Skip to main content

राग कल्याण : SWARGOSHTHI – 318 : RAG KALYAN




स्वरगोष्ठी – 318 में आज

संगीतकार रोशन के गीतों में राग-दर्शन – 4 : राग कल्याण में गजल

राग कल्याण अथवा यमन में उस्ताद राशिद खाँ से खयाल और सुधा मल्होत्रा से गजल सुनिए




‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर ‘स्वरगोष्ठी’ की जारी श्रृंखला “संगीतकार रोशन के गीतों में राग-दर्शन” की चौथी कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, इस श्रृंखला में हम फिल्म जगत में 1948 से लेकर 1967 तक सक्रिय रहे संगीतकार रोशन के राग आधारित गीत प्रस्तुत कर रहे हैं। रोशन ने भारतीय फिल्मों में हर प्रकार का संगीत दिया है, किन्तु राग आधारित गीत और कव्वालियों को स्वरबद्ध करने में उन्हें विशिष्टता प्राप्त थी। भारतीय फिल्मों में राग आधारित गीतों को स्वरबद्ध करने में संगीतकार नौशाद और मदन मोहन के साथ रोशन का नाम भी चर्चित है। इस श्रृंखला में हम आपको संगीतकार रोशन के स्वरबद्ध किये राग आधारित गीतों में से कुछ गीतों को चुन कर सुनवा रहे हैं और इनके रागों पर चर्चा भी कर रहे हैं। इस परिश्रमी संगीतकार का पूरा नाम रोशन लाल नागरथ था। 14 जुलाई 1917 को तत्कालीन पश्चिमी पंजाब के गुजरावालॉ शहर (अब पाकिस्तान) में एक ठेकेदार के परिवार में जन्मे रोशन का रूझान बचपन से ही अपने पिता के पेशे की और न होकर संगीत की ओर था। संगीत की ओर रूझान के कारण वह अक्सर फिल्म देखने जाया करते थे। इसी दौरान उन्होंने एक फिल्म ‘पूरन भगत’ देखी। इस फिल्म में पार्श्वगायक सहगल की आवाज में एक भजन उन्हें काफी पसन्द आया। इस भजन से वह इतने ज्यादा प्रभावित हुए कि उन्होंने यह फिल्म कई बार देख डाली। ग्यारह वर्ष की उम्र आते-आते उनका रूझान संगीत की ओर हो गया और वह पण्डित मनोहर बर्वे से संगीत की शिक्षा लेने लगे। मनोहर बर्वे स्टेज के कार्यक्रम को भी संचालित किया करते थे। उनके साथ रोशन ने देशभर में हो रहे स्टेज कार्यक्रमों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। मंच पर जाकर मनोहर बर्वे जब कहते कि “अब मैं आपके सामने देश का सबसे बडा गवैया पेश करने जा रहा हूँ” तो रोशन मायूस हो जाते क्योंकि “गवैया” शब्द उन्हें पसन्द नहीं था। उन दिनों तक रोशन यह तय नहीं कर पा रहे थे कि गायक बना जाये या फिर संगीतकार। कुछ समय के बाद रोशन घर छोडकर लखनऊ चले गये और पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी द्वारा स्थापित मॉरिस कॉलेज ऑफ हिन्दुस्तानी म्यूजिक (वर्तमान में भातखण्डे संगीत विश्वविद्यालय) में प्रवेश ले लिया और कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ. श्रीकृष्ण नारायण रातंजनकर के मार्गदर्शन में विधिवत संगीत की शिक्षा लेने लगे। पाँच वर्ष तक संगीत की शिक्षा लेने के बाद वह मैहर चले आये और उस्ताद अलाउदीन खान से संगीत की शिक्षा लेने लगे। एक दिन अलाउदीन खान ने रोशन से पूछा “तुम दिन में कितने घण्टे रियाज करते हो। ” रोशन ने गर्व के साथ कहा ‘दिन में दो घण्टे और शाम को दो घण्टे”, यह सुनकर अलाउदीन बोले “यदि तुम पूरे दिन में आठ घण्टे रियाज नहीं कर सकते हो तो अपना बोरिया बिस्तर उठाकर यहाँ से चले जाओ”। रोशन को यह बात चुभ गयी और उन्होंने लगन के साथ रियाज करना शुरू कर दिया। शीघ्र ही उनकी मेहनत रंग आई और उन्होंने सुरों के उतार चढ़ाव की बारीकियों को सीख लिया। इन सबके बीच रोशन ने उस्ताद बुन्दु खान से सांरगी की शिक्षा भी ली। उन्होंने वर्ष 1940 में दिल्ली रेडियो केंद्र के संगीत विभाग में बतौर संगीतकार अपने कैरियर की शुरूआत की। बाद में उन्होंने आकाशवाणी से प्रसारित कई कार्यक्रमों में बतौर हाउस कम्पोजर भी काम किया। वर्ष 1948 में फिल्मी संगीतकार बनने का सपना लेकर रोशन दिल्ली से मुम्बई आ गये। श्रृंखला की चौथी कड़ी में आज हमने 1960 में प्रदर्शित फिल्म ‘बाबर’ की एक गजल चुना है, जिसे रोशन ने राग कल्याण अथवा यमन के स्वरों में पिरोया है। यह गीत सुधा मल्होत्रा की आवाज़ में प्रस्तुत है। इसके साथ ही इसी राग में निबद्ध एक खयाल सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायक उस्ताद राशिद खाँ के स्वरों में प्रस्तुत कर रहे हैं।



सुधा मल्होत्रा
ता मंगेशकर, अनेक संगीतकारों के साथ-साथ रोशन की भी प्रिय गायिका रही हैं। इसी प्रकार रोशन भी लता मंगेशकर के प्रिय संगीतकार थे। इस श्रृंखला की शुरुआती तीन कड़ियों में हमने आपको छठे दशक के आरम्भिक दौर की रोशन के संगीत निर्देशन में लता मंगेशकर के तीन गीत लगातार सुनवाए हैं। लता मंगेशकर की पारखी संगीत दृष्टि ने बहुत पहले ही रोशन की प्रतिभा को पहचान लिया था। रोशन को लता मंगेशकर का साथ हमेशा मिलता रहा। रोशन की शुरुआती दौर की कई फिल्में व्यावसायिक दृष्टि से असफल हो जाने के बावजूद जब लता मंगेशकर ने स्वयं अपनी निर्माण संस्था की फिल्म ‘भैरवी’ की घोषणा की तो उस फिल्म के संगीत निर्देशक रोशन ही थे। रोशन के लिए यह एक ऐसा सम्मान था, जिसको पाने के लिए उस समय के कई सफल संगीतकार लालायित थे। लता मंगेशकर द्वारा संगीतकारों के एक बड़े समूह में से किसे चुना जाएगा, इस अटकल का निदान करते हुए रोशन का चुना जाना वास्तव में यह सिद्ध करता है कि उनको रोशन की संगीत प्रतिभा पर कितना भरोसा था। 50 के दशक में रोशन ने लता मंगेशकर के स्वर में अनेक लोकप्रिय गीत स्वरबद्ध किये। इस दशक में रोशन ने पाश्चात्य संगीत, लोक संगीत और राग आधारित गीतों के साथ-साथ कव्वाली स्वरबद्ध करनी भी शुरू कर दी थी। आगे चल कर उन्हें कव्वालियों का विशेषज्ञ माना गया था। 1958 में प्रदर्शित फिल्म ‘अजी बस शुक्रिया’ में लता मंगेशकर के गाये गीतों के माध्यम से रोशन ने रचनात्मकता के साथ-साथ लोकप्रियता के शिखर को स्पर्श कर लिया था। इस फिल्म में रोशन का स्वरबद्ध किया गीत –“सारी सारी रात तेरी याद सताए...” लोकप्रियता के मानक स्थापित करता है। दशक के अन्त तक आते-आते सफलता रोशन के कदम चूमने लगी थी। 1960 में प्रदर्शित फिल्म ‘बाबर’ में एक से बढ़ कर एक राग आधारित गीत शामिल थे। आज के अंक में हमने इसी फिल्म का एक गीत चुना है। फिल्म ‘बाबर’ में ही रोशन ने मोहम्मद रफी, मन्ना डे, सुधा मल्होत्रा, आशा भोसले और साथियों की आवाज़ में एक कव्वाली –“हसीनों के जलवे परेशान रहते...” स्वरबद्ध कर अपनी क्षमता का परिचय भी दिया था। इसी फिल्म में राग शिवरंजनी पर आधारित मोहम्मद रफी की आवाज़ में गीत –“तुम एक बार मुहब्बत का इम्तिहान तो लो...” अपनी सरल धुन के कारण खूब लोकप्रिय हुआ था। फिल्म ‘बाबर’ में ही गायिका सुधा मलहोत्रा के स्वर में राग खमाज पर आधारित गीत –“पयाम-ए-इश्क़ मुहब्बत हमें पसन्द नहीं...” और राग यमन का स्पर्श करते गीत –“सलाम-ए-हसरत कबूल कर लो...” शामिल था। सुधा मल्होत्रा ने यह दोनों गीत अत्यन्त भावपूर्ण ढंग से गाया है। इसी फिल्म में रोशन का साथ गीतकार साहिर लुधियानवी से हुआ थ। आगे चल कर इस जोड़ी ने अनेक लोकप्रिय गीतों को जन्म दिया था। अब आप साहिर लुधियानवी का लिखा, राग यमन के स्वरो को आधार बना कर रोशन का स्वरबद्ध किया और सुधा मल्होत्रा का गाया फिल्म ‘बाबर’ का गीत सुनिए।

राग कल्याण अथवा यमन : “सलाम-ए-हसरत कबूल कर लो...” : सुधा मल्होत्रा : फिल्म – बाबर



उस्ताद राशिद खाँ
राग कल्याण अथवा यमन, कल्याण थाट का ही आश्रय राग है। यह सम्पूर्ण-सम्पूर्ण जाति का राग है, अर्थात इसके आरोह और अवरोह में सभी सात स्वर प्रयोग होते हैं। राग में मध्यम स्वर तीव्र और शेष सभी स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। राग कल्याण अथवा यमन का वादी स्वर गान्धार और संवादी स्वर निषाद होता है। इस राग के गायन-वादन का उपयुक्त समय गोधूलि बेला, अर्थात रात्रि के पहले प्रहर का पूर्वार्द्ध काल होता है। इस राग का प्राचीन नाम कल्याण ही मिलता है। मुगल काल में राग का नाम यमन प्रचलित हुआ। वर्तमान में इसका दोनों नाम, कल्याण और यमन, प्रचलित है। यह दोनों नाम एक ही राग के सूचक हैं, किन्तु जब हम ‘यमन कल्याण’ कहते हैं तो यह एक अन्य राग का सूचक हो जाता है। राग यमन कल्याण, राग कल्याण अथवा यमन से भिन्न है। इसमें दोनों मध्यम का प्रयोग होता है, जबकि यमन में केवल तीव्र मध्यम का प्रयोग होता है। राग कल्याण अथवा यमन के चलन में अधिकतर मन्द्र सप्तक के निषाद से आरम्भ होता है और जब तीव्र मध्यम से तार सप्तक की ओर बढ़ते हैं तब पंचम स्वर को छोड़ देते हैं। राग कल्याण के कुछ प्रचलित प्रकार हैं; पूरिया कल्याण, शुद्ध कल्याण, जैत कल्याण आदि। राग कल्याण गंभीर प्रकृति का राग है। इसमे ध्रुपद, खयाल तराना तथा वाद्य संगीत पर मसीतखानी और रजाखानी गतें प्रस्तुत की जाती हैं। राग की यथार्थ प्रकृति और स्वरूप का उदाहरण देने के लिए अब हम आपको इस राग की एक श्रृंगारपरक् बन्दिश प्रस्तुत कर रहे हैं। तीनताल में निबद्ध इस रचना के विश्वविख्यात गायक उस्ताद राशिद खाँ हैं। आप यह बन्दिश सुनिए और हमें आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।

राग कल्याण अथवा यमन : ‘ऐसो सुगढ़ सुगढ़वा बालमा...’ : उस्ताद राशिद खान




संगीत पहेली

‘स्वरगोष्ठी’ के 318वें अंक की पहेली में आज हम आपको संगीतकार रोशन द्वारा स्वरबद्ध सातवें दशक के आरम्भिक दौर की एक फिल्म के एक राग आधारित गीत का अंश सुनवा रहे है। इसे सुन कर आपको तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। 320वें अंक की पहेली के सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष के दूसरे सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा।





1 – गीत में किस राग का आधार है? हमें राग का नाम लिख भेजिए।

2 – रचना में किस ताल का प्रयोग किया गया है? ताल का नाम लिखिए।

3 – यह किस पार्श्वगायक की आवाज़ है?

आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार 27 मई, 2017 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर, प्रदेश और देश के नाम के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 320वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।


पिछली पहेली के विजेता

‘‘स्वरगोष्ठी’ की 316वीं कड़ी की पहेली में हमने आपको 1952 में प्रदर्शित फिल्म ‘नौबहार’ के एक राग आधारित गीत का एक अंश प्रस्तुत कर आपसे तीन में से दो प्रश्नों का उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है, राग – भीमपलासी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है, ताल – कहरवा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है, स्वर – लता मंगेशकर

इस अंक की पहेली में हमारे नियमित प्रतिभागी, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, जबलपुर से क्षिति तिवारी और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी ने प्रश्नों के सही उत्तर दिए हैं और इस सप्ताह के विजेता बने हैं। उपरोक्त सभी चार प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।


अपनी बात

मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी श्रृंखला ‘संगीतकार रोशन के गीतों में राग-दर्शन’ के इस अंक में हमने आपके लिए राग कल्याण अथवा यमन पर आधारित रोशन के एक गीत और राग की शास्त्रीय संरचना पर चर्चा की और इस राग का एक उदाहरण भी प्रस्तुत किया। रोशन के संगीत पर चर्चा के लिए हमने फिल्म संगीत के सुप्रसिद्ध इतिहासकार सुजॉय चटर्जी के आलेख और लेखक पंकज राग की पुस्तक ‘धुनों की यात्रा’ का सहयोग लिया है। हम इन दोनों विद्वानों का आभार प्रकट करते हैं। आगामी अंक में हम भारतीय संगीत जगत के सुविख्यात संगीतकार रोशन के एक अन्य राग आधारित गीत पर चर्चा करेंगे। हमारी आगामी श्रृंखलाओं के विषय, राग, रचना और कलाकार के बारे में यदि आपकी कोई फरमाइश हो तो हमें अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 8 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।


प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र  


रेडियो प्लेबैक इण्डिया 

Comments

indu puri said…
sun rhi hun Roshan ji ki rachnaao ko. 'baabar' ke dono geet mujhe pasand hai. raag raagini ka pta nhi. pr..........geet ki mithaas bta deti hai ki yh shaastriy sangeet pr aadharit hai.
:)

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट