Skip to main content

भरपूर नाच गाना और धमाल है 'फटा पोस्टर निकला हीरो' में

राज कुमार संतोषी के निर्देशन में आ रहे हैं शहीद कपूर और इलियाना डी'क्रूस लेकर फिल्म फटा पोस्टर निकला हीरो . फिल्म में संगीत का जिम्मा संभाला है प्रीतम और अमिताभ भट्टाचार्य की सफल जोड़ी ने जिनके हौसले ये जवानी है दीवानी  के बाद बुलंदी पर होंगें.

आईये तफ्तीश करें इस ताज़ा एल्बम के संगीत की और देखें कि क्या कुछ है नया इस पेशकश में. 

मिका कभी भी प्रीतम के साथ दगा नहीं करते, जब भी प्रीतम ऐसे गीत बनाते हैं जहाँ सब कुछ गायक की क्षमता पर निर्भर हो वो मिका को चुनते हैं और हर बार की तरह मिका ने पहले गीत तू मेरे अगल बगल है में अपना चिर परिचित मस्तानगी भरी है, धुन बहुत ही कैची है. शब्द भी उपयुक्त ही हैं, पर अंगेजी शब्दों की भरमार है. 

मैं रंग शरबतों का  प्रीतम मार्का गीत है. जिसके दो संस्करण हैं. एक आतिफ असलम तो एक अरिजीत की आवाज़ में. मधुर रोमांटिक गीत है. कोरस का इस्तेमाल सुन्दर है. 

बेनी दयाल और और शेफाली की आवाजों में हे मिस्टर डी जे  एक ताज़ा हवा के झोंके जैसा है, जहाँ शेफाली की आवाज़ कमाल का समां रचती है. प्रीतम दा यहाँ पूरी तरह फॉर्म में है. नई ऊर्जा, नई ध्वनियाँ इस गीत को खास बना देती है. 

एक और डांसिंग गीत है दत्तिंग नाच , ऊर्जा से भरपूर कदम थिरकाने में पूरी तरह से सक्षम है ये गीत. देसी बीट्स का तडका और अमिताभ के रचनात्मक शब्द इसे और भी दिलचस्प बना देते हैं. 

माँ बेटे के प्यार भरे रिश्ते को स्वर देता गीत है जनम जनम , सुरीला और भावप्रधान इस गीत के भी दो मुक्तलिफ़ संस्करणों में हमें सुनिधि और आतिफ की आवाजें सुनने को मिलती है. आतिफ ने डूब कर गाया है इसे. सुनिधि ने अपनी आवाज़ देकर इसे बेटियों के लिए भी स्वर दे दिया. 

मेरे बिना तू  में राहत साहब और हर्षदीप की आवाजें हैं. कुछ अधिक प्रभावी नहीं बन पाया ये गीत हालाँकि शब्द अच्छे हैं 

प्रीतम ने अपनी तरकश के सभी तीर आजमाए हैं एल्बम में. और हर बार की तरह वो इस बार भी आम श्रोताओं को मनोरंजन देने में कामियाब हुए हैं. एक और हिट एल्बम उनकी फेहरिश्त में जुड़ती हुई प्रतीत हो रही है. 

सबसे बेहतरीन  गीत - दत्तिंग नाच, हे मिस्टर डी जे, तू मेरे अगल बगल है

हमारी रेटिंग - ४.३/५ 

संगीत समीक्षा - सजीव सारथी
आवाज़ - अमित तिवारी

        

Comments

Popular posts from this blog

खमाज थाट के राग : SWARGOSHTHI – 216 : KHAMAJ THAAT

स्वरगोष्ठी – 216 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 3 : खमाज थाट   ‘कोयलिया कूक सुनावे...’ और ‘तुम्हारे बिन जी ना लगे...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की तीसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया था। वर्तमान समय मे...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...

भला हुआ मेरी मटकी फूटी.. ज़िन्दगी से छूटने की ख़ुशी मना रहे हैं कबीर... साथ हैं गुलज़ार और आबिदा

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #११३ सू फ़ियों-संतों के यहां मौत का तसव्वुर बडे खूबसूरत रूप लेता है| कभी नैहर छूट जाता है, कभी चोला बदल लेता है| जो मरता है ऊंचा ही उठता है, तरह तरह से अंत-आनन्द की बात करते हैं| कबीर के यहां, ये खयाल कुछ और करवटें भी लेता है, एक बे-तकल्लुफ़ी है मौत से, जो जिन्दगी से कहीं भी नहीं| माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंदे मोहे । एक दिन ऐसा आयेगा, मैं रोदुंगी तोहे ॥ माटी का शरीर, माटी का बर्तन, नेकी कर भला कर, भर बरतन मे पाप पुण्य और सर पे ले| आईये हम भी साथ-साथ गुनगुनाएँ "भला हुआ मेरी मटकी फूटी रे"..: भला हुआ मेरी मटकी फूटी रे । मैं तो पनिया भरन से छूटी रे ॥ बुरा जो देखन मैं चला, बुरा ना मिलिया कोय । जो दिल खोजा आपणा, तो मुझसा बुरा ना कोय ॥ ये तो घर है प्रेम का, खाला का घर नांहि । सीस उतारे भुँई धरे, तब बैठे घर मांहि ॥ हमन है इश्क़ मस्ताना, हमन को हुशारी क्या । रहे आज़ाद या जग से, हमन दुनिया से यारी क्या ॥ कहना था सो कह दिया, अब कछु कहा ना जाये । एक गया सो जा रहा, दरिया लहर समाये ॥ लाली मेरे लाल की, जित देखूं तित लाल । लाली देखन मैं गयी, मैं भी हो गयी लाल ॥ हँस हँस कु...