भारतीय सिनेमा के सौ साल –33
स्मृतियों का झरोखा : गणतन्त्र दिवस पर विशेष
‘दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है...’
भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित
विशेष अनुष्ठान- ‘स्मृतियों का झरोखा’ में आप सभी सिनेमा प्रेमियों का
हार्दिक स्वागत है। आज माह का चौथा गुरुवार है और आज से प्रत्येक माह के दूसरे और चौथे गुरुवार को हम ‘स्मृतियों का झरोखा’ के अन्तर्गत ‘रेडियो प्लेबैक
इण्डिया’ के संचालक मण्डल के सदस्य सुजॉय चटर्जी की प्रकाशित पुस्तक ‘कारवाँ
सिने-संगीत का’ से किसी रोचक प्रसंग का उल्लेख किया करेंगे। आज के अंक में
हम ‘बॉम्बे टॉकीज़’ की फ़िल्म ‘क़िस्मत’ की निर्माण-प्रक्रिया और उसकी सफलता
के बारे में कुछ विस्मृत यादों को ताजा कर रहे हैं।
‘बॉम्बे टॉकीज़’ की दूसरी फ़िल्म ‘क़िस्मत’ तो एक ब्लॉकबस्टर सिद्ध हुई। अशोक
कुमार और मुमताज़ शान्ति अभिनीत इस फ़िल्म ने बॉक्स ऑफ़िस के पहले के सारे
रेकॉर्ड्स तोड़ दिए। पूरे देश में कई जगहों पर जुबिलियाँ मनाने के अलावा
कलकत्ते के ‘चित्र प्लाज़ा’ थिएटर में यह फ़िल्म लगातार 196 हफ़्ते (तीन साल)
तक नियमित रूप से चली। इस रेकॉर्ड को आगे चलकर रमेश सिप्पी की फ़िल्म ‘शोले’
ने तोड़ा। ‘क़िस्मत’ एक ट्रेण्डसेटर फ़िल्म थी क्योंकि इसमें बचपन में दो
भाइयों के बिछड़ जाने और बाद में मिल जाने वाले फ़ॉरमूले को आज़माया गया था।
फ़िल्म की सफलता ने इस विषय को काफ़ी लोकप्रिय बनाया और फ़िल्मकारों ने इस
फ़ॉरमूले को बार-बार आज़माया।
‘क़िस्मत’ अनिल बिस्वास की ‘बॉम्बे टॉकीज़’ की
सबसे कामयाब फ़िल्म थी। पार्श्वगायन की तकनीक अब विकसित हो चली थी और अनिल
बिस्वास को अशोक कुमार के गायन में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं थी, इसीलिए इस
फ़िल्म में अरूण कुमार ने उनका शत-प्रतिशत पार्श्वगायन किया (इससे पहले अरूण
कुमार एक-आध गीत ही गाया करते थे, जबकि बाक़ी गीत अशोक कुमार ख़ुद गाते थे)।
मुमताज़ शान्ति की आवाज़ बनीं अमीरबाई कर्नाटकी। फ़िल्म का सर्वाधिक लोकप्रिय
गीत एक देशभक्ति गीत था अमीरबाई और साथियों का गाया हुआ - “आज हिमालय की
चोटी से फिर हमने ललकारा है, दूर हटो ऐ दुनियावालों हिन्दुस्तान हमारा है...”।
इस गीत ने स्वाधीनता-संग्राम की अग्नि में घी का काम किया। गीत का रिदम और
ऑरकेस्ट्रेशन भी ऐसा ‘मार्च-पास्ट’ क़िस्म का था कि सुनते ही मन जोश से भर
जाए। एक तरफ़ अनिल बिस्वास, जो ख़ुद एक कट्टर देशभक्त थे और जो फ़िल्मी दुनिया
में आने से पहले चार बार जेल भी जा चुके थे, तो दूसरी तरफ़ इस गीत के
गीतकार कवि प्रदीप, जिनकी झनझनाती राष्ट्रवादी कविताएँ लहू में उर्जा पैदा
कर देती। इस देशभक्त गीतकार-संगीतकार की जोड़ी से उत्पन्न होने की वजह से ही
शायद यह देशभक्ति गीत अमर हो गया। दो दिन बाद हम सब अपना राष्ट्रीय पर्व, गणतंत्र दिवस मनाएँगे। इस उपलक्ष्य में आइए सुनते है, यही चर्चित गीत।
फिल्म ‘किस्मत’ : ‘आज हिमालय की चोटी से...’ : अमीरबाई कर्नाटकी और साथी
अमीरबाई
का गाया फ़िल्म का एक अन्य हिट गीत था “ऐ दिल यह बता हमने बिगाड़ा है क्या
तेरा, घर घर में दीवाली है मेरे घर में अन्धेरा”। उन्हीं का गाया “अब तेरे
सिवा कौन मेरा कृष्ण कन्हैया, भगवान किनारे पे लगा दे मेरी नैया...” भी फ़िल्म
की एक लोकप्रिय रचना थी। केवल इन तीन गीतों से ही ‘क़िस्मत’ के गीत-संगीत की
चर्चा समाप्त नहीं हो जाती। एक और गीत जिसने चारों तरफ़ लोकप्रियता के परचम
लहरा दिए थे, वह थी कालजयी लोरी “धीरे-धीरे आ रे बादल धीरे धीरे आ, मेरा
बुलबुल सो रहा है, शोरगुल न मचा...”। इस गीत के दो वर्ज़न थे – पहला अमीरबाई का
गाया एकल गीत जबकि दूसरे में मुख्य आवाज़ अरूण कुमार की थी और अमीरबाई गीत
ने आख़िर में अपनी आवाज़ मिलाई थी। कहते हैं कि इस गीत के ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड
पर अरूण कुमार के बदले अशोक कुमार की ही आवाज़ थी और अनिल बिस्वास ने मज़ाक
में कहा था कि शायद यही एक ऐसा गीत है जिसे अशोक कुमार ने सुर में गाया है।
जो भी है, हक़ीक़त यही है कि यह लोरी फ़िल्म-संगीत के इतिहास की एक सदाबहार
लोरी है जिसकी चर्चा लोग आज भी करते हैं।
फिल्म ‘किस्मत’ : ‘धीरे धीरे आ रे बादल...’ : अरुण कुमार और अमीरबाई कर्नाटकी
‘क़िस्मत’
का शीर्षक गीत भी अमीरबाई और अरूण कुमार का गाया हुआ था, जिसके बोल थे “हम
ऐसी क़िस्मत को क्या करें हाय, ये जो एक दिन हँसाए, एक दिन रुलाए”। अरूण
कुमार ने एकल आवाज़ में “तेरे दुख के दिन फिरेंगे, ले दुआ मेरी लिए जा...” गीत
गाया था। इस फ़िल्म का एक और बेहद सुंदर और लोकप्रिय गीत रहा “पपीहा रे,
मेरे पिया से कहियो जाए...” जिसे पारुल घोष ने गाया था। यह गीत पारुल घोष का
गाया सबसे लोकप्रिय गीत सिद्ध हुआ। इस गीत का असर कैसा रहा होगा, इसका
अंदाज़ा हम इस बात से लगा सकते हैं कि लता मंगेशकर ने अपनी ‘श्रद्धांजलि’
एल्बम में पारुल घोष को श्रद्धांजलि स्वरूप उनके इसी गीत को गाया था और
पारुल घोष को याद करते हुए लता जी ने कहा था, “पारुल घोष, जानेमाने
संगीतकार अनिल बिस्वास जी की बहन, और प्रसिद्ध बाँसुरी वादक पण्डित
पन्नालाल घोष की पत्नी थीं। फ़िल्म गायिका होने के बावजूद वो घर संसार
सम्भालने वाली गृहणी भी थीं। उनके जाने के बाद महसूस हुआ कि वक़्त की गर्दिश
ने हमसे कैस-कैसे फ़नकार छीन लिए।” जब मैंने पारुल घोष की परपोती श्रुति
मुर्देश्वर कार्तिक से इस गीत के बारे में जानना चाहा तो उन्होंने बताया,
“इस गीत के साथ तो न जाने कितनी स्मृतियाँ जुड़ी हुई हैं। जब मैं बहुत छोटी
थी, तब सब से पहला पहला गीत जो मैंने सीखा था, वह यही गीत था। और जब भी कोई
मुझे गीत गाने को कहता, मैं यही गीत गाती रहती। और आज तक यह मेरा पसंदीदा
गीत रहा है”।
फिल्म ‘किस्मत’ : ‘पपीहा रे, मेरे पिया से कहियो जाए...’ : पारुल घोष
हिमांशु
राय की मृत्यु के बाद से ही ‘बॉम्बे टॉकीज़’ विवादों और परेशानियों से घिर
गया था। सरस्वती देवी, जिन्हें हिमांशु राय की वजह से वहाँ जगह मिली थी, के
लिए भी वहाँ काम करना मुश्किल हो गया। उपर से रामचन्द्र पाल, पन्नालाल घोष
और अनिल बिस्वास जैसे संगीतकार वहाँ शामिल हो चुके थे। ऐसे में सरस्वती ने
वहाँ से इस्तीफ़ा देना ही बेहतर समझा। उनकी प्रतिष्ठा और उनका अनुभव इतना
था कि ‘मिनर्वा मूवीटोन’ के सोहराब मोदी ने उन्हें अपनी कम्पनी में काम
करने के लिए आमन्त्रित किया। इस तरह से ‘बॉम्बे टॉकीज़’ की कुल 20 फ़िल्मों
में संगीत देने के बाद सरस्वती देवी इस कम्पनी से अलग हो गईं और आने वाले
वर्षों में ‘मिनर्वा मूवीटोन’ की कुछ 6 फ़िल्मों में संगीत दिया।
‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के स्तम्भ ‘स्मृतियों का झरोखा’ के अन्तर्गत आज हमने
सुजॉय चटर्जी की पुस्तक ‘कारवाँ सिने-संगीत का’ के कुछ पृष्ठ उद्धरित किये
हैं। आपको हमारी यह प्रस्तुति कैसी लगी, हमें अवश्य लिखिएगा। आपकी
प्रतिक्रिया, सुझाव और समालोचना से हम इस स्तम्भ को और भी सुरुचिपूर्ण रूप
प्रदान कर सकते हैं। ‘स्मृतियों का झरोखा’ के आगामी अंक में आपके लिए हम इस
पुस्तक के कुछ और रोचक पृष्ठ लेकर उपस्थित होंगे। सुजॉय चटर्जी की पुस्तक
‘कारवाँ सिने-संगीत का’ प्राप्त करने के लिए तथा अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव
हमें भेजने के लिए radioplaybackindia@live.com पर अपना सन्देश भेजें।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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