प्लेबैक वाणी -30 -संगीत समीक्षा - इनकार
पहले गीत ‘दरमियाँ’ को हम किसी खास श्रेणी में नहीं रख सकते, बल्कि ये जोनर है ‘स्वानंद’ जेनर, जिसमें आप ‘बावरा मन’ और ‘खोये खोये चाँद की तलाश में’ जैसे गीत सुने चुके हैं. गीतकारी का ये अंदाज़ नीरज सरीखा है, शब्द एक बार फिर बेहद दिलचस्प हैं जो पूरे गीत में श्रोताओं को बांधे रखते हैं. पूरी तरह से स्वानंद का ये गीत एल्बम को एक शानदार शुरुआत देता है.
अगले गीत में फिर स्वानंद की आवाज़ है मगर इस बार उन्हें साथ मिला है खुद शांतनु का. ‘मौला तू मालिक है’ शब्द और संगीत के लिहाज से एक सूफियाना कव्वाली जैसा है. एक बार फिर धीमे धीमे असर करता ये गीत अच्छे संगीत के कद्रदानों को अवश्य पसंद आना चाहिए.
अग्नि बैंड के, के. मोहन अपनी आवाज़ से एक खास पहचान बना चुके हैं. स्वानंद के शब्द एक बार फिर कारगर हैं. लेकिन यहाँ शांतनु ने भी अपनी मौजूदगी सशक्त रूप में दर्शाई है. पूरी तरह से रौ’क अंदाज़ का ये गीत बार बार सुने जाने लायक है. शहरी जीवन की दौड भाग और सपनों को पाने कि अंधी दौड में शामिल हम सभी को ऐसे गीत बेहद करीब से छू जाते हैं.
सूरज जगन की गायकी में अब हमारे संगीतकारों को एक अच्छा हार्ड रों’क गायक नसीब हो गया है. पर अभी भारतीय श्रोता हार्ड रौ’क जैसे जोनर के लिए कितना तैयार हैं ये कहना ज़रा मुश्किल है. सूरज के गाये पिछले गीतों को मिली कम शोहरत इस बात को लेकर संशय खड़ा करते हैं. ‘कुछ भी हो सकता है’ गीत मीडिया के बढते क़दमों और ‘सब कुछ चलता है’ जैसे आधुनिक सोच को दर्शाता है अपने शब्दों के माध्यम से. हालाँकि इस गीत को अपेक्षित श्रोता मिल पायेंगें, ये कहना मुश्किल है.
इनकार थीम में उभरती हुई प्रतिभाशाली गायिका मोनाली ठाकुर की आवाज़ भी है. एक अच्छा पीस जिसे शांत बैठकर आराम से सुना जा सकता है, वोइलिन के स्वरों से टकराती मोनाली की उत्तेजना भरी आवाज़ बेहद सुखद लगती है. कुल मिलाकर ‘इनकार’ एक अच्छा ‘सरप्राईस’ है श्रोताओं के लिए जिसे स्वानंद और शांतनु ने मिलकर यादगार बनाया है. रेडियो प्लेबैक दे रहा है एल्बम को ३.८ की रेटिंग. यदि आप इस समीक्षा को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंक से डाऊनलोड कर लें:
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