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अपनी आजादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं - शकील ने लिखी दृढ संकल्प की गाथा इस गीत में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 729/2011/169



‘ओल्ड इज गोल्ड’ पर जारी श्रृंखला ‘वतन के तराने’ की नौवीं कड़ी में एक और बलिदानी की अमर गाथा और अपनी आज़ादी की रक्षा का संकल्प लेने वाले एक प्रेरक गीत के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र आपके सम्मुख उपस्थित हूँ। आज के अंक में हम आपको फिल्म जगत के जाने-माने शायर और गीतकार शकील बदायूनी का एक संकल्प गीत सुनवाएँगे और साथ ही स्वतन्त्रता संग्राम के एक ऐसे सिपाही का स्मरण करेंगे जिसे जीते जी अंग्रेज़ गिरफ्तार न कर सके। उस वीर सपूत को हम चन्द्रशेखर आज़ाद के नाम से जानते हैं।



लोगों ने आज़ाद को 1921 के असहयोग आन्दोलन से पहचाना। उन दिनों अंग्रेज़ युवराज के बहिष्कार का अभियान चल रहा था। काशी (वाराणसी) में पुलिस आन्दोलनकारियों को गिरफ्तार कर रही थी। पुलिस ने एक पन्द्रह वर्षीय किशोर को पकड़ा और मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया। कम आयु देख कर मजिस्ट्रेट ने पहले तो चेतावनी देकर छोड़ दिया, किन्तु जब वह किशोर दोबारा पकड़ा गया तो मजिस्ट्रेट ने उसे 15 बेंतों की सजा दी। मजिस्ट्रेट के नाम पूछने पर उस किशोर ने ‘आज़ाद’ और निवास स्थान पूछने पर उसने उत्तर दिया था ‘जेलखाना’। यही किशोर आगे चलकर चन्द्रशेखर आज़ाद के नाम से जाना गया और क्रान्तिकारियों के प्रधान सेनापति के पद पर प्रतिष्ठित हुआ। असहयोग आन्दोलन से स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी की भूमिका अदा करने वाले चन्द्रशेखर आज़ाद आन्दोलन स्थगित हो जाने पर बहुत निराश हुए और सशस्त्र क्रान्ति के मार्ग पर बढ़ चले।



शीघ्र ही आज़ाद की भेंट प्रणवेशकुमार चटर्जी से हुई और वे ‘भारतीय प्रजातन्त्र संघ’ के सदस्य बन गए। संगठन में रह कर आज़ाद ने अपने साहस और अपने पावन चरित्र के बल पर कई महत्त्वपूर्ण अभियान का सफलता के साथ संचालन किया। 9अगस्त, 1925 को शाम का समय था, 8 डाउन पैसेंजर लखनऊ की ओर चली आ रही थी। गाड़ी अभी काकोरी स्टेशन चली थी कि अचानक चेन खींच कर रोक दी गई। दरअसल इस ट्रेन में सरकारी खजाना ले जाया जा रहा था, जिसे क्रान्तिकारियों ने लूट कर अंग्रेजों को सीधी चुनौती दी थी। ‘काकोरी षड्यंत्र काण्ड’ में शामिल क्रान्तिकारियों में से रामप्रसाद ‘बिस्मिल’, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह को फाँसी की सजा दी गई थी। शेष क्रान्तिकारियों को आजीवन कारावास से लेकर पाँच वर्ष तक की कारावास की सजा दी गई थी। इस अभियान में चन्द्रशेखर आज़ाद भी सम्मिलित थे, किन्तु अंग्रेज़ उन्हे पकड़ न सके।



इस अभियान के बाद आज़ाद ने अप्रैल 1928 के साँडर्स को ‘जलियाँवाला बाग नरसंहार’ की सज़ा देने और ब्रिटिश संसद में बम फेकने के अभियान में सम्मिलित थे। (स्वतन्त्रता संग्राम के इन दोनों अभियानों की चर्चा हम इस श्रृंखला की छठी कड़ी में कर चुके हैं।) 1925 से 1931 तक क्रान्ति के जितने भी अभियान हुए, उन सब में आज़ाद की भूमिका प्रमुख थी। परन्तु आज़ाद सदा आज़ाद ही रहे। फरवरी 1931 में अपने एक विश्वासघाती साथी की गद्दारी से इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में सशस्त्र पुलिस द्वारा घेर लिये गए। उनके पिस्तोल में जब तक गोलियाँ थीं तब तक मुक़ाबला किया और जब एकमात्र गोली बच गई तो स्वयं अपने ऊपर चला ली। अंग्रेजों की गोली से मरने के बजाय आज़ाद ने आत्मघात कर लेना उचित समझा। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के महानायक बलिदानी चन्द्रशेखर आज़ाद आजीवन आज़ाद ही रहे।



दोस्तों, आज हम आपको एक ऐसे गीतकार का देशभक्ति गीत सुनवाएँगे जिन्हें 1961 से 1963 तक लगातार तीन वर्षों तक वर्ष के सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार प्राप्त हुआ था। आज के गीतकार हैं; शकील बदायूनी और फिल्म है; ‘लीडर’। 1964 में प्रदर्शित इस फिल्म के संगीत निर्देशक नौशाद हैं और गीत के बोल हैं- ‘अपनी आज़ादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं...’। इस गीत में अपनी आज़ादी की रक्षा का संकल्प है और देश के दुश्मनों को चेतावनी। आइए सुनते हैं जोश से भरपूर यह गीत-







और अब एक विशेष सूचना:

२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।



और अब वक्त है आपके संगीत ज्ञान को परखने की. अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-



सूत्र १ - साहिर के हैं शब्द.

सूत्र २ - आज़ाद भारत की मधुर कल्पना है गीत में.

सूत्र ३ - मुखड़े में शब्द है - "गंगा" .



अब बताएं -

फिल्म का नाम बताएं - २ अंक

गायक बताएं - २ अंक

संगीतकार बताएं - ३ अंक



सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.



पिछली पहेली का परिणाम -





खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र






इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

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