Skip to main content

फूल तुम्हें भेजा है खत में....एक बेहद संवेदनशील फिल्म का एक बेहद नर्मो नाज़ुक गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 424/2010/124

ल्याणजी-आनंदजी के संगीत की मिठास इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में घुल रही है। १९५९, १९६४ और १९६५ के बाद आज हम आ पहुँचे हैं साल १९६८ में। यह एक बेहद महत्वपूर्ण पड़ाव वाला साल है इस संगीतकार जोड़ी के करीयर का, क्योंकि इसी साल आई थी फ़िल्म 'सरस्वतीचन्द्र'। पंकज राग अपनी किताब 'धुनों की यात्रा' में लिखते हैं कि "चंदन सा बदन चंचल चितवन" सातवें दशक की युवा पीढ़ी का प्रेम गीत बनकर स्थापित है ही, लेकिन उससे कहीं भी कम नहीं है "फूल तुम्हे भेजा है ख़त में" का सौन्दर्य जो उस ज़माने की आहिस्ता आहिस्ता चलने वाली अपेक्षाकृत कम भाग दौड़ की ज़िंदगी के बीच पनपी रूमानी भावनाओं को बड़े ही मधुर आग्रह से प्रतिध्वनित करती है। क्या ख़ूब कहा है पंकज जी ने। लता जी और मुकेश जी की आवाज़ों में इंदीवर साहब का लिखा हुआ यह बेहद लोकप्रिय व मधुर युगल गीत आज हम लेकर आए हैं। इस फ़िल्म से जुड़े तथ्य तो हम पहले ही आपको दे चुके हैं जब हमने कड़ी नम्बर-१४ में "चंदन सा बदन" सुनवाया था। आज तो बस इसी गीत की बातें होंगी। दोस्तो, यह गीत है तो एक नर्मोनाज़ुक रोमांटिक गीत, लेकिन इसके बनने की कहानी बड़ी दिलचस्प है, जिसे आप आगे पढेंगे तो गुदगुदा जाएँगे। विविध भारती के 'उजाले उनकी यादों के' शृंखला में जब आनंदजी तशरीफ़ लाए थे, उन्होने कमल शर्मा के साथ बातचीत के दौरान इस किस्से का ज़िक्र किया था। तो आइए उसी बातचीत का वह अंश यहाँ पेश करते हैं।

प्र: आनंदजी, आपने एक बार ज़िक्र किया था कि कोई लिफ़ाफ़ा आ पहुँचा था, आपके पास कोई चिट्ठी आई थी, कोई 'फ़ैन मेल' आया था जिसमें दिल और फूल बना हुआ था और उससे एक गाना बना था, कौन सा था वह?

उ: कमल जी, अब सब हांडी क्यों फोड़ रहे हैं आप? मेरे ग्रैण्ड-चिलड्रेन भी सुन रहे होंगे, वो बोलेंगे दादा ऐसा था क्या? (दोनों हँसते हुए) प्यारे भाइयों और बहनों, कमल जी अब ये सब दिल की बातें पूछ रहे हैं, तो क्या हुआ था कि फ़ैन्स के लेटर्स बहुत आते थे। बहुत सारे लेटर्स आते थे और उन दिनों में क्या था कि फ़ैन्स को आपके लेटर्स चाहिए, फ़ोटो चाहिए, राइटर बनने के लिए कोई आया, ऐक्टर बनने के लिए कोई आया। हम लोगों के बारे में सब को पता था कि भई ये सिंगर्स को ही नहीं ऐक्टर्स को भी चांस देते हैं, डिरेक्टर्स को भी चांस देते हैं, राइटर्स को भी चांस देते है। तो यह एक अड्डा हो गया था कि भई कोई फ़ीज़ वीज़ भी नहीं लगती, बैठ जाओ आके, चाय पानी भी मिलेगी, ऐक्टर ऐक्ट्रेस भी देखने को मिल जाएँगे, सब कुछ होगा। तो ये सब होता था। हम नहीं चाहते थे कि हम जब स्ट्रगल करते थे, कोई अगर कुछ कर रहा है तो एक सहारा तो चाहिए। तो एक लेटर इनका आया, एक सफ़ेद फूल था, और एक लिपस्टिक का सिर्फ़ होंठ बना हुआ था। 'and nothing was there'. 'blank letter'. सिर्फ़ 'to dear' लिखा हुआ था। उपर कल्याणजी-आनंदजी का पता लिखा था और अंदर 'to dear' करके लिख दिया था। तो दोनों में कन्फ़्युशन हो गया कि यह 'to dear' किसको है! मैंने कहा कि यह अपने लिए होगा, भाईसाहब के लिए तो नहीं होगा। ऐसे करके रख लिया। अब रखने के बाद इंदीवर जी आए तो उनको दिखाया मैंने। उनको कहा कि देखो, ऐसे ऐसे ख़त आने लगे हैं अब! (कमल शर्मा ज़ोर से हंस पड़े)। इंदीवर जी बोले कि यह कौन है, होगी तो कोई लड़की, ये होंठ भी तो छोटे हैं, तो लड़की ही होगी। उन्होने पूछा कि किसका नाम लिखा है। मैंने बोला कि 'to dear' करके लिखा है, आप अपना नाम लिख लो, मैं अपना नाम लिख लूँ या कल्याणजी भाई के नाम पे लिख दूँ। बोले कि इस पर तो गाना बन सकता है, फूल तुम्हे भेजा है ख़त में, वाह वाह वाह वाह। 'अरे वाह वाह करो तुम', बोले, "फूल तुम्हे भेजा है ख़त में, फूल नहीं मेरा दिल है", कमाल है! मैंने कहा 'ये लिपस्टिक'? बोले 'भाड़ में जाए लिपस्टिक, इसको आगे बढ़ाते हैं। अब गाना बनने के बाद हुआ क्या कि प, फ, ब, भ, यह तो आप समझ सकते हैं कमल जी कि या तो आप क्रॊस करके गाइए, या लास्ट में आएगा, तो इसके लिए क्या करना पड़ता है, ये मुकेश जी गाने वाले थे, तो जब यह गाना पूरा बन गया तो यह लगा कि ऐसे सिचुयशन पे जो मंझा हुआ चाहिए, वो है कि भाई कोई सहमा हुआ कोई, डायरेक्ट बात भी नहीं की है, "प्रीयतम मेरे मुझको लिखना क्या ये तुम्हारे क़ाबिल है", मतलब वो भी एक इजाज़त ले रही है कि आपके लायक है कि नहीं। यह नहीं कि नहीं नहीं यह तो अपना ही हो गया। वो भी पूछ रही है मेरे से। तो ये मुकेश जी हैं तो पहले "फू...ल", "भू...ल", "भे...जा" भी आएगा, मैंने बोला, 'इंदीवर जी, ऐसा ऐसा है'। बोले कि तुम बनिए के बनिए ही रहोगे, कभी सुधरोगे नहीं तुम। जिसपे गाना हो रहा है, उसको क्या लगेगा? जिसने लिखा है उसको कितना बुरा लगेगा? ऐसे ही रहेगा। तो हमने बोला कि चलो, ऐसे ही रखते हैं। तो उसको फिर गायकी के हिसाब से क्या कर दिया, उसमें ब्रेथ इनटेक डाल दिया, सांस लेके अगर गाया जाए तो "फूल" होगा "फ़ूल" नहीं होगा। बड़ा डेलिकेट, कि वह फ़्लावर था, बहुत नरम नरम, ऐसे ऐसे यह गाना बन गया, लेकिन यह गाना आज भी लोगों को पसंद आता है, क्यों आता है यह समझ में नहीं आता, ये इंदीवर जी का कमाल है, लोगों का कमाल है, उस माहौल का कमाल है!



क्या आप जानते हैं...
कि 'सरस्वतीचन्द्र' के संगीत के लिए कल्याणजी-आनंदजी को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)

१. नायिका पर फिल्माया गया है ये गीत, जो नायक के मनोभावों को महसूस कर रही है, किस गायक की आवाज़ है गीत में -२ अंक.
२. हैंडसम हीरो धमेन्द्र हैं फिल्म के नायक, नायिका कौन है - २ अंक.
३. गीतकार कौन हैं - २ अंक.
४. १९७३ में प्रदर्शित इस फिल्म का नाम बताएं - २ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
सिर्फ अवध जी और शरद जी आमने सामने हैं, कहाँ गए बाकी धुरंधर सब ?

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

Singer : Kishor Kumar
AVADH said…
एक अंदाज़ लगा रहा हूँ.
नायिका: राखी
अवध लाल
AVADH said…
प्रिय सुजॉय जी,
हौसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया.
पर मुझे अपने बारे में कोई खुशफहमी नहीं है.
मेरी क्या मजाल कि शरद जी से मुकाबला करूँ.
मैं तो उनके पासंग के बराबर भी नहीं हूँ.
उन्हें ऐसे ही तो हम 'महागुरु' नहीं मानते.
उनका एक चेला जैसा
अवध लाल
bahut der baad sunaa ye geet dhanyavaad|

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट