ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 412/2010/112
'ओल्ड इज़ गोल्ड' की कल की कड़ी मे हमने सुनी थी सबिता बनर्जी की गाई हुई एक दुर्लभ फ़िल्मी भजन। आज के गीत का रंग भी भक्ति रस पर ही आधारित है। भारतीय फ़िल्म जगत में सामाजिक फ़िल्मों के साथ साथ धार्मिक और पौराणिक विषयों पर आधारित फ़िल्मों का भी एक जौनर रहा है फ़िल्म निर्माण के शुरुआती दौर से ही। यह परम्परा ९० के दशक में गुल्शन कुमार के निधन के बाद धीरे धीरे विलुप्त हो गई, और आज दो चार धार्मिक गीतों के ऐल्बम के अलावा इस जौनर की कोई कृति ना सुनाई देती है और ना ही परदे पर दिखाई देती है। फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर में बनने वाली धार्मिक फ़िल्मों में कुछ गिने चुने फ़िल्मों को छोड़ कर ज़्यादातर फ़िल्में बॊक्स ऒफ़िस पर असफल हुआ करती थी। दरसल धार्मिक फ़िल्मों के निर्माता इन फ़िल्मों का निर्माण ख़ास दर्शक वर्ग के लिए किया करते थे जैसे कि ग्रामीण जनता के लिए, वृद्ध वर्ग के लिए। ऐसे में आम जनता इन फ़िल्मों से कुछ दूर दूर ही रहती आई है। ज़्यादा व्यावसाय ना होने की वजह से ये कम बजट की फ़िल्में होती थीं। ना इन्हे ज़्यादा बढ़ावा मिलता और ना ही इनका ज़्यादा प्रचार हो पाता। ऐसे में इन फ़िल्मों के गानें भी लोगों तक सही रूप से नहीं पहुँच पाते। और यही वजह है कि इन फ़िल्मों के गानें आज दुर्लभ गीतों की श्रेणी में शुमार हो चुका है, जिन्हे कहीं से प्राप्त करना बेहद मुश्किल हो जाता है। इसलिए अगर दुर्लभ गीतों की इस लघु शृंखला में कुछ गानें धार्मिक फ़िल्मों से शामिल हुए हैं, तो इसमें हैरत की कोई बात नहीं है। वैसे धार्मिक फ़िल्मों में तो असंख्य धार्मिक और सामाजिक गानें हुए हैं, तो फिर ऐसा क्या ख़ास बात है आज के प्रस्तुत गीत में? ख़ास बात है इस गीत को गाने वाले गायक में। चित्रगुप्त को हमने हमेशा एक संगीतकार के रूप में जाना है और उनके संगीतबद्ध गानें ही सुनते चले आए हैं। लेकिन आज के गीत में आप सुनने जा रहे हैं उनकी गाती हुई आवाज़। और यह भी आपको बता दें कि इस गीत का संगीत चित्रगुप्त जी ने नहीं बल्कि धार्मिक फ़िल्मों के जाने माने संगीतकार एस. एन. त्रिपाठी साहब ने तैयार किया है।
"जय जयकार करो माता की, आओ चरण भवानी की, एक बार फिर प्रेम से बोलो, जय दुर्गा महारानी की" - चित्रगुप्त और साथियों की आवाज़ों में यह भक्ति गीत है १९५३ की फ़िल्म 'नव दुर्गा' का। महीपाल और उषा किरण अभिनीत इस फ़िल्म में एस. एन. त्रिपाठी ने ना केवल संगीत दिया था बल्कि अभिनय भी किया था। वैसे उन्होने इस तरह की कई धार्मिक फ़िल्मों में छोटे मोटे किरदार निभाते आए हैं समय समय पर। 'नव दुर्गा' बसंत पिक्चर्स की प्रस्तुति थी जिसका निर्देशन किया था बाबूभाई मिस्त्री ने। आइए आज चित्रगुप्त जी के शुरुआती दिनों की कुछ बातें की जाए। चित्रगुप्त भोजपुर बिहार के एक साहित्यिक कायस्थ परिवार से ताल्लुख़ रखते थे। उस परिवार में किसी को पसंद ना था कि कालेज में एम.ए (अर्थशास्त्र) की पढ़ाई के दौरान दोस्तों को गीत सुनाने वाले चित्रगुप्त एक पार्श्व गायक बनें। अपने चाचा से फ़ारसी एवं उर्दू तथा भाई से संस्कृत पढ़ने के बावजूद वे सन् १९४५ में सिर्फ़ ३६५ दिनों के लिए बम्बई आ पहुँचे यह सोचकर कि यदि संगीत देने का अवसर न मिला तो बिहार लौट जाएँगे। बम्बई आकर वे अपने एक दोस्त मदन सिन्हा के माध्यम से प्रसिद्ध निर्देशक सर्वोत्तम बादामी के सहायक से मिले। उन्ही दिनों नितिन बोस से भी उनकी मुलाक़ात हुई। तत्कालीन हरि प्रसन्न दास (जिनके सहायक के रूप में उन दिनों मन्ना डे कार्य कर रहे थे) के निर्देशन में उन्होने एक समूह गीत भी गाया था। संगीतकार एस. एन. त्रिपाठी के सहायक के रूप में काम करने के साथ साथ उन्हे 'लेडी रॊबिनहुड' में स्वतंत्र रूप से संगीत देने का अवसर मिला। इस फ़िल्म में उन्होने राजकुमारी के साथ मिल कर कुछ गीत भी गाए। १९५३-५४ से धार्मिक फ़िल्मों में संगीत देने का उनका सिलसिला शुरु हुआ तो उन्होने लगभग १५ फ़िल्मों - नाग पंचमी, शिवरात्रि, महाशिवरात्रि, नवरात्रि, शिवभक्त, श्री गणेश विवाह, आदि में उन्होने संगीत दिया। (सौजन्य: लिस्नर्स बुलेटिन अंक-८४)। इसी दौरान एस. एन. त्रिपाठी के संगीत में बनी धार्मिक फ़िल्म 'नव दुर्गा' में त्रिपाठी जी ने अपने इस शिष्य से यह आज का प्रस्तुत गीत गवाया। इस गीत को आज बहुत कम लोगों ने याद रखा है। तो लीजिए 'दुर्लभ दस' शृंखला की दूसरी कड़ी में सुनिए संगीतकार चित्रगुप्त की आवाज़ और एस.एन. त्रिपाठी का संगीत। फ़िल्म 'नव दुर्गा' के इस भजन को लिखा है रमेश चन्द्र पाण्डेय ने।
क्या आप जानते हैं...
कि चित्रगुप्त ने बतौर स्वतंत्र संगीतकार सब से पहले, १९४६ में, जिन तीन फ़िल्मों में संगीत दिया था उनके नाम हैं - 'फ़ाइटिंग् हीरो', 'लेडी रॊबिनहुड', तथा 'तूफ़ान क्वीन'। इन फ़िल्मों की नामावली में उनके नाम के साथ उनकी डिग्री एम.ए को जोड़ा गया था, यानी कि "चित्रगुप्त एम.ए"।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. इस गीत में आवाज़ उस गायिका की है जिसे "गरीबों की लता" कहा जाता है। गायिका का नाम बताएँ। १ अंक।
२. यह एक भोजपुरी फ़िल्म का गीत है जो बनी थी १९६६ में और जिसके मुख्य कलाकार थे सुजीत कुमार और विजया चौधरी। फ़िल्म के शीर्षक में दो शब्द हैं जिसमें से पहला शब्द एक धातु का है और दूसरा शब्द एक उपाधि (सरनेम) है। फ़िल्म का नाम बताएँ। ३ अंक।
३. फ़िल्म के संगीतकार पौराणिक और धार्मिक फ़िल्मों में संगीत देने के लिए जाने जाते हैं जिन्होने अपने करीयर की शुरुआत बॊम्बे टॊकीज़ से की थी। संगीतकार का नाम बताएँ। २ अंक।
४. अगर उपर के तीन सूत्रों से आपने फ़िल्म का नाम पहचान लिया है तो फिर जुदाई के दर्द में लिपटा हुआ यह गीत भी बता दीजिए। ३ अंक।
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम -
पराग जी आप सदियाँ बाद ओल्ड इस गोल्ड पर आये कल, पर ये क्या आपने तो बहुत बड़ी गलती कर दी...नियम के मुताबिक एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, तो माफ़ी चाहेंगें आपके दोनों जवाब सही हैं पर अंक एक भी नहीं मिल पायेगा. वहीँ पहली बार अवध जी ने शुरूआत में इस बार खाता खोला है, बहुत बधाई....भारतीय नागरिक जी, आपकी पसंद जरूर सुन्वएंगें, पर फिलहाल आपसे पहेली के जवाबों की हमें उम्मीद रहेगी, संगीता जी गीत को पसंद करने का आभार, शरद जी और इंदु नज़र नहीं आये.....????
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'ओल्ड इज़ गोल्ड' की कल की कड़ी मे हमने सुनी थी सबिता बनर्जी की गाई हुई एक दुर्लभ फ़िल्मी भजन। आज के गीत का रंग भी भक्ति रस पर ही आधारित है। भारतीय फ़िल्म जगत में सामाजिक फ़िल्मों के साथ साथ धार्मिक और पौराणिक विषयों पर आधारित फ़िल्मों का भी एक जौनर रहा है फ़िल्म निर्माण के शुरुआती दौर से ही। यह परम्परा ९० के दशक में गुल्शन कुमार के निधन के बाद धीरे धीरे विलुप्त हो गई, और आज दो चार धार्मिक गीतों के ऐल्बम के अलावा इस जौनर की कोई कृति ना सुनाई देती है और ना ही परदे पर दिखाई देती है। फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर में बनने वाली धार्मिक फ़िल्मों में कुछ गिने चुने फ़िल्मों को छोड़ कर ज़्यादातर फ़िल्में बॊक्स ऒफ़िस पर असफल हुआ करती थी। दरसल धार्मिक फ़िल्मों के निर्माता इन फ़िल्मों का निर्माण ख़ास दर्शक वर्ग के लिए किया करते थे जैसे कि ग्रामीण जनता के लिए, वृद्ध वर्ग के लिए। ऐसे में आम जनता इन फ़िल्मों से कुछ दूर दूर ही रहती आई है। ज़्यादा व्यावसाय ना होने की वजह से ये कम बजट की फ़िल्में होती थीं। ना इन्हे ज़्यादा बढ़ावा मिलता और ना ही इनका ज़्यादा प्रचार हो पाता। ऐसे में इन फ़िल्मों के गानें भी लोगों तक सही रूप से नहीं पहुँच पाते। और यही वजह है कि इन फ़िल्मों के गानें आज दुर्लभ गीतों की श्रेणी में शुमार हो चुका है, जिन्हे कहीं से प्राप्त करना बेहद मुश्किल हो जाता है। इसलिए अगर दुर्लभ गीतों की इस लघु शृंखला में कुछ गानें धार्मिक फ़िल्मों से शामिल हुए हैं, तो इसमें हैरत की कोई बात नहीं है। वैसे धार्मिक फ़िल्मों में तो असंख्य धार्मिक और सामाजिक गानें हुए हैं, तो फिर ऐसा क्या ख़ास बात है आज के प्रस्तुत गीत में? ख़ास बात है इस गीत को गाने वाले गायक में। चित्रगुप्त को हमने हमेशा एक संगीतकार के रूप में जाना है और उनके संगीतबद्ध गानें ही सुनते चले आए हैं। लेकिन आज के गीत में आप सुनने जा रहे हैं उनकी गाती हुई आवाज़। और यह भी आपको बता दें कि इस गीत का संगीत चित्रगुप्त जी ने नहीं बल्कि धार्मिक फ़िल्मों के जाने माने संगीतकार एस. एन. त्रिपाठी साहब ने तैयार किया है।
"जय जयकार करो माता की, आओ चरण भवानी की, एक बार फिर प्रेम से बोलो, जय दुर्गा महारानी की" - चित्रगुप्त और साथियों की आवाज़ों में यह भक्ति गीत है १९५३ की फ़िल्म 'नव दुर्गा' का। महीपाल और उषा किरण अभिनीत इस फ़िल्म में एस. एन. त्रिपाठी ने ना केवल संगीत दिया था बल्कि अभिनय भी किया था। वैसे उन्होने इस तरह की कई धार्मिक फ़िल्मों में छोटे मोटे किरदार निभाते आए हैं समय समय पर। 'नव दुर्गा' बसंत पिक्चर्स की प्रस्तुति थी जिसका निर्देशन किया था बाबूभाई मिस्त्री ने। आइए आज चित्रगुप्त जी के शुरुआती दिनों की कुछ बातें की जाए। चित्रगुप्त भोजपुर बिहार के एक साहित्यिक कायस्थ परिवार से ताल्लुख़ रखते थे। उस परिवार में किसी को पसंद ना था कि कालेज में एम.ए (अर्थशास्त्र) की पढ़ाई के दौरान दोस्तों को गीत सुनाने वाले चित्रगुप्त एक पार्श्व गायक बनें। अपने चाचा से फ़ारसी एवं उर्दू तथा भाई से संस्कृत पढ़ने के बावजूद वे सन् १९४५ में सिर्फ़ ३६५ दिनों के लिए बम्बई आ पहुँचे यह सोचकर कि यदि संगीत देने का अवसर न मिला तो बिहार लौट जाएँगे। बम्बई आकर वे अपने एक दोस्त मदन सिन्हा के माध्यम से प्रसिद्ध निर्देशक सर्वोत्तम बादामी के सहायक से मिले। उन्ही दिनों नितिन बोस से भी उनकी मुलाक़ात हुई। तत्कालीन हरि प्रसन्न दास (जिनके सहायक के रूप में उन दिनों मन्ना डे कार्य कर रहे थे) के निर्देशन में उन्होने एक समूह गीत भी गाया था। संगीतकार एस. एन. त्रिपाठी के सहायक के रूप में काम करने के साथ साथ उन्हे 'लेडी रॊबिनहुड' में स्वतंत्र रूप से संगीत देने का अवसर मिला। इस फ़िल्म में उन्होने राजकुमारी के साथ मिल कर कुछ गीत भी गाए। १९५३-५४ से धार्मिक फ़िल्मों में संगीत देने का उनका सिलसिला शुरु हुआ तो उन्होने लगभग १५ फ़िल्मों - नाग पंचमी, शिवरात्रि, महाशिवरात्रि, नवरात्रि, शिवभक्त, श्री गणेश विवाह, आदि में उन्होने संगीत दिया। (सौजन्य: लिस्नर्स बुलेटिन अंक-८४)। इसी दौरान एस. एन. त्रिपाठी के संगीत में बनी धार्मिक फ़िल्म 'नव दुर्गा' में त्रिपाठी जी ने अपने इस शिष्य से यह आज का प्रस्तुत गीत गवाया। इस गीत को आज बहुत कम लोगों ने याद रखा है। तो लीजिए 'दुर्लभ दस' शृंखला की दूसरी कड़ी में सुनिए संगीतकार चित्रगुप्त की आवाज़ और एस.एन. त्रिपाठी का संगीत। फ़िल्म 'नव दुर्गा' के इस भजन को लिखा है रमेश चन्द्र पाण्डेय ने।
क्या आप जानते हैं...
कि चित्रगुप्त ने बतौर स्वतंत्र संगीतकार सब से पहले, १९४६ में, जिन तीन फ़िल्मों में संगीत दिया था उनके नाम हैं - 'फ़ाइटिंग् हीरो', 'लेडी रॊबिनहुड', तथा 'तूफ़ान क्वीन'। इन फ़िल्मों की नामावली में उनके नाम के साथ उनकी डिग्री एम.ए को जोड़ा गया था, यानी कि "चित्रगुप्त एम.ए"।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. इस गीत में आवाज़ उस गायिका की है जिसे "गरीबों की लता" कहा जाता है। गायिका का नाम बताएँ। १ अंक।
२. यह एक भोजपुरी फ़िल्म का गीत है जो बनी थी १९६६ में और जिसके मुख्य कलाकार थे सुजीत कुमार और विजया चौधरी। फ़िल्म के शीर्षक में दो शब्द हैं जिसमें से पहला शब्द एक धातु का है और दूसरा शब्द एक उपाधि (सरनेम) है। फ़िल्म का नाम बताएँ। ३ अंक।
३. फ़िल्म के संगीतकार पौराणिक और धार्मिक फ़िल्मों में संगीत देने के लिए जाने जाते हैं जिन्होने अपने करीयर की शुरुआत बॊम्बे टॊकीज़ से की थी। संगीतकार का नाम बताएँ। २ अंक।
४. अगर उपर के तीन सूत्रों से आपने फ़िल्म का नाम पहचान लिया है तो फिर जुदाई के दर्द में लिपटा हुआ यह गीत भी बता दीजिए। ३ अंक।
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम -
पराग जी आप सदियाँ बाद ओल्ड इस गोल्ड पर आये कल, पर ये क्या आपने तो बहुत बड़ी गलती कर दी...नियम के मुताबिक एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, तो माफ़ी चाहेंगें आपके दोनों जवाब सही हैं पर अंक एक भी नहीं मिल पायेगा. वहीँ पहली बार अवध जी ने शुरूआत में इस बार खाता खोला है, बहुत बधाई....भारतीय नागरिक जी, आपकी पसंद जरूर सुन्वएंगें, पर फिलहाल आपसे पहेली के जवाबों की हमें उम्मीद रहेगी, संगीता जी गीत को पसंद करने का आभार, शरद जी और इंदु नज़र नहीं आये.....????
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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अवध लाल