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पण्डित राजन-साजन मिश्र से सुनिए मियाँ की मल्हार

  
स्वरगोष्ठी – 129 में आज

भूले-बिसरे संगीतकार की कालजयी कृति – 9

राग मियाँ मल्हार पर आधारित एक अनूठा गीत-  
‘नाच मेरे मोर जरा नाच...’


इन दिनों ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक मंच ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी है, लघु श्रृंखला ‘भूले-बिसरे संगीतकार की कालजयी कृति’। इस श्रृंखला की नौवीं कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों की इस संगोष्ठी में उपस्थित हूँ और आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपको राग-आधारित कुछ ऐसे फिल्मी गीत सुनवा रहे हैं, जो छः दशक से भी पूर्व के हैं। रागों के आधार के कारण ये गीत आज भी सदाबहार गीत के रूप में हमारे बीच प्रतिष्ठित हैं। परन्तु इनके संगीतकार हमारी स्मृतियों में धूमिल हो गए हैं। इस श्रृंखला को प्रस्तुत करने का हमारा उद्देश्य यही है कि इन कालजयी, राग आधारित गीतों के माध्यम से हम उन भूले-बिसरे संगीतकारों को स्मरण करें। आज के अंक में हम आपके लिए वर्षाकालीन राग मियाँ की मल्हार पर आधारित लगभग लुप्तप्राय एक फिल्मी गीत, इस गीत के विस्मृत संगीतकार शान्ति कुमार देसाई का परिचय और राग मियाँ की मल्हार में निबद्ध एक खयाल पण्डित राजन-साजन मिश्र के स्वरों में प्रस्तुत करेंगे। 


ल्हार अंग के रागों में राग मियाँ की मल्हार में वर्षा ऋतु के प्राकृतिक सौन्दर्य को स्वरों के माध्यम से अभिव्यक्त करने की अनूठी क्षमता होती है। इसके साथ ही इस राग का स्वर-संयोजन, पावस के उमड़ते-घुमड़ते मेघ द्वारा विरहिणी नायिका के हृदय में मिलन की आशा जागृत होने की अनुभूति भी कराते हैं। वर्षा ऋतु की चरम अवस्था के सौन्दर्य की अनुभूति कराने में भी यह राग समर्थ होता है। यह राग वर्तमान में वर्षा ऋतु के रागों में सर्वाधिक प्रचलित और लोकप्रिय है। राग मियाँ की मल्हार तानसेन के प्रिय रागों में से एक है। कुछ विद्वानों का मत है कि तानसेन ने कोमल गान्धार तथा शुद्ध और कोमल निषाद का प्रयोग कर इस राग का सृजन किया था। अकबर के दरबार में तानसेन को सम्मान देने के लिए उन्हें ‘मियाँ तानसेन’ नाम से सम्बोधित किया जाता था। इस राग से उनके जुड़ाव के कारण ही मल्हार के इस प्रकार को ‘मियाँ की मल्हार’ कहा जाने लगा। फिल्मों के अनेक संगीतकारों ने इस राग में बेहद मनमोहक गीत रचे हैं। इन्हीं में से आज के अंक के लिए हमने 1964 में प्रदर्शित फिल्म ‘तेरे द्वार खड़ा भगवान’ का एक लगभग लुप्तप्राय गीत चुना है। फिल्म के संगीतकार शान्ति कुमार देसाई भी आज विस्मृत हो चुके हैं।

इस राग पर आधारित और वर्षाकालीन परिवेश का कल्पनाशील चित्रण करता आज का गीत हमने 1964 में प्रदर्शित फिल्म ‘तेरे द्वार खड़ा भगवान’ से चुना है। इस फिल्म की संगीत रचना शान्ति कुमार देसाई नामक एक ऐसे संगीतकार ने की थी, जिनके बारे में आज की पीढ़ी प्रायः अनजान ही है। 1934 में चुन्नीलाल पारिख द्वारा निर्देशित फिल्म ‘नवभारत’ से संगीतकार शान्ति कुमार देसाई का फिल्मों में पदार्पण हुआ था। उनके संगीत निर्देशन में कई देशभक्ति गीत अपने समय में बेहद लोकप्रिय हुए थे। शान्ति कुमार देसाई ने अधिकतर स्टंट और धार्मिक फिल्मों में संगीत रचनाएँ की थी। पाँचवें दशक के अन्तिम वर्षों में नई धारा के वेग में उखड़ जाने वाले संगीतकारों में श्री देसाई भी थे। लगभग एक दशक तक गुमनाम रहने के बाद 1964 में फिल्म ‘तेरे द्वार खड़ा भगवान’ के गीतों में फिर एक बार उनकी प्रतिभा के दर्शन हुए। अभिनेता शाहू मोदक और अभिनेत्री सुलोचना अभिनीत इस फिल्म में शान्ति कुमार देसाई ने राग ‘मियाँ कि मल्हार’ के स्वरों में बेहद कर्णप्रिय गीत- ‘नाच मेरे मोर जरा नाच...’ की संगीत रचना की थी। वर्षाकालीन प्रकृति का मनमोहक चित्रण करते पण्डित मधुर के शब्दों को श्री देसाई ने सहज-सरल धुन में बाँधा था। पूरा गीत दादरा ताल में निबद्ध है, किन्तु अन्त में द्रुत लय के तीनताल का टुकड़ा गीत का मुख्य आकर्षण है। मींड और गमक से परिपूर्ण मन्नाडे के स्वर तथा सितार, ढोलक और बाँसुरी का प्रयोग भी गीत की गुणबत्ता को बढ़ाता है। आइए; सुनते हैं, राग ‘मियाँ की मल्हार’ पर आधारित फिल्म ‘तेरे द्वार खड़ा भगवान’ का यह गीत-


राग मियाँ मल्हार : फिल्म तेरे द्वार खड़ा भगवान : ‘नाच मेरे मोर जरा नाच...’ : संगीत शान्ति कुमार देसाई



राग मियाँ मल्हार काफी थाट के अन्तर्गत माना जाता है। आरोह और अवरोह में दोनों निषाद का प्रयोग किया जाता है। इस राग के स्वरों का ढाँचा कुछ इस प्रकार बनता है कि कोमल निषाद एक श्रुति ऊपर लगने लगता है। इसी प्रकार कोमल गान्धार, ऋषभ से लगभग ढाई श्रुति ऊपर की अनुभूति कराता है। इस राग में गान्धार स्वर का प्रयोग अत्यन्त सावधानी से करना पड़ता है। राग मियाँ की मल्हार को गाते-बजाते समय राग बहार से बचाना पड़ता है। परन्तु कोमल गान्धार का सही प्रयोग किया जाए तो इस दुविधा से मुक्त हुआ जा सकता है। इन दोनों रागों को एक के बाद दूसरे का गायन-वादन कठिन होता है, किन्तु उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ ने एक बार यह प्रयोग कर श्रोताओं को चमत्कृत कर दिया था। इस राग में गमक की तानें बहुत अच्छी लगती है। यह काफी थाट का और षाडव-सम्पूर्ण जाति का राग है। अर्थात; आरोह में छह और अवरोह में सात स्वर प्रयोग किये जाते हैं। आरोह में शुद्ध गान्धार का त्याग, अवरोह में कोमल गान्धार का प्रयोग तथा आरोह-अवरोह दोनों में शुद्ध और कोमल दोनों निषाद का प्रयोग किया जाता है। आरोह में शुद्ध निषाद से पहले कोमल निषाद तथा अवरोह में शुद्ध निषाद के बाद कोमल निषाद का प्रयोग होता है। राग ‘मियाँ की मल्हार’ के स्वरों में प्रकृति के मनमोहक चित्रण की तथा विरह-पीड़ा हर लेने की अद्भुत क्षमता है। आइए, अब हम आपको विश्वविख्यात युगल गायक पण्डित राजन और साजन मिश्र के स्वरों में इसी राग में निबद्ध एक खयाल रचना सुनवा रहे हैं। यह रचना द्रुत एकताल में है। आप इस भावपूर्ण गायन की रसानुभूति कीजिए और मुझे आज की इस कड़ी को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।


राग मियाँ मल्हार : ‘घनन घोर घोर घिर आए बदरवा...’ : पण्डित राजन-साजन मिश्र




आज की पहेली

‘स्वरगोष्ठी’ की 129वीं संगीत पहेली में हम आपको तंत्र वाद्य संगीत का एक अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 130वें अंक तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला का विजेता घोषित किया जाएगा।


1 – वाद्य संगीत के इस अंश को सुन कर पहचानिए कि यह रचना किस राग में निबद्ध है?

2 – यह एक ऐसे महान तंत्र वाद्य संगीतज्ञ की रचना है, जो वादन करते-करते प्रायः स्वयं गाने भी लगते थे। क्या आप हमें उस संगीतज्ञ का नाम बता सकते हैं?

आप अपने उत्तर केवल radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 131वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से तथा radioplaybackindia@live.com पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।


पिछली पहेली के विजेता

‘स्वरगोष्ठी’ के 127वीं संगीत पहेली में हमने आपको उस्ताद शाहिद परवेज़ द्वारा प्रस्तुत सितार पर झाला वादन का एक अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग भूपाली और दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- द्रुत तीनताल। दोनों प्रश्नो के उत्तर हमारे नियमित प्रतिभागी, लखनऊ के प्रकाश गोविन्द और जबलपुर की क्षिति तिवारी ने दिया है। दोनों प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।


झरोखा अगले अंक का

   
मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी लघु श्रृंखला ‘भूले-बिसरे संगीतकार की कालजयी कृति’ के अगले अंक में हम आपको एक और भूले-बिसरे संगीतकार का परिचय देते हुए उनका संगीतबद्ध एक मोहक गीत लेकर उपस्थित होंगे। आप भी हमारी आगामी कड़ियों के लिए भारतीय शास्त्रीय, लोक अथवा फिल्म संगीत से जुड़े नये विषयों, रागों और अपनी प्रिय रचनाओं की फरमाइश कर सकते हैं। हम आपके सुझावों और फरमाइशों का स्वागत करते हैं। अगले अंक में रविवार को प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इस मंच पर आप सभी संगीत-रसिकों की हमें प्रतीक्षा रहेगी।


प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र 

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