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Showing posts with the label sujoi chatterjee

"नीले गगन के तले धरती का प्यार पले" - कैसे न बनती साहिर और रवि की सुरीली जोड़ी जब दोनों की राशी एक है!!

मशहूर गीतकार - संगीतकार जोड़ियों में साहिर लुधियानवी और रवि की जोड़ी ने भी फ़िल्म-संगीत के ख़ज़ाने को बेशकीमती रत्नों से समृद्ध किया है। कैसे न बनती यह अनमोल जोड़ी जब दोनों की जन्मतिथि लगभग साथ-साथ हैं? ३ मार्च को रवि और ८ मार्च को साहिर के जन्मदिवस को ध्यान में रखते हुए आज 'एक गीत सौ कहानियाँ' की दसवीं कड़ी में चर्चा इस जोड़ी की एक कलजयी रचना की, सुजॉय चटर्जी के साथ... एक गीत सौ कहानियाँ # 10 फ़िल्म जगत में गीतकार-संगीतकार की जोड़ियाँ शुरुआती दौर से ही बनती चली आई हैं। उस ज़माने में भले स्टुडियो कॉनसेप्ट की वजह से यह परम्परा शुरु हुई हो, पर स्टुडियो सिस्टम समाप्त होने के बाद भी यह परम्परा जारी रही और शक़ील-नौशाद, शलेन्द्र-हसरत-शंकर-जयकिशन, मजरूह-नय्यर, मजरूह-सचिन देव बर्मन, साहिर-सचिन देव बर्मन, साहिर-रवि, गुलज़ार-पंचम, समीर-नदीन-श्रवण, स्वानन्द-शान्तनु जैसी कामयाब गीतकार-संगीतकार जोड़ियाँ हमें मिली। इस लेख में आज चर्चा साहिर-रवि के जोड़ी की। कहा जाता है कि जिन लोगों की राशी एक होती हैं, उनके स्वभाव में, चरित्र में, कई समानतायें पायी जाती हैं और एक राशी के दो लोगों मे

सिने-पहेली # 9

सिने-पहेली # 9 (27 फ़रवरी 2012) 'सिने पहेली' की एक और कड़ी के साथ मैं, आपका ई-दोस्त सुजॉय चटर्जी, हाज़िर हूँ 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' पर। दोस्तों, अब बस दो कड़ियाँ शेष हैं 'सिने पहेली' के पहले सेगमेण्ट के पूरे होने में। यानी कि दो अंकों के बाद पहले 'दस का दम' विजेता घोषित कर दिया जाएगा। आठवीं कड़ी के अंकों को जोड़ने के बाद किन चार प्रतिभागियों के सर्वाधिक स्कोर हुए हैं, यह हम अभी थोड़ी देर में आपको बतायेंगे, फ़िल्हाल शुरु करते हैं 'सिने पहेली # 9' के सवालों का सिलसिला। ********************************************* सवाल-1: गोल्डन वॉयस गोल्डन वॉयस में आज हम आपको सुनवाने जा रहे हैं गुज़रे ज़माने की एक आवाज़। सुन कर बताइए यह किस गायक की आवाज़ है? सवाल-2: पहचान कौन! दूसरे सवाल के रूप में आपको हल करने हैं एक चित्र पहेली का। नीचे दिए गए चित्र को ध्यान से देखिए। 1930 के दशक का एक बेहद बेहद बेहद मशहूर और लोकप्रियतम गीतों में से एक है यह गीत जिसका यह दृश्य है। बता सकते हैं गीत का मुखड़ा? सवाल-3: सुनिये तो... कुछ संवाद ऐसे होते हैं जो इतने लोकप्रिय होते

"हम चुप हैं कि दिल सुन रहे हैं..." - पर हमेशा के लिए चुप हो गए शहरयार!

१३ फ़रवरी २०१२ को जानेमाने शायर शहरयार का इन्तकाल हो गया। कुछ फ़िल्मों के लिए उन्होंने गीत व ग़ज़लें भी लिखे जिनका स्तर आम फ़िल्मी रचनाओं से बहुत उपर है। 'उमरावजान', 'गमन', 'फ़ासले', 'अंजुमन' जैसी फ़िल्मों की ग़ज़लों और गीतों को सुनने का एक अलग ही मज़ा है। उन्हें श्रद्धांजली स्वरूप फ़िल्म 'फ़ासले' के एक लोकप्रिय युगल गीत की चर्चा आज 'एक गीत सौ कहानियाँ' की आठवीं कड़ी में, सुजॉय चटर्जी के साथ... एक गीत सौ कहानियाँ # 8 यूं तो फ़िल्मी गीतकारों की अपनी अलग टोली है, पर समय समय पर साहित्य जगत के जानेमाने कवियों और शायरों ने फ़िल्मों में अपना स्तरीय योगदान दिया है, जिनके लिए फ़िल्म जगत उनका आभारी हैं। ऐसे अज़ीम कवियों और शायरों के लिखे गीतों व ग़ज़लों ने फ़िल्म संगीत को न केवल समृद्ध किया, बल्कि सुनने वालों को अमूल्य उपहार दिया। ऐसे ही एक मशहूर शायर रहे शहरयार, जिनका हाल ही में देहान्त हो गया। अख़लक़ मुहम्मद ख़ान के नाम से जन्मे शहरयार को भारत का सर्वोच्च साहित्य सम्मान 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से साल २००८ में सम्मानित किया गया था। ७५-वर्

सिने-पहेली # 8

सिने-पहेली # 8 (20 फ़रवरी 2012) रेडियो प्लेबैक इण्डिया के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार! दोस्तों, 'सिने-पहेली' की आठवीं कड़ी लेकर मैं हाज़िर हूँ। दोस्तों, जैसा कि पिछले सप्ताह हमने यह घोषित किया कि इस प्रतियोगिता को दस-दस अंकों में विभाजित किया जा रहा है, तो पहले सेगमेण्ट के ७ अंक प्रस्तुत हो चुके हैं और आज आठवा अंक है। तो क्यों न जल्दी से नज़र दौड़ा ली जाए चार अग्रणी प्रतियोगियों के नामों पर। इस वक़्त जो चार प्रतियोगी सबसे उपर चल रहे हैं, वो हैं --- प्रकाश गोविन्द, लखनऊ - 27 अंक पंकज मुकेश, बेंगलुरु - 23 अंक रीतेश खरे, मुंबई - 16 अंक क्षिति तिवारी, इन्दौर - 15 अंक भई वाह, इसे कहते हैं कांटे का टक्कर! देखते हैं कि क्या प्रकाश जी बनने वाले हैं पहला 'दस का दम' विजेता? या फिर पंकज मुकेश उन्हें पार कर जायेंगे अगले तीन अंकों में? या कि रीतेश या क्षिति कोई करामात दिखा जायेंगे? यह सब तो वक़्त आने पर ही पता चलेगा, फ़िल्हाल शुरु किया जाए 'सिने पहेली # 8'। ********************************************* सवाल-1: गोल्डन वॉयस गोल्डन वॉयस म

"फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया"- और याद आए ग़ालिब उनकी १४४-वीं पुण्यतिथि पर

१५ फ़रवरी १८६९ को मिर्ज़ा ग़ालिब का ७२ साल की उम्र में इन्तकाल हुआ था। करीब १५० साल गुज़र जाने के बाद भी ग़ालिब की ग़ज़लें आज उतनी ही लोकप्रिय और सार्थक हैं जितनी उस ज़माने में हुआ करती थीं। ग़ालिब पर बनी फ़िल्मों और टीवी प्रोग्रामों की चर्चा तथा उनकी एक ग़ज़ल लेकर सुजॉय चटर्जी आज आए हैं 'एक गीत सौ कहानियाँ' की सातवीं कड़ी में... एक गीत सौ कहानियाँ # 7 अतीत के अदबी शायरों की बात चले तो जो नाम सबसे ज़्यादा चर्चित हुआ है, वह नाम है मिर्ज़ा ग़ालिब का। ग़ालिब की ग़ज़लें केवल ग़ज़लों की महफ़िलों और ग़ैर-फ़िल्मी रेकॉर्डों तक ही सीमित नहीं रही, फ़िल्मों में भी ग़ालिब की ग़ज़लें सर चढ़ कर बोलती रहीं। 'अनंग सेना' (१९३१), 'ज़हर-ए-इश्क़' (१९३३), 'यहूदी की लड़की' (१९३३), 'ख़ाक का पुतला' (१९३४), 'अनारकली' (१९३५), 'जजमेण्ट ऑफ़ अल्लाह' (१९३५), 'हृदय मंथन' (१९३६), 'क़ैदी' (१९४०), 'मासूम' (१९४१), 'एक रात' (१९४२), 'चौरंगी' (१९४२), 'हण्टरवाली की बेटी' (१९४३), 'अपना देश' (१९४९), 'मिर

सिने-पहेली # 6

सिने-पहेली # 6 (6 फ़रवरी 2012) रेडियो प्लेबैक इण्डिया के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार! दोस्तों, 'सिने-पहेली' की छठी कड़ी लेकर मैं हाज़िर हूँ। पिछले दिनों 'सिने पहेली' के नियमित प्रतियोगी पंकज मुकेश जी का मुझे टेलीफ़ोन आया, जिन्होंने इस स्तंभ की तारीफ़ के साथ-साथ तीन सुझाव भी दिये। पहला सुझाव था कि इस स्तंभ को सप्ताह में दो बार कर दिया जाये क्योंकि पचास अंक के पूरे होते होते साल भर का समय लग जाएगा। उनका दूसरा सुझाव था कि जो जो प्रतियोगी 'सिने पहेली' के प्रथम अंक में भाग लेने से चूक गए (क्योंकि उन्हें नए स्तंभ के बारे में जानकारी नहीं थी), उनके लिए एक विशेषांक प्रस्तुत की जाये जिसमें केवल वो ही भाग ले सकते हैं जो पहले अंक में भाग नहीं ले पाये थे। इस तरह से उन सभी को कम से कम एक मौका मिलेगा अन्य प्रतियोगियों के बराबरी तक पहुँचने का। और पंकज जी का तीसरा सुझाव था कि हम पार्श्वगायक मुकेश को 'सिने-पहेली' का एक पूरा अंक समर्पित करें। पंकज जी, आपके इन तीनों सुझावों के जवाब ये रहे। 'सिने-पहेली' सप्ताह में दो दिन कर पाना हमारे लिए स

"जब से पी संग नैना लागे" - क्यों लता नहीं गा सकीं ओ.पी.नय्यर के इस पहले पहले कम्पोज़िशन को

लता मंगेशकर और ओ.पी.नय्यर के बीच की दूरी फ़िल्म-संगीत जगत में एक चर्चा का विषय रहा है। आज इसी ग़लतफ़हमी पर एक विस्तारित नज़र ओ.पी.नय्यर की पहली फ़िल्म 'आसमान' के एक गीत के ज़रिए सुजॉय चटर्जी के साथ, 'एक गीत सौ कहानियाँ' की पाँचवी कड़ी में... एक गीत सौ कहानियाँ # 5 स्वर्ण-युग के संगीतकारों में बहुत कम ऐसे संगीतकार हुए हैं जिनकी धुनों पर लता मंगेशकर की आवाज़ न सजी हो। बल्कि यूं भी कह सकते हैं कि हर संगीतकार अपने गानें लता से गवाना चाहते थे। ऐसे में अगर कोई संगीतकार उम्र भर उनसे न गवाने की क़सम खा ले, तो यह मानना ही पड़ेगा कि उस संगीतकार में ज़रूर कोई ख़ास बात होगी, उसमें ज़रूर दम होगा। ओ.पी. नय्यर एक ऐसे ही संगीतकार हुए जिन्होने कभी लता से गाना नहीं लिया। अपनी पहली पहली फ़िल्म के समय ही किसी मनमुटाव के कारण जो दरार लता और नय्यर के बीच पड़ी, वह फिर कभी नहीं भर सकी। लता और नय्यर, दोनों से ही लगभग हर साक्षात्कार में यह सवाल ज़रूर पूछा जाता रहा है कि आख़िर क्या बात हो गई थी कि दोनों नें कभी एक दूसरे की तरफ़ क़दम नहीं बढ़ाया, पर हर बार ये दोनों असल बात को टालते रहे हैं

सिने-पहेली # 5

सिने-पहेली # 5 (30 जनवरी 2012) रेडियो प्लेबैक इण्डिया के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार! दोस्तों, 'सिने-पहेली' की पाँचवी कड़ी लेकर मैं हाज़िर हूँ। यह स्तंभ आज एक महीना पूरा कर रहा है, और जिस तरह से आप सब नें इसमें भागीदारी निभाई है, हम तहे दिल से आप सभी के आभारी हैं। हम यही समझते हैं कि कोई भी स्तंभ उसके पाठकों के सहयोग और योगदान के बिना सफल नहीं हो सकता। आगे भी इसी तरह से इस स्तंभ में हिस्सा लेते रहिएगा, चाहे जवाब मालूम हो या न हो, कम से कम कोशिश तो आप ज़रूर कर सकते हैं, और यही एक सच्चे खिलाड़ी की असली पहचान है। और फिर चलिए तैयार हो जाइए आज का खेल खेलने के लिए। शुरु करते हैं आज की सिने पहेली!!! जैसा कि अब तक आप समझ ही चुके होंगे इस प्रतियोगिता को, फिर भी अपने नये श्रोता-पाठकों के लिए बता दूँ कि इसमें हर सप्ताह हम पाँच सवाल पूछते हैं, जिनका जवाब आपको हमें लिख भेजने होते हैं cine.paheli@yahoo.com के ईमेल आइडी पर। हर सप्ताह पिछले सप्ताह में पूछे गए सवालों के सही जवाबों के साथ-साथ कम से कम एक सही जवाब लिख भेजने वाले सभी प्रतियोगियों के नाम घोषित किए जात

सिने-पहेली # 4

सिने-पहेली # 4 (23 जनवरी 2012) रेडियो प्लेबैक इण्डिया के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार! दोस्तों, 'सिने-पहेली' की चौथी कड़ी लेकर मैं हाज़िर हूँ। दोस्तों, एक और नई सप्ताह की शुरुआत हो चुकी है और आज से हम और आप, सभी, फिर एक बार ज़िन्दगी की भागदौड़ में मसरूफ़ हो जायेंगे। किसी को पढ़ाई-लिखाई, तो किसी को दफ़्तर, और किसी-किसी को व्यापार-वाणिज्य आदि की फ़िक्र होती होगी। लेकिन हम सब में एक बात जो समान है, वह यह कि हम सभी को फ़ुरसत के कुछ पलों में मनोरंजन की चाहत होती है। और यह ज़रूरी भी तो है! इसीलिए 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' पूरे सप्ताह भर में आपके मनोरंजन के लिए लेकर आता है कई स्तंभ, जो केवल मनोरंजक ही नहीं, बल्कि ज्ञानवर्धक भी होते हैं। ऐसी ही एक ज्ञानचर्धक स्तंभ है 'सिने पहेली' जो आज़माता है आपके फ़िल्मी ज्ञान को। आप सभी से यह अनुरोध है कि इस प्रतियोगिता में पूरे उत्साह से भाग लें और अपने दोस्तों, रिश्तेदारों, सह-कर्मचारियों को भी इसमे भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें। चलिए, बातें तो बहुत हो गईं, अब शुरू किया जाये आज की 'सिने-पहेली'।

सिने-पहेली # 3

सिने-पहेली # 3 (16 जनवरी 2012) रेडियो प्लेबैक इण्डिया के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार! दोस्तों, 'सिने-पहेली' की तीसरी कड़ी लेकर मैं हाज़िर हूँ। दोस्तों, पिछली दो कड़ियों के जो रेस्पॉन्स हमें cine.paheli@yahoo.com के पते पर मिले हैं, उनसे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि आप इस नये स्तंभ को पसन्द कर रहे हैं। यूं तो सही जवाब कुछ ही प्रतिभागियों से मिले हैं, पर कुछ प्रतिभागी ऐसे भी हैं जिनके जवाब सही तो नही हैं पर उत्सुक्ता के साथ जिस तरह से आप इसके हिस्सेदार बन रहे हैं, यही एक सच्चे खिलाड़ी की पहचान है। टिप्पणी में ज़रूर बताइएगा कि यह स्तंभ आपको कैसा लग रहा है, और किस तरह के सुझाव आप देना चाहते हैं इसे और भी ज़्यादा मनोरंजक, ज्ञानवर्धक और आकर्षक बनाने के लिए। चलिए, अब तैयार हो जाइए अपने-अपने फ़िल्मी ज्ञान को आज़माने के लिए, अपने दिमाग़ पर ज़ोर डालने के लिए। आपको याद दिला दूँ कि इस स्तंभ में हर सप्ताह हम आपसे पाँच सवाल पूछते हैं, जिनका जवाब आपको हमें लिख भेजने होते हैं। हर सप्ताह पिछले सप्ताह के विजेताओं के नाम घोषित किए जाते हैं, और ५० अंकों के बाद 'मह

सिने पहेली # 2

सिने-पहेली # 2 (9 जनवरी 2012) रेडियो प्लेबैक इण्डिया के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार! दोस्तों, 'सिने-पहेली' की दूसरी कड़ी लेकर मैं हाज़िर हूँ। सबसे पहले मैं आप सभी का शुक्रिया अदा करता हूँ कि इस नए स्तंभ को आप सब नें सराहा, जिसका सबूत है आपके ईमेल जो हमें cine.paheli@yahoo.com के आइडी पर लिख भेजे हैं। तो चलिए, आज दूसरी बार के लिए तैयार हो जाइए अपने-अपने फ़िल्मी ज्ञान को आज़माने के लिए, अपने दिमाग़ पर ज़ोर डालने के लिए। आपको याद दिला दूँ कि इस स्तंभ में हर सप्ताह हम आपसे पाँच सवाल पूछने वाले हैं, जिनका जवाब आपको हमें लिख भेजने हैं। हर सप्ताह पिछले सप्ताह के विजेताओं के नाम घोषित किए जायेंगे, और ५० अंकों के बाद 'महा-विजेता' भी चुना जाएगा और उन्हें 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' की तरफ़ से पुरस्कृत भी किया जाएगा। प्रतियोगिता के नियम हम बाद में बतायेंगे, पहले आइए आपको बताएँ आज के पाँच सवाल जिन्हें हल करने है सिर्फ़ आपको ********************************************* सवाल-1: गोल्डन वॉयस गोल्डन वॉयस के लिए आज हमने चुना है एक विदाई गीत। इस गीत क

खुशियाँ ही खुशियाँ हो....जीवन में आपके यही दुआ है ओल्ड इस गोल्ड टीम की

प्रेम किशन और श्यामली की आवाज़ बन कर येसुदास और बनश्री गीत का अधिकांश हिस्सा गाते हैं जबकि हेमलता रामेश्वरी की आवाज़ बन कर अन्तिम अन्तरा गाती हैं, वह भी थोड़े उदास या डीसेन्ट अन्दाज़ में। आइए आज गायिका बनश्री सेनगुप्ता की थोड़ी बातें की जाए। आज के इस गीत के अलावा उन्होंने किसी हिन्दी फ़िल्म में गाया है या नहीं, इस बात की तो मैं पुष्टि नहीं कर पाया, पर बंगला संगीत जगत में उनका काफ़ी नाम है और बहुत से सुन्दर गीत उन्होंने गाए हैं।

प्यार ज़िन्दगी है....आईये आज की शाम समर्पित करें अपने अपने प्यार के नाम

फ़िल्म के प्रस्तुत गीत की बात करें तो यह गीत सिर्फ़ इस वजह से ही ख़ास बन जाता है कि इसमें लता और आशा, दोनों की आवाज़ें मौजूद हैं, और दोनों की अदायगी का कॉन्ट्रस्ट भी बड़ा ख़ूबसूरत लगता है। एक तरफ़ आशा किसी क्लब डान्सर का प्लेबैक कर रही है और पाश्चात्य शैली में "लाहल्ला लाहल्ला हो या अल्लाह" गाती हैं, जबकि लता की आवाज़ सज रही है राखी पर जो एक अच्छे घर की सीधी-सादी, साड़ी पहनने वाली भारतीय नारी का रूप है। कोई ऐसी लड़की अगर इस गीत में अपनी आवाज़ मिलाएगी तो जिस तरह का अंदाज़ होगा, बिल्कुल वैसा ही लता जी नें गाया है।

आओ झूमें गायें, मिलके धूम मचायें....क्योंकि दोस्तों जश्न है ये ज़िदगी

किसी स्कूली छात्र को अगर "गाँव" शीर्षक पर निबन्ध लिखने को कहा जाये तो वह जिन जिन बातों का ज़िक्र करेगा, जिस तरह से गाँव का चित्रण करेगा, वो सब कुछ इस गीत में दिखाई देता है, और जैसे एक आदर्श गाँव का चित्र उभरकर हमारे सामने आता है। फ़िल्म 'पराया धन' शुरु होती है इसी गीत से और गीत में ही फ़िल्म की नामावली को शामिल किया गया है।

सुनो ज़िंदगी गाती है...जाने कितने रंगों में डूबकर

इस भाव पर कई गीत बने हैं समय समय पर, कुछ के नाम गिनाते हैं - "ज़िन्दगी प्यार का गीत है, जिसे हर दिल को गाना पड़ेगा", "एक प्यार का नग़मा है, मौजों की रवानी है", "गीत है यह ज़िन्दगी, गुनगुनाते और गाते चले चलो", "ज़िन्दगी गीत है, अपने होठों पे इसको सजा लो", "ज़िन्दगी एक गीत है इसे होठों पे सजा ले", "जीवन को संगीत बना लो, एक जोगी का मीत बना लो", और भी न जाने कितने ऐसे गीत होंगे।

बड़ी बेटी संगीता गुप्ता की यादों में पिता संगीतकार मदन मोहन

संगीता गुप्ता  मुझसे मेरे पिता के बारे में कुछ लिखने को कहा गया था। हालाँकि वो मेरे ख़यालों में और मेरे दिल में हमेशा रहते हैं, मैं उस बीते हुए ज़माने को याद करते हुए यादों की उन गलियारों से आज आपको ले चलती हूँ....

क़दम के निशां बनाते चले...सचिन दा के सुरों में देव आनंद

यह सच है कि कई अन्य संगीतकारों नें भी देव आनन्द के साथ काम किया जैसे कि शंकर जयकिशन, सलिल चौधरी, मदन मोहन, कल्याणजी-आनन्दजी,राहुल देव बर्मन, बप्पी लाहिड़ी और राजेश रोशन, लेकिन सचिन दा के साथ जिन जिन फ़िल्मों में उन्होंने काम किया, उनके गीत कुछ अलग ही बने। आज न बर्मन दादा हमारे बीच हैं और अब देव साहब भी बहुत दूर निकल गए, पर इन दोनों नें साथ-साथ जो क़दमों के निशां छोड़ गए हैं, वो आनेवाली तमाम पीढ़ियों के लिए किसी पाठशाला से कम नहीं।

ये तेरा घर ये मेरा घर....आम आदमी की संकल्पनाओं को शब्द दिए जावेद अख्तर ने

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 779/2011/219 ज गजीत सिंह को समर्पित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'जहाँ तुम चले गए' में एक बार फिर से मैं, सुजॉय चटर्जी, आपका स्वागत करता हूँ। कल की कड़ी में हमनें आपको जगजीत और चित्रा सिंह के कुछ ऐल्बमों के बारे में बताया। उनके बाद जगजीत जी के कई एकल ऐल्बम आये जिनमें शामिल थे Hope, In Search, Insight, Mirage, Visions, कहकशाँ, Love Is Blind, चिराग, और सजदा। मिर्ज़ा ग़ालिब, फ़िराक़ गोरखपुरी, कतील शिफ़ई, शाहीद कबीर, अमीर मीनाई, कफ़ील आज़ेर, सुदर्शन फ़ाकिर, निदा फ़ाज़ली, ज़का सिद्दीक़ी, नाज़िर बकरी, फ़ैज़ रतलामी और राजेश रेड्डी जैसे शायरों के ग़ज़लों को उन्होंने अपनी आवाज़ दी। जगजीत जी के शुरुआती ग़ज़लें जहाँ हल्के-फुल्के और ख़ुशमिज़ाजी हुआ करते थे, बाद के सालों में उन्होंने संजीदे ग़ज़लें ज़्यादा गाई, शायद अपनी ज़िन्दगी के अनुभवों का यह असर था। ऐसे ऐल्बमों में शामिल थे Face To Face, आईना, Cry For Cry. जगजीत जी के ज़्यादातर ऐल्बमों के नाम अंग्रेज़ी होते रहे, और कईयों में उर्दू शब्दों का प्रयोग हुआ जैसे कि 'सजदा', 'सहर', 'मुन्तज़िर', 'मारासिम' और &

इश्क़ से गहरा कोई न दरिया....सुदर्शन फाकिर और जगजीत का मेल

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 777/2011/217 'ज हाँ तुम चले गए' - इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर जारी है जगजीत सिंह को श्रद्धांजली स्वरूप यह लघु शृंखला। कल हमारी बात आकर रुकी थी जगजीत जी के नामकरण पर। आइए आज उनके संगीत की कुछ बातें बताई जाएं। बचपन से ही जगजीत का संगीत से नाता रहा है। श्रीगंगानगर में उन्होंने पण्डित शगनलाल शर्मा से दो साल संगीत सीखा, और उसके बाद छह साल शास्त्रीय संगीत के तीन विधा - ख़याल, ठुमरी और ध्रुपद की शिक्षा ग्रहण की। इसमें उनके गुरु थे उस्ताद जमाल ख़ाँ जो सैनिआ घराने से ताल्लुख़ रखते थे। ख़ाँ साहब महदी हसन के दूर के रिश्तेदार भी थे। पंजाब यूनिवर्सिटी और कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी के वाइस चान्सलर स्व: प्रोफ़ सूरज भान नें जगजीत सिंह को संगीत की तरफ़ प्रोत्साहित किया। १९६१ में जगजीत बम्बई आए एक संगीतकार और गायक के रूप में क़िस्मत आज़माने। उस समय एक से एक बड़े संगीतकार और गायक फ़िल्म इंडस्ट्री पर राज कर रहे थे। ऐसे में किसी भी नए गायक को अपनी जगह बनाना आसान काम नहीं था। जगजीत सिंह को भी इन्तज़ार करना पड़ा। वो एक पेयिंग् गेस्ट बन कर रहा करते थे और शुरुआती दिनों में