ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 600/2010/300
नमस्कार! पिछली नौ कड़ियों से आप इस महफ़िल में सुनते आ रहे हैं फ़िल्म जगत के सुनहरे दौर के कुछ ऐसे नग़में जिनमें पियानो मुख्य साज़ के रूप में प्रयोग हुआ है। 'पियानो साज़ पर फ़िल्मी परवाज़' शृंखला की आज दसवीं और अंतिम कड़ी में आज हम चर्चा करेंगे कुछ भारतीय पियानिस्ट्स की। पहला नाम हम लेना चाहेंगे स्टीफ़ेन देवासी का। कल ही इनका जन्मदिन था। २३ फ़रवरी १९८१ को प्लक्कड, केरल में जन्में स्टीफ़ेन ने १० वर्ष की आयु से पियानो सीखना शुरु किया लेज़ली पीटर से। उसके बाद त्रिसूर में चेतना म्युज़िक अकादमी में फ़्र. थॊमस ने उनका पियानो से परिचय करवाया, जहाँ पर उन्होंने त्रिनिती कॊलेज ऒफ़ म्युज़िक लंदन द्वारा आयोजित आठवी ग्रेड की परीक्षा उत्तीर्ण की। १८ वर्ष की आयु में उन्होंने जॊनी सागरिका की ऐल्बम 'इश्टमन्नु' में कुल ६ गीतों का ऒर्केस्ट्रेशन किया। उसके बाद वो गायक हरिहरण के साथ यूरोप की टूर पर गये। वायलिन मेस्ट्रो एल. सुब्रह्मण्यम के साथ उन्होंने लक्ष्मीनारायण ग्लोबल म्युज़िक फ़ेस्टिवल में पर्फ़ॊर्म किया। १९ वर्ष की उम्र में स्टीफ़ेन ने एक म्युज़िक बैण्ड का गठन किया 'सेवेन' के नाम से, जिसमें शामिल थे फ़ायक फ़्रांको सायमन और संगीत। इस बैण्ड ने 'ये ज़िंदगानी' शीर्षक से एक ऐल्बम भी जारी किया था। 'मजा', 'थम्बी', 'नम्मल', 'अज़ागिया थमीज़ मगन' जैसी फ़िल्मों और हरिहरण के ऐल्बम 'वक़्त पर बोलना' का संगीत निर्देशन भी किया। स्टीफ़ेन के बाद अगला नाम है करिश्मा फ़ेलफ़ेली का। करिश्मा का जन्म पूना में हुआ था एक पर्शियन ज़ोरोस्ट्रियन परिवार में, जिनका संगीत से कोई ताल्लुख़ नहीं था। वो एक रेडियो ब्रॊडकास्टर होने के साथ साथ एक पियानिस् और वोकलिस्ट भी हैं; डबलिन सिटी एफ़.एम पर वो शास्त्रीय संगीत पर आधारित रेडियो प्रोग्राम को प्रस्तुत करती हैं। करिश्मा कनाडियन पियानिस्ट ग्लेन गोल्ड को अपना म्युज़िकल आइचन मानती हैं। १२ वर्ष की उम्र में जब करिश्मा ने पहली बार गोल्ड को भारत में किसी रेकॊर्डिंग पर सुना तो उनसे बहुत ज़्यादा प्रभावित हुईं। एक सफल पर्फ़ॊर्मिंग आर्टिस्ट होने के साथ साथ करिश्मा ने संगीत शिक्षा के प्रचार प्रसार में भी गहरी दिलचस्पी दिखाई और इस ओर अपना अमूल्य योगदान दे रही हैं। 'पियानिस्ट मैगज़ीन' में करिश्मा संगीत शिक्षा, ऐमेचर पियानिस्ट्स और ऒल्टर्नेट करीयर जैसी विषयों पर लेख भी लिखा है। अपने रेडियो प्रोग्राम के लिए उन्होंने कई बड़े बड़े संगीत शिल्पियों का साक्षात्कार ले चुकी हैं। करिश्मा फ़ेलफ़ेली के बाद अब बारी है उत्सव लाल के बारे में जानने की। १८ अगस्त १९९२ को जन्में उत्सव लाल ने केवल ९ वर्ष की आयु में दिल्ली में अपना पहला सोलो पियानो कन्सर्ट प्रस्तुत किया। वर्तमान में वो डबलिन में रहते हैं, जहाँ पर वो एक जानेमाने वेस्टर्ण क्लासिकल और जैज़ पियानिस्ट हैं। उत्सव को मशहूर पियानो कंपनी स्टीनवे ऐण्ड सन्स ने "Young Steinway Artist" के ख़िताब से सम्मानित किया है। भारतीय शास्त्रीय रागों में गहरी दिलचस्पी होने के कारण उत्सव ने इन रागों पर पियानो पर शोध करते हैं। उनके इस प्रयास में टाइम्स म्युज़िक ने २००८ में उनका भारतीय शास्त्रीय रागों पर आधारित ऐल्बम जारी किया 'Piano Moods of Indian Ragas'। उत्सव का नाम लिम्का बूक ऒफ़ रेकॊर्ड्स में दर्ज हुआ है और इतनी छोटी उम्र में ही बहुत सारे पुरस्कारों से नवाज़े जा चुके हैं। कुछ और भारतीय मूल के पियानिस्ट्स हैं नीसिअ मजोली, अनिल श्रीनिवासन और एब्राहम मजुमदार। इनके बारे में भी आप इंटरनेट पर मालूमात हासिल कर सकते हैं।
अब तक इस शृंखला में हमने ३० से लेकर ८० के दशक तक के ९ हिट गीत सुनवाये जिनमें जो एक बात कॊमन थी, वह था इनमें इस्तेमाल होने वाला मुख्य साज़ पियानो। दोस्तों, 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की रवायत है कि इसमें हम ८० के दशक तक के ही गीत शामिल करते हैं, लेकिन आज इस रवायत को तोड़ने का मन कर रहा है। दरअसल १९९१ में एक ऐसी फ़िल्म आयी थी जिसमें एक ऐसा पियानो बेस्ड गाना था जिसे सुनवाना बेहद ज़रूरी बन पड़ा है। इस गीत को सुनवाये बग़ैर इस शृंखला को समाप्त करने का मन नहीं कर रहा। जी हाँ, फ़िल्म 'प्रहार' का सुरेश वाडकर का गाया "धड़कन ज़रा रुक गई है"; मंगेश कुल्कर्णी का लिखा गीत और संगीत एक बार फिर लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का। 'प्रहार' पूर्णत: नाना पाटेकर की फ़िल्म थी। उन्होंने न केवल फ़िल्म का सब से महत्वपूर्ण किरदार निभाया, बल्कि फ़िल्म को निर्देशित भी किया और फ़िल्म की कहानी और स्क्रीनप्ले भी लिखे सुजीत सेन के साथ मिलकर। संवाद थे हृदय लानी के। फ़िल्म के अन्य कलाकार थे डिम्पल कपाडिया, माधुरी दीक्षित, म्करंद देशपाण्डे, गौतम जोगलेकर, अच्युत पोद्दार, विश्वजीत प्रधान प्रमुख। सुधाकर बोकाडे ने इस असाधारण फ़िल्म का निर्माण कर हिंदी सिनेमा के धरोहर को समृद्ध किया। जहाँ मंगेश जी ने बेहद ख़ूबसूरत बोल लिखे हैं, वहीं वाल्ट्ज़ रिदम पर आधारित इस गीत का संगीत संयोजन भी लाजवाब है। पियानो के साथ साथ वायलिन्स, माउथ ऒर्गन आदि पश्चिमी साज़ों का भी सुंदर प्रयोग इस गीत में महसूस किया जा सकता है। गीत के आख़िर में एक लम्बे पियानो पीस ने गीत की ख़ूबसूरती को चार चाँद लगा दिया है। तो आइए सुनते हैं यह गीत, और इसी के साथ 'पियानो साज़ पर फ़िल्मी परवाज़' शृंखला का भी समापन होता है। और साथ ही पूरा हो रहा है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का ६००-वाँ अंक। बस युंही हमारे साथ बने रहिए, हम भी युंही दिलकश नग़में आप पर लुटाते रहेंगे। नमस्कार!
क्या आप जानते हैं...
कि पियानो में १२००० से ज़्यादा पुर्ज़ें होते है, जिनमें १०,००० मूवेबल (movable) होते हैं।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 01/शृंखला 11
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र -गीतकार हैं गुलज़ार साहब.
सवाल १ - संगीतकार बताएं - २ अंक
सवाल २ - किस अभिनेत्री पर फिल्माया गया है ये गीत - ३ अंक
सवाल ३ - गायिका बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
लीजिए एक बाज़ी और अमित जी के नाम रही...यानी कि अब वो तीन बार विजय हासिल कर चुके हैं, पर हम खास बधाई अंजाना जी को भी देंगे जिन्होंने जम कर मुलाबाला किया और विजय जी भी इस बार काफी बढ़िया साबित हुए, नयी शृंखला के लिए सभी को शुभकामनाएँ, शरद जी कमर कस लें
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
विशेष सहयोग: सुमित चक्रवर्ती
नमस्कार! पिछली नौ कड़ियों से आप इस महफ़िल में सुनते आ रहे हैं फ़िल्म जगत के सुनहरे दौर के कुछ ऐसे नग़में जिनमें पियानो मुख्य साज़ के रूप में प्रयोग हुआ है। 'पियानो साज़ पर फ़िल्मी परवाज़' शृंखला की आज दसवीं और अंतिम कड़ी में आज हम चर्चा करेंगे कुछ भारतीय पियानिस्ट्स की। पहला नाम हम लेना चाहेंगे स्टीफ़ेन देवासी का। कल ही इनका जन्मदिन था। २३ फ़रवरी १९८१ को प्लक्कड, केरल में जन्में स्टीफ़ेन ने १० वर्ष की आयु से पियानो सीखना शुरु किया लेज़ली पीटर से। उसके बाद त्रिसूर में चेतना म्युज़िक अकादमी में फ़्र. थॊमस ने उनका पियानो से परिचय करवाया, जहाँ पर उन्होंने त्रिनिती कॊलेज ऒफ़ म्युज़िक लंदन द्वारा आयोजित आठवी ग्रेड की परीक्षा उत्तीर्ण की। १८ वर्ष की आयु में उन्होंने जॊनी सागरिका की ऐल्बम 'इश्टमन्नु' में कुल ६ गीतों का ऒर्केस्ट्रेशन किया। उसके बाद वो गायक हरिहरण के साथ यूरोप की टूर पर गये। वायलिन मेस्ट्रो एल. सुब्रह्मण्यम के साथ उन्होंने लक्ष्मीनारायण ग्लोबल म्युज़िक फ़ेस्टिवल में पर्फ़ॊर्म किया। १९ वर्ष की उम्र में स्टीफ़ेन ने एक म्युज़िक बैण्ड का गठन किया 'सेवेन' के नाम से, जिसमें शामिल थे फ़ायक फ़्रांको सायमन और संगीत। इस बैण्ड ने 'ये ज़िंदगानी' शीर्षक से एक ऐल्बम भी जारी किया था। 'मजा', 'थम्बी', 'नम्मल', 'अज़ागिया थमीज़ मगन' जैसी फ़िल्मों और हरिहरण के ऐल्बम 'वक़्त पर बोलना' का संगीत निर्देशन भी किया। स्टीफ़ेन के बाद अगला नाम है करिश्मा फ़ेलफ़ेली का। करिश्मा का जन्म पूना में हुआ था एक पर्शियन ज़ोरोस्ट्रियन परिवार में, जिनका संगीत से कोई ताल्लुख़ नहीं था। वो एक रेडियो ब्रॊडकास्टर होने के साथ साथ एक पियानिस् और वोकलिस्ट भी हैं; डबलिन सिटी एफ़.एम पर वो शास्त्रीय संगीत पर आधारित रेडियो प्रोग्राम को प्रस्तुत करती हैं। करिश्मा कनाडियन पियानिस्ट ग्लेन गोल्ड को अपना म्युज़िकल आइचन मानती हैं। १२ वर्ष की उम्र में जब करिश्मा ने पहली बार गोल्ड को भारत में किसी रेकॊर्डिंग पर सुना तो उनसे बहुत ज़्यादा प्रभावित हुईं। एक सफल पर्फ़ॊर्मिंग आर्टिस्ट होने के साथ साथ करिश्मा ने संगीत शिक्षा के प्रचार प्रसार में भी गहरी दिलचस्पी दिखाई और इस ओर अपना अमूल्य योगदान दे रही हैं। 'पियानिस्ट मैगज़ीन' में करिश्मा संगीत शिक्षा, ऐमेचर पियानिस्ट्स और ऒल्टर्नेट करीयर जैसी विषयों पर लेख भी लिखा है। अपने रेडियो प्रोग्राम के लिए उन्होंने कई बड़े बड़े संगीत शिल्पियों का साक्षात्कार ले चुकी हैं। करिश्मा फ़ेलफ़ेली के बाद अब बारी है उत्सव लाल के बारे में जानने की। १८ अगस्त १९९२ को जन्में उत्सव लाल ने केवल ९ वर्ष की आयु में दिल्ली में अपना पहला सोलो पियानो कन्सर्ट प्रस्तुत किया। वर्तमान में वो डबलिन में रहते हैं, जहाँ पर वो एक जानेमाने वेस्टर्ण क्लासिकल और जैज़ पियानिस्ट हैं। उत्सव को मशहूर पियानो कंपनी स्टीनवे ऐण्ड सन्स ने "Young Steinway Artist" के ख़िताब से सम्मानित किया है। भारतीय शास्त्रीय रागों में गहरी दिलचस्पी होने के कारण उत्सव ने इन रागों पर पियानो पर शोध करते हैं। उनके इस प्रयास में टाइम्स म्युज़िक ने २००८ में उनका भारतीय शास्त्रीय रागों पर आधारित ऐल्बम जारी किया 'Piano Moods of Indian Ragas'। उत्सव का नाम लिम्का बूक ऒफ़ रेकॊर्ड्स में दर्ज हुआ है और इतनी छोटी उम्र में ही बहुत सारे पुरस्कारों से नवाज़े जा चुके हैं। कुछ और भारतीय मूल के पियानिस्ट्स हैं नीसिअ मजोली, अनिल श्रीनिवासन और एब्राहम मजुमदार। इनके बारे में भी आप इंटरनेट पर मालूमात हासिल कर सकते हैं।
अब तक इस शृंखला में हमने ३० से लेकर ८० के दशक तक के ९ हिट गीत सुनवाये जिनमें जो एक बात कॊमन थी, वह था इनमें इस्तेमाल होने वाला मुख्य साज़ पियानो। दोस्तों, 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की रवायत है कि इसमें हम ८० के दशक तक के ही गीत शामिल करते हैं, लेकिन आज इस रवायत को तोड़ने का मन कर रहा है। दरअसल १९९१ में एक ऐसी फ़िल्म आयी थी जिसमें एक ऐसा पियानो बेस्ड गाना था जिसे सुनवाना बेहद ज़रूरी बन पड़ा है। इस गीत को सुनवाये बग़ैर इस शृंखला को समाप्त करने का मन नहीं कर रहा। जी हाँ, फ़िल्म 'प्रहार' का सुरेश वाडकर का गाया "धड़कन ज़रा रुक गई है"; मंगेश कुल्कर्णी का लिखा गीत और संगीत एक बार फिर लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का। 'प्रहार' पूर्णत: नाना पाटेकर की फ़िल्म थी। उन्होंने न केवल फ़िल्म का सब से महत्वपूर्ण किरदार निभाया, बल्कि फ़िल्म को निर्देशित भी किया और फ़िल्म की कहानी और स्क्रीनप्ले भी लिखे सुजीत सेन के साथ मिलकर। संवाद थे हृदय लानी के। फ़िल्म के अन्य कलाकार थे डिम्पल कपाडिया, माधुरी दीक्षित, म्करंद देशपाण्डे, गौतम जोगलेकर, अच्युत पोद्दार, विश्वजीत प्रधान प्रमुख। सुधाकर बोकाडे ने इस असाधारण फ़िल्म का निर्माण कर हिंदी सिनेमा के धरोहर को समृद्ध किया। जहाँ मंगेश जी ने बेहद ख़ूबसूरत बोल लिखे हैं, वहीं वाल्ट्ज़ रिदम पर आधारित इस गीत का संगीत संयोजन भी लाजवाब है। पियानो के साथ साथ वायलिन्स, माउथ ऒर्गन आदि पश्चिमी साज़ों का भी सुंदर प्रयोग इस गीत में महसूस किया जा सकता है। गीत के आख़िर में एक लम्बे पियानो पीस ने गीत की ख़ूबसूरती को चार चाँद लगा दिया है। तो आइए सुनते हैं यह गीत, और इसी के साथ 'पियानो साज़ पर फ़िल्मी परवाज़' शृंखला का भी समापन होता है। और साथ ही पूरा हो रहा है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का ६००-वाँ अंक। बस युंही हमारे साथ बने रहिए, हम भी युंही दिलकश नग़में आप पर लुटाते रहेंगे। नमस्कार!
क्या आप जानते हैं...
कि पियानो में १२००० से ज़्यादा पुर्ज़ें होते है, जिनमें १०,००० मूवेबल (movable) होते हैं।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 01/शृंखला 11
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र -गीतकार हैं गुलज़ार साहब.
सवाल १ - संगीतकार बताएं - २ अंक
सवाल २ - किस अभिनेत्री पर फिल्माया गया है ये गीत - ३ अंक
सवाल ३ - गायिका बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
लीजिए एक बाज़ी और अमित जी के नाम रही...यानी कि अब वो तीन बार विजय हासिल कर चुके हैं, पर हम खास बधाई अंजाना जी को भी देंगे जिन्होंने जम कर मुलाबाला किया और विजय जी भी इस बार काफी बढ़िया साबित हुए, नयी शृंखला के लिए सभी को शुभकामनाएँ, शरद जी कमर कस लें
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
विशेष सहयोग: सुमित चक्रवर्ती
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
वो श्रंखला हैं:
१.कितना हसीं है मौसम
२.मानो या ना मानो
३.तेरा ख़याल दिल से भुलाया ना जाएगा
४.पियानो साज़ पर फ़िल्मी परवाज़
इस गाने में गाने के बोलों को फिल्माया गया है, संगीतकार 'आदेश श्रीवास्तव' पर. जो गाने में वायलिन बजाते हुए नज़र आते हैं.
गायिका- वाणी जयराम