Skip to main content

पूरी रात पार्टी का इंतजाम लेकर आया है 'बॉस'

क्षय कुमार अपने खिलाड़ी रूप में फिर से लौट रहे हैं फिल्म बॉस के साथ. लगता है उन्हें हनी सिंह का साथ खूब रास आ रहा है. तभी तो पूरी एल्बम का जिम्मा उन्होंने हनी सिंह के साथ मीत ब्रोस अनजान को सौंपा है. फिल्म हिट मलयालम फिल्म पोखिरी राजा का रिमेक है, यहाँ अक्षय हरियाणा के पोखिरी यानी टपोरी बने हैं. आईये देखें इस बॉस को कैसे कैसे गीत दिए हैं हनी सिंह ने.

शीर्षक गीत बॉस को बखूबी परिभाषित करता है. हनी सिंह का हरियाणवी तडका अच्छा जमा है. गीत में पर्याप्त ऊर्जा और जोश है. शब्द एवें ही है पर शायद जानकार ऐसा रखा गया है.

दक्षिण के जाने माने संगीतकार पी ए दीपक के मूल गीत अपदी पोडे पोडे का हिंदी संस्करण है अगला गीत हम न छोड़े तोड़े, जिसे पूरे दम ख़म से गाया है विशाल ददलानी ने. शब्द अच्छे बिठाए गए है, पर मूल गीत इतनी बार सुना जा चुका है कि गीत कुछ नया सुनने का एहसास नहीं देता. दूसरे अंतरे से पहले अक्षय से बुलवाए गए संवाद बढ़िया लगते हैं.

सोनू निगम इन दिनों बेहद कम गीत गा रहे हैं ऐसे में किसी अच्छे गीत में उन्हें सुनना वाकई सुखद लगता है. एल्बम के तीसरे गीत पिता से है नाम तेरा एक भाव प्रधान गीत है जिसमें क्लास्सिकल और सूफी अंदाज़ को भी घोला गया है.

एल्बम का सबसे तारो ताज़ा और कदम थिरकाने वाला गीत है पार्टी ऑल नाईट. हालंकि शब्द खासे आपत्तिजनक हैं पर ठेठ हरियाणवी अंदाज़ का ये गीत हनी सिंह के मशहूर स्टाइल का है. कौन कहता है कि जट्टां दी भाषा लट्टमार होती है. सुरों में पिरो दो सब कुछ सुरीला ही सुनाई देता है. बेशक हनी सिंह के नाम से बहुत से लोग नाक भौ चढा लेते हैं, पर उनके ऐसे गीत सुनकर वाकई शरीर को थिरकने से रोक पाना बेहद मुश्किल है. आने वाले त्योहारों और शादियों के मौसम में ये गीत जम कर बजने वाला है ये तय है.

नब्बे के दशक के हिट गीत हर किसी को नहीं मिलता को एक नए रूप में पेश किया गया है एल्बम में. दो संस्करण है क्रमशः निखिल और अरिजीत की आवाजों में. एक बेहद यादगार गीत को कुछ अलग अंदाज़ में पेश कर आज की पीढ़ी के लिए भी इसे जिंदा किया गया है. अरिजीत वाले संस्करण में नीति मोहन की आवाज़ बेहद दिलचस्प लगी है.

बॉस का संगीत खालिस मस्ती और नाचने गाने के लिए ही है. जाहिर है लंबे समय तक इन्हें याद नहीं रखा जायेगा.

एल्बम के बेहतरीन गीत : पार्टी ऑल नाईट, हर किसी को नहीं मिलता

हमारी रेटिंग : ३.४   

संगीत समीक्षा - सजीव सारथी
आवाज़ - अमित तिवारी   

Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...