Skip to main content

काहे कोयल शोर मचाये रे....एक और खनकता गीत शमशाद की आवाज़ में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 732/2011/172



'बूझ मेरा क्या नाव रे' - पार्श्वगायिका शमशाद बेगम पर केन्द्रित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला की दूसरी कड़ी में आपका स्वागत है। जैसा कि कल हमने वादा किया था कि शमशाद जी के बचपन और शुरुआती दौर के बारे में हम विस्तार से चर्चा करेंगे, तो आइए आज प्रस्तुत है विविध भारती द्वारा ली गई एक साक्षात्कार के अंश। शमशाद जी से बातचीत कर रहे हैं वरिष्ठ उद्‍घोषक श्री कमल शर्मा:



शमशाद जी: मेरे को गाना नहीं सिखाया किसी ने, ग्रामोफ़ोन पर सुन सुन कर मैंने सीखा। मेरे घरवाले ने एक पैसा नहीं खर्च किया। लड़कों का ही फ़िल्मों में गाना बजाना अच्छा नहीं माना जाता था, लड़कियों की क्या बात थी! मैं गाने लगती घर में तो सब चुप करा देते थे कि क्या हर वक़्त चैं चैं करती रहती है!



कमल जी: शमशाद जी, आपनें किस उम्र से गाना शुरु किया था?



शमशाद जी - आठ साल से गाना शुरु किया, जब से होश आया तभी से गाती थी।



कमल जी - आप जिस स्कूल में पढ़ती थीं, वहाँ आपके म्युज़िक टीचर ने आपका हौसला बढ़ाया होगा?



शमशाद जी - उन्होंने कहा कि आवाज़ अच्छी है, पर घरवालों ने इस तरफ़ ध्यान नहीं दिया। मैं जिस स्कूल में पढ़ती थी, वह ब्रिटिश ने बनाया था, उर्दू ज़बान में, मैंने पाँचवी स्टैण्डर्ड तक पढ़ाई की। हम चार बहनें और तीन भाई थे। एक मेरा चाचा था, एक उनको गाने का शौक था। वो कहते थे कि हमारे घर में यह लड़की आगे चलकर अच्छा गायेगी। वो मेरे बाबा के सगे भाई थे। वो उर्दू इतना अच्छा बोलते थे कि तबीयत ख़ुश हो जाती, लगता ही नहीं कि वो पंजाब के रहनेवाले थे। मेरे वालिद ग़ज़लों के शौकीन थे और वे मुशायरों में जाया करते थे। कभी कभी वे मुझसे ग़ज़लें गाने को भी कहते थे। लेकिन वो मेरे गाने से डरते थे। वो कहते कि चार चार लड़कियाँ हैं घर में, तू गायेगी तो इन सबकी शादी करवानी मुश्किल हो जायेगी।



कमल जी: शमशाद जी, आपकी गायकी की फिर शुरुआत कैसे और कब हुई?



शमशाद जी: मेरे उस चाचा ने मुझे जिएनोफ़ोन (Jien-o-Phone) कंपनी में ले गए, वो एक नई ग्रामोफ़ोन कंपनी आयी हुई थी। उस समय मैं बारह साल की थी। वहाँ पहुँचकर पता चला कि ऑडिशन होगा, उन लोगों ने तख़्तपोश बिछाया, हम चढ़ गए, उस पर बैठ गए (हँसते हुए)। वहीं पर मौजूद थे संगीतकार मास्टर ग़ुलाम हैदर साहब। इतने कमाल के आदमी मैंने देखा ही नहीं था। वो मेरे वालिद साहब को पहचानते थे। वो कमाल के पखावज बजाते थे। उन्होंने मुझसे पूछा कि आपके साथ कौन बजायेगा? मैंने कहा मैं ख़ुद ही गाती हूँ, मेरे साथ कोई बजानेवाला नहीं है। फिर उन्होंने कहा कि थोड़ा गा के सुनाओ। मैंने ज़फ़र की ग़ज़ल शुरु की, "मेरे यार मुझसे मिले तो...", एक अस्थाई, एक अंतरा, बस! उन्होंने मुझे रोक दिया, मैंने सोचा कि गये काम से, ये तो गाने ही नहीं देते! ये मैंने ख़्वाब में भी नहीं सोचा था कि मैं प्लेबैक आर्टिस्ट बन जाऊँगी, मेरा इतना नाम होगा। मैं सिर्फ़ चाहती थी कि मैं खुलकर गाऊँ।



दोस्तों, शमशाद जी का कितना नाम हुआ, और कितना खुल कर वो गाईं, ये सब तो अब इतिहास बन चुका है, आइए अब बात करते हैं आज के गाने की। शृंखला की शुरुआत हमने कल की थी मास्टर ग़ुलाम हैदर के कम्पोज़िशन से। आज आइए सुनें संगीतकार राम गांगुली के संगीत निर्देशन में १९४८ की राज कपूर की पहली निर्मित फ़िल्म 'आग' से शमशाद जी का गाया फ़िल्म का एक बेहद लोकप्रिय गीत "काहे कोयल शोर मचाये रे, मोहे अपना कोई याद आये रे..."। गीतकार हैं बहज़ाद लखनवी और गीत फ़िल्माया गया है नरगिस पर। इस गीत में कुछ ऐसा जादू है कि गीत को सुनने वाला हर कोई अपनी यादों में खो जाता है, उसे भी कोई अपना सा याद आने लगता है। इस गीत के बारे में शमशाद जी नें कहा था, "राज कपूर अपनी पहली फ़िल्म 'आग' बना रहे थे। वे मेरे पास आये और कहा कि मैं पृथ्वीराज कपूर का बेटा हूँ। मैं कहा बहुत ख़ुशी की बात है। फिर उन्होंने कहा कि आपको मेरी फ़िल्म में गाना पड़ेगा। मैंने कहा गा दूँगी। इस फ़िल्म के सारे गानें बहुत ही मक़बूल हुए, संगीतकार थे राम गांगुली। इस फ़िल्म का एक गीत सुनिये।"







और अब एक विशेष सूचना:

२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।



इन तीन सूत्रों से पहचानिये अगला गीत -

१. १९४९ की फिल्म है ये.

२. आवाज़ है शमशाद बेगम की.

३. एक अंतरा शुरू होता है इस शब्द युग्म से - "रुत अलबेली"



अब बताएं -

इस गीत के गीतकार - ३ अंक

इस गीत के संगीतकार - २ अंक

फिल्म का नाम - २ अंक



सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.



पिछली पहेली का परिणाम -

वाह इंदु जी आपके क्या कहने, दादी आपकी उपस्तिथि लगनी चाहिए इस शृंखला की हर कड़ी में, और अमित जी को बधाई है :)



खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी






इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

indu puri said…
arre! naushad ji to nhi kahin? ha ha ha lock kr dijiye.waise khulwa bhi skti hun beech me
aisich hun main to ha ha

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की