स्वरगोष्ठी – 109 में आज
राग और प्रहर – 7
दरबारी, अड़ाना, शाहाना और बसन्त बहार : ढलती रात के ऊर्जावान राग
आज एक बार फिर मैं कृष्णमोहन मिश्र ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नए अंक के साथ
संगीत-प्रेमियों की महफिल में उपस्थित हूँ। आपको याद ही होगा कि इन दिनों
हम ‘राग और प्रहर’ विषय पर आपसे चर्चा कर रहे हैं। इस श्रृंखला में अब तक सूर्योदय से लेकर छठें प्रहर तक के रागों की चर्चा हम कर चुके हैं। आज हम
आपसे सातवें प्रहर के कुछ रागों पर चर्चा करेंगे। सातवाँ प्रहर अर्थात
रात्रि का तीसरा प्रहर मध्यरात्रि से लेकर ढलती हुई रात्रि के लगभग 3 बजे
तक के बीच की अवधि को माना जाता है। इस अवधि में गाने-बजाने वाले राग ढलती
रात में ऊर्जा का संचार करने में समर्थ होते हैं। प्रायः कान्हड़ा अंग के
राग इस प्रहर के लिए अधिक उपयुक्त माने जाते हैं। आज हम आपको कान्हड़ा अंग
के रागों- दरबारी, अड़ाना और शाहाना के अतिरिक्त ऋतु-प्रधान राग बसन्त बहार
की संक्षिप्त चर्चा करेंगे और इन रागों में कुछ चुनी हुई रचनाएँ भी
प्रस्तुत करेंगे।
मध्यरात्रि के परिवेश को संवेदनशील बनाने और विनयपूर्ण पुकार की अभिव्यक्ति के लिए दरबारी कान्हड़ा एक उपयुक्त राग है। यह मान्यता है कि अकबर के दरबारी संगीतज्ञ तानसेन ने कान्हड़ा के स्वरों में आंशिक परिवर्तन कर दरबार में गुणिजनों के बीच प्रस्तुत किया था, जो बादशाह अकबर को बहुत पसन्द आया और उन्होने ही इसका नाम दरबारी रख दिया था। आसावरी थाट के अन्तर्गत माना जाने वाला यह राग मध्यरात्रि और उसके बाद की अवधि में ही गाया-बजाया जाता है। इस राग का वादी स्वर ऋषभ और संवादी स्वर पंचम होता है। अति कोमल गान्धार स्वर का आन्दोलन करते हुए प्रयोग इस राग की प्रमुख विशेषता होती है। यह अति कोमल गान्धार अन्य रागों के गान्धार से भिन्न है। यह पूर्वांग प्रधान राग है। अब हम आपको राग दरबारी में भक्तिभाव से परिपूर्ण एक ध्रुवपद अंग की रचना प्रस्तुत कर रहे हैं। पटियाला गायकी परम्परा के सुप्रसिद्ध गायक पण्डित अजय चक्रवर्ती ने तानसेन की इस रचना को बड़े ही असरदार ढंग से प्रस्तुत किया है। सारंगी संगति भारतभूषण गोस्वामी ने की है।
राग दरबारी : ‘प्रथम समझ आओ रे विद्या धुन...’ : पण्डित अजय चक्रवर्ती
राग दरबारी से ही मिलता-जुलता एक राग है, अड़ाना। सातवें प्रहर अर्थात रात्रि के तीसरे प्रहर में यह राग खूब खिलता है। यह भी आसावरी थाट और कान्हड़ा अंग का राग है। षाडव-षाडव जाति के इस राग के आरोह में गान्धार और अवरोह में धैवत स्वर वर्जित होता है। अवरोह में कोमल गान्धार और शुद्ध मध्यम स्वर वक्रगति से प्रयोग किया जाता है। चंचल प्रकृति के इस राग से विनयपूर्ण और प्रबल पुकार के भाव की सार्थक अभिव्यक्ति सम्भव है। यह राग, दरबारी से काफी मिलता-जुलता है। परन्तु अड़ाना में दरबारी की तरह अति कोमल गान्धार का आन्दोलनयुक्त प्रयोग नहीं होता। इसके अलावा राग अड़ाना उत्तरांग प्रधान है, जबकि दरबारी पूर्वांग प्रधान राग होता है। राग अड़ाना का वादी स्वर तार सप्तक का षडज और संवादी स्वर पंचम होता है। इस राग में आज हम आपको एक फिल्मी रचना सुनवाएँगे। वर्ष 1955 में सुविख्यात फिल्म निर्माता-निर्देशक वी. शान्ताराम ने शास्त्रीय नृत्यप्रधान फिल्म ‘झनक झनक पायल बाजे’ का निर्माण किया था। फिल्म के संगीत निर्देशक बसन्त देसाई ने इस फिल्म में कई राग आधारित स्तरीय गीतों की रचना की थी। फिल्म का शीर्षक गीत ‘झनक झनक पायल बाजे...’ राग अड़ाना का एक मोहक उदाहरण है। इस गीत को स्वर प्रदान किया, सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायक उस्ताद अमीर खाँ ने। आइए, सुनते हैं, राग अड़ाना पर आधारित यह गीत।
राग अड़ाना : ‘झनक झनक पायल बाजे...’ : उस्ताद अमीर खाँ और साथी
आज का तीसरा राग शाहाना अथवा शाहाना कान्हड़ा है। विश्वविख्यात सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खाँ के अनुसार इस राग का सृजन हज़रत अमीर खुसरो ने किया था। यह राग काफी थाट के अन्तर्गत माना जाता है और कान्हड़ा अंग से गाया-बजाया जाता है। औड़व-सम्पूर्ण जाति के इस राग के आरोह में ऋषभ और धैवत स्वरों का प्रयोग नहीं किया जाता। इस राग के गायन-वादन में शुद्ध निषाद स्वर का अल्प प्रयोग और शुद्ध धैवत स्वर का बार-बार प्रयोग किया जाता है। राग का वादी स्वर पंचम और संवादी स्वर ऋषभ होता है। राग शाहाना कान्हड़ा के उदाहरण के लिए हमने उस्ताद शुजात खाँ के सितार वादन की प्रस्तुति का चयन किया है। शुजात खाँ अपने विश्वविख्यात सितार वादक पिता और गुरु उस्ताद विलायत खाँ की तरह वादन के दौरान गायन भी करते हैं। आज की इस प्रस्तुति में भी वादन के दौरान उस्ताद शुजात खाँ ने गायन भी प्रस्तुत किया है। गायकी अंग में प्रस्तुत राग शाहाना कान्हड़ा की इस रचना के बोल है- ‘उमड़ घुमड़ घन घिर आई कारी बदरिया...’।
राग शाहाना कान्हड़ा : गायकी अंग में सितार वादन : उस्ताद शुजात खाँ
‘राग और प्रहर’ श्रृंखला की आज की कड़ी का समापन हम एक ऋतु प्रधान राग ‘बसन्त बहार’ से करेंगे। जैसा कि इस राग के नाम से ही स्पष्ट हो जाता है, यह दो स्वतंत्र रागों बसन्त और बहार के मेल से बना है। पूर्वी थाट से लेने पर राग बसन्त का प्रभाव अधिक और काफी थाट से लेने पर बहार का प्रभाव प्रमुख हो जाता है। इस राग का वादी स्वर तार सप्तक का षडज तथा संवादी स्वर पंचम होता है। यह ऋतु प्रधान राग है। बसन्त ऋतु में इसका गायन-वादन किसी भी समय किया जा सकता है, किन्तु अन्य समय में रात्रि के तीसरे प्रहर में इसका गायन-वादन रुचिकर प्रतीत होता है। इस राग के उदाहरण के लिए आज हमने एक कम प्रचलित वाद्य विचित्र वीणा का चयन किया है। इस वाद्य पर डॉ. लालमणि मिश्र प्रस्तुत कर रहे है, मनमोहक राग बसन्त बहार। आप इस प्रस्तुति का आनन्द लीजिए और मुझे आज की इस कड़ी को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
राग बसन्त बहार : आलाप, जोड़, मध्य तथा द्रुत तीनताल की रचनाएँ : डॉ. लालमणि मिश्र
आज की पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ की 109वीं संगीत पहेली में हम आपको एक राग आधारित फिल्मी गीत का अंश सुनवा रहे है। इसे सुन कर आपको दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 110वें अंक तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 - संगीत के इस अंश को सुन कर पहचानिए कि यह गीत किस राग पर आधारित है?
2 – यह गीत किस ताल में निबद्ध है?
आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 111वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ के 107वें अंक में हमने आपको फिल्म ‘गूँज उठी शहनाई’ से राग बिहाग पर आधारित एक गीत का अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग बिहाग और दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल दादरा। दोनों प्रश्नो के सही उत्तर जबलपुर की क्षिति तिवारी, बैंगलुरु के पंकज मुकेश और मिनिसोटा (अमेरिका) से दिनेश कृष्णजोइस ने दिया है। लखनऊ के प्रकाश गोविन्द और जौनपुर के डॉ. पी.के. त्रिपाठी ने राग तो सही पहचाना किन्तु ताल की गलत पहचान की। पाँचो प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ।
झरोखा अगले अंक का
मित्रों, ‘स्वरगोष्ठी’ पर इन दिनों ‘राग और प्रहर’ शीर्षक से लघु श्रृंखला जारी है। श्रृंखला के आगामी अंक में हम आपके लिए आठवें प्रहर अर्थात रात्रि के अन्तिम प्रहर में गाये-बजाए जाने वाले कुछ आकर्षक रागों की प्रस्तुतियाँ लेकर उपस्थित होंगे। अगला अंक हमारी लघु श्रृंखला ‘राग और प्रहर’ का समापन अंक होगा। आप हमारे आगामी अंकों के लिए भारतीय शास्त्रीय संगीत से जुड़े नये विषयों, रागों और अपनी प्रिय रचनाओं की फरमाइश भी कर सकते हैं। हम आपके सुझावों और फरमाइशों को पूरा सम्मान देंगे। अगले अंक में रविवार को प्रातः 9-30 ‘स्वरगोष्ठी’ के इस मंच पर आप सब संगीत-रसिकों की हम प्रतीक्षा करेंगे।
कृष्णमोहन मिश्र
Comments