूर, दूर, दूर, यहाँ से दूर"। साथ में लता जी की आवाज़ भी शामिल है। जहाँ किशोर दा की आवाज़ सजी है महमूद पर, लता जी नें एक बालकलाकार का पार्श्वगायन किया है। फ़िल्म के संगीतकार थे राजेश रोशन और इस लोरी को लिखा था मजरूह सुल्तानपुरी। १९७४ में बनी 'कुंवारा बाप' के नायक थे महमूद। फ़िल्म के शीर्षक से ज़ाहिर है कि महमूद नें इसमें कुंवारे बाप की भूमिका निभाई होगी और इस तरह से इस लोरी की फ़िल्म में अहमियत बढ़ जाती है। यूं तो महमूद हास्य चरित्रों के लिए जाने जाते हैं, पर इस फ़िल्म में उन्होंने वह मर्मस्पर्शी अभिनय किया कि दर्शकों को रुलाकर छोड़ा। दोस्तों, मुझे महमूद के अभिनय वाली एक और फ़िल्म याद आ रही है जिसमें भी किशोर दा और लता जी की गाई हुई एक लोरी थी। फ़िल्म 'लाखों में एक' और गीत के बोल "चंदा ओ चंदा, किसने चुराई तेरी मेरी निन्दिया, जागे सारी रैना, तेरे मेरे नैना"। इस लोरी का एक लता सोलो वर्ज़न भी है।
'कुंवारा बाप' की कहानी अज़ीज़ क़ैसी की लिखी हुई है और फ़िल्म का निर्देशन महमूद नें ही किया था। इस फ़िल्म की कहानी कुछ ऐसी थी कि महेश (महमूद) एक साइकिल रिक्शा चालक है जिसे अपने माँ-बाप की कोई जानकारी नहीं है। भगवान श्रीकृष्ण का वह उपासक है और एक जुग्गी झोपड़ी में रहता है। शीला (मनोरमा) नामक लड़की से उसकी दोस्ती है जो घर घर बाई का काम करती है, और जिसे वो एक दिन शादी करना चाहता है। पर कालू दादा (भूषण तिवारी) की गन्दी नज़र शीला पर है। एक रात महेश घर लौट रहा था कि उसे एक मन्दिर के बाहर एक छोटा बच्चा दिखाई दिया। वो इधर-उधर उसके परिवारवालों को ढूंढ़ा, मन्दिर के पुजारी से भी पूछा, पुलिस को भी सूचित किया, पर कहीं से भी उस बच्चे के माँ-बाप का पता न चल सका। न चाहते हुए भी हालात कुछ ऐसे बन गए कि उस बच्चे को उसे गले से लगाना ही पड़ा, पर उसके आस-पड़ोस वाले महेश के बच्चे के गोद लेने के ख़िलाफ़ थे। महेश भी बच्चे से नफ़रत करने लगा। वो उस बच्चे की तरफ़ ध्यान नहीं दिया करता, और इस तरह से बच्चा पोलियो का शिकार हो गया। इस घटना नें महेश के दिल पर असर किया और उसके दिल में बच्चे के लिए प्यार उमड़ पड़ा। उस बच्चे का नाम उसने हिन्दुस्तान रखा, उसका इलाज शुरु करवाया, उसे क्रच दिलवाये, और तमाम मुसीबतों से लड़ते हुए उसे बिशॉप कॉटन जुनियर कॉलेज में भर्ती करवाया। १२ साल बाद हिन्दुस्तान जब बड़ा हुआ, तब उसे हड्डी के एक ऑपरेशन की ज़रूरत आन पड़ी जिसके लिए महेश को १००० रुपय का बन्दोपस्त करना था। उसने पैसा इकट्ठा करने के लिए दारा से कुश्ती लड़ने और एक रिकशा रेस में भाग लेने का फ़ैसला किया, पर दारा और कालू नें उसे बुरी तरह पीटा। महेश रात-दिन काम करने लगा, पर इससे पहले कि वो पैसे जमा कर पाता, पुलिस इन्स्पेक्टर रमेश (विनोद खन्ना) ने उसे गिरफ़्तार कर लिया हिन्दुस्तान को अगवा करने के जुर्म में। रमेश और राधा (भारती) के अनुसार हिन्दुस्तान के जन्मदाता वो दोनों हैं। अदालत में मुकद्दमा चलता है और फ़िल्म का क्या अंजाम होता है, वह आप कभी फ़िल्म को ख़ुद ही देख कर जान लीजिएगा। इस कहानी को पढ़ कर आप समझ चुके होंगे कि इस लोरी की फ़िल्म में क्या अहमियत होगी। तो आइए सुना जाये किशोर दा की आवाज़ महेश पर और लता जी की आवाज़ हिन्दुस्तान पर।
पहचानें अगला गीत, इस सूत्र के माध्यम से -
कल की लोरी एक डुएट है। जिस गायक-गायिका जोड़ी नें इसे गाया, उस जोड़ी नें साथ में बहुत ज़्यादा गीत नहीं गाये हैं, पर राकेश रोशन और जया प्रदा अभिनीत एक अन्य फ़िल्म में इस जोड़ी के गाये गीत लोकप्रिय हुए थे। बताइए गोविंदा पर फ़िल्माई हुई किस लोरी की हम बात कर रहे हैं और राकेश रोशन-जया प्रदा के उस अन्य फ़िल्म का नाम क्या है?
पिछले अंक में
कल की हमारी शृंखला का सीरियल नंबर था ७८६, क्या किसी ने गौर किया
खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी नियमित व अनियमित श्रोता-पाठकों को हमारा सप्रेम नमस्कार! आज १४ नवंबर है, भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरु का जन्मदिन, जिसे हम सब 'बाल-दिवस' के रूप में मनाते हैं। संयोग देखिए कि इन दिनों हम जिस शृंखला को प्रस्तुत कर रहे हैं, उसका भी बच्चों के साथ ही ज़्यादा ताल्लुख़ है। पुरुष गायकों द्वारा गाई हुई फ़िल्मी लोरियों पर आधारित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'चंदन का पलना, रेशम की डोरी' की सातवीं कड़ी में आज हम लेकर आये हैं किशोर कुमार की आवाज़ में फ़िल्म 'कुवारा बाप' की लोरी "आ री आजा, निन्दिया तू ले चल कहीं, उड़नखटोले में, दूर, दूर, दूर, यहाँ से दूर"। साथ में लता जी की आवाज़ भी शामिल है। जहाँ किशोर दा की आवाज़ सजी है महमूद पर, लता जी नें एक बालकलाकार का पार्श्वगायन किया है। फ़िल्म के संगीतकार थे राजेश रोशन और इस लोरी को लिखा था मजरूह सुल्तानपुरी। १९७४ में बनी 'कुंवारा बाप' के नायक थे महमूद। फ़िल्म के शीर्षक से ज़ाहिर है कि महमूद नें इसमें कुंवारे बाप की भूमिका निभाई होगी और इस तरह से इस लोरी की फ़िल्म में अहमियत बढ़ जाती है। यूं तो महमूद हास्य चरित्रों के लिए जाने जाते हैं, पर इस फ़िल्म में उन्होंने वह मर्मस्पर्शी अभिनय किया कि दर्शकों को रुलाकर छोड़ा। दोस्तों, मुझे महमूद के अभिनय वाली एक और फ़िल्म याद आ रही है जिसमें भी किशोर दा और लता जी की गाई हुई एक लोरी थी। फ़िल्म 'लाखों में एक' और गीत के बोल "चंदा ओ चंदा, किसने चुराई तेरी मेरी निन्दिया, जागे सारी रैना, तेरे मेरे नैना"। इस लोरी का एक लता सोलो वर्ज़न भी है।
'कुंवारा बाप' की कहानी अज़ीज़ क़ैसी की लिखी हुई है और फ़िल्म का निर्देशन महमूद नें ही किया था। इस फ़िल्म की कहानी कुछ ऐसी थी कि महेश (महमूद) एक साइकिल रिक्शा चालक है जिसे अपने माँ-बाप की कोई जानकारी नहीं है। भगवान श्रीकृष्ण का वह उपासक है और एक जुग्गी झोपड़ी में रहता है। शीला (मनोरमा) नामक लड़की से उसकी दोस्ती है जो घर घर बाई का काम करती है, और जिसे वो एक दिन शादी करना चाहता है। पर कालू दादा (भूषण तिवारी) की गन्दी नज़र शीला पर है। एक रात महेश घर लौट रहा था कि उसे एक मन्दिर के बाहर एक छोटा बच्चा दिखाई दिया। वो इधर-उधर उसके परिवारवालों को ढूंढ़ा, मन्दिर के पुजारी से भी पूछा, पुलिस को भी सूचित किया, पर कहीं से भी उस बच्चे के माँ-बाप का पता न चल सका। न चाहते हुए भी हालात कुछ ऐसे बन गए कि उस बच्चे को उसे गले से लगाना ही पड़ा, पर उसके आस-पड़ोस वाले महेश के बच्चे के गोद लेने के ख़िलाफ़ थे। महेश भी बच्चे से नफ़रत करने लगा। वो उस बच्चे की तरफ़ ध्यान नहीं दिया करता, और इस तरह से बच्चा पोलियो का शिकार हो गया। इस घटना नें महेश के दिल पर असर किया और उसके दिल में बच्चे के लिए प्यार उमड़ पड़ा। उस बच्चे का नाम उसने हिन्दुस्तान रखा, उसका इलाज शुरु करवाया, उसे क्रच दिलवाये, और तमाम मुसीबतों से लड़ते हुए उसे बिशॉप कॉटन जुनियर कॉलेज में भर्ती करवाया। १२ साल बाद हिन्दुस्तान जब बड़ा हुआ, तब उसे हड्डी के एक ऑपरेशन की ज़रूरत आन पड़ी जिसके लिए महेश को १००० रुपय का बन्दोपस्त करना था। उसने पैसा इकट्ठा करने के लिए दारा से कुश्ती लड़ने और एक रिकशा रेस में भाग लेने का फ़ैसला किया, पर दारा और कालू नें उसे बुरी तरह पीटा। महेश रात-दिन काम करने लगा, पर इससे पहले कि वो पैसे जमा कर पाता, पुलिस इन्स्पेक्टर रमेश (विनोद खन्ना) ने उसे गिरफ़्तार कर लिया हिन्दुस्तान को अगवा करने के जुर्म में। रमेश और राधा (भारती) के अनुसार हिन्दुस्तान के जन्मदाता वो दोनों हैं। अदालत में मुकद्दमा चलता है और फ़िल्म का क्या अंजाम होता है, वह आप कभी फ़िल्म को ख़ुद ही देख कर जान लीजिएगा। इस कहानी को पढ़ कर आप समझ चुके होंगे कि इस लोरी की फ़िल्म में क्या अहमियत होगी। तो आइए सुना जाये किशोर दा की आवाज़ महेश पर और लता जी की आवाज़ हिन्दुस्तान पर।
पहचानें अगला गीत, इस सूत्र के माध्यम से -
कल की लोरी एक डुएट है। जिस गायक-गायिका जोड़ी नें इसे गाया, उस जोड़ी नें साथ में बहुत ज़्यादा गीत नहीं गाये हैं, पर राकेश रोशन और जया प्रदा अभिनीत एक अन्य फ़िल्म में इस जोड़ी के गाये गीत लोकप्रिय हुए थे। बताइए गोविंदा पर फ़िल्माई हुई किस लोरी की हम बात कर रहे हैं और राकेश रोशन-जया प्रदा के उस अन्य फ़िल्म का नाम क्या है?
पिछले अंक में
कल की हमारी शृंखला का सीरियल नंबर था ७८६, क्या किसी ने गौर किया
खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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