स्वरगोष्ठी – 317 में आज
संगीतकार रोशन के गीतों में राग-दर्शन – 3 : राग भीमपलासी में मीरा भजन
राग भीमपलासी में विदुषी गंगूबाई हंगल से खयाल और लता मंगेशकर से भजन सुनिए
‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर ‘स्वरगोष्ठी’ की जारी श्रृंखला “संगीतकार रोशन
के गीतों में राग-दर्शन” की तीसरी कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब
संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, इस श्रृंखला में हम
फिल्म जगत में 1948 से लेकर 1967 तक सक्रिय रहे संगीतकार रोशन के राग
आधारित गीत प्रस्तुत कर रहे हैं। रोशन ने भारतीय फिल्मों में हर प्रकार का
संगीत दिया है, किन्तु राग आधारित गीत और कव्वालियों को स्वरबद्ध करने में
उन्हें विशिष्टता प्राप्त थी। भारतीय फिल्मों में राग आधारित गीतों को
स्वरबद्ध करने में संगीतकार नौशाद और मदन मोहन के साथ रोशन का नाम भी
चर्चित है। इस श्रृंखला में हम आपको संगीतकार रोशन के स्वरबद्ध किये राग
आधारित गीतों में से कुछ गीतों को चुन कर सुनवा रहे हैं और इनके रागों पर
चर्चा भी कर रहे हैं। इस परिश्रमी संगीतकार का पूरा नाम रोशन लाल नागरथ था।
14 जुलाई 1917 को तत्कालीन पश्चिमी पंजाब के गुजरावालॉ शहर (अब पाकिस्तान)
में एक ठेकेदार के परिवार में जन्मे रोशन का रूझान बचपन से ही अपने पिता
के पेशे की और न होकर संगीत की ओर था। संगीत की ओर रूझान के कारण वह अक्सर
फिल्म देखने जाया करते थे। इसी दौरान उन्होंने एक फिल्म ‘पूरन भगत’ देखी।
इस फिल्म में पार्श्वगायक सहगल की आवाज में एक भजन उन्हें काफी पसन्द आया।
इस भजन से वह इतने ज्यादा प्रभावित हुए कि उन्होंने यह फिल्म कई बार देख
डाली। ग्यारह वर्ष की उम्र आते-आते उनका रूझान संगीत की ओर हो गया और वह
पण्डित मनोहर बर्वे से संगीत की शिक्षा लेने लगे। मनोहर बर्वे स्टेज के
कार्यक्रम को भी संचालित किया करते थे। उनके साथ रोशन ने देशभर में हो रहे
स्टेज कार्यक्रमों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। मंच पर जाकर मनोहर बर्वे
जब कहते कि “अब मैं आपके सामने देश का सबसे बडा गवैया पेश करने जा रहा हूँ”
तो रोशन मायूस हो जाते क्योंकि “गवैया” शब्द उन्हें पसन्द नहीं था। उन
दिनों तक रोशन यह तय नहीं कर पा रहे थे कि गायक बना जाये या फिर संगीतकार।
कुछ समय के बाद रोशन घर छोडकर लखनऊ चले गये और पण्डित विष्णु नारायण
भातखण्डे जी द्वारा स्थापित मॉरिस कॉलेज ऑफ हिन्दुस्तानी म्यूजिक (वर्तमान
में भातखण्डे संगीत विश्वविद्यालय) में प्रवेश ले लिया और कॉलेज के
प्रधानाचार्य डॉ. श्रीकृष्ण नारायण रातंजनकर के मार्गदर्शन में विधिवत
संगीत की शिक्षा लेने लगे। पाँच वर्ष तक संगीत की शिक्षा लेने के बाद वह
मैहर चले आये और उस्ताद अलाउदीन खान से संगीत की शिक्षा लेने लगे। एक दिन
अलाउदीन खान ने रोशन से पूछा “तुम दिन में कितने घण्टे रियाज करते हो। ”
रोशन ने गर्व के साथ कहा ‘दिन में दो घण्टे और शाम को दो घण्टे”, यह सुनकर
अलाउदीन बोले “यदि तुम पूरे दिन में आठ घण्टे रियाज नहीं कर सकते हो तो
अपना बोरिया बिस्तर उठाकर यहाँ से चले जाओ”। रोशन को यह बात चुभ गयी और
उन्होंने लगन के साथ रियाज करना शुरू कर दिया। शीघ्र ही उनकी मेहनत रंग आई
और उन्होंने सुरों के उतार चढ़ाव की बारीकियों को सीख लिया। इन सबके बीच
रोशन ने उस्ताद बुन्दु खान से सांरगी की शिक्षा भी ली। उन्होंने वर्ष 1940
में दिल्ली रेडियो केंद्र के संगीत विभाग में बतौर संगीतकार अपने कैरियर की
शुरूआत की। बाद में उन्होंने आकाशवाणी से प्रसारित कई कार्यक्रमों में
बतौर हाउस कम्पोजर भी काम किया। वर्ष 1948 में फिल्मी संगीतकार बनने का
सपना लेकर रोशन दिल्ली से मुम्बई आ गये। श्रृंखला की तीसरी कड़ी में आज हमने
1952 में प्रदर्शित फिल्म ‘नौबहार’ का एक मीरा भजन चुना है, जिसे रोशन ने
राग भीमपलासी के स्वरों में पिरोया है। यह गीत लता मंगेशकर की आवाज़ में
प्रस्तुत है। इसके साथ ही इसी राग में निबद्ध एक खयाल सुप्रसिद्ध शास्त्रीय
गायिका विदुषी गंगूबाई हंगल के स्वरों में प्रस्तुत कर रहे हैं।
लता मंगेशकर |
वर्ष
1952 में रोशन की पाँच फिल्में प्रदर्शित हुई थी। फिल्म ‘अनहोनी’ ख्वाजा
अहमद अब्बास की फिल्म थी। इस वर्ष की दूसरी फिल्म ‘संस्कार’ थी। इस फिल्म
में भी तलत महमूद के गाये गीत थे। फिल्म के गीतकार शैलेन्द्र थे, जिन्होने
एक से बढ़ कर एक गीतों की रचना की थी। इन दोनों फिल्मों की चर्चा हम पिछले
अंक में कर चुके हैं। इस वर्ष की तीन अन्य फिल्में थी, ‘शीशम’, ‘रागरंग’ और
‘नौबहार’। फिल्म ‘शीशम’ के गीतों में भी भरपूर रचनात्मकता थी। फिल्म में
मुकेश के स्वरों में दो दर्द भरे गीत थे; -“सताएगा किसे तू आसमाँ जब हम नहीं होगे...” और –“एक झूठी सी तसल्ली वो मुझे दे के चले...”। रोशन लता मंगेशकर के सर्वप्रिय संगीतकार थे। फिल्म ‘शीशम’ में लता मंगेशकर की आवाज़ में दो एकल गीत; -“बजे बाँसुरी चले साँवरी...” और –“मुस्कुराहट तेरे होंठों की मेरा श्रृंगार है...” बेहद आकर्षक थे। इसी के साथ मुकेश और लता मंगेशकर की युगल आवाज़ में एक उल्लासभरा गीत; -“सपनों में आना छेड़ छेड़ जाना...”
भी फिल्म में था। रोशन के संगीत निर्देशन में निर्मित और 1952 में ही
प्रदर्शित चौथी फिल्म थी, ‘रागरंग’। इस फिल्म का निर्माण अभिनेत्री गीता
बाली और उनकी बहन ने किया था। फिल्म में रोशन ने राग यमन की एक पारम्परिक
बन्दिश, -“ए री आली पिया बिन...” लता मंगेशकर से गवाया था। फिल्म में लता मंगेशकर की आवाज़ में अन्य गीत, -“किसकी नज़र का मस्त इशारा है ज़िंदगी...” और त्रिलोक कपूर के साथ गाया गीत, -“करते हैं इशारे फ़लक में चाँद तारे...”
भी रोशन की प्रतिभा के परिचायक थे। अशोक कुमार और नलिनी जयवन्त अभिनीत
फिल्म ‘नौबहार’ इस वर्ष की पाँचवीं फिल्म थी, जिसमें रोशन का उच्चकोटि का
संगीत था आज के अंक के लिए हमने इसी फिल्म का एक गीत चुना है। फिल्म का
कथानक एक अमीर, किन्तु नेत्रहीन युवक (अशोक कुमार) और एक गरीब मालिन (नलिनी
जयवन्त) की प्रेमकथा पर केन्द्रित है। फिल्म का जो गीत हमने चुना है, वह
राग भीमपलासी पर आधारित है। दरअसल यह गीत मीरा का एक भक्तिपद है, जिसके बोल
हैं; -“ए री मैं तो प्रेम दीवानी मेरा दर्द न जाने कोय...”। फिल्म
के प्रसंग के अनुसार गीतकार शैलेंद्र ने इस भक्तिपद के अन्तरों में
परिवर्तन किये हैं। यह गीत लता मंगेशकर की आवाज़ में है। लता मंगेशकर के
अलावा फिल्म में तलत महमूद और राजकुमारी की आवाज़ में कई मनभावन गीत हैं।
1967 में लता मंगेशकर ने –“ए री मैं तो प्रेम दीवानी...” गीत को
अपने दस सर्वश्रेष्ठ गीतों में चुना था। यह एक सदाबहार गीत सिद्ध हुआ। इस
गीत के लिए राग भीमपलासी के स्वर इतने सटीक सिद्ध हुए कि वर्षों बाद 1979
में जब गीतकार गुलजार ने अपनी फिल्म ‘मीरा’ के संगीत निर्देशन का दायित्व
पण्डित रविशंकर को दिया था और इसी मीरापद का चुनाव अपनी फिल्म के लिए भी
किया था। पण्डित रविशंकर ने इस पद को राग तोड़ी में बाँधा था और वाणी जयराम
से गवाया था। गीत के लिए स्वर चुनते समय पण्डित जी की ही टिप्पणी थी –“रोशन ने इस पद को राग भीमपलासी का ऐसा आवरण दे दिया है कि वह धुन दिमाग से निकलती ही नहीं”। बहरहाल आप 1952 की फिल्म ‘नौबहार’ से लता मंगेशकर की आवाज़ में गीतकार शैलेन्द्र द्वारा संशोधित भजन –“ए री मैं तो प्रेम दीवानी...” सुनिए और रोशन के अविस्मरणीय संगीत की सराहना कीजिए।
राग भीमपलासी : “ए री मैं तो प्रेम दीवानी...” : लता मंगेशकर : फिल्म – नौबहार
गंगूबाई हंगल |
राग
‘भीमपलासी’ भारतीय संगीत का एक ऐसा राग है, जिसमें भक्ति और श्रृंगार रस
की रचनाएँ खिल उठती है। यह औड़व-सम्पूर्ण जाति का राग है, अर्थात आरोह में
पाँच स्वर- सा, ग(कोमल), म, प, नि(कोमल), सां और अवरोह में सात स्वर- सां नि(कोमल), ध, प, म ग(कोमल),
रे, सा प्रयोग किए जाते हैं। इस राग में गान्धर और निषाद कोमल और शेष सभी
स्वर शुद्ध होते हैं। यह काफी थाट का राग है और इसका वादी और संवादी स्वर
मध्यम और तार सप्तक का षडज होता है। इस राग में चूँकि वादी स्वर मध्यम और
संवादी स्वर षडज होता है, इस दृष्टि से इसे उत्तरांग प्रधान राग होना चाहिए
और दिन के उत्तर अंग में अर्थात रात्रि 12 बजे से लेकर दिन के 12 बजे के
बीच गाया-बजाया जाना चाहिए, परन्तु व्यवहार में ऐसा होता नहीं। अपवाद रूप
में यह पूर्वांग प्रधान राग मान लिया जाता है और दिन के पूर्व अंग में ही
गाया-बजाया जाता है। राग ‘भीमपलासी’ के गायन-वादन का समय दिन का चौथा प्रहर
होता है।
आइए,
अब हम आपको राग भीमपलासी की ही एक आकर्षक बन्दिश सुनवाते हैं। यह किराना
घराने की गायकी में सिद्ध शीर्षस्थ विदुषी गंगूबाई हंगल की एक रिकार्डिंग
है। 5 मार्च, 1913 को धारवाड़, कर्नाटक में उनका जन्म हुआ था। बाल्यावस्था
में उन्हें अपनी माँ से दक्षिण भारतीय संगीत पद्यति की शिक्षा मिली। 1928
में उनका परिवार हुबली स्थानान्तरित हो गया। जाने-माने संगीतविद् सवाई
गन्धर्व से संगीत में दक्षता प्राप्त करने पूर्व किन्नरी वीणा वादक कृष्ण
आचार्य और दत्तोपन्त देसाई से संगीत की शिक्षा ग्रहण की। पण्डित भीमसेन
जोशी इनके गुरूभाई थे। गंगूबाई हंगल ने संगीत को आत्मसात करने के लिए कठिन
साधना की थी। भारत के उच्च नागरिक सम्मान ‘पद्मभूषण’ से 1971 में और
‘पद्मविभूषण’ से 2002 में अलंकृत किया गया था। 21 जुलाई, 2009 को इस महान
गायिका का हुबली में निधन हुआ था। अब आप विदुषी गंगूबाई हंगल की आवाज़ में
राग भीमपलासी की यह खयाल रचना सुनिए। इस प्रस्तुति में उनके गायन में उनकी
सुपुत्री कृष्णा हंगल ने सहयोग किया है। आप राग भीमपलासी का रसास्वादन
कीजिए और मुझे इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
राग भीमपलासी : ‘गरवा हरवा डारो री...’ : विदुषी गंगूबाई हंगल : तीनताल
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 317वें अंक की पहेली में आज हम आपको वर्ष 1960 में प्रदशित एक पुरानी
फिल्म के एक राग आधारित गीत का अंश सुनवा रहे है। इसे सुन कर आपको तीन में
से कम से कम दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। 320वें अंक की पहेली के
सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष के
दूसरे सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – गीत के इस अंश में आपको किस राग का आधार परिलक्षित हो रहा है?
2 – रचना के इस अंश में किस ताल का प्रयोग किया गया है?
3 – यह किस पार्श्वगायिका की आवाज़ है?
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार 20 मई, 2017 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर,
प्रदेश और देश के नाम के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 319वें अंक में
प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के
बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना
चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे
दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘‘स्वरगोष्ठी’
की 315वीं कड़ी की पहेली में हमने आपको 1952 में प्रदर्शित फिल्म ‘संस्कार’
से एक राग आधारित गीत का एक अंश सुनवा कर आपसे तीन में से दो प्रश्नों का
उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है, राग – भैरव, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है, ताल – दादरा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है, स्वर – लता मंगेशकर।
इस अंक की पहेली में हमारे सभी नियमित प्रतिभागियों ने दो-दो अंक अपने खाते में जोड़ लिये हैं। चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, वोरहीज़, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, जबलपुर से क्षिति तिवारी, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी इस सप्ताह के विजेता हैं। उपरोक्त सभी पाँच प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रों,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी
श्रृंखला ‘संगीतकार रोशन के गीतों में राग-दर्शन’ के इस तीसरे अंक में
हमने आपके लिए राग भीमपलासी में निबद्ध रोशन के एक गीत और इस राग की
शास्त्रीय संरचना पर चर्चा की और इस राग का एक परम्परागत उदाहरण विदुषी
गंगूबाई हंगल के स्वरों में प्रस्तुत किया। रोशन के संगीत पर चर्चा के लिए
हमने फिल्म संगीत के सुप्रसिद्ध इतिहासकार सुजॉय चटर्जी के आलेख और लेखक
पंकज राग की पुस्तक ‘धुनों की यात्रा’ का सहयोग लिया है। हम इन दोनों
विद्वानों का आभार प्रकट करते हैं। आगामी अंक में हम भारतीय संगीत जगत के
सुविख्यात संगीतकार रोशन के एक अन्य राग आधारित गीत पर चर्चा करेंगे। हमारी
आगामी श्रृंखलाओं के विषय, राग, रचना और कलाकार के बारे में यदि आपकी कोई
फरमाइश हो तो हमें अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 8 बजे हम
‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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