अंक - 6
फ़िल्मी गीतों में ’आइ लव यू’!
“लो आज मैं कहती हूँ, आइ लव यू...”
हिन्दी फ़िल्में प्यार के इर्द-गिर्द घूमती है, और प्यार के इज़हार का सबसे पुराना और सबसे लोकप्रिय तरीक़ा है "आइ लव यू" कहना। ज़ाहिर सी बात है कि हिन्दी फ़िल्मी गीतों में भी "आइ लव यू" कहने का चलन पुराना है। अधिकतर लोगों को इसका चलन 70 के दशक से लगता है, पर सच्चाई यह है कि 30 के दशक में ही इस प्रथा की शुआत हो चुकी थी। किस गीत में पहली बार सुनाई दिया था "आइ लव यू", फिर उसके बाद साल-दर-साल, दशक-दर-दशक कौन कौन से "आइ लव यू" वाले गीत बने, और कब से यह चलन दम तोड़ती दिखाई दी, इन्ही सब जानकारियों को बटोरकर आज ’चित्रशाला’ का ’वैलेन्टाइन डे स्पेशल एपिसोड’ प्रस्तुत कर रहे हैं।
50 के दशक के शुरुआती सालों में "आइ लव यू" वाला कोई भी गीत सुनाई नहीं दिया, पर 1958 में एस. एच. बिहारी का लिखा और रवि का स्वरबद्ध किया फ़िल्म ’दुल्हन’ में आशा भोसले और गीता दत्त का गाया एक गीत आया जिसके बोल थे "आइ लव यू मैडम, ऐसे मचल के जाओ ना तुमको मेरी क़सम"। गीत एक स्टेज शो में फ़िल्माया गया जिसमें नन्दा और निरुपा राय क्रम से एक पश्चिमी आदमी और एक भारतीय नारी का भेस धर कर पर्फ़ॉर्म करते हैं। गीता दत्त की आवाज़ नन्दा को मिली है और आशा भोसले ने निरुपा राय के लिए। हिन्दी फ़िल्म गीत कोश के अनुसार इस गीत का दूसरा हिस्सा "तो फिर तुमको क्या माँगता मैडम... गोरे गोरे हाथों में बाजे कंगना" इस गीत का भाग-2 है।
राज कपूर की 1964 की फ़िल्म 'संगम' में एक सिचुएशन था कि जब राज कपूर और वैजयन्तीमाला अपने
Film- Sangam |
ich liebe dich,
I love you.
j’ vous t’aime,
I love you.
ya lyublyu vas (Я люблю вас),
I love you.
ishq hai ishq,
I love you.
1966 की फ़िल्म ’अकलमन्द’ में पी. एल. संतोषी का लिखा, ओ. पी. नय्यर का स्वरबद्ध किया गीत आया "सच कहूँ सच कहूँ सच कहूँ सच, आइ लव यू वेरी मच"। रफ़ी साहब और आशा जी की युगल आवाज़ों में यह एक कमाल का गीत है पाश्चात्य धुनों पर आधारित। इस "हिंग्लिश" गीत में आशा जी ने अपनी आवाज़ में कमाल के वेरिएशन का प्रदर्शन दिया है। इस गीत के अगलए ही साल, 1967 में आशा भोसले का गाया एक और गीत आया "आइ लव यू, यू लव मी, ओ मेरे जीवन साथी..."। फ़िल्म थी ’रात अंधेरी थी’। अख़्तर रोमानी का लिखा यह गीत उषा खन्ना के संगीत में था। गीत हेलेन पर फ़िल्माया गया है।
70 के दशक के शुरु में ही आशा भोसले की आवाज़ में दो ’आइ लव यू’ के गीत आए जो सुपर-डुपर हिट साबित हुए। पहला गीत था उषा अय्यर (उथुप) के साथ गाया हुआ 1970 की फ़िल्म ’हरे रामा हरे कृष्णा’ का जुगलबन्दी गीत "आइ लव यू... क्या ख़ुशी क्या ग़म"। आनन्द बक्शी के लिखे और राहुल देव बर्मन के संगीतबद्ध किए इस गीत में आशा और उषा की आवाज़ों का कॉनट्रस्ट सर चढ़ कर बोलता है और आज भी यह गीत बेहद आकर्षक लगता है। और दूसरा गीत है 1973 की फ़िल्म ’यादों की बारात’ का किशोर कुमार के साथ गाया हुआ "मेरी सोनी मेरी तमन्ना झूठ नहीं है मेरा प्यार, दीवाने से हो गई ग़लती जाने दो यार, आइ लव यू"। मजरूह सुल्तानपुरी की गीत रचना और संगीत एक बार फिर पंचम का। दादा बर्मन, यानी सचिन देव बर्मन भी पीछे नहीं थे। 1976 में उन्होंने आशा भोसले से गवाया फ़िल्म ’बारूद’ का गीत "आइ लव यू यू लव मी, लो मोहब्बत हो गई, तेरी दो आँखों में मेरी दुनिया खो गई"। गीत लिखा आनन्द बक्शी ने और गीत सजा रीना रॉय के होठों पर।
80 के दशक के शुरु में ही "आइ लव यू" से सजा एक ऐसा गीत आया जिसने चारों तरफ़ धूम मचा दी।
Film - Khuddar |
1987 की ब्लॉकबस्टर फ़िल्म ’मिस्टर इंडिया’ में "आइ लव यू" से सजा एक सुपरहिट गीत था। किशोर
Film - Mr India |
एक अकेले 1991 के साल में ही कम से कम तीन गीत बने। पहला गीत था फ़िल्म ’सौदागर’ का जिसने
Film- Saudagar |
1992 में ब्लॉकबस्टर फ़िल्म ’राजु बन गया जेन्टलमैन’ में शाहरुख़ ख़ान और जुहि चावला पर फ़िल्माया
Film - Yeh Dillagi |
90 के दशक के साथ-साथ जैसे फ़िल्मी गीतों की धारा ने एक मोड़ ले ली। अब गीतों में प्यार के इज़हार
Film - Mujhse Dosti Karoge |
आज "आइ लव यू" वाले गीत नहीं बनते। क्यों नहीं बनते? शायद इसलिए कि फ़िल्म समाज का आइना है, और समाज में आजकल "आइ लव यू" कहने की परम्परा शायद ख़त्म होती जा रही है। आपने आख़िरी बार "आइ लव यू" कब कहा था, याद है कुछ???
आपकी बात
पिछले अंक में ’गुलज़ार के गीतों में विरोधाभास’ शीर्षक पर लिखा लेख आपको पसन्द आया, यह देख कर हमें भी अच्छा लगा। हमारी नियमित पाठक अनीता जी ने टिप्पणी की है कि गुलज़ार के गीत हर उम्र के श्रोता को लुभाते हैं, उनके गीतों में विरोधाभास ही उनकी पहचान है, सुंदर आलेख के लिए बधाई! अनीता जी, आपने बिल्कुल सच कहा है गुलज़ार साहब के बारे में, और आपको लेख पसन्द आया, यह जानकर हमें अच्छा लगा, आपको धन्यवाद।
आख़िरी बात
’चित्रकथा’ स्तंभ का आज का अंक आपको कैसा लगा, हमें ज़रूर बताएँ नीचे टिप्पणी में या soojoi_india@yahoo.co.in के ईमेल पते पर पत्र लिख कर। इस स्तंभ में आप किस तरह के लेख पढ़ना चाहते हैं, यह हम आपसे जानना चाहेंगे। आप अपने विचार, सुझाव और शिकायतें हमें निस्संकोच लिख भेज सकते हैं। साथ ही अगर आप अपना लेख इस स्तंभ में प्रकाशित करवाना चाहें तो इसी ईमेल पते पर हमसे सम्पर्क कर सकते हैं। सिनेमा और सिनेमा-संगीत से जुड़े किसी भी विषय पर लेख हम प्रकाशित करेंगे। आज बस इतना ही, अगले सप्ताह एक नए अंक के साथ इसी मंच पर आपकी और मेरी मुलाक़ात होगी। तब तक के लिए अपने इस दोस्त सुजॉय चटर्जी को अनुमति दीजिए, नमस्कार, आपका आज का दिन और आने वाला सप्ताह शुभ हो!
शोध,आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग : कृष्णमोहन मिश्र
रेडियो प्लेबैक इण्डिया
Comments
70 के पहले वाले गाने सुनवा भी देते, खास कर 30 और 40 के गाने।
आलेख की आखिरी लाइन तो समाज की वस्तुस्थिति का आइना है, सच।
super script and super khoj !!