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सब कुछ पुराना ही है नई जंजीर में

भी कभी समझना मुश्किल हो जाता है कि एक ऐसी फिल्म जिसे अपने मूल रूप में आज भी बड़े आनंद से देखा जा सकता है, उसका रिमेक क्यों बनाया जाता है. खैर रेमेकों की फेहरिश्त में एक नया जुड़ाव है जंजीर , वो फिल्म जिसने इंडस्ट्री को एंग्री यंग मैन के रूप अमिताभ बच्चन का तोहफा दिया था ७० के दशक में. जहाँ तक फिल्म के प्रोमोस् दिखे हैं नई जंजीर अपने पुराने संस्करण से हर मामले में अलग दिख रही है. ऐसे में इसके संगीत को भी अलग नज़रिए से सुना समझा जाना चाहिए. अल्बम में चार सगीत्कारों का योगदान है. चित्रान्तन भट्ट, आनंद राज आनंद, मीत ब्रोस अनजान और अंकित के सुरों से संवरी इस ताज़ा एल्बम में क्या कुछ है आईये एक नज़र दौडाएं.

मिका  की जोशीली आवाज़ में खुलता है एल्बम का पहला गीत मुम्बई के हीरो . बीच के कुछ संवाद तो बच्चन साहब की आवाज़ में है...भाई अगर उन्हीं की आवाज़ चाहिए थी तो फिर रिमेक की क्या ज़रूरत थी ये मेरी समझ से तो बाहर है.

एक बोरिंग गीत के बाद एक और जबरदस्ती का आईटम गीत सामने आ जाता है. ममता शर्मा की आवाज़ में पिंकी  अब तक सुनाई दिए आईटम गीतों से न तो कुछ अलग है न बेहतर. शब्द घिसे पिटे और धुन भी रूटीन है. एक और ठंडा गीत.

श्रीराम और श्यामली की युवा युगल आवाजों में ये लम्हा तेरा मेरा  सुनकर आखिरकार एल्बम से कुछ उम्मीदें जाग जाती है. बहुत ही सुरीला गीत जिसके साथ दोनों गायक कलाकारों ने भरपूर न्याय किया है.

अगला गीत एक कव्वाली है (पुराने संस्करण के क्लास्सिक यारी है ईमान मेरा  जैसा). मैं तुलना तो नहीं करूँगा पर सुनने में बुरा हरगिज़ नहीं है ये गीत भी. सुखविंदर की आवाज़ में जोश भरपूर है.

श्वेता पंडित का गाया कातिलाना  एक क्लब गीत है जिसकी धुन एक बार पुराने संस्करण के दिल जलों का दिल जला कर  से सीधी उठा ली गयी है. हंसी आती है ऐसे बेतुके प्रयागों पर.

अंतिम  गीत में श्रेया की सुरीली आवाज़ है शकीला बानो हिट हो गयी... शकीला का तो पता नहीं पर एल्बम केवल गीत संगीत के दम पर हिट हो जाए तो चमत्कार ही होगा. एल्बम निराश ही करती है.

सुनने लायक गीत  -  ये लम्हा तेरा मेरा
हमारी  रेटिंग - २ / ५

Comments

मुझे रिमेक कभी पसंद नहीं आते।

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