'बोलती कहानियाँ' स्तम्भ के अंतर्गत हम हर सप्ताह आपको प्रसिद्ध कहानियाँ सुनवाते रहे हैं। पिछले सप्ताह आपने पंडित बदरीनाथ भट्ट "सुदर्शन" की कहानी "परिवर्तन" का पॉडकास्ट अनुराग शर्मा की आवाज़ में सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं डा. अमर कुमार की लघुकथा "अपनों ने लूटा", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। लघु कहानी "अपनों ने लूटा" का गद्य (टेक्स्ट) डा० अमर के पन्नों पर पढ़ा जा सकता है।
कहानी "अपनों ने लूटा" का कुल प्रसारण समय 3 मिनट 55 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।
यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें।
जन्म मिथिला में, बचपन वैशाली में, प्रारंभिक शिक्षा कोसी क्षेत्र से, माध्यमिक शिक्षा एवँ जीवन से मुठभेड़ का प्रारंभ बैसवारा (रायबरेली) से, चिकित्सा स्नातक कानपुर मेडिकल कॉलेज़। सँप्रति निज चिकित्सा व्यवसाय व शौकिया लेखन रायबरेली में ही! चिकित्सक, ब्लॉगर, व्यंग्यकार, देशभक्त, डॉ अमर कुमार एक संवेदनशील व्यक्ति थे जोकि अपने प्रशंसकों के दिल में सदैव जीवित रहेंगे।
~ अनुराग शर्मा
डॉक्टर की फ़ीस बहुत मंहगी होती है साहब जी ! हमारी बीमारी तो पंसारी के पुडिये वाली दवाईयों से ही ठीक हो जाती है।
(डा. अमर कुमार की कहानी "अपनों ने लूटा" से एक अंश)
अपने को डिस्कवर करने की मशक्कत में हूँ, बड़ा दुरूह है अभी कुछ बताना। एक उनींदे शहर के चिकित्सक को आकाश का जितना टुकड़ा दिखता है, उसीके कुछ शेड तलब ही मौज़ूद होने का सबब है। साहित्य मेरा व्यसन है और संवेदनायें मेरी पूँजी!
~ डॉ. अमर कुमार
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VBR MP3
#Fourth Story, Apnon Ne Loota: Dr. Amar Kumar/Hindi Audio Book/2013/4. Voice: Anurag Sharma
कहानी "अपनों ने लूटा" का कुल प्रसारण समय 3 मिनट 55 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।
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डॉक्टर की फ़ीस बहुत मंहगी होती है साहब जी ! हमारी बीमारी तो पंसारी के पुडिये वाली दवाईयों से ही ठीक हो जाती है।
(डा. अमर कुमार की कहानी "अपनों ने लूटा" से एक अंश)
अपने को डिस्कवर करने की मशक्कत में हूँ, बड़ा दुरूह है अभी कुछ बताना। एक उनींदे शहर के चिकित्सक को आकाश का जितना टुकड़ा दिखता है, उसीके कुछ शेड तलब ही मौज़ूद होने का सबब है। साहित्य मेरा व्यसन है और संवेदनायें मेरी पूँजी!
~ डॉ. अमर कुमार
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pranam.