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मैं शायर बदनाम, महफिल से नाकाम

(पिछली कड़ी से आगे...)
बक्षी साहब ने फ़िल्म मोम की 'गुड़िया(1972)' में गीत 'बाग़ों में बहार आयी' लता जी के साथ गाया था। इस पर लता जी बताती हैं कि 'मुझे याद है कि इस गीत की रिकार्डिंग से पहले आनन्द मुझसे मिलने आये और कहा कि मैं यह गीत तुम्हारे साथ गाने जा रहा हूँ 'इसकी सफलता तो सुनिश्चित है'। इसके अलावा 'शोले(1975)', 'महाचोर(1976)', 'चरस(1976)', 'विधाता(1982)' और 'जान(1996)' में भी पाश्र्व(प्लेबैक)गायक रहे। आनन्द साहब का फिल्म जगत में योगदान यहीं सीमित नहीं, 'शहंशाह(1988)', 'प्रेम प्रतिज्ञा(1989)', 'मैं खिलाड़ी तू आनाड़ी(1994)', और 'आरज़ू(1999)' में बतौर एक्शन डायरेक्टर भी काम किया, सिर्फ यही नहीं 'पिकनिक(1966)' में अदाकारी भी की।

लता की दिव्या आवाज़ में सुनिए फ़िल्म अमर प्रेम का ये अमर गीत -


बक्षी के गीतों की महानता इस बात में है कि वह जो गीत लिखते थे वह किसी गाँव के किसान और शहर में रहने वाले किसी बुद्धिजीवी और ऊँची सोच रखने वाले व्यक्तिव को समान रूप से समझ आते हैं। वह कुछ ऐसे चुनिंदा गीतकारों में से एक हैं जिनके गीत जैसे उन्होंने लिखकर दिये वह बिना किसी फेर-बदल या नुक्ताचीनी के रिकार्ड किये गये। आनन्द साहब कहते थे फिल्म के गीत उसकी कथा, पटकथा और परिस्थिति पर निर्भर करते हैं। गीत किसी भी मन: स्तिथि, परिवेश या उम्र के लिए हो सकता है सो कहानी चाहे 60,70 या आज के दशक की हो इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है।

उनका सबसे अधिक साथ संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ रहा, ढेरों फिल्में और ढेरों सुपर हिट गीतों का ये काफिला इतना लंबा है की इस पर बात करें तो पोस्ट पे पोस्ट लग जाएँगीं. फिलहाल सुनते हैं फ़िल्म सरगम का ये दर्द भरा नग्मा -


आनन्द साहब को बड़े-बड़े पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिसमें 'आदमी मुसाफ़िर है' [अपनापन(1977)], 'तेरे मेरे बीच कैसा है यह बन्धन' [ एक दूजे के लिए(1981)], 'तुझे देखा तो यह जाना सनम' [दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे (1995)] और 'इश्क़ बिना क्या जीना यारों' [ ताल(1999)] गीतों के लिए चार बार फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार भी सम्मिलित है।

ऐ आर रहमान का संगीतबद्ध किया फ़िल्म ताल का ये गीत साबित करता है हर पीढी के संगीतकारों के साथ पैठ बिठाने में बक्षी साहब को कभी परेशानी नही हुई -


बक्षी साहब का निर्वाण 30 मार्च 2002 को मुम्बई में हुआ। फेफड़े और दिल की बीमारी को लेकर नानावती हास्पिटल में उनका इलाज काफ़ी समय चला लेकिन बचाने की कोशिश नाकामयब रही। आनन्द बक्षी साहब आज हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी कमी सिर्फ़ हमें नहीं खलती बल्कि उन फिल्मकारों को भी खलती है जिनके लिए वह गीत लिखते रहे, आज अगर आप उनकी आने वाली फ़िल्मों के गीत सुने तो कहीं न कहीं उनमें प्यार की मासूमियत और सच्ची भावना की कमी झलकती है, या बनावटीपन है या उनके जैसा लिखने की कोशिश है। आनन्द साहब इस दुनिया से क्या रुख़्सत हुए जैसे शब्दों ने मौन धारण कर लिया, जाने यह चुप्पी कब टूटे कब कोई दूसरा उनके जैसा गीतकार जन्म ले!

उस मशहूरो-बदनाम शायर की याद में ये नग्मा भी सुनते चलें -


प्रस्तुति - विनय प्रजापति "नज़र"



Comments

बहुत ही अच्छी जानकारी विनय जी,बहुत अच्छा लेख लिखा है .आप की मेहनत झलक रही है.
आप ने इन महान गीतकार के बारे में जानकारी दे कर इन की यादें ताज़ा कर दी हैं.गीतों के बोल अगर अच्छे होते हें तो धुन अच्छी बनती है ही और तो और गाने और सुनने वाले को भी आनंद आता है. आभार सहित
अच्छी जानकारी के लिए शुक्रिया.
आनंद बक्षी के नाम पर एक गीत वो भी है, जिससे उनका कद बहुत ही ऊंचा हो गया था-

चिंगारी कोई भड़के तो सावन उसे बुझाये..

मेरे नैना सावन भादों, या खिज़ां के फ़ूल पे आती नहीं बहार, या मैं शायर बदनाम..

ऐसे सभी गीतों के लिये उन्हे सलाम ...
आप सभी पाठकों का तहे-दिल से धन्यवाद!
'उदय' said…
... प्रसंशनीय अभिव्यक्ति है।
विनय जी, मजा आ गया, मुझे यह अच्छा लगा कि आप टिप्पणी देते समय नये लेख की जानकारी भी दे देते हैं. बख्शी जी, किशोर कुमार, आर०डी०बर्मन की एक कड़ी थी जिसने न जाने कितने अमर गीत दिये. मुझे यह बताने की कृपा करें कि यह जो गीत/वीडियो पोस्ट किये जाते हैं इन्हें डाउनलोड कैसे किया जाये.
Shuaib said…
अच्छे गीत सुनाने और आनंद बक्षी के बारे जानकारी देने केलिए धन्यवाद
हर बार बेहतर लिखने वाला कोई गुलज़ार या नीरज सा ही विरला होता है....ओर उसमे भी आर डी का साथ सोने पे सुहागा .पर अमर प्रेम ओर नमकहराम के ये गीत वाकई आनद बक्षी के क्रेडिट गीत है.
विनय जी, आनंद बख़्शी साहेब के बारे में दो भागों में बहुत ही सुंदर ढंग से इतनी जानकारी देने के लिए बधाई।
महावीर जी, सादर चरणस्पर्श! आपने लेख पढ़कर सराहना की इसके लिए आभार!
डा. साहब सरल शब्दों में आम आदमी के दिल की बात गुल्ज़ार कभी नहीं कर पाये और विफल रहे और यही बात रही कि उनके ग्राफ़ में बहुत उतार चढ़ाव हैं! आनन्द साहब और गुल्ज़ार को तोलना जैसे चाँद और सूरज की महत्ता को अलग-अलग करके देखना है! आगे क्या कहूँ आप समझदार हैं! गुल्ज़ार सिर्फ़ 20% भारतीयों के दिमाग़ में दख़ल रख पायें और आनन्द साहब 80% लोगों के दिलों पर राज करते हैं।
आप सिर्फ़ अमर प्रेम की बात करते है, जिस गीत ने ग़ुलाम अली की ज़िन्दगी बदल दी, वह गीत चमकते चाँद को टूटा हुआ तारा बना डाला, आनन्द साहब ने लिखा है!

धन्यवाद! गुल्ज़ार बेहतर हैं लेकिन सबसे बेहतर नहीं!
विनय जी, आनंद बक्शी के ऊपर आपकी बहुत सफल प्रस्तुति रही, इस ज़मीन से जुड़े गीतकार के बारे में पढ़कर अच्छा लगा. आगे भी इस तरह की आम प्रवाह से ज़रा हटकर प्रस्तुति की प्रतीक्षा रहेगी.
धन्यवाद SMI जी, आगे भी पूरी कोशिश करूँगा!
Ajit Sharma said…
आप ने इन महान गीतकार के बारे में जानकारी दे कर इन की यादें ताज़ा कर दी हैं.गीतों के बोल अगर अच्छे होते हें तो धुन अच्छी बनती है ही और तो और गाने और सुनने वाले को भी आनंद आता है.
अजित साहब सही कह रहे हैं अगर आनन्द साहब को पसंद करते हैं तो आनंद बक्षी ब्लॉग से जुड़ें!

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