Skip to main content

अक्तूबर के अजय वीर पहली बार आमने सामने

अक्तूबर के अजय वीर गीतों के पहले चरण की पहली समीक्षा में समीक्षक ने मेलोडी को तरजीह दी है...

गीत # १४ - डरना झुकना छोड़ दे

एकदम सामान्य गीत, पूरा सुन पाना भी मुश्किल... गीत के ३ और गायकी के ३ अंक के अलावा बाकी सारे पक्षों में एक भी नंबर दे पाना मुश्किल।
गीत ३, संगीत ० , गायकी ३, प्रस्तुति ०, कुल ६ / २०.

3/10.

गीत # 15 -ऐसा नही कि आज मुझे चाँद चाहिए

एक और कर्णप्रिय रचना.. गीत बढ़िया संगीत उम्दा , प्रस्तुति भी बढ़िया बस गायकी में (नीचे सुरों में )थोड़ी सी गुंजाईश और हो सकती थी। फिर भी आलओवर बहुत बढ़िया रचना।
गीत ४, संगीत ४, गायकी ३.५, प्रस्तुति ३.५, कुल १५ /२०

7.5/10

गीत # 16 -सूरज चाँद सितारे..

कर्णप्रिय गीत, एक बार सुनने लायक।
गीत ४,संगीत ३.५,गायकी ३.५, प्रस्तुति ४ कुल १५/२०.

7.5/10.


गीत # 17 -आखिरी बार तेरा दीदार ...

बहुत ही सुन्दर गज़ल,सभी पहलूओं पर कलाकारों ने अपना पूरा योगदान दिया। संगीत,गायकी,गीत सब कुछ शानदार। बेहद कर्णप्रिय।
गीत ४.५ संगीत ४.५ गायकी ४.५ प्रस्तुति ४.५ कुल १८/२०.

9/10.

गीत # 18 -ओ साहिबा

एक बार फिर सजीव सारथी के मधुर गीत को शुभोजीत ने सुन्दर संगीत में ढ़ाला और उतनी ही सुन्दरता से बिस्वजीत ने इसे गाया। कहीं कहीं साँस लेने की आवाज को बिस्वजीत छुपा नहीं पाये, थोड़ा सा ध्यान देना होगा उन्हें।
गीत ४.५ संगीत ४.५ गायकी ४ प्रस्तुति ५ कुल १८ / २०.

9/10.

चलते चलते -

लगता है अब तक समीक्षा के पहले चरण को पार चुके आधे सत्र के गीतों को इन नए गीतों से जबरदस्त टक्कर मिलने वाली है. कुल मिला कर यह सत्र एक उत्तेजना से भरे पड़ाव की तरफ़ बढ रहा है, जहाँ एक से बढ़कर एक गीत एक दुसरे से भिड रहे हैं सरताज गीत की दावेदारी लेकर. संगीत और संगीत प्रेमियों के लिए तो ये सब सुखद ही है

Comments

Biswajeet said…
Mujhe bahut pasand aaya scoring es baar ka. es liye nahin ki o sahiba ko achhai ratings mile hai balki esliye scoring ka base bahut realistic laga. Oo sahibako main ek alag style mein gaaya hoon jo usually western singers follow karte hai. esmein high breathing ko use karke gaane mein feel diya hoon. yahi wajah hai sabko ye mehsoos hua main chupa nahin paaya saans lene ki awaz. shyad breathing ko kam karta to zyada achha hota. agli baar ye koshish rahegi.

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट