प्लेबैक वाणी -32 -संगीत समीक्षा - डेविड
नए संगीत को परखने की हमारी इस कोशिश में आपका फिर एक बार से स्वागत है. आज जिस एल्बम की हम चर्चा कर रहे हैं वो है बिजॉय ‘शैतान’ नाम्बियार की नई फिल्म ‘डेविड’ के संगीत से सजी. एल्बम में ८ संगीतकारों और ११ गीतकारों ने अपना योगदान दिया है. चलिए देखें इन युवा संगीत कर्मियों ने किन किन रंगों से सजाया है ‘डेविड’ को.
एल्बम खुलता है रौक बैंड ब्रह्मफुत्रा के एक शानदार ट्रेक के साथ. ‘गुम हुए’ न सिर्फ अपनी गायिका और धुन के लिए वरन अपने शब्दों के कारण भी खास है. ‘ढूंढेगे उन्हीं राहों को, सुकूँ भरी छांओं को.....वो रास्ते जहाँ खोये थे हम...’ यक़ीनन श्रोताओं को कहीं दूर अपनी यादों में ले जाते हैं. ये बैंड मार्क फुल्गडो और गौरव गोडखिंडी से मिलकर बनता है और इस गीत में अपनी आवाज़ भरी है सिद्धार्थ बसरूर ने. यक़ीनन सिद्धार्थ भी एक जबरदस्त टेलेंट हैं, जिनसे भविष्य में भी श्रोता उम्मीद लगा सकते हैं.
८० के दशक से श्रोताओं के दिलों पर छाया हुआ एक गीत है ‘दमा दम मस्त कलंदर’ जिसे जाने कितने गायकों ने अपने अपने अंदाज़ में श्रोताओं तक पहुँचाया है. इस कालजयी गीत का नशा आज भी वैसा ही है जैसा तब था. इस एल्बम में इसे गाया है रेखा भारद्वाज ने. एल्बम में इसका एक रोंक संस्करण भी है जिसका असर भी उतना ही जादूई है.
अगला गीत भी एक संगीत समूह ‘मातिबानी’ का है. ये बैंड भारतीय शास्त्रीय और लोक अंदाज़ को विश्व संगीत के साथ जोड़ कर पेश करने के लिए मशहूर है. यहाँ उनका गठबंधन फ्रेच संगीत के साथ है. फ्रेच शब्दों को स्वर दिया है जॉयशांति ने जिसके साथ निराली कार्तिक की जुगलबंदी सुनते ही बनती है. ‘तोरे मतवाले नैना’ एक ऐसा गीत है जिसे आप बार बार सुनना चाहेंगें.
‘मरिया पिताचे’ में रेमो आपको गोवा के पारंपरिक लोक अंदाज़ में ले जायेंगें जहाँ वो मरिया के पिता की कहानी सुनाते हैं. गीत के अधिकतर शब्द कोंकणी भाषा में है, मगर बहुत सी साईटों पर आप इसका अनुवाद पढ़ सकते हैं. वैसे इस लाजवाब गीत का मज़ा लेने के लिए आपको शब्दों की समझ कतई जरूरी नहीं है. रेमो अपने संगीत से ऐसा समां बाँध देते हैं कि बस सुनते ही चले जाने का मन करता है.
चुटकी, सीटी, के साथ पियानो और गिटार के सरलतम और कम से कम इस्तेमाल कर अगले गीत ‘तेरे मेरे प्यार की कहानी’ को संगीतकार प्रशांत पिल्लई, एक खूबसूरत प्रेम कविता में बदल देते हैं. नरेश अय्यर और श्वेता पंडित की आवाजें पूरी तरह से एक दूजे में घुलती महसूस होती हैं, गोपाल दत्त के शब्द भी अच्छे हैं.
हार्डरोक् अंदाज़ का ‘बंदे’ एक छोटा सा गीत है जिसे मोडर्न माफिया नाम के बैंड ने रचा है. तेज रिदम और अंकुर तिवारी के शब्द इस गीत को मजेदार तो बनाते हैं, पर ये एकबम के बाकी गीतों जितना प्रभावी नहीं हो पाया शायद, या फिर संभव है कि इस जेनर के प्रति मेरी नापसंदगी इसकी वजह हो.
अनिरुद्ध रविचंदर को ‘कोलावारी डी’ ने रातों रात एक मशहूर संगीतकार में तब्दील कर दिया था, पर यहाँ आप उनका एक अलग ही रूप देखेंगें. ‘यूँ ही रे’ एक बहुत ही मधुर गीत है जिसकी धुन जितनी लुभावनी है संगीत संयोजन भी उतना ही दिलचस्प है. हल्की बारिश की स्वर ध्वनियों से खुलता है ये गीत जिसमें बाँसुरी और अन्य पारंपरिक वाध्यों का सुन्दर प्रयोग हुआ है. खुद अनिरुद्ध और श्वेता मोहन की आवाजें इस गीत में खूब जमी है. शब्द भी सुरीले है. वोइलेन के पीस पर आकर अंजाम तक पहुँचते हुए गीत अपनी खास छाप छोड़ जाता है. गीत हालाँकि रहमान के ‘चुपके से’ जैसे गीतों की याद दिलाता है मगर अपनी खुद की पहचान भी अवश्य बनाने में कामियाब है, इसमें कोई शक नहीं.
रिदम की तेज और दमदार थाप पर कार्तिक की दमदार आवाज़ बेहद प्रभावी लगती है, अगले गीत ‘रब दी मर्ज़ी’ में. यहाँ भी शब्द सशक्त हैं. यक़ीनन इस गीत की ऊर्जा इसे विशेष बनाती है.
‘आउट ऑफ कंट्रोल’ जैसे एक गीत की उम्मीद मुझे बिजॉय के एल्बम में थी. ये गीत अंग्रेजी और हिंदी में है. निखिल डी’सूजा बहुत से वेस्टर्न क्लास्सिकल गायकों की याद दिलाते हैं, हिंदी शब्द प्रीती की आवाज़ में है, ये दर्द भरा गीत अपनी सुन्दर जुगलबंदी के कारण बेहद सुन्दर बन पड़ा है. आखिर दर्द और कुंठा की कोई भाषा कहाँ होती है.
पर ठहरिये जरा, अभी एल्बम में और भी बहुत कुछ है. मसलन अगले गीत को लें. संगीतकार हैं प्रशांत पिल्लई और आवाज़ है मेरे पसंदीदा लकी अली की. उनकी आवाज़ और अंदाज़ एकदम अलग ही सुनाई देता है इस गीत में. ताजिया यात्रा के दौरान होने वाले नारों जैसा कोरस है पार्श्व में. तरुज़ के शब्द पूरे वाकये को तस्वीर में बदल देते हैं. लकी अली का ‘या हुसैन’ एक जबरदस्त ट्रेक है, जिसे सुनकर ही महसूस किया जा सकता है.
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