Skip to main content

दुःख भरे दिन बीते रे भैया अब सुख आयो रे.....एक क्लास्सिक फिल्म का गीत जिसके निर्देशक थे महबूब खान

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 539/2010/239

हबूब ख़ान की फ़िल्मी यात्रा पर केन्द्रित इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'हिंदी सिनेमा के लौह स्तंभ' का दूसरा खण्ड आप पढ़ और सुन रहे हैं। इस खण्ड की आज चौथी कड़ी में हम रुख़ कर रहे हैं महबूब साहब के ५० के दशक में बनीं फ़िल्मों की तरफ़। वैसे पिछले तीन कड़ियों में हमने गानें ५० के दशक के ही सुनवाए हैं, जानकारी भी दी है, लेकिन महबूब साहब के फ़िल्मी सफ़र के ३० और ४० के दशक के महत्वपूर्ण फ़िल्मों का ज़िक्र किया है। आइए आज की कड़ी में उनकी बनाई ५० के दशक की फ़िल्मों को और थोड़े करीब से देखा जाए। इस दशक में उनकी बनाई तीन मीलस्तंभ फ़िल्में हैं - 'आन', 'अमर' और 'मदर इण्डिया'। 'आन' १९५२ की सफलतम फ़िल्मों में से थी, जिसे भारत के पहले टेक्नो-कलर फ़िल्म होने का गौरव प्राप्त है। दिलीप कुमार, निम्मी और नादिर अभिनीत इस ग्लैमरस कॊस्ट्युम ड्रामा में दिखाये गये आलिशान राज-पाठ और युद्ध के दृष्य लोगों के दिलों को जीत लिया। 'आन' बम्बई के रॊयल सिनेमा में रिलीस की गयी थी । इस फ़िल्म के सुपरहिट संगीत के लिए नौशाद ने कड़ी मेहनत की थी। उन्होंने १०० पीस ऒरकेस्ट्रा का इस्तेमाल किया पार्श्वसंगीत तैयार करने के लिए। उस ज़माने में ऐसा बहुत कम ही देखा जाता था। केवल शंकर जयकिशन ने १०० पीस ऒरकेस्ट्रा का इस्तेमाल किया था 'आवरा' में। नौशाद साहब की आदत थी कि वो अपने नोटबुक में गानों के नोटेशन्स लिख लिया करते थे। और इसी का नतीजा था कि 'आन' का पार्श्वसंगीत लंदन में री-रेकॊर्ड किया जा सका। अमेरिका में एक पुस्तक भी प्रकाशित की गई है 'आन' के नोटेशन्स की, और जिसे नौशाद साहब के हाथों ही जारी किया गय था। इस तरह का सम्मान पाने वाले नौशाद पहले भारतीय संगीतकार थे। 'आन' के बाद १९५४ में महबूब ख़ान ने बनाई 'अमर' जिसमें दिलीप कुमार और निम्मी के साथ मधुबाला को लिया गया। शक़ील - नौशाद ने एक बार फिर अपना कमाल दिखाया। इस फ़िल्म के ज़्यादातर गानें शास्त्रीय रागों पर आधारित थे। लेकिन ५० के दशक में महबूब ख़ान की सब से महर्वपूर्ण आई १९५७ में - 'मदर इण्डिया', जो हिंदी सिनेमा का एक स्वर्णिम अध्याय बन चुका है। अपनी १९४० की फ़िल्म 'औरत' का रीमेक था यह फ़िल्म। नरगिस, सुनिल दत्त, राज कुमार और राजेन्द्र कुमार अभिनीत यह फ़िल्म १४ फ़रवरी के दिन प्रदर्शित किया गया था। 'मदर इण्डिया' की कहानी राधा (नरगिस) की कहानी थी, जिसका पति (राज कुमार) एक दुर्घटना में अपने दोनों हाथ गँवाने के बाद उससे अलग हो जाता है। राधा अपने बच्चों को बड़ा करती है हर तरह की सामाजिक और आर्थिक परेशानियों का सामना करते हुए। उसका एक बेटा बिरजु (सुनिल दत्त) बाग़ी बन जाता है जबकि दूसरा बेटा रामू (राजेन्द्र कुमार) एक आदर्श पुत्र है। अंत में राधा बिरजु की हत्या कर देती है और उसका ख़ून उनकी ज़मीन को उर्वर करता है। 'मदर इण्डिया' के लिए महबूब ख़ान को फ़िल्मफ़ेयर के 'सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म' और 'सर्वश्रेष्ठ निर्देशक' के पुरस्कर मिले थे। नरगिस को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला था। इसके अलावा फ़रदून ए. ईरानी को सर्वश्रेष्ठ सिनेमाटोग्राफ़र और कौशिक को सर्वश्रेष्ठ ध्वनिमुद्रण का पुरस्कार मिला था।

आज की कड़ी में हम आपको सुनवा रहे हैं फ़िल्म 'मदर इण्डिया' का गीत "दुख भरे दिन बीते रे भइया अब सुख आयो रे, रंग जीवन में नया लायो रे"। मोहम्मद रफ़ी, शम्शाद बेग़म, आशा भोसले और मन्ना डे की आवाज़ें, और शक़ील-नौशाद की जोड़ी। इस गीत के बनने की कहानी ये रही मन्ना दा के शब्दों में (सौजन्य: 'हमारे महमान', विविध भारती) - "जब हम 'मदर इण्डिया' के गा रहे थे वह "दुख भरे दिन बीते रे भइया...", अभी मैं, रफ़ी साब, आशा, गा रहे थे सब लोग, और शम्शाद बाई थीं, और कोरस। रिहर्सल करने के बाद, नौशाद साहब के घर में हो रहा था रिहर्सल, तो बोले कि 'अच्छा मन्ना साहब, कल फिर कितने बजे?' तो मैंने बोला कि 'ठीक है नौशाद साहब, मैं आ जाऊँगा १० बजे'। तो रफ़ी साहब, बहुत धीरे बोलते थे, कहने लगे, 'दादा, कल सवेरे रेकॊर्डिंग् है'। बोला कि 'नौशाद साहब, रफ़ी साहब की कल रेकॊर्डिंग् है'। नौशाद साहब बोले कि 'ठीक है शाम को बैठते हैं'। तो आशा ने कहा, 'शाम को तो मैं नहीं आ सकती, शाम को रेकोर्डिंग् है मेरी'। 'अच्छा फिर परसों बैठते हैं'। तो परसों का तय हो गया। तो परसों सब फिर मिले और फिर से "दुख भरे दिन...", फिर से सब किया। कुछ तीन तीन घंटे रिहर्सल। अब फिर कब करना है? तो किसी ने पूछा कि 'और भी रिहर्सल करना है?' 'क्या बात कर रहे हैं?', नौशाद साहब। 'नहीं साहब, दो एक रिहर्सल चाहिए'। 'तो फ़लाना दिन बैठते हैं, ठीक है न रफ़ी मियाँ?' 'हाँ'। 'क्यों शम्शाद बाई?' 'आशा बाई, ठीक है ना?' 'मन्ना जी तो आएँगे'। ऐसे हम फिर मिले। इस तरह से रेकोडिंग् करते थे। पूरी तरह से तैयार करने के बाद जम के रेकोडिंग् 'स्टार्ट' हुई। नौशाद साहब पहुँच गए रेकॊर्डिंग् बूथ में। रेकोडिस्ट के पास जाकर बैठ गए। नौशाद साहब के रिहर्सल्स इतने पर्फ़ेक्ट हुआ करते थे कि रेकॊर्डिंग् के बीच में कभी कट नहीं होते थे। लेकिन इस गाने में 'रेडी वन टू थ्री फ़ोर स्टार्ट', "दुख भरे दिन बीते रे भइया अब सुख आयो रे, रंग जीवन में नया लायो रे", "कट", सब चुप। नौशाद साहब बाहर आये, 'वाह वाह वाह वाह, बेहतरीन, नंदु, तुमने वह क्या बजाया उधर?' वो कहता है, 'नौशाद साहब, मैंने यह बजाया'। 'वह कोमल निखार, वह ज़रा सम्भाल ना, वह ज़रा ठीक नहीं है, एक मर्तबा और'। 'अरे रफ़ी साहब, वह कौन सा नोट लिया उपर? "देख रे घटा घिर के आई, रस भर भर लाई, हो ओ ओ ओ ओ...", इसको ज़रा सम्भालिए, यह फिसलता है उधर'। 'एक मर्तबा और'। और फिर अंदर चले गए।" तो देखा दोस्तों, कि किस तरह से इस गीत की रेकॊर्डिंग् हुई थी। तो लीजिए इस अविस्मरणीय फ़िल्म का यह अविस्मरणीय गीत सुनते हैं महबूब ख़ान को सलाम करते हुए।



क्या आप जानते हैं...
कि 'मदर इण्डिया' को ऒस्कर पुरस्कारों के अंतर्गत सर्वश्रेष्ठ विदेशी फ़िल्म की श्रेणी में नामांकन मिला था।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली १० /शृंखला ०४
गीत का प्रील्यूड सुनिए -


अतिरिक्त सूत्र - बेहद आसान है इसलिए कोई अन्य सूत्र नहीं.

सवाल १ - किन किन पुरुष गायकों की आवाज़ है इस समूह गीत में - २ अंक
सवाल २ - महिला गायिकाओं के नाम बताएं - १ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी २ अंक अभी भी पीछे हैं यानी आज अगर श्याम जी एक अंक वाले सवाल का भी जवाब दे देते हैं तो बाज़ी उन्हीं के हाथ रहेगी...देखते हैं क्या होता है

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

गीत तो नया है लेकिन प्रश्न वही पुराने हैं जो इस गीत पर लागू नहीं हो रहे है
ShyamKant said…
1-Mohd. Rafi
ShyamKant said…
This post has been removed by the author.
ना तो यह समूह गीत है और ना ही इसमें गायकों तथा गायिकाओं ने गाया है यह युगल गीत है
अरे माफ़ी सभीको आप अपडेट नहीं कर पाया सवालों को, अब क्या हो सकता है आप लोग बताएं
चलिए गायक-गायिका, फिल्म का नाम और संगीतकार बता दें
ShyamKant said…
Artist- Lata, Rafi
मैं गाना क्यों नही सुन पा रही? सुनूंगी नही तो उत्तर कैसे दूंगी? बताइए.बडी बेइंसाफी है सुजॉय!
मेरे विचार से आज की पहेली को निरस्त कर दिया जाए क्यों कि ७.०० बजे के बाद तो मैं क्म्प्यूटर बन्द कर चुका था अभी अचानक देखा । वैसे उत्तर तो हमें प्रारम्भ में ही मालूम हो गया था किन्तु आप के द्वारा दिए गए नए प्रश्नों का पता तो तभी चलता जब पूरे समय उसका इन्तज़ार करते रहते | वैसे फ़िल्म तो ’सन ऒफ़ इण्डिया’ है
शायद संगीत कार का नाम रह गया आज की भगदड़ में ....
अगर पहेली खारिज ना हो गयी हो तो संगीतकार हैं : नौशाद
दिखला के कनारा मुझे मल्लाह ने लूटा
कश्ती भी गई हाथ से पतवार भी छूटा
अब और ना जाने मेरी तकदीर में क्या है '
वाह क्या गाना है.आँखे बंद कर बस सुनती रहूँ.एक लंबा अरसा हो गया इस गाने को सुने.ईमानदारी से कहूँ तो लगभग भूल चुकी थी इसे.यूँ ये मेरा बहुत ही पसंदीदा गाना है.जीवन की आप धापी में जाने कैसे ये बहुत पीछे छूट गया था.आज ही इसे 'सेव' कर लेती हूँ अपने खजाने में.
थेंक्स सजीव जी.'प्लेयर स्टार्ट नही हुआ.जाने क्यों इंस्टाल ही नही हो रहा.वो काम बाद में कर लुंगी.पहले बतिया लूं.काम बाद में बाते पहले?
हा हा हा यस.क्या करूं? सचमुच ऐसिच हूँ मैं.

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...