Skip to main content

"मोहन प्यारे अब और साज़ पर गा रे" - सी. एच. आत्मा की आवाज़, पर सहगल साहब का अंदाज़

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 417/2010/117

कुंदन लाल सहगल साहब की गायकी के नक्ष-ए-क़दम पर चलने वाले गायकों में एक नाम सी. एच. आत्मा का भी है। सी. एच. आत्मा बहुत ज़्यादा कामयाब तो नहीं हो सके, लेकिन उनके गाए बहुत से गीत और भजन उस ज़माने में बेहद मशहूर हुए थे। उनके गाए हुए ग़ैर फ़िल्मी गीतों और भजनों की संख्या भी कम नहीं है। आज हम आपको 'दुर्लभ दस' शृंखला के तहत सुनवा रहे हैं सी. एच. आत्मा की आवाज़ में १९५४ की फ़िल्म 'बिलवामंगल' की एक भजन "मोहन प्यारे, अब और साज़ पर गा रे"। डी. एन. मधोक निर्देशित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे सी. एच. आत्मा और सुरैय्या। संगीत बुलो. सी. रानी का था और फ़िल्म के गानें लिखे मधोक साहब ने ही। सन्‍ १९७० में सी. एच. आत्मा तशरीफ़ लाए थे विविध भारती के स्टुडिओज़ में, जहाँ उन्होने फ़ौजी भाइयों के लिए 'जयमाला' कार्यक्रम प्रस्तुत किया था। उस कार्यक्रम में इस भजन को पेश करते हुए कहा था - "दोस्तों, अफ़्रीका की एक पार्टी में मैंने फ़िल्म 'बिलवामंगल' का एक भजन गाया था। वह सुनकर एक देवी ने कहा था कि काश ये कलाकार मुझे मिल जाता! ख़ैर, मुलाक़ात तो हुई ही बिछड़ने के लिए। मगर यह भजन मेरा जीवन साथी रहा है।"

दोस्तों, आज जब मौका लगा है डी. एन. मधोक साहब का लिखा हुआ गीत बजाने का, तो क्यों ना लगे हाथ उनके जीवन के बारे में कुछ बातें भी आप को बताई जाए! लेकिन उनके जीवन के जिस पहलु का हम ज़िक्र करेंगे वह संगीत से जुड़ा हुआ नहीं है। जी हाँ, बात दरअसल ऐसी है कि अमीन सायानी साहब ने एक बार 'संगीत के सितारों की महफ़िल' सीरीज़ में मधोक साहब पर कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए उनके बेटे डॊ. पृथ्वी मधोक से मुलाक़ात की थी। उस मुलाक़ात में मधोक साहब के बेटे ने बताया था कि उनके पिता एक फ़िल्मकार और गीतकार होने के साथ साथ एक अच्छे ज्योतिषी भी रहे। तो चलिए दीना नाथ मधोक जी के इस प्रतिभा पर ज़रा और प्रकाश डालें ख़ुद उन्ही के बेटे की ज़बान से। "बाद में इन्होने (मधोक साहब ने) 'ऐस्ट्रोलोजी' अपनी हॊबी बना ली और वहाँ से इनको यह पता लगा कि वही सितारे जो मुझे उपर ले गए थे, वही सितारे अब मुझे नीचे ला रहे हैं। तो इन्होने कहा कि अभी हमको ये काम (फ़िल्म निर्माण) नहीं करने का है। तो फिर ये रीटायर हो गए, तकरीबन '५६/५७ में। और वैसे भी इन्होने किसी के आगे हाथ नहीं फैलाए, ना किसी को फँसाया है, मदद बहुत लोगों की की है। अंतिम दस सालों में, उनकी ज़िंदगी के आख़िर के जो दस साल थे, उन्होने 'ऐस्ट्रोलोजी' में बहुत इन्ट्रेस्ट लिया। 'ऐस्ट्रोलोजी' का मतलब काफ़ी गहराई से समझते थे। पर इन्होने उसको ज़्यादा हवा नहीं लगने दी, क्योंकि लोग पहुँच जाते थे इनके पास कि महुरत कब करें! शादी कब करें लड़की की! तो इसलिए इन्होने इसको ज़रा 'लोवर लेवल' पे रखा। पर जानकारी इनकी बहुत अच्छी थी, और काफ़ी 'ईवेंट्स', जैसे बाढ़ बिहार में आए, किसी का विलायत जाना, किसी का आना, काफ़ी इन्होने सही सही अनुमान लगाया था। जगदीश सेठी के बारे में कहा था कि ये इस दिन के बाद नहीं मिलेगा। पृथ्वीराज जी जब बीमार हुए, उनको ख़ून का कैन्सर हुआ, ये अक्सर इनको मिला करते थे, तो अवॊयड ही करते थे क्योंकि उनका जीना मुश्किल था और वो पूछते थे कि भाई दीना नाथ, मैं कब तक हूँ? तो ये आ जाते थे वहाँ से कुछ ना कुछ बहाना लगाके। इनको अपने बारे में पता था कि मेरी उमर कब तक है। पर इन्होने कभी कोई कहानी या लम्बी डायलॊग नहीं बनाई कि देखो बेटा, मेरे बाद ऐसा करना, वैसा करना, कुछ नहीं कहा।" तो दोस्तों, ये था डी. एन. मधोक साहब के जीवन का एक रूप जो बयान कर रहे थे उन्ही के बेटे डॊ. पृथ्वी मधोक। और आइए अब सी. एच. आत्मा की गाई हुई यह मधुर भजन सुनते हैं फ़िल्म 'बिलवामंगल' से।



क्या आप जानते हैं...
कि डी. एन. मधोक साहब अक्सर कहा करते थे कि तीन लोग जो उन्हे बहुत ज़्यादा पसंद थे, वो हैं नौशाद, ख़ुरशीद अनवर, और मास्टर ग़ुलाम हैदर।

पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)

१. इस गीत की गायिका का १४ जून २००६ को अमेरिका में निधन हो गया था। गायिका का नाम बताएँ। ३ अंक।

२. इस फ़िल्म में मोहम्मद रफ़ी ने संगीतकार सुधीर फड़के की पत्नी के साथ मिलकर फ़िल्म का शीर्षक गीत गाया था। फ़िल्म का नाम बताएँ। २ अंक।

३. इस फ़िल्म के नायक नायिका इसी साल इस फ़िल्म के अलावा एक और फ़िल्म में नज़र आए जिसमें मास्टर ग़ुलाम हैदर का संगीत था और जिस फ़िल्म में मोहम्मद रफ़ी और ख़ान मस्ताना का गाया हुआ एक बेहद मशहूर देश भक्ति गीत मौजूद है। बताइए नायक-नायिका के नाम। २ अंक।

४. इस गीत के मुखड़े के शुरुआती दो शब्दों से एक और गीत शुरु होता है जो आई थी सन् १९४४ में और जिसमे नौशाद साहब का पहला पहला ब्लॊकबस्टर संगीत था। बताइए गीत के बोल। २ अंक।

विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।

पिछली पहेली का परिणाम -

इंदु जी कल आपने सही दिमाग लगाया और ३ अंक कमाए, वहीँ शरद जी ने सेफ गेम खेला और २ अंक चुरा ले गए...बहुत बधाई, और बहुत अच्छे अवध जी, एकदम सही जवाब, इस बार आप बहुत बढ़िया जा रहे हैं. अनाम टिप्पणीकार से अनुरोध है कि अपना नाम भी लिखें ताकि बाकी श्रोता भी उनसे परिचित हो सकें

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

गायिका : सुरिन्दर कौर
RAFI & LALITA DEULKAR.
FILM - NADIYA KE PAAR (1948) ...
LALITA DEULKAR WAS SUDHI PHADKE'S WIFE.
baDiyaa prastutee dhanyavaad
AVADH said…
फिल्म शहीद में खान मस्ताना का साथ मोहम्मद रफ़ी ने दिया था : वतन की राह में वतन के नौजवान शहीद हो. नायक और नायिका थे दिलीप कुमार और कामिनी कौशल
अवध लाल
mahendra verma said…
c.h.atma ki mohak aawaj me gaya geet "mohan pyare ab aur saaj par ga re " 5 baar suni, beshak unki gayki me jaadu hai.
mahendra verma said…
19553006c.h.atma ki manmohak aawaj me unka gaya geet "mohan pyare, ab aur saaj par ga re" 5 baar suni, behad surila geet hai, main ise baar baar sununga.

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...