Skip to main content

यूहीं तुम मुझसे बात करती हो...इतने जीवंत और मधुर युगल गीत कहाँ बनते हैं रोज रोज

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 426/2010/126

'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक नई सप्ताह के साथ हम हाज़िर हैं। इन दिनों हम आप तक पहुँचा रहे हैं सुप्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी कल्याणजी-आनंदजी के स्वरबद्ध गीतों से सजी लघु शृंखला 'दिल लूटने वाले जादूगर'। इस शृंखला के पहले हिस्से में पिछले हफ़्ते आपने पाँच गीत सुनें, और आज से अगले पाँच दिनों में आप सुनेंगे पाँच और गीत। तो साहब हम आ पहुँचे थे ७० के दशक में, और जैसा कि हमने आपको बताया था कि ७० का दशक कल्याणजी-आनंदजी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और आर.डी. बर्मन का दशक था। यह कहा जाता है कि इन तीनों ने रिकार्डिंग् स्टुडियो पर जोड़-तोड़ से ऐडवांस बुकिंग्' करनी शुरु कर दी थी कि और किसी संगीतकार को अपने गीतों की रिकार्डिंग् के लिए स्टुडियो ही नहीं मिल पाता था। 'आराधना' की सफलता के बाद यह ज़माना राजेश खन्ना और किशोर कुमार के सुपर स्टारडम का भी था। कल्याणजी-आनंदजी भी इस लहर में बहे और सन् १९७० में राजेश खन्ना के दो सुपर हिट फ़िल्मों में मुख्यत: किशोर कुमार को ही लिया। ये दो फ़िल्में थीं 'सफ़र' और 'सच्चा झूठा'। 'सफ़र' में "ज़िंदगी का सफ़र", "जीवन से भरी तेरी आँखें", तथा 'सच्चा झूठा' में "दिल को देखो चेहरा ना देखो", "मेरी प्यारी बहनिया बनेगी दुल्हनिया" और "कहदो कहदो तुम जो कहदो" (लता के साथ)जैसे गानें किशोर दा ने ही गाए थे। लेकिन रफ़ी साहब ने 'सच्चा झूठा' में लता जी के साथ मिलकर एक युगल गीत गाया था जिसे लोगों ने ख़ूब ख़ूब पसंद किया, और इसी गीत को आज हम लेकर आए हैं आपको सुनवाने के लिए। "युंही तुम मुझसे बात करती हो या कोई प्यार का इरादा है, अदाएँ दिल की जानता ही नहीं मेरा हमदम भी कितना सादा है"। राजेश खन्ना और मुमताज़ पर फ़िल्माए लता-रफ़ी डुएट्स में जिन दो गीतों की याद हमें सब से पहले आती है, उनमें से एक है लक्ष्मी-प्यारे के संगीत में 'दो रास्ते' का गीत "दिल ने दिल को पुकारा मुलाक़ात हो गई" और दूसरा गीत है आज का यह प्रस्तुत गीत।

सन् १९९७ में कल्याणजी भाई विविध भारती के स्टुडियो में तशरीफ़ लाए थे और गणेश शर्मा को एक इंटरवियू दिया था। चलिए आज उसी का एक अंश यहाँ पर पेश किए देते हैं। गणेश शर्मा कल्याणजी भाई से पूछते हैं कि कल्याणजी भाई, आपको बहुत बड़े बड़े अवार्ड, पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिसमें राष्ट्रपति पुरस्कार, पद्मश्री। कोई ऐसा यादगार लम्हा किसी अवार्ड फ़ंकशन का, अवार्ड लेते हुए, आप श्रोताओं को बताना चहेंगे?

कल्याणजी: कोई भी अवार्ड मिलता है ख़ुशी तो मिलती है, उसमें कोई सवाल नहीं उठता है, लेकिन मुझे लगता है कि जनता का जो अवार्ड है, वह सब से बड़ा है क्योंकि जब भी हम काम करते हैं, उनकी क्या ख़ुशी हुई है, उनकी क्या क्लैपिंग् हुई है, लेकिन जब भी कोई अवार्ड लिया तो ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है हमारी कि हम चाहते हैं कि जितने प्यार से लोगों ने यह अवार्ड दिया है, तो हम इस संगीत के ज़रिये क्या समाज की सेवा कर सकते हैं, क्या देश की सेवा कर सकते हैं, क्या हमारे आने वाले भाइयों के लिए कर सकते हैं, ये हमेशा हमेशा मन में रहता है। फिर अगर आप मज़ाक की बात करें तो फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड, बहुत बड़ा अवार्ड है, और हमें यह 'कोरा काग़ज़' के लिए मिला। बहुत लेट मिला था, २५ साल, २७ साल इंडस्ट्री में रहने के बाद। वहाँ पूछा गया कि यह अवार्ड मिलने से आप को क्या महसूस हो रहा है? मैंने कहा कि बहुत ख़ुशी हो रही है, क्यों नहीं ख़ुशी होगी, बड़ी उमर में लड़का हुआ है!

और आइए अब सुनते हैं राजेश खन्ना और मुमताज़ पर फ़िल्माया गया लता-रफ़ी की युगल आवाज़ों में आनंद बक्शी साहब की रचना फ़िल्म 'सच्चा झूठा' से।



क्या आप जानते हैं...
कि फ़िल्मों से हट कर कल्याणजी व्यक्तिगत जीवन में आचार्य रजनीश (ओशो) के भक्त थे।

पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)

१. इस फिल्म के एक अन्य गीत में उषा खन्ना ने किशोर दा की आवाज़ से आवाज़ मिलायी थी, फिल्म का नाम बताएं -२ अंक.
२. गीत के एक अंतरे में रामायण के एक अंश का जिक्र है, गीत के बोल बताएं - २ अंक.
३. गीतकार बताएं - ३ अंक.
४. लता ने किस अभिनेत्री के लिए पार्श्व गायन किया है इस गीत में - २ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
अवध जी पहले जरूर आये, पर ३ अंकों का सवाल अपने गुरु के लिए छोड़ गए, वी डी ने भी हाथ आजमाया और २ अंक से खाता खोल ही दिया, इंदु जी जल्दी आईये, आपकी अनुपस्तिथि में मैदान जरा खाली दिख रहा है

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

(३) गीतकार हैं : अनजान
बस दो तीन दिन का काम और है .
मैं जानती हूँ आप भी ये नही चाहेंगे कि अधिकारी ये कहें कि इंदु पुरी ऩे काम ढंग से नही किया.
मैं अपनी ओर से हर चीज,हर काम में अपना हंड्रेड परसेंट देती हूँ.
अपनी आत्म संतुष्टि के लिए.
बाकी तो ठीक है, सरकारी काम समझ कर पाप ही काट दो तो आज तक किसी ऩे उनका क्या बिगड़ लिया जो अब तक मुफ्त की 'पे' उठा रहे हैं.
पर आपका ये दोस्त ऐसा नही है. यूँ बेहद काम चोर हूँ मैं.करती ही नही.
पर काम मिला तो जी जान झोंक देती हूँ.
यूँ ही प्यार नही करते लोग मुझे यहाँ भी.मेरा डिपार्टमेंट भी और स्टाफ भी.
सच्ची ऐसीच हूँ मैं .
आप लोगों को बहुत 'मिस' कर रही हूँ.
पर पूरी-२ रात काम कर रही हूँ जाग-२ कर.
प्यार
इंदु
जनक ने कैसे त्याग दिया है अपनी ही जानकी को
बेटी भटके राहों मेंमाता डूबी आहों में
तरसे तेरे दरस को नयन
ओ बाबुल प्यारे ........
मूड फ्रेश करने आ ही गई मैं .
तो.....नालायकी कर ही जाऊँ.
किशोर साब के साथ उषा जी ने गुनगुनाया था'पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले झूठा ही सही ' गीत में
हा हा हा
दिखा दी अपनी वाली मैंने तो.
क्या करूँ ऐसीच हूँ मैं.
AVADH said…
बाकी तो सब इंदु बहिन बता ही चुकी हैं.
गुरु की बात काटने के लिए माफ़ी चाहता हूँ पर शायद गीतकार थे इन्दीवर.
अवध लाल

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...