Skip to main content

आपके पीछे चलेंगी आपकी परछाईयाँ....

निर्देशक बी आर चोपडा पर विशेष

व्यावसायिक दृष्टि से कहानियाँ चुनकर फिल्में बनाने वाले निर्देशकों से अलग सामाजिक सरोकारों को संबोधित करती हुई फिल्मों के माध्यम से समाज को एक संदेश मनोरंजनात्मक तरीके से कहने की कला बहुत कम निर्देशकों में देखने को मिली है. वी शांताराम ने अपनी फिल्मों से सामाजिक आंदोलनों की शुरुआत की थी, आज के दौर में मधुर भंडारकर को हम इस श्रेणी में रख सकते हैं, पर एक नाम ऐसा भी है जिन्होंने जितनी भी फिल्में बनाई, उनकी हर फ़िल्म समाज में व्याप्त किसी समस्या पर न सिर्फ़ एक प्रश्न उठाती है, बल्कि उस समस्या का कोई न कोई समाधान भी पेश करती है. निर्देशक बी आर चोपडा ने अपनी हर फ़िल्म को भरपूर रिसर्च के बाद बनाया और कहानी को इतने दिलचस्प अंदाज़ में बयां किया हर बार, कि एक पल के लिए देखने वालों के लिए फ़िल्म का कसाव नही टूटता. चाहे बात हो अवैध रिश्तों की (गुमराह), या बलात्कार की शिकार हुई औरत की (इन्साफ का तराजू), मुस्लिम वैवाहिक नियमों पर टिपण्णी हो (निकाह), या वैश्यावृति में फंसी औरतों का मानसिक चित्रण (साधना), या हो एक विधवा के पुनर्विवाह जैसा संवेदनशील विषय (एक ही रास्ता),अपनी फिल्मों से बी आर ने हमेशा ही समाज में एक सकारात्मक हलचल मचाई है, कई ऐसे विषय जिन पर तब तक परदों में रह कर चर्चा होता थी, उन्हें समाज के सामने बेनकाब किया, यही उनकी फिल्मों की वास्तविक कमियाबी रही है, पर जैसा कि हमने बताया गंभीर विषयों पर आधारित होने के बावजूद उनमें मनोरंजन भी भरपूर होता था, जिस कारण बॉक्स ऑफिस पर भी उनकी फिल्में सफलता के नए कीर्तिमान लिखती थी.


बीते बुधवार सुबह बी आर ने हमेशा के लिए संसार को अलविदा कह दिया, और पीछे छोड़ गए कुछ ऐसी फिल्मों की विरासत जिन से वर्तमान और आने वाली फिल्मकारों की पीढी को हमेशा गर्व रहेगा. आज हम उनकी जिस फ़िल्म का यहाँ जिक्र करेंगे वो है १९५७ में आई गोल्डन जुबली हिट फ़िल्म "नया दौर". आज के निर्देशक सईद मिर्जा और अज़ीज़ मिर्जा के वालिद अख्तर मिर्जा की लिखी इस बेहद "हट के" कहानी को महबूब खान, एस मुख़र्जी और एस एस वासन जैसे निर्देशकों ने सिरे से नकार दिया. कहा गया कि यह एक बढ़िया डोक्यूमेंट्री फ़िल्म तो बन सकती है पर एक फीचर फ़िल्म...कभी नही. बी आर ने इसी कहानी पर काम करने का फैसला किया. पर जब उन्होंने दिलीप कुमार के साथ इस फ़िल्म की चर्चा की तो उन्होंने कहानी सुनने से ही इनकार कर दिया. बी आर अगली पसंद, अशोक कुमार के पास पहुंचे. अशोक कुमार का मानना था कि उनका लुक शहरी है और वो इस गाँव के किरदार के लिए वो नही जमेंगें, पर उन्होंने बी आर की तरफ़ से दिलीप कुमार से एक बार फ़िर बात की. इस बार दिलीप साहब राजी हो गए. आधुनिकता की दौड़ में पिसने वाले एक आम ग्रामीण की कहानी को फ़िल्म के परदे पर लेकर आना आसान नही था. कुछ हफ्तों तक कारदार स्टूडियो में शूट करने के बाद लगभग १०० लोगों की टीम को कूच करना था आउट डोर लोकेशन के लिए जो की भोपाल के आस पास था. उन दिनों मधुबाला और दिलीप साहब के प्रेम के चर्चे इंडस्ट्री में मशहूर थे. तो फ़िल्म की नायिका मधुबाला के पिता ने मधुबाला को शूट पर भेजने से इनकार कर दिया, यूँ भी उन दिनों आउट डोर शूट जैसी बातों का चलन नही था. बी आर ने कोर्ट में मुकदमा लड़ा, अपील में तर्क दिया कि फ़िल्म की कहानी के लिए यह आउट डोर बहुत ज़रूरी है. दिलीप ने बी आर के पक्ष में गवाही दी जहाँ उन्होंने मधुबाला से अपने प्यार की बात भी कबूली. मुकदमा तो जीत लिया पर मधुबाला को कानूनी दांव पेचों से बचने के खातिर केस को वापस लेना पड़ा, और इस तरह फ़िल्म में मधुबाला के स्थान पर वैजंतीमाला का आगमन हुआ. महबूब खान की "मदर इंडिया" के लिए लिबर्टी सिनेमा १० हफ्तों के लिए बुक था. पर फ़िल्म तैयार न हो पाने के कारण उन्होंने बी आर की "नया दौर" को अपने बुक किए हुए १० हफ्ते दे दिए, साथ में हिदायत भी दी कि चाहो तो ५ हफ्तों के लिए ले लो, तुम्हारी इस "ताँगे वाले की कहानी" को पता नही दर्शक मिले या न मिले. और यही महबूब खान थे जिन्होनें, जब फ़िल्म "नया दौर" ने अपनी सिल्वर जुबली मनाई तो बी आर को उनकी फ़िल्म के प्रीमियर के लिए मुख्य अतिथि होने का आग्रह किया. चढ़ते सूरज को दुनिया सलाम करती है पर बी आर उन निर्देशकों में थे जिन्हें अपने चुनाव और अपने फैसलों पर हमेशा पूरा विश्वास रहा. उनकी हर फ़िल्म का संगीत पक्ष भी बहुत मजबूत रहा. नया दौर के गीतों को याद कीजिये ज़रा- मांग के साथ तुम्हारा (पार्श्व में चल रही ताँगे की आवाज़ पर गौर कीजिये), आना है तो आ, साथी हाथ बटाना, उडे जब जब जुल्फें तेरी, रेशमी सलवार या फ़िर आज भी हर राष्ट्रीय त्योहारों पर बजने वाला गीत -"ये देश है वीर जवानों का...",हर गीत कहानी से जुडा हुआ, हर गीत में शब्द और संगीत का परफेक्ट तालमेल.

आज की पीढी उन्हें महान धारावाहिक "महाभारत" के निर्देशक के रूप में अधिक जानती है. पर बहुत कम लोग जानते हैं कि बी आर ने फिल्मों में अनूठे प्रयोग किए हैं जिनकी मिसाल आज भी दी जाती है, फ़िल्म "कानून" हिंदुस्तान की अब तक की एक मात्र मुक्कमल उर्दू फ़िल्म मानी जाती है, चूँकि इस फ़िल्म में एक भी शब्द संवाद का हिन्दी में नही था, बी आर ने सेंसर बोर्ड से अपील भी की थी कि इस फ़िल्म को उर्दू में सर्टिफिकेशन दिया जाए. एक और बड़ी खासियत इस फ़िल्म के ये थी कि ये शायद हिंदुस्तान की पहली बिना गीतों की फ़िल्म थी. गुरुदत्त भी इस फ़िल्म के दीवाने थे क्योंकि जो बरसों से गुरुदत्त करना चाहते थे पर अपने जीवन काल में कभी कर नही पाये वो बी आर इस फ़िल्म के माध्यम से कर दिखाया था. आज भी कितने निर्देशक होंगें जो बिना गीतों के कोई हिन्दी फ़िल्म बनने का खतरा उठा सके. बी आर को फिल्मों में उनके अमूल्य योगदान के लिए हमेशा याद किया जाएगा...फ़िल्म इंडस्ट्री ने फिल्मों के माध्यम समाज को आईना दिखने वाला एक बेहतरीन निर्देशक को खो दिया है. हिंद युग्म,आवाज़ दे रहा है बी आर चोपडा को यह संगीतमय श्रद्धाजंली.




Comments

अनमोल जानकारी...

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट