ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 419/2010/119
दोस्तों, दुर्लभ गीत उसे कहा जाता है जिसे आसानी से प्राप्त न किया जा सके। या फिर उस गीत की कुछ ऐसी विशेषताएँ होंगी जो बहुत रेयर हैं, जैसे कि मान लीजिए किसी गीत को ऐसे दो गायकों ने गाए हैं जिनका गाया वह एकमात्र गीत है। उस गीत को भी दुर्लभ माना जा सकता है जिसे किसी ग़ैर पारम्परिक गायक ने गाया हो, या बहुत ही कमचर्चित किसी गायक, संगीतकार या गीतकार की वह कृति हो। फ़िल्म के ना चलने से फ़िल्म के गानें भी कहीं खो जाते हैं और बन जाते हैं दुर्लभ। दुर्लभ गीत की परिभाषा अलग अलग लोगों के लिए अलग अलग हो सकती है। हमने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस शृंखला में कोशिश की है कि इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए गीतों का चयन करें। अब इसमें हम कितने सफल हुए हैं और कितने असफल यह तो आप की राय से ही हमें पता चल सकता है। ख़ैर, आज हम एक बेहद कमचर्चित गायिका का गाया हुआ एक गीत लेकर इस महफ़िल में उपस्थित हुए हैं। ये गायिका हैं कृष्णा कल्ले। आप सभी ने इस गायिका का नाम सुना है, लेकिन अगर मैं आपको इनका गाया हुआ कोई गीत याद करने को कहूँ तो आप में से कई लोगों को थोड़ा वक़्त लेने की ज़रूर नौबत आ जाएगी। कम से कम रफ़ी साहब के साथ उनका गाया वह गीत तो आपको याद ही होगा - "गाल गुलाबी नैन शराबी"! जी हाँ, १९७४ की फ़िल्म 'गाल गुलाबी नैन शराबी' का यह शीर्षक गीत था। चलिए हम कुछ और फ़िल्मों के नाम आपको बता देते हैं जिनमें कृष्णा कल्ले ने गानें गाए हैं । ये फ़िल्में हैं - जंगल की हूर, दानवीर कर्ण, गुनेहगार, रास्ते और मंज़िल, ज़माने से पूछो, स्पाई इन गोवा, ज़हरीली, रौनक़, प्रेम की गंगा, सुनहरा जाल, श्री कृष्ण अर्जुन युद्ध, एक गुनाह और सही, बच्चे मेरे साथी, प्रोफ़ेसर और जादूगर, अल्बेला मस्ताना, टारज़न और जादूई चिराग़, टारज़न ऐण्ड हरक्युलिस, मितवा (भोजपुरी), शान-ए-ख़ुदा, आदि। इन नामों को पढ़कर आप ने यह ज़रूर अंदाज़ा लगा लिया होगा कि कृष्णा कल्ले को अपने करीयर में कम बजट की फ़िल्मों में ही गाने के अवसर प्राप्त हुए। ये फ़िल्में मुख्यतः धार्मिक, फ़ैनटसी और स्टंट फ़िल्में हैं और ऐसी फ़िल्मों और उनके गीतों का क्या अंजाम होता है यह शायद बताने की ज़रूरत नहीं। ख़ैर, आज के लिए हमने इस सुरीली गायिका की आवाज़ में जिस गीत को चुना है वह है फ़िल्म 'टारज़न ऐण्ड हरक्युलिस' का "मौसम है बड़ा मस्ताना, हर फूल बना पैमाना, फिर धरती क्यों शरमाए, झूमे है सारा ज़माना"।
'टारज़न ऐण्ड हरक्युलिस' सन् १९६६ की फ़िल्म थी। इस स्टण्ट फ़िल्म के लिए गीत लिखे अज़ीज़ ग़ाज़ी ने तथा फ़िल्म में संगीत दिया मोमिन ने। एक दौर ऐसा था जब टारज़न की कहानियाँ बेहद लोकप्रिय हुआ करती थी। आजकल टारज़न के चर्चे ना के बराबर हो गए हैं, लेकिन उस ज़माने में बच्चों के लिए टारज़न एक सुपर हीरो हुआ करता था। इसलिए उस ज़माने के स्टण्ट फ़िल्मकारों ने टारज़न पर बहुत सारी फ़िल्में बनाईं। चलिए हम आपको एक पूरी सूची ही दे देते हैं टारज़न वाली फ़िल्मों की। ये फ़िल्में हैं - तूफ़ानी टारज़न (१९३७- मास्टर मोहम्मद), टारज़न की बेटी (१९३८- अनुपम घटक), तूफ़ानी टारज़न (१९६२), टारज़न गोज़ टू इंडिया (१९६२), रॊकेट टारज़न (१९६३- रॊबिन बनर्जी), टारज़न और गोरिला (१९६३- जिम्मी), टारज़न और जादूगर (१९६३- सुरेश तलवार), टारज़न ऐण्ड कैप्टन किशोर (१९६४- मनोहर, एस. कृष्णन), टारज़न ऐण्ड डेलिला (१९६४- रॊबिन बनर्जी), टारज़न और जलपरी ९१९६४- सुरेश कुमार), टारज़न ऐण्ड क्लिओपैट्रा ९१९६५), टारज़न ऐण्ड दि सर्कस (१९६५- हुस्नलाल भगतराम), टारज़न ऐण्ड किंग कॊंग् (१९६५- रॊबिन बनर्जी), टारज़न कम्स टू डेल्हि (१९६५- दत्ताराम), टारज़न की महबूबा (१९६६- सुरेश कुमार), टारज़न ऐण्ड हरक्युलिस (१९६६- मोमिन), टारज़न और जादूई चिराग़ (१९६६- शफ़ी, शौकत), टारज़न इन फ़ेयरी लैण्ड (१९६८- जिम्मी), टारज़न ऐण्ड कोब्रा, टारज़न ३०३ (१९७०- हरीश धवन), टारज़न मेरा साथी (१९७४- शंकर जयकिशन), ऐडवेन्चर्स ऒफ़ टारज़न (१९८५), टारज़न (१९८५- बप्पी लाहिड़ी), टारज़न ऐण्ड कोब्रा (१९८८- सोनिक ओमी), टारज़न की बेटी (१९८८- सपन जगमोहन), लेडी टारज़न (१९९०), जंगली टारज़न (२००१)। तो दोस्तों, टारज़न वाली फ़िल्मों की सूची हमने आपको बता दी, और अब बारी है आज का गीत सुनने की। मस्ताने मौसम में फूलों पर किस तरह का ख़ुमार छा रहा है, सुनते हैं इस गीत में कृष्णा कल्ले और सखियों के साथ।
क्या आप जानते हैं...
कि टारज़न पर समय समय पर बहुत सारी फ़िल्में बनीं हैं, लेकिन जिस फ़िल्म के संगीत ने सब से ज़्यादा सफलता प्राप्त की, वह थी बप्पी लाहिड़ी के संगीत में बनी फ़िल्म 'टारज़न' (१९८६)।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. इस गीत में दो गायिकाओं की आवाज़ें शामिल हैं। एक है सुरैय्या, आपको बताना है दूसरी गायिका का नाम। ३ अंक।
२. इस फ़िल्म के संगीतकार वो हैं जो डी. एन. मधोक के तीन घनिष्ठ मित्रों में से एक थे। अभी हाल ही में हमने इस बात का ज़िक्र किया था। लगाइए अंदाज़ा संगीतकार के नाम का। ३ अंक।
३. इस गीत के गीतकार हैं डी. एन. मधोक। गीत के मुखड़े की पहली पंक्ति में ऐसे शब्द मौजूद हैं जिनसे मिलता जुलता एक गीत राहत फ़तेह अली ख़ान की आवाज़ में है। गीत के बोल बताएँ। ३ अंक।
४. यह १९४९ की फ़िल्म का गीत है जिसमें मुख्य कलाकार हैं जयराज, मधुबाला और सुरैय्या। फ़िल्म का नाम बताएँ। ३ अंक।
पिछली पहेली का परिणाम -
सवाल सब बेहद मुश्किल थे इस बार, पर शरद जी, मान गए उस्ताद आपको, क्या शानदार चौका लगाया है आपने....बहुत बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
दोस्तों, दुर्लभ गीत उसे कहा जाता है जिसे आसानी से प्राप्त न किया जा सके। या फिर उस गीत की कुछ ऐसी विशेषताएँ होंगी जो बहुत रेयर हैं, जैसे कि मान लीजिए किसी गीत को ऐसे दो गायकों ने गाए हैं जिनका गाया वह एकमात्र गीत है। उस गीत को भी दुर्लभ माना जा सकता है जिसे किसी ग़ैर पारम्परिक गायक ने गाया हो, या बहुत ही कमचर्चित किसी गायक, संगीतकार या गीतकार की वह कृति हो। फ़िल्म के ना चलने से फ़िल्म के गानें भी कहीं खो जाते हैं और बन जाते हैं दुर्लभ। दुर्लभ गीत की परिभाषा अलग अलग लोगों के लिए अलग अलग हो सकती है। हमने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस शृंखला में कोशिश की है कि इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए गीतों का चयन करें। अब इसमें हम कितने सफल हुए हैं और कितने असफल यह तो आप की राय से ही हमें पता चल सकता है। ख़ैर, आज हम एक बेहद कमचर्चित गायिका का गाया हुआ एक गीत लेकर इस महफ़िल में उपस्थित हुए हैं। ये गायिका हैं कृष्णा कल्ले। आप सभी ने इस गायिका का नाम सुना है, लेकिन अगर मैं आपको इनका गाया हुआ कोई गीत याद करने को कहूँ तो आप में से कई लोगों को थोड़ा वक़्त लेने की ज़रूर नौबत आ जाएगी। कम से कम रफ़ी साहब के साथ उनका गाया वह गीत तो आपको याद ही होगा - "गाल गुलाबी नैन शराबी"! जी हाँ, १९७४ की फ़िल्म 'गाल गुलाबी नैन शराबी' का यह शीर्षक गीत था। चलिए हम कुछ और फ़िल्मों के नाम आपको बता देते हैं जिनमें कृष्णा कल्ले ने गानें गाए हैं । ये फ़िल्में हैं - जंगल की हूर, दानवीर कर्ण, गुनेहगार, रास्ते और मंज़िल, ज़माने से पूछो, स्पाई इन गोवा, ज़हरीली, रौनक़, प्रेम की गंगा, सुनहरा जाल, श्री कृष्ण अर्जुन युद्ध, एक गुनाह और सही, बच्चे मेरे साथी, प्रोफ़ेसर और जादूगर, अल्बेला मस्ताना, टारज़न और जादूई चिराग़, टारज़न ऐण्ड हरक्युलिस, मितवा (भोजपुरी), शान-ए-ख़ुदा, आदि। इन नामों को पढ़कर आप ने यह ज़रूर अंदाज़ा लगा लिया होगा कि कृष्णा कल्ले को अपने करीयर में कम बजट की फ़िल्मों में ही गाने के अवसर प्राप्त हुए। ये फ़िल्में मुख्यतः धार्मिक, फ़ैनटसी और स्टंट फ़िल्में हैं और ऐसी फ़िल्मों और उनके गीतों का क्या अंजाम होता है यह शायद बताने की ज़रूरत नहीं। ख़ैर, आज के लिए हमने इस सुरीली गायिका की आवाज़ में जिस गीत को चुना है वह है फ़िल्म 'टारज़न ऐण्ड हरक्युलिस' का "मौसम है बड़ा मस्ताना, हर फूल बना पैमाना, फिर धरती क्यों शरमाए, झूमे है सारा ज़माना"।
'टारज़न ऐण्ड हरक्युलिस' सन् १९६६ की फ़िल्म थी। इस स्टण्ट फ़िल्म के लिए गीत लिखे अज़ीज़ ग़ाज़ी ने तथा फ़िल्म में संगीत दिया मोमिन ने। एक दौर ऐसा था जब टारज़न की कहानियाँ बेहद लोकप्रिय हुआ करती थी। आजकल टारज़न के चर्चे ना के बराबर हो गए हैं, लेकिन उस ज़माने में बच्चों के लिए टारज़न एक सुपर हीरो हुआ करता था। इसलिए उस ज़माने के स्टण्ट फ़िल्मकारों ने टारज़न पर बहुत सारी फ़िल्में बनाईं। चलिए हम आपको एक पूरी सूची ही दे देते हैं टारज़न वाली फ़िल्मों की। ये फ़िल्में हैं - तूफ़ानी टारज़न (१९३७- मास्टर मोहम्मद), टारज़न की बेटी (१९३८- अनुपम घटक), तूफ़ानी टारज़न (१९६२), टारज़न गोज़ टू इंडिया (१९६२), रॊकेट टारज़न (१९६३- रॊबिन बनर्जी), टारज़न और गोरिला (१९६३- जिम्मी), टारज़न और जादूगर (१९६३- सुरेश तलवार), टारज़न ऐण्ड कैप्टन किशोर (१९६४- मनोहर, एस. कृष्णन), टारज़न ऐण्ड डेलिला (१९६४- रॊबिन बनर्जी), टारज़न और जलपरी ९१९६४- सुरेश कुमार), टारज़न ऐण्ड क्लिओपैट्रा ९१९६५), टारज़न ऐण्ड दि सर्कस (१९६५- हुस्नलाल भगतराम), टारज़न ऐण्ड किंग कॊंग् (१९६५- रॊबिन बनर्जी), टारज़न कम्स टू डेल्हि (१९६५- दत्ताराम), टारज़न की महबूबा (१९६६- सुरेश कुमार), टारज़न ऐण्ड हरक्युलिस (१९६६- मोमिन), टारज़न और जादूई चिराग़ (१९६६- शफ़ी, शौकत), टारज़न इन फ़ेयरी लैण्ड (१९६८- जिम्मी), टारज़न ऐण्ड कोब्रा, टारज़न ३०३ (१९७०- हरीश धवन), टारज़न मेरा साथी (१९७४- शंकर जयकिशन), ऐडवेन्चर्स ऒफ़ टारज़न (१९८५), टारज़न (१९८५- बप्पी लाहिड़ी), टारज़न ऐण्ड कोब्रा (१९८८- सोनिक ओमी), टारज़न की बेटी (१९८८- सपन जगमोहन), लेडी टारज़न (१९९०), जंगली टारज़न (२००१)। तो दोस्तों, टारज़न वाली फ़िल्मों की सूची हमने आपको बता दी, और अब बारी है आज का गीत सुनने की। मस्ताने मौसम में फूलों पर किस तरह का ख़ुमार छा रहा है, सुनते हैं इस गीत में कृष्णा कल्ले और सखियों के साथ।
क्या आप जानते हैं...
कि टारज़न पर समय समय पर बहुत सारी फ़िल्में बनीं हैं, लेकिन जिस फ़िल्म के संगीत ने सब से ज़्यादा सफलता प्राप्त की, वह थी बप्पी लाहिड़ी के संगीत में बनी फ़िल्म 'टारज़न' (१९८६)।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. इस गीत में दो गायिकाओं की आवाज़ें शामिल हैं। एक है सुरैय्या, आपको बताना है दूसरी गायिका का नाम। ३ अंक।
२. इस फ़िल्म के संगीतकार वो हैं जो डी. एन. मधोक के तीन घनिष्ठ मित्रों में से एक थे। अभी हाल ही में हमने इस बात का ज़िक्र किया था। लगाइए अंदाज़ा संगीतकार के नाम का। ३ अंक।
३. इस गीत के गीतकार हैं डी. एन. मधोक। गीत के मुखड़े की पहली पंक्ति में ऐसे शब्द मौजूद हैं जिनसे मिलता जुलता एक गीत राहत फ़तेह अली ख़ान की आवाज़ में है। गीत के बोल बताएँ। ३ अंक।
४. यह १९४९ की फ़िल्म का गीत है जिसमें मुख्य कलाकार हैं जयराज, मधुबाला और सुरैय्या। फ़िल्म का नाम बताएँ। ३ अंक।
पिछली पहेली का परिणाम -
सवाल सब बेहद मुश्किल थे इस बार, पर शरद जी, मान गए उस्ताद आपको, क्या शानदार चौका लगाया है आपने....बहुत बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
इसमें जयराज,मधुबाला और सुरैया थे और गीतकार डी.एं.मधोक थे.
आगे तो अपना राम रखवाला है.जनगणना के कारन रात नौ बजे के बाद ही थोडा बहुत समय निकाल पाती हूँ.
किन्तु इस प्रोग्राम के बिना यानि प्रश्नोत्तरी के बिना बड़ा सूना सूना लगा इतने दिन, सच्ची.