प्लेबैक वाणी -29 -संगीत समीक्षा - मटरू की बिजली का मंडोला
कहने की जरुरत नहीं कि जब भी गुलज़ार और विशाल एक साथ आते हैं, संगीत प्रेमियों की तो लॉटरी सी लग जाती है. इस बार ये साथ आये हैं “मटरू की बिजली का मंडोला’ लेकर. अब जब नाम ही इतना अनूठा हो तो संगीत से उम्मीद क्यों न हों, तो चलिए देखते हैं ‘माचिस’ से ‘सात खून माफ’ तक लगातार उत्कृष्ट संगीत देने वाली इस जोड़ी की पोटली में अब नया क्या है...
एल्बम खुलता है शीर्षक गीत से, जिसके साथ एक लंबे समय बाद गायक सुखविंदर की वापसी हुई है. संगीत संयोजक रंजीत बारोट ने भी उनका साथ दिया है, पर ये गीत पूरी तरह सुखविंदर का ही है. रिदम जबरदस्त है और धुन इतनी सरल है कि सुनते ही जेहन में बस जाता है. गुलज़ार ऐसे गीतों में भी अपने शब्दों को खास अंदाज़ से पेश करने में माहिर हैं. गीत ‘मास’ और ‘क्लास’ दोनों को प्रभावित करने में सक्षम है.
अगला गीत ‘खामखाँ’ यूँ तो एक प्रेम गीत है. जिसकी धुन बेहद मधुर है. संगीत संयोजन सरल और सुरीला है और विशाल की आवाज़ गीत पर पूरी तरह से दुरुस्त भी. कोई और संगीतकार होते तो शायद इस गीत को एक सरल प्रेम गीत ही बनाये रखते मगर विशाल ने गीत के दूसरे हिस्से में प्रेम देहाती के स्वर का इस्तेमाल किया है हरियाणवी लोक गीत अंदाज़ में जिसके आते ही गीत का मूड कुछ और देसी हो जाता है और अंत में एक शानदार फ्यूशन ‘एफ्रो’ स्टाइल का. वाह क्या गीत है...साल की शुरुआत में ही इतना शानदार गीत सुनकर मन बाग बाग हो गया.
विशाल अपनी गायिका पत्नी ‘रेखा भारद्वाज’ की आवाज़ को बहुत खूब पहचानते हैं यही वजह है कि वो सात खून माफ में रेखा से ‘डार्लिंग’ भी गवाते हैं और ‘येशु’ भी. प्रस्तुत एल्बम में भी जहाँ रेखा का बिंदास रूप दिखता है ‘ओए बॉय चार्ली’ में तो वहीँ उनकी आवाज़ में ‘बादल उठायो’ भी है. ओए बॉय की बात करें तो ये एक मस्त डांस नंबर है. जहाँ शंकर महादेवन ने जानलेवा रूप अख्तियार किया है, बंटी और बबली के ‘कजरारे’ के बाद उनका ये रूप देखना सुखद लगा, साथ में मोहित चौहान भी हैं.
‘बादल उठायो’ में तो रेखा ने कमाल ही कर दिया है. शब्द हरियाणवी लहजे के हैं मगर रेखा कहाँ पीछे रहने वाली थी. उसपर संगीत संयोजन भी उत्कृष्ट है. एल्बम का एक और यादगार गीत.
‘लूटने वाले’ गीत एक बगावत का गीत है जहाँ किसान क्रूर जमींदारों के खिलाफ एकजुट हो रहे हैं. यहाँ सुखविंदर के साथ हैं मास्टर सलीम, जिनकी आवाज़ का फ्लेवर एकदम अनूठा ही है. गुलज़ार साहब के शब्दों में उफान भी है और बागी तेवर भी. लंबे समय तक याद रखे जाने वाला गीत.
इन गीतों के अलावा एल्बम में पंकज कपूर, इमरान खान और प्रेम देहाती की आवाजों में कुछ हरियाणवी लोक अंदाज़ के मिसरे हैं जिनमें भरपूर छेड़छाड़ है, कुछ रागणीयां भी है जो फिल्म के देसी कलेवर को और सुदृढ़ता देते हैं.
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Comments
आभार अमित जी।