ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 411/2010/111
नमस्कार दोस्तों! बेहद ख़ुशी और जोश के साथ हम फिर एक बार आप सभी का 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में हार्दिक स्वागत करते हैं। पिछले डेढ़ महीने से आप हर शाम 'ओल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल' का आनंद ले रहे थे, और हमें पूरी उम्मीद है और आप के टिप्पणियों से भी साफ़ ज़ाहिर है कि आपने इस विशेष प्रस्तुति को भी हाथों हाथ ग्रहण किया है। चलिए आज से हम वापस लौट रहे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के अपने उसी पुराने स्वरूप में और फिर से एक बार गुज़रे ज़माने के अनमोल नग़मों के उसी कारवाँ को आगे बढ़ाते हैं। अब तक 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की कुल ४१० कड़ियाँ प्रस्तुत हो चुकी हैं, आज ४११-वीं कड़ी से यह सिलसिला हम आगे बढ़ा रहे हैं। तो दोस्तों, इस नई पारी की शुरुआत कुछ ख़ास अंदाज़ से होनी चाहिए, क्यों है न! इसीलिए हमने सोचा कि क्यों ना दस ऐसे गानों से इस पारी की शुरुआत की जाए जो बेहद दुर्लभ हों! ये वो गानें हों जिन्हे आप में से बहुतों ने कभी सुनी ही नहीं होगी और अगर सुनी भी हैं तो उनकी यादें अब तक बहुत ही धुंधली हो गई होंगी। पिछले डेढ़ महीने में हमने यहाँ वहाँ से, जाने कहाँ कहाँ से इन दस दुर्लभ गीतों को प्राप्त किया है जिन्हे इस ख़ास लघु शृंखला में पिरो कर हम आज से आप तक पहुँचा रहे हैं। तो प्रस्तुत है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर नई लघु शृंखला 'दुर्लभ दस'। शुरुआत ईश्वर वंदना के साथ; जी हाँ, एक भक्ति रचना से इस शृंखला का आग़ाज़ कर रहे हैं। ये है फ़िल्म 'बाजे घुंगरू' से सबिता बनर्जी की गाई हुई भजन "ज़रा मुरली बजा दे मेरे श्याम रे, पड़ूँ बार बार तोरी पइयाँ रे"। ये वो ही सबिता बनर्जी हैं जो आगे चलकर संगीतकार सलिल चौधरी की धर्मपत्नी बनीं और सबिता बनर्जी से बनीं सबिता चौधरी। युं तो इन्होने बंगला में ही ज़्यादा गीत गाए हैं, लेकिन हिंदी फ़िल्मों के लिए भी समय समय पर कई बार अपनी आवाज़ दी है।
'बाजे घुंगरू' १९६२ की फ़िल्म थी जिसका निर्माण किया था राम राज फ़िल्म्स ने। फ़िल्म को निर्देशित किया एस. श्रीवास्तव ने और इसके मुख्य कलाकार थे मनहर देसाई और नलिनी चोनकर। फ़िल्म में संगीत था धनीराम प्रेम का। प्रस्तुत भजन गीतकार शिवराज श्रीवास्तव का लिखा हुआ है। आपको यह भी बता दें कि इस फ़िल्म का शीर्षक गीत सबिता बनर्जी ने मोहम्मद रफ़ी और सीता के साथ मिलकर गाया था, जिसके बोल थे "बाजे घुंगरू छन छन छन"। संगीतकार धनीराम को शास्त्रीय संगीत को लुभावने रूप में ढालने की अपनी विशेषज्ञता प्रदर्शित करने का मौका इसी फ़िल्म में मिला। ख़ास कर आज की यह प्रस्तुत भजन, जिसमें सितार के टुकड़ों का इतनी मधुरता के साथ इस्तेमाल किया गया है कि भक्ति रस जैसे भजन के बोलों में ही नहीं बल्कि इसकी हर एक धुन में समा गई है। ६० के दशक का यह दौर धनीराम के संगीत सफ़र का आख़िरी दौर था। १९६२ में 'बाजे घुंगरू' के अलावा उन्होने फ़िल्म 'मेरी बहन' में भी संगीत दिया। फिर वर्षों उपेक्षित रहने के बाद उन्हे मिला १९६७ की फ़िल्म 'आवारा लड़की' में फिर एक बार शास्त्रीय शैली पर आधारित गानें बनाने का मौका। बहुत ही अफ़सोस की बात है कि इसके बाद धनीराम को किसी निर्माता ने मौका नहीं दिया। जैसे कि पंकज राग अपनी किताब 'धुनों की यात्रा' में लिखते हैं कि "यह विचार स्वयमेव ही आता है कि यदि कुछ निर्माताओं ने अपने 'बी' या 'सी' ग्रेड की सामाजिक फ़िल्मों में ही धनीराम को और अवसर दिया होता तो हमें शास्त्रीयता और सुगमता के बेहतरीन मिश्रण की पता नहीं कितनी और रसभरी रचनाएँ सुनने को मिल सकती थीं।" तो आइए दोस्तों, 'दुर्लभ दस' लघु शृंखला के पहले अंक में सुनते हैं शिवराज श्रीवास्तव का लिखा, धनीराम का संगीतबद्ध किया और सबिता बनर्जी का गाया फ़िल्म 'बाजे घुंगरू' से यह भजन।
क्या आप जानते हैं...
कि फ़िल्मों में संगीतकार बनने से पहले धनीराम ने लाहौर में कई फ़िल्मों में गायक के रूप में अपनी क़िस्मत आज़माई थी, जैसे कि फ़िल्म 'धमकी' (१९४५) और 'झुमके' (१९४६)।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. इस धार्मिक गीत के गायक मुख्य रूप से एक संगीतकार हैं, लेकिन उन्होने इस फ़िल्म में संगीत नहीं दिया है। ये वो शख़्स हैं जिनके दोनों बेटे मशहूर संगीतकार जोड़ी के रूप में फ़िल्म जगत में छाए। तो फिर इस गीत के गायक का नाम बताएँ। ४ अंक।
२. इस गीत के संगीतकार धार्मिक और पौराणिक फ़िल्मों के संगीतकार के रूप में जाने जाते हैं, और महत्वपूर्ण बात यह कि इनके संगीत से सजे एक धार्मिक फ़िल्म का एक गीत इतना ज़्यादा लोकप्रिय हुआ कि उसे उस साल का सर्वश्रेष्ठ गीत करार दिया गया था। संगीतकार का नाम बताएँ। २ अंक।
३. यह फ़िल्म १९५३ की फ़िल्म है और फ़िल्म के शीर्षक में शक्ति की देवी का नाम छुपा है। फ़िल्म का नाम बताएँ। ३ अंक।
४. इस पूरे गीत में उसी देवी के चमत्कारों का वर्णन हुआ है जिनके नाम से फ़िल्म का शीर्षक है। गीत के बोल बताएँ। २ अंक।
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
नमस्कार दोस्तों! बेहद ख़ुशी और जोश के साथ हम फिर एक बार आप सभी का 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में हार्दिक स्वागत करते हैं। पिछले डेढ़ महीने से आप हर शाम 'ओल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल' का आनंद ले रहे थे, और हमें पूरी उम्मीद है और आप के टिप्पणियों से भी साफ़ ज़ाहिर है कि आपने इस विशेष प्रस्तुति को भी हाथों हाथ ग्रहण किया है। चलिए आज से हम वापस लौट रहे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के अपने उसी पुराने स्वरूप में और फिर से एक बार गुज़रे ज़माने के अनमोल नग़मों के उसी कारवाँ को आगे बढ़ाते हैं। अब तक 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की कुल ४१० कड़ियाँ प्रस्तुत हो चुकी हैं, आज ४११-वीं कड़ी से यह सिलसिला हम आगे बढ़ा रहे हैं। तो दोस्तों, इस नई पारी की शुरुआत कुछ ख़ास अंदाज़ से होनी चाहिए, क्यों है न! इसीलिए हमने सोचा कि क्यों ना दस ऐसे गानों से इस पारी की शुरुआत की जाए जो बेहद दुर्लभ हों! ये वो गानें हों जिन्हे आप में से बहुतों ने कभी सुनी ही नहीं होगी और अगर सुनी भी हैं तो उनकी यादें अब तक बहुत ही धुंधली हो गई होंगी। पिछले डेढ़ महीने में हमने यहाँ वहाँ से, जाने कहाँ कहाँ से इन दस दुर्लभ गीतों को प्राप्त किया है जिन्हे इस ख़ास लघु शृंखला में पिरो कर हम आज से आप तक पहुँचा रहे हैं। तो प्रस्तुत है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर नई लघु शृंखला 'दुर्लभ दस'। शुरुआत ईश्वर वंदना के साथ; जी हाँ, एक भक्ति रचना से इस शृंखला का आग़ाज़ कर रहे हैं। ये है फ़िल्म 'बाजे घुंगरू' से सबिता बनर्जी की गाई हुई भजन "ज़रा मुरली बजा दे मेरे श्याम रे, पड़ूँ बार बार तोरी पइयाँ रे"। ये वो ही सबिता बनर्जी हैं जो आगे चलकर संगीतकार सलिल चौधरी की धर्मपत्नी बनीं और सबिता बनर्जी से बनीं सबिता चौधरी। युं तो इन्होने बंगला में ही ज़्यादा गीत गाए हैं, लेकिन हिंदी फ़िल्मों के लिए भी समय समय पर कई बार अपनी आवाज़ दी है।
'बाजे घुंगरू' १९६२ की फ़िल्म थी जिसका निर्माण किया था राम राज फ़िल्म्स ने। फ़िल्म को निर्देशित किया एस. श्रीवास्तव ने और इसके मुख्य कलाकार थे मनहर देसाई और नलिनी चोनकर। फ़िल्म में संगीत था धनीराम प्रेम का। प्रस्तुत भजन गीतकार शिवराज श्रीवास्तव का लिखा हुआ है। आपको यह भी बता दें कि इस फ़िल्म का शीर्षक गीत सबिता बनर्जी ने मोहम्मद रफ़ी और सीता के साथ मिलकर गाया था, जिसके बोल थे "बाजे घुंगरू छन छन छन"। संगीतकार धनीराम को शास्त्रीय संगीत को लुभावने रूप में ढालने की अपनी विशेषज्ञता प्रदर्शित करने का मौका इसी फ़िल्म में मिला। ख़ास कर आज की यह प्रस्तुत भजन, जिसमें सितार के टुकड़ों का इतनी मधुरता के साथ इस्तेमाल किया गया है कि भक्ति रस जैसे भजन के बोलों में ही नहीं बल्कि इसकी हर एक धुन में समा गई है। ६० के दशक का यह दौर धनीराम के संगीत सफ़र का आख़िरी दौर था। १९६२ में 'बाजे घुंगरू' के अलावा उन्होने फ़िल्म 'मेरी बहन' में भी संगीत दिया। फिर वर्षों उपेक्षित रहने के बाद उन्हे मिला १९६७ की फ़िल्म 'आवारा लड़की' में फिर एक बार शास्त्रीय शैली पर आधारित गानें बनाने का मौका। बहुत ही अफ़सोस की बात है कि इसके बाद धनीराम को किसी निर्माता ने मौका नहीं दिया। जैसे कि पंकज राग अपनी किताब 'धुनों की यात्रा' में लिखते हैं कि "यह विचार स्वयमेव ही आता है कि यदि कुछ निर्माताओं ने अपने 'बी' या 'सी' ग्रेड की सामाजिक फ़िल्मों में ही धनीराम को और अवसर दिया होता तो हमें शास्त्रीयता और सुगमता के बेहतरीन मिश्रण की पता नहीं कितनी और रसभरी रचनाएँ सुनने को मिल सकती थीं।" तो आइए दोस्तों, 'दुर्लभ दस' लघु शृंखला के पहले अंक में सुनते हैं शिवराज श्रीवास्तव का लिखा, धनीराम का संगीतबद्ध किया और सबिता बनर्जी का गाया फ़िल्म 'बाजे घुंगरू' से यह भजन।
क्या आप जानते हैं...
कि फ़िल्मों में संगीतकार बनने से पहले धनीराम ने लाहौर में कई फ़िल्मों में गायक के रूप में अपनी क़िस्मत आज़माई थी, जैसे कि फ़िल्म 'धमकी' (१९४५) और 'झुमके' (१९४६)।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. इस धार्मिक गीत के गायक मुख्य रूप से एक संगीतकार हैं, लेकिन उन्होने इस फ़िल्म में संगीत नहीं दिया है। ये वो शख़्स हैं जिनके दोनों बेटे मशहूर संगीतकार जोड़ी के रूप में फ़िल्म जगत में छाए। तो फिर इस गीत के गायक का नाम बताएँ। ४ अंक।
२. इस गीत के संगीतकार धार्मिक और पौराणिक फ़िल्मों के संगीतकार के रूप में जाने जाते हैं, और महत्वपूर्ण बात यह कि इनके संगीत से सजे एक धार्मिक फ़िल्म का एक गीत इतना ज़्यादा लोकप्रिय हुआ कि उसे उस साल का सर्वश्रेष्ठ गीत करार दिया गया था। संगीतकार का नाम बताएँ। २ अंक।
३. यह फ़िल्म १९५३ की फ़िल्म है और फ़िल्म के शीर्षक में शक्ति की देवी का नाम छुपा है। फ़िल्म का नाम बताएँ। ३ अंक।
४. इस पूरे गीत में उसी देवी के चमत्कारों का वर्णन हुआ है जिनके नाम से फ़िल्म का शीर्षक है। गीत के बोल बताएँ। २ अंक।
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
एक गीत है जो किसी महिला गायक ने गाया है - "कहां से चले थे कहां को है जाना, मुसाफिर न जाने कहां है ठिकाना". उन्नीस सौ छियासी से पहले का है. यदि मिल सके तो कृपया cman@in.com पर मेल करने की कृपा करें.
अवध लाल
गायक है चित्रगुप्त साहब, जो की एस एन त्रिपाठी साहब के सहायक हुआ करते थे
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