(पहले अंक से आगे...)
शाम के यही कोई आठ बजे का समय था, बनारस में गंगा मैया झूम झूम कर बह रही थी और कई युवा संगीत कलाकारों को शब्द, स्वर और लय की सरिता में खो जाने के लिए प्रोत्साहित कर रही थी, नगर के एक सभागार में 'आकाशवाणी संगीत प्रतियोगिता' के विजेताओ का संगीत प्रदर्शन हो रहा था, मैं मंच पर विचित्र वीणा लेकर बैठी, श्रोताओं की पहली पंक्ति में ही श्रद्धेय स्वर्गीय किशन महाराज जी को देखा और दोनों हाथ जोड़ कर उन्हें नमस्कार किया, तत्पश्चात वीणा वादन शुरू किया, जैसे ही वादन समाप्त समाप्त हुआ, आदरणीय स्वर्गीय पंडित किशन महाराज जी मंच पर आए, अपना हाथ मेरे सर पर रखा और कहा "अच्छा बजा रही हो, खूब बजाओ "। उनका यह आशीर्वाद और फ़िर उनके हाथ से स्वर्ण पदक पाकर मेरी संगीत साधना सफल हो गई, जीवन का वह क्षण मेरे लिए अविस्मर्णीय हैं ।
कई बार कई संगीत समारोह में उनका तबला सुनने का अवसर भी मुझे प्राप्त हुआ, उनका तबला चतुर्मिखी था, तबले की सारी बातें उसमे शामिल थी, लव और स्याही का वे सूझबूझ से प्रयोग करते थे, उनके उठान, कायदे रेलों और परनो की विशिष्ट पहचान थी । उन्होंने तबले में गणित के महत्व को समझाया, वे किसी भी मात्रा से तिहाई शुरू कर सम पर खत्म् करते थे, जो की अत्यन्त ही कठिन हैं । प्रचलित तालो के अतिरिक्त वे अष्ट मंगल, जैत जय, पंचम सवारी, लक्ष्मी और गणेश तालों का वादन भी बहुत सुगमता और सुंदरता से करते थे. तबले के कई घरानों की रचनाओ का उनके पास समृद्ध भण्डार था ।
आदरणीय पंडित रवि शंकर, उस्ताद बड़े गुलाम अली खान साहब, पंडित भीमसेन जोशी जी के साथ ही, आदरणीय शम्भू महाराज, सितारा देवी आदि के साथ उन्होंने संगत की । देश विदेश की कई संगीत सभाओ में तबला वादन की प्रस्तुति देकर तबले का प्रेम श्रोताओ के ह्रदय में अचल स्थापित किया ।
लय भास्कर, संगती सम्राट, काशी स्वर गंगा सम्मान, संगीत नाटक अकादमी सम्मान, ताल चिंतामणि, लय चक्रवती, उस्ताद हाफिज़ अली खान व अन्य कई सम्मानों के साथ पद्मश्री व पद्मभूषण अलंकरण से उन्हें नवाजा गया ।
वे ३ सितम्बर १९२३ की आधी रात को ही इस धरती पर आए थे और चार मई २००८ की आधी रात को ही वे इस धरती को छोड़, स्वर्ग की सभा में देवों के साथ संगत करने हमेशा के लिए चले गए। उनके जाने से हमने एक युगजयी संगीत दिग्गज को खो दिया, पर उनका आशीर्वाद हम सभी के साथ हमेशा हैं, इस बात से थोड़ा धैर्य मिलता हैं । आदरणीय स्वर्गीय किशन महाराज जी को मेरी भावपूर्ण श्रद्धांजलि -
देखिये उस्ताद विलायत खान के साथ राग दरबारी में संगत करते पंडित किशन महाराज जी को -
कविता छिब्बर द्वारा प्रस्तुत पंडित जी को दी गई ये श्रद्धाजंली भी तीन खंडों में है...देखें यहाँ, यहाँ और यहाँ.
प्रस्तुति - वीणा साधिका,
राधिका
(राधिका बुधकर)
शाम के यही कोई आठ बजे का समय था, बनारस में गंगा मैया झूम झूम कर बह रही थी और कई युवा संगीत कलाकारों को शब्द, स्वर और लय की सरिता में खो जाने के लिए प्रोत्साहित कर रही थी, नगर के एक सभागार में 'आकाशवाणी संगीत प्रतियोगिता' के विजेताओ का संगीत प्रदर्शन हो रहा था, मैं मंच पर विचित्र वीणा लेकर बैठी, श्रोताओं की पहली पंक्ति में ही श्रद्धेय स्वर्गीय किशन महाराज जी को देखा और दोनों हाथ जोड़ कर उन्हें नमस्कार किया, तत्पश्चात वीणा वादन शुरू किया, जैसे ही वादन समाप्त समाप्त हुआ, आदरणीय स्वर्गीय पंडित किशन महाराज जी मंच पर आए, अपना हाथ मेरे सर पर रखा और कहा "अच्छा बजा रही हो, खूब बजाओ "। उनका यह आशीर्वाद और फ़िर उनके हाथ से स्वर्ण पदक पाकर मेरी संगीत साधना सफल हो गई, जीवन का वह क्षण मेरे लिए अविस्मर्णीय हैं ।
कई बार कई संगीत समारोह में उनका तबला सुनने का अवसर भी मुझे प्राप्त हुआ, उनका तबला चतुर्मिखी था, तबले की सारी बातें उसमे शामिल थी, लव और स्याही का वे सूझबूझ से प्रयोग करते थे, उनके उठान, कायदे रेलों और परनो की विशिष्ट पहचान थी । उन्होंने तबले में गणित के महत्व को समझाया, वे किसी भी मात्रा से तिहाई शुरू कर सम पर खत्म् करते थे, जो की अत्यन्त ही कठिन हैं । प्रचलित तालो के अतिरिक्त वे अष्ट मंगल, जैत जय, पंचम सवारी, लक्ष्मी और गणेश तालों का वादन भी बहुत सुगमता और सुंदरता से करते थे. तबले के कई घरानों की रचनाओ का उनके पास समृद्ध भण्डार था ।
आदरणीय पंडित रवि शंकर, उस्ताद बड़े गुलाम अली खान साहब, पंडित भीमसेन जोशी जी के साथ ही, आदरणीय शम्भू महाराज, सितारा देवी आदि के साथ उन्होंने संगत की । देश विदेश की कई संगीत सभाओ में तबला वादन की प्रस्तुति देकर तबले का प्रेम श्रोताओ के ह्रदय में अचल स्थापित किया ।
लय भास्कर, संगती सम्राट, काशी स्वर गंगा सम्मान, संगीत नाटक अकादमी सम्मान, ताल चिंतामणि, लय चक्रवती, उस्ताद हाफिज़ अली खान व अन्य कई सम्मानों के साथ पद्मश्री व पद्मभूषण अलंकरण से उन्हें नवाजा गया ।
वे ३ सितम्बर १९२३ की आधी रात को ही इस धरती पर आए थे और चार मई २००८ की आधी रात को ही वे इस धरती को छोड़, स्वर्ग की सभा में देवों के साथ संगत करने हमेशा के लिए चले गए। उनके जाने से हमने एक युगजयी संगीत दिग्गज को खो दिया, पर उनका आशीर्वाद हम सभी के साथ हमेशा हैं, इस बात से थोड़ा धैर्य मिलता हैं । आदरणीय स्वर्गीय किशन महाराज जी को मेरी भावपूर्ण श्रद्धांजलि -
देखिये उस्ताद विलायत खान के साथ राग दरबारी में संगत करते पंडित किशन महाराज जी को -
कविता छिब्बर द्वारा प्रस्तुत पंडित जी को दी गई ये श्रद्धाजंली भी तीन खंडों में है...देखें यहाँ, यहाँ और यहाँ.
प्रस्तुति - वीणा साधिका,
राधिका
(राधिका बुधकर)
Comments
वीडियो भी दुर्लभ है.
सबसे महत्वपूर्ण जानकारी को रेखांकित करना चाहूंगा-
उन्होंने तबले में गणित के महत्व को समझाया, वे किसी भी मात्रा से तिहाई शुरू कर सम पर खत्म् करते थे, जो की अत्यन्त ही कठिन हैं ।
ये बात जो भी कोई गायक है, या वादक है, बखूबी समझ सकता है.वो जगह दिखती तो है कभी कभी, मगर पहुंचने की या लॆन्ड करने की अचूकता या प्रेसिशन ही श्रेष्ठ साधक ्की पहचान कराती है.
सभी पाठकोँ को मकर सँक्रात की बधाई
- लावण्या