स्वरगोष्ठी – 319 में आज
संगीतकार रोशन के गीतों में राग-दर्शन – 5 : राग खमाज का रंग
राग खमाज में उस्ताद उस्ताद निसार हुसैन खाँ से खयाल और मुहम्मद रफी से गीत सुनिए
‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर ‘स्वरगोष्ठी’ की जारी श्रृंखला “संगीतकार रोशन
के गीतों में राग-दर्शन” की पाँचवीं कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप
सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, इस श्रृंखला में
हम फिल्म जगत में 1948 से लेकर 1967 तक सक्रिय रहे संगीतकार रोशन के राग
आधारित गीत प्रस्तुत कर रहे हैं। रोशन ने भारतीय फिल्मों में हर प्रकार का
संगीत दिया है, किन्तु राग आधारित गीत और कव्वालियों को स्वरबद्ध करने में
उन्हें विशिष्टता प्राप्त थी। भारतीय फिल्मों में राग आधारित गीतों को
स्वरबद्ध करने में संगीतकार नौशाद और मदन मोहन के साथ रोशन का नाम भी
चर्चित है। इस श्रृंखला में हम आपको संगीतकार रोशन के स्वरबद्ध किये राग
आधारित गीतों में से कुछ गीतों को चुन कर सुनवा रहे हैं और इनके रागों पर
चर्चा भी कर रहे हैं। इस परिश्रमी संगीतकार का पूरा नाम रोशन लाल नागरथ था।
14 जुलाई 1917 को तत्कालीन पश्चिमी पंजाब के गुजरावालॉ शहर (अब पाकिस्तान)
में एक ठेकेदार के परिवार में जन्मे रोशन का रूझान बचपन से ही अपने पिता
के पेशे की और न होकर संगीत की ओर था। संगीत की ओर रूझान के कारण वह अक्सर
फिल्म देखने जाया करते थे। इसी दौरान उन्होंने एक फिल्म ‘पूरन भगत’ देखी।
इस फिल्म में पार्श्वगायक सहगल की आवाज में एक भजन उन्हें काफी पसन्द आया।
इस भजन से वह इतने ज्यादा प्रभावित हुए कि उन्होंने यह फिल्म कई बार देख
डाली। ग्यारह वर्ष की उम्र आते-आते उनका रूझान संगीत की ओर हो गया और वह
पण्डित मनोहर बर्वे से संगीत की शिक्षा लेने लगे। मनोहर बर्वे स्टेज के
कार्यक्रम को भी संचालित किया करते थे। उनके साथ रोशन ने देशभर में हो रहे
स्टेज कार्यक्रमों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। मंच पर जाकर मनोहर बर्वे
जब कहते कि “अब मैं आपके सामने देश का सबसे बडा गवैया पेश करने जा रहा हूँ”
तो रोशन मायूस हो जाते क्योंकि “गवैया” शब्द उन्हें पसन्द नहीं था। उन
दिनों तक रोशन यह तय नहीं कर पा रहे थे कि गायक बना जाये या फिर संगीतकार।
कुछ समय के बाद रोशन घर छोडकर लखनऊ चले गये और पण्डित विष्णु नारायण
भातखण्डे जी द्वारा स्थापित मॉरिस कॉलेज ऑफ हिन्दुस्तानी म्यूजिक (वर्तमान
में भातखण्डे संगीत विश्वविद्यालय) में प्रवेश ले लिया और कॉलेज के
प्रधानाचार्य डॉ. श्रीकृष्ण नारायण रातंजनकर के मार्गदर्शन में विधिवत
संगीत की शिक्षा लेने लगे। पाँच वर्ष तक संगीत की शिक्षा लेने के बाद वह
मैहर चले आये और उस्ताद अलाउदीन खान से संगीत की शिक्षा लेने लगे। एक दिन
अलाउदीन खान ने रोशन से पूछा “तुम दिन में कितने घण्टे रियाज करते हो। ”
रोशन ने गर्व के साथ कहा ‘दिन में दो घण्टे और शाम को दो घण्टे”, यह सुनकर
अलाउदीन बोले “यदि तुम पूरे दिन में आठ घण्टे रियाज नहीं कर सकते हो तो
अपना बोरिया बिस्तर उठाकर यहाँ से चले जाओ”। रोशन को यह बात चुभ गयी और
उन्होंने लगन के साथ रियाज करना शुरू कर दिया। शीघ्र ही उनकी मेहनत रंग आई
और उन्होंने सुरों के उतार चढ़ाव की बारीकियों को सीख लिया। इन सबके बीच
रोशन ने उस्ताद बुन्दु खान से सांरगी की शिक्षा भी ली। उन्होंने वर्ष 1940
में दिल्ली रेडियो केंद्र के संगीत विभाग में बतौर संगीतकार अपने कैरियर की
शुरूआत की। बाद में उन्होंने आकाशवाणी से प्रसारित कई कार्यक्रमों में
बतौर हाउस कम्पोजर भी काम किया। वर्ष 1948 में फिल्मी संगीतकार बनने का
सपना लेकर रोशन दिल्ली से मुम्बई आ गये। श्रृंखला की पाँचवीं कड़ी में आज
हमने 1962 में प्रदर्शित फिल्म ‘आरती’ का एक गीत चुना है, जिसे रोशन ने राग
खमाज के स्वरों में पिरोया है। यह गीत मुहम्मद रफी की आवाज़ में प्रस्तुत
है। इसके साथ ही इसी राग में निबद्ध एक खयाल सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायक
उस्ताद निसार हुसैन खाँ के स्वरों में प्रस्तुत कर रहे हैं।
मुहम्मद रफी |
छठे
दशक के अन्तिम वर्षों में रोशन के संगीत में उत्कृष्टता के साथ-साथ
लोकप्रियता का गुण भी आ चुका था। दशक के अन्त तक रोशन का संगीत वास्तव में
सफलता की ओर अग्रसर हो चला था। पिछले अंक में प्रस्तुत किया गया फिल्म
‘बाबर’ का गीत और फिल्म के अन्य गीत रोशन के संगीत की उत्कृष्टता के उदाहरण
थे। 1960 में बनी फिल्म ‘बरसात की रात’ का संगीत व्यावसायिक दृष्टि से
रोशन का सफलतम संगीत माना जाएगा। फिल्म ‘बरसात की रात’ में कव्वालियों की
धूम थी। इस फिल्म की कव्वाली –“ना तो कारवाँ की तलाश है...” और –“ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़...”
भारतीय फिल्म संगीत के इतिहास की सर्वश्रेष्ठ और लोकप्रिय कव्वालियों में
से एक है। इस ऐतिहासिक कव्वाली की रिकार्डिंग 29 घण्टे में पूरी हुई थी।
इसी फिल्म में रोशन ने राग गौड़ मल्हार के स्वरों की चाशनी में डूबे गीत –“गरजत बरसत सावन आयो री...”
को भी शामिल किया था। इस गीत की संगीत रचना की कहानी भी अत्यन्त रोचक है।
दरअसल यह गीत राग गौड़ मल्हार की एक पारम्परिक बन्दिश पर आधारित है, जिसके
बोल हैं –“गरजत बरसात भीजत आई लो...”। रोशन ने थोड़े शाब्दिक हेर-फेर
के साथ इस बन्दिश को इस्तेमाल किया था। मजे की बात यह है कि रोशन ने इस
बन्दिश और संगीत रचना का प्रयोग लगभग एक दशक पहले 1951 में प्रदर्शित फिल्म
‘मल्हार’ में कर चुके थे, किन्तु तब फिल्म न चलने के
कारण गीत भी अनसुना रह गया था। एक दशक बाद फिर गीतकार साहिर लुधियानवी
द्वारा थोड़े शब्दों के फेरबदल से फिल्म ‘बरसात की रात’ का यह गीत रोशन का
सदाबहार गीत बन गया। फिल्म ‘बरसात की रात’ के बाद के दौर में फिल्म संगीत
समीक्षकों की दृष्टि में रोशन गीतों की लोकप्रियता की ओर अधिक ध्यान देने
लगे थे। इस दौर के गीतों में लोकप्रियता के साथ-साथ माधुर्य भी बरकरार था।
राग आधारित मधुर गीतों और लोकप्रियता की कसौटी पर समान रूप से खरे उतरे
संगीत से सजी 1962 में फिल्म ‘आरती’ प्रदर्शित हुई था। इस फिल्म के गीतों
में रागों का मजबूत आधार था। फिल्म के गीतों में राग खमाज और पहाड़ी का
स्पर्श किया गया है। लता मंगेशकर की आवाज़ में राग पहाड़ी की छाया लिये गीत –“कभी तो मिलेगी, कहीं तो मिलेगी, बहारों की मंज़िल राही...” फिल्म का बेहद लोकप्रिय गीत है। फिल्म में आशा भोसले और मुहम्मद रफी की आवाज़ में एक कव्वाली –“वो तीर दिल पे चला...”
भी शामिल थी। राग खमाज के स्वरों का स्पर्श करते दो गीत मधुरता और
लोकप्रियता की कसौटी खरे उतरते हैं। लता मंगेशकर और मुहम्मद रफी के स्वरों
में युगलगीत -"बार बार तोहें क्या समझाएँ पायल की झंकार...” और मुहम्मद रफी की एकल आवाज़ में –“अब क्या मिसाल दूँ मैं तुम्हारे शबाब की...” में राग खमाज का मधुर स्पर्श था। आज हमने आपके लिए राग खमाज पर आधारित, मुहम्मद रफी का गाया और मजरूह सुल्तानपुरी का लिखा गीत –“अब क्या मिसाल दूँ मैं तुम्हारे शबाब की...” चुना है। अब आप रोशन की इस मनमोहक रचना का रसास्वादन कीजिए।
राग खमाज : “अब क्या मिसाल दूँ मैं तुम्हारे शबाब की...” : मुहम्मद रफी : फिल्म – आरती
उस्ताद निसार हुसैन खाँ (दाहिने) |
आज
का राग खमाज इसी नाम से प्रचलित खमाज थाट से सम्बन्धित माना जाता है। खमाज
थाट के स्वर होते हैं- सा, रे ग, म, प ध, नि॒(कोमल)। अर्थात इस थाट में
निषाद स्वर कोमल और शेष सभी स्वर शुद्ध होते हैं। इस थाट का आश्रय राग
‘खमाज’ कहलाता है। ‘खमाज’ राग में थाट के अनुकूल निषाद स्वर कोमल और शेष
सभी स्वर शुद्ध होते हैं। यह षाड़व-सम्पूर्ण जाति का राग है। अर्थात राग के
आरोह में छः स्वर और अवरोह में सात स्वर प्रयोग किये जाते हैं। राग खमाज के
आरोह में सा, ग, म, प, ध नि सां और अवरोह में सां, नि(कोमल), ध, प,
म, ग, रे, सा स्वरों का प्रयोग होता है। आरोह में ऋषभ स्वर नहीं लगता। राग
में दोनों निषाद का प्रयोग होता है। आरोह में शुद्ध निषाद और अवरोह में
कोमल निषाद लगाया जाता है। वादी स्वर गान्धार और संवादी स्वर निषाद होता
है। इस राग के गायन-वादन का समय रात्रि का दूसरा प्रहर होता है।
राग
खमाज का उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए हमने रामपुर सहसवान घराने के प्रमुख
स्तम्भ उस्ताद निसार हुसेन खाँ (1909-1993) द्वारा प्रस्तुत एक दुर्लभ
बन्दिश का चुनाव किया है। राग खमाज की यह अनमोल रचना 1929 में रिकार्ड की
गई थी। उस्ताद निसार हुसेन खाँ को अपने पिता और गुरु उस्ताद फिदा हुसेन खाँ
से संगीत विरासत में प्राप्त हुआ था। बहुत छोटी आयु में उन्हें बड़ौदा के
महाराज सयाजी राव गायकवाड़ के दरबारी संगीतज्ञ होने का गौरव प्राप्त हुआ था।
आगे चलकर खाँ साहब ‘आकाशवाणी’ से भी जुड़े। 1977 में आई.टी.सी. संगीत
रिसर्च अकादमी, कोलकाता में प्रधान गुरु नियुक्त किया गया। यहाँ रह कर
उन्होने उस्ताद राशिद खाँ सहित अनेक योग्य शिष्यो को तैयार किया। भारत
सरकार द्वारा 1970 में उन्हें ‘पद्मभूषण’ सम्मान से विभूषित किया गया। इसके
अलावा खाँ साहब को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, तानसेन सम्मान सहित
गन्धर्व महाविद्यालय से डाक्टरेट की उपाधि से भी नवाजा गाय था। आइए गायकी
के इस शिखर-पुरुष की आवाज़ में सुनते हैं, राग खमाज की यह बन्दिश। आप इस
बन्दिश का रसास्वादन कीजिए और हमें आज के इस अंक को यहीं विराम देने की
अनुमति दीजिए।
राग खमाज : ‘कोयलिया कूक सुनावे...’ : उस्ताद निसार हुसेन खाँ
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 319वें अंक की पहेली में आज हम आपको वर्ष 1962 में प्रदशित एक पुरानी
फिल्म के एक राग आधारित गीत का अंश सुनवा रहे है। इसे सुन कर आपको तीन में
से कम से कम दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। 320वें अंक की पहेली के
सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष के
दूसरे सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – गीत के इस अंश में आपको किस राग का आधार परिलक्षित हो रहा है?
2 – रचना के इस अंश में किस ताल का प्रयोग किया गया है?
3 – यह किस मशहूर पार्श्वगायिका की आवाज़ है?
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार 3 जून, 2017 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर,
प्रदेश और देश के नाम के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 321वें अंक में
प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के
बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना
चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे
दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
की 317वीं कड़ी की पहेली में हमने आपको 1960 में प्रदर्शित फिल्म ‘बाबर’ से
एक राग आधारित गीत का एक अंश सुनवा कर आपसे तीन में से दो प्रश्नों का
उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है, राग – कल्याण अथवा यमन, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है, ताल – कहरवा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है, स्वर – सुधा मल्होत्रा।
इस अंक की पहेली में हमारे चार नियमित प्रतिभागियों ने दो-दो अंक अपने खाते में जोड़ लिये हैं। वोरहीज़, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, जबलपुर से क्षिति तिवारी, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी इस सप्ताह के विजेता हैं। उपरोक्त सभी चार प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रों,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी
श्रृंखला ‘संगीतकार रोशन के गीतों में राग-दर्शन’ के इस पाँचवें अंक में
हमने आपके लिए राग खमाज पर आधारित फिल्म ‘आरती’ से रोशन के एक गीत और इस
राग की शास्त्रीय संरचना पर चर्चा की और इस राग का एक परम्परागत उदाहरण
उस्ताद निसार हुसैन खाँ के स्वरों में प्रस्तुत किया। रोशन के संगीत पर
चर्चा के लिए हमने फिल्म संगीत के सुप्रसिद्ध इतिहासकार सुजॉय चटर्जी के
आलेख और लेखक पंकज राग की पुस्तक ‘धुनों की यात्रा’ का सहयोग लिया है। हम
इन दोनों विद्वानों का आभार प्रकट करते हैं। आगामी अंक में हम भारतीय संगीत
जगत के सुविख्यात संगीतकार रोशन के एक अन्य राग आधारित गीत पर चर्चा
करेंगे। हमारी आगामी श्रृंखलाओं के विषय, राग, रचना और कलाकार के बारे में
यदि आपकी कोई फरमाइश हो तो हमें swargoshthi@gmail.com पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 8 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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