स्वरगोष्ठी – 136 में आज
रागों में भक्तिरस – 4 राग दरबारी और भक्तिगीत : 'तोरा मन दर्पण कहलाए...'
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी लघु
श्रृंखला ‘रागों में भक्तिरस’ की चौथी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार
पुनः आप सब संगीत-प्रेमियों का स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत
हम आपके लिए संगीत के कुछ भक्तिरस प्रधान रागों और उनमें निबद्ध रचनाएँ
प्रस्तुत कर रहे हैं। श्रृंखला के आज के अंक में हम आपसे एक ऐसे राग पर
चर्चा करेंगे जो भक्तिरस के साथ-साथ श्रृंगाररस का सृजन करने में भी समर्थ
है। आज हम आपसे राग दरबारी कान्हड़ा के भक्ति-पक्ष पर चर्चा करेंगे और इसके
साथ ही सुप्रसिद्ध पार्श्वगायिका आशा भोसले की आवाज़ में, राग दरबारी पर
आधारित, फिल्म ‘काजल’ से एक बेहद लोकप्रिय भक्तिगीत प्रस्तुत करेंगे। यह भी
संयोग है कि आज ही आशा भोसले का 81वाँ जन्मदिवस है। इसके अलावा आज की कड़ी
में आप विश्वविख्यात संगीतज्ञ पण्डित जसराज से राग दरबारी कान्हड़ा में
निबद्ध एक भक्तिगीत सुनेंगे।
संगीत के क्षेत्र में ऐसा उदाहरण बहुत कम मिलता है, जब किसी कलाकार ने मात्र अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए लीक से अलग हट कर एक ऐसा मार्ग चुना हो, जो तत्कालीन देश, काल और परिवेश से कुछ भिन्न प्रतीत होता है। परन्तु आगे चल कर वही कार्य एक मानक के रूप में स्थापित हो जाता है। फिल्म संगीत के क्षेत्र में आशा भोसले इसकी जीती-जागती मिसाल हैं। आज की चर्चित पार्श्वगायिका आशा भोसले का जन्म 8सितम्बर, 1933 को महाराष्ट्र के सांगली में मराठी रंगमंच के सुप्रसिद्ध अभिनेता और गायक दीनानाथ मंगेशकर के घर दूसरी पुत्री के रूप में हुआ था। दीनानाथ जी की बड़ी पुत्री और आशा भोसले की बड़ी बहन विश्वविख्यात लता मंगेशकर हैं, जिनका जन्म 28सितम्बर, 1929 को हुआ था। दोनों बहनों की प्रारम्भिक संगीत-शिक्षा अपने पिता से ही प्राप्त हुई। अभी लता की आयु मात्र 13 और आशा की 9 वर्ष थी, तभी इनके पिता का देहान्त हो गया। अब परिवार के भरण-पोषण का दायित्व इन दोनों बहनों पर आ गया। अपनी बड़ी बहन लता के साथ आशा भी फिल्मों में अभिनय और गायन करने लगीं। आशा भोसले (तब मंगेशकर) को 1943 में मराठी फिल्म ‘माझा वाल’ में संगीतकार दत्ता डावजेकर ने गायन का अवसर दिया। इस फिल्म के एक गीत- ‘चला चला नव बाला...’ को उन्होने अकेले आशा से ही नहीं, बल्कि चारो मंगेशकर बहनों से गवाया। भारतीय फिल्म संगीत के इतिहास में यह गीत चारो मंगेशकर बहनों द्वारा गाये जाने के कारण तो दर्ज़ है ही, आशा भोसले के गाये पहले गीत के रूप में भी हमेशा याद रखा जाएगा। मात्र दस वर्ष की आयु में फिल्मों में पदार्पण तो हो गया, किन्तु आगे का मार्ग इतना सरल नहीं था। उन्हें अपने अस्तित्व-रक्षा में काफी संघर्ष करना पड़ा, जिसकी चर्चा हम फिर किसी अवसर पर करेंगे। आज हम आपको उनके गाये हजारों मनमोहक गीतों में से एक बेहद लोकप्रिय भक्तिगीत सुनवाते हैं।आइए, आशा जी का गाया, फिल्म काजल का भक्तिगीत- ‘तोरा मन दर्पण कहलाए...’ सुनते हैं। 1965 में प्रदर्शित इस फिल्म के संगीतकार रवि ने साहिर लुधियानवी के शब्दों को राग दरबारी कान्हड़ा पर आधारित स्वरों में पिरोया था। कहरवा ताल में निबद्ध इस गीत के भक्तिरस का आप आस्वादन कीजिए और आशा जी को उनके 81वें जन्मदिवस पर शुभकामनाएँ दीजिए।
राग दरबारी कान्हड़ा : फिल्म काजल : ‘तोरा मन दर्पण कहलाए...’ : आशा भोसले
मध्यरात्रि के परिवेश को संवेदनशील बनाने और विनयपूर्ण पुकार की अभिव्यक्ति के लिए दरबारी कान्हड़ा एक उपयुक्त राग है। प्राचीन काल में कर्णाट नामक एक राग प्रचलित था। 1550 की राजस्थानी पेंटिंग में इस राग का नाम आया है। बाद में यह राग कानडा या कान्हड़ा नाम से प्रचलित हुआ। यह मान्यता है कि अकबर के दरबारी संगीतज्ञ तानसेन ने कान्हड़ा के स्वरों में आंशिक परिवर्तन कर दरबार में गुणिजनों के बीच प्रस्तुत किया था, जो बादशाह अकबर को बहुत पसन्द आया और उन्होने ही इसका नाम 'दरबारी' रख दिया था। आसावरी थाट के अन्तर्गत माना जाने वाला यह राग मध्यरात्रि और उसके बाद की अवधि में ही गाया-बजाया जाता है। इस राग का वादी स्वर ऋषभ और संवादी स्वर पंचम होता है। अति कोमल गान्धार स्वर का आन्दोलन करते हुए प्रयोग इस राग की प्रमुख विशेषता होती है। यह अतिकोमल गान्धार अन्य रागों के गान्धार से भिन्न है। यह पूर्वांग प्रधान राग है। अवरोह के स्वर वक्रगति से लगाए जाते हैं। राग दरबारी के भक्तिरस के पक्ष को रेखांकित करने के लिए अब हम आपको विश्वविख्यात संगीतज्ञ पण्डित जसराज के स्वरों में शक्ति और बुद्धि की प्रतीक देवी दुर्गा की स्तुति सुनवाते हैं। स्तुति से पूर्व जसराज जी ने 'ओम् श्री अनन्त हरि नारायण...' का समृद्ध आलाप भी प्रस्तुत किया है।
राग दरबारी : ‘जय जय श्री दुर्गे...’ : पण्डित जसराज
आज की पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ के 136वें अंक की पहेली में
आज हम आपको संगीत की एक विशेष शैली में एक रचना का अंश सुनवा रहे है। इसे
सुन कर आपको दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। 140वें अंक की समाप्ति तक जिस
प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता
घोषित किया जाएगा।
1 – कण्ठ संगीत की यह रचना किस राग में निबद्ध है?
2 – संगीत की इस रचना में किस ताल का प्रयोग किया गया है?
आप अपने उत्तर केवल radioplaybackindia@live.com या swargoshthi@gmail.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 138वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अथवा radioplaybackindia@live.com या swargoshthi@gmail.com पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ के 134वें अंक की पहेली में हमने आपको विदुषी डॉ. एन. राजम् की वायलिन पर पूरब अंग के दादरा का एक अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग भैरवी और दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल दादरा। दोनों प्रश्नो के सही उत्तर जबलपुर से क्षिति तिवारी, लखनऊ से प्रकाश गोविन्द और जौनपुर के डॉ. पी.के. त्रिपाठी ने दिया है। तीनों प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
झरोखा अगले अंक का
मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’
के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी लघु श्रृंखला ‘रागों में
भक्तिरस’ के अन्तर्गत आज के अंक में हमने आपसे राग दरबारी के भक्तिरस के
पक्ष पर चर्चा की। आगामी अंक में हम एक और भक्तिरस प्रधान राग में गूँथी
रचनाएँ लेकर उपस्थित होंगे। अगले अंक में इस लघु श्रृंखला की पाँचवीं कड़ी
के साथ रविवार को प्रातः 9 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी
संगीत-रसिकों की प्रतीक्षा करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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