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बोलती कहानियाँ: पंडित सुदर्शन की लघुकथा परिवर्तन

'बोलती कहानियाँ' स्तम्भ के अंतर्गत हम हर सप्ताह आपको प्रसिद्ध कहानियाँ सुनवाते रहे हैं। पिछले सप्ताह आपने हरिशंकर परसाई की कहानी "ठिठुरता हुआ गणतंत्र" का पॉडकास्ट अर्चना चावजी की आवाज़ में सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं पंडित सुदर्शन की लघुकथा "परिवर्तन", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। लघु कहानी "परिवर्तन" का गद्य (टेक्स्ट) हिन्दी समय पर पढ़ा जा सकता है।

कहानी का कुल प्रसारण समय 2 मिनट 29 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।

यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें।


हिन्दी साहित्य में "हार की जीत" जैसी प्रसिद्धि बहुत कम कहानियों को मिली है। जब मैंने जम्मू में पांचवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में पहली बार "हार का जीत" पढी थी, तब से ही इसके लेखक के बारे में जानने की उत्सुकता थी। दुःख की बात है कि "हार की जीत" जैसी कालजयी रचना के लेखक के बारे में जानकारी बहुत कम लोगों को है। गुलज़ार और अमृता प्रीतम पर आपको अंतरजाल पर बहुत कुछ मिल जाएगा मगर यदि आप पंडित सुदर्शन की जन्मतिथि, जन्मस्थान या कर्मभूमि के बारे में ढूँढने निकलें तो निराशा ही होगी। पंडित सुदर्शन के नाम से प्रसिद्ध साहित्यकार का वास्तविक नाम पंडित बदरीनाथ भट्ट था। उनका जन्म 1896 में स्यालकोट पंजाब (अब पाकिस्तान) में हुआ था। मुंशी प्रेमचंद और उपेन्द्रनाथ अश्क की तरह पंडित सुदर्शन भी हिन्दी और उर्दू में लिखते रहे हैं। उनकी गणना प्रेमचंद संस्थान के लेखकों में विश्वम्भरनाथ कौशिक, राजा राधिकारमणप्रसाद सिंह, भगवतीप्रसाद वाजपेयी आदि के साथ की जाती है। उन्हें गद्य और पद्य दोनों ही में महारत थी। मुख्य धारा के साहित्य-सृजन के अतिरिक्त उन्होंने अनेकों फिल्मों की पटकथा और गीत भी लिखे हैं. सोहराब मोदी की सिकंदर (१९४१) सहित अनेक फिल्मों की सफलता का श्री उनके पटकथा लेखन को जाता है। सन १९३५ में उन्होंने "कुंवारी या विधवा" फिल्म का निर्देशन भी किया। इस फिल्म के देशभक्ति-भाव से ओत-प्रोत गीत "भारत की दीन दशा का तुम्हें भारतवालों, कुछ ध्यान नहीं ..." ने पराधीन भारत के फिल्म-दर्शकों के मन में देशप्रेम का एक ज्वार सा उत्पन्न किया। उनकी रचनाओं में तीर्थ-यात्रा, पत्थरों का सौदागर, पृथ्वी-वल्लभ आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। फिल्म धूप-छाँव (१९३५) के प्रसिद्ध गीत तेरी गठरी में लागा चोर, बाबा मन की आँखें खोल आदि उन्ही के लिखे हुए हैं। इसी फ़िल्म में उनका लिखा और पारुल घोष, सुप्रभा सरकार और हरिमति का गाया गीत “मैं ख़ुश होना चाहूँ, हो न पाऊँ...” सही अर्थ में भारतीय सिनेमा का पहला प्लेबैक गीत था। वे १९५० में बने फिल्म लेखक संघ के प्रथम उपाध्यक्ष थे। ~ अनुराग शर्मा



उसके सिर के, दाढ़ी के और मूँछों के बाल सफेद हो चुके थे और आँखों में यौवन की चमक के स्‍थान पर बुढ़ापे की उदासीनता थी।
(पंडित सुदर्शन की कहानी "परिवर्तन" से एक अंश)



रेडियो प्लेबैक इंडिया पर पंडित सुदर्शन की अन्य कहानियाँ
* पंडित सुदर्शन की कालजयी रचना हार की जीत
* पंडित सुदर्शन की "तीर्थयात्रा
* साईकिल की सवारी - पंडित सुदर्शन
* पंडित सुदर्शन की "अठन्नी का चोर"
* तेरी गठरी में लागा चोर - पंडित सुदर्शन


शिशिर कृष्ण शर्मा जी के ब्लॉग बीते हुए दिन पर पढ़िये -
* कलम के सिकंदर: पण्डित सुदर्शन


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#Third Story, Parivartan: Pt. Sudarshan/Hindi Audio Book/2013/3. Voice: Anurag Sharma

Comments

बहुत अच्छी कथा है..
बहुत अच्छी कथा है..
पंडित सुदर्शन के विषय में प्रामाणिक जानकारी इस लिंक पर उपलब्ध है जो उनकी बेटी से बातचीत के माध्यम से एकत्रित की गयी है -

http://www.beetehuedin.blogspot.in/search/label/writer-lyricist%20%3A%20Pandit%20Sudarshan
आनंद आ गया यहाँ आकर।
Smart Indian said…
जानकारी के लिए हार्दिक आभार शिशिर जी!
Suman said…
बहुत अर्थपूर्ण सुन्दर कहानी है "परिवर्तन"
सुबह सुबह अच्छी कहानी सुनने को मिली आभार !

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