स्वरगोष्ठी – 280 में आज
पावस ऋतु के राग – 1 : आषाढ़ के पहले मेघ का स्वागत
“बरसो रे काले बादरवा हिया में बरसो...”
‘रेडियो
प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से हमारी
नई श्रृंखला – “पावस ऋतु के राग” आरम्भ हो रही है। श्रृंखला की पहली कड़ी
में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता
हूँ। आपको स्वरों के माध्यम से बादलों की उमड़-घुमड़, बिजली की कड़क और रिमझिम
फुहारों में भींगने के लिए आमंत्रित करता हूँ। यह श्रृंखला, वर्षा ऋतु के
रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत पर केन्द्रित है। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम
आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी
हुई रचनाओं पर चर्चा करेंगे। इसके साथ ही सम्बन्धित राग के आधार पर रचे गए
फिल्मी गीत भी प्रस्तुत करेंगे। भारतीय संगीत के अन्तर्गत मल्हार अंग के
सभी राग पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में समर्थ हैं। आम तौर
पर इन रागों का गायन-वादन वर्षा ऋतु में अधिक किया जाता है। इसके साथ ही
कुछ ऐसे सार्वकालिक राग भी हैं जो स्वतंत्र रूप से अथवा मल्हार अंग के मेल
से भी वर्षा ऋतु के अनुकूल परिवेश रचने में सक्षम होते हैं। इस श्रृंखला की
पहली कड़ी में हम राग मेघ मल्हार की चर्चा करेंगे। राग मेघ मल्हार एक
प्राचीन राग है, जिसके गायन-वादन से संगीतज्ञ वर्षा ऋतु के प्रारम्भिक
परिवेश का सृजन करते हैं। इस राग में आज हम आपको सबसे पहले राग मेघ मल्हार
के स्वरों पर आधारित 1942 में प्रदर्शित फिल्म ‘तानसेन’ से खुर्शीद बेगम का
गाया गीत भी सुनवा रहे हैं। इसके साथ ही राग का शास्त्रीय स्वरूप उपस्थित
करने के लिए सुप्रसिद्ध गायक पण्डित अजय चक्रवर्ती द्वारा प्रस्तुत एक खयाल
रचना प्रस्तुत कर रहे हैं।
आजकल
हम सब प्रकृति के अनूठे वरदान पावस ऋतु का आनन्द ले रहे हैं। हमारे चारो
ओर के परिवेश ने हरियाली की चादर ओढ़ने की पूरी तैयारी कर ली है।
तप्त-शुष्क भूमि पर वर्षा की फुहारें पड़ने पर चारो ओर जो सुगन्ध फैलती है
वह अवर्णनीय है। ऐसे ही मनभावन परिवेश का सृजन करने के लिए और हमारे उल्लास
और उमंग को द्विगुणित करने के लिए आकाश में कारे-कजरारे मेघ उमड़-घुमड़ रहे
हैं। भारतीय साहित्य और संगीत को सबसे अधिक प्रभावित करने वाली दो ऋतुएँ,
बसन्त और पावस हैं। पावस ऋतु में मल्हार अंग के रागों का गायन-वादन अत्यन्त
सुखदायी होता है। वर्षाकालीन सभी रागों में सबसे प्राचीन राग मेघ मल्हार
माना जाता है। श्रृंखला की आज की कड़ी में हम आपको राग मेघ मल्हार का
रसास्वादन करा रहे हैं। भारतीय साहित्य में भी राग मेघ मल्हार के परिवेश का
भावपूर्ण चित्रण मिलता है। वर्षा ऋतु के आगमन की आहट देने वाले राग मेघ की
प्रवृत्ति को महाकवि कालिदास ने ‘मेघदूत’ के प्रारम्भिक श्लोकों में
अत्यन्त यथार्थ रूप में किया है। ‘मेघदूत’ का यक्ष अपनी प्रियतमा तक सन्देश
भेजने के लिए आषाढ़ मास के मेघों को ही अपना दूत बनाता है। इससे थोड़ा भिन्न
परिवेश पाँचवें दशक की एक फिल्म से हमने लिया है। आज का गीत हमने 1942 में
रणजीत स्टूडियो द्वारा निर्मित और जयन्त देसाई द्वारा निर्देशित फिल्म
‘तानसेन’ से चुना है। फिल्म के प्रसंग के अनुसार अकबर के आग्रह पर तानसेन
ने राग ‘दीपक’ गाया, जिसके प्रभाव से उनका शरीर जलने लगा। कोई उपचार काम
में नहीं आने पर उनकी शिष्या ने राग ‘मेघ मल्हार’ का आह्वान किया, जिसके
प्रभाव से आकाश मेघाच्छन्न हो गया और बरखा की बूँदों ने तानसेन के तप्त
शरीर का उपचार किया। इस प्रसंग में राग ‘मेघ मल्हार’ की अवतारणा करने वाली
तरुणी को कुछ इतिहासकारों ने तानसेन की प्रेमिका कहा है तो कुछ ने उसे
तानसेन की पुत्री तानी बताया है। बहरहाल, इस प्रसंग से यह स्पष्ट हो जाता
है कि राग ‘मेघ मल्हार’ मेघों का आह्वान करने में सक्षम है। दूसरे रूप में
हम यह भी कह सकते हैं कि इस राग में मेघाच्छन्न आकाश, उमड़ते-घुमड़ते बादलों
की गर्जना और वर्षा के प्रारम्भ की अनुभूति कराने की क्षमता है। फिल्म
‘तानसेन’ के संगीतकार खेमचन्द्र प्रकाश और गीतकार पण्डित इन्द्र थे। फिल्म
में तानसेन की प्रमुख भूमिका में कुन्दनलाल (के.एल.) सहगल थे। फिल्म के
लगभग सभी गीत विभिन्न रागों पर आधारित थे। फिल्म ‘तानसेन’ में राग मेघ
मल्हार पर आधारित गीत है- ‘बरसो रे कारे बादरवा हिया में बरसो...’,
जिसे उस समय की विख्यात गायिका-अभिनेत्री खुर्शीद बेगम ने गाया और अभिनय भी
किया था। तीनताल में निबद्ध इस गीत में पखावज की संगति की गई है। आइए,
सुनते हैं वर्षा ऋतु का आह्वान करते राग ‘मेघ मल्हार’ पर आधारित यह गीत। आप
इस गीत के माध्यम से पावस का आनन्द लीजिए।
राग मेघ मल्हार : ‘बरसो रे कारे बादरवा...’ फिल्म – तानसेन : स्वर – खुर्शीद बेगम
काफी
थाट का राग मेघ मल्हार औड़व-औड़व जाति का होता है, अर्थात इसके आरोह और
अवरोह में 5-5 स्वरों का प्रयोग होता है। गान्धार और धैवत स्वरों का प्रयोग
नहीं होता। समर्थ कलासाधक कभी-कभी परिवर्तन के तौर पर गान्धार स्वर का
प्रयोग करते है। भातखण्डे जी ने अपने ‘संगीत-शास्त्र’ ग्रन्थ में भी यह
उल्लेख किया है कि कोई-कोई कोमल गान्धार का प्रयोग भी करते हैं। लखनऊ के
वरिष्ठ संगीत-शिक्षक और शास्त्र-अध्येता पण्डित मिलन देवनाथ के अनुसार लगभग
एक शताब्दी पूर्व राग मेघ में कोमल गान्धार का प्रयोग होता था। आज भी कुछ
घरानों की गायकी में यह प्रयोग मिलता है। रामपुर, सहसवान घराने के
जाने-माने गायक उस्ताद राशिद खाँ जब राग मेघ गाते हैं तो कोमल गान्धार का
प्रयोग करते हैं। ऋषभ का आन्दोलन राग मेघ का प्रमुख गुण होता है। यह
पूर्वांग प्रधान राग है। इस राग के माध्यम से आषाढ़ मास के मेघों की
प्रतीक्षा, उमड़-घुमड़ कर आकाश पर छा जाने वाले काले मेघों और वर्षा ऋतु के
प्रारम्भिक परिवेश का सजीव चित्रण किया जाता है। आइए, अब हम राग मेघ मल्हार
में एक भावपूर्ण खयाल सुनते हैं। इसे प्रस्तुत कर रहे है, पटियाला गायकी
में सिद्ध गायक पण्डित अजय चक्रवर्ती। यह मध्यलय झपताल की रचना है, जिसके
बोल हैं- ‘गरजे घटा घन कारे कारे पावस रुत आई...’।
राग मेघ मल्हार : ‘गरजे घटा घन कारे कारे, पावस रुत आई...’ : पण्डित अजय चक्रवर्ती
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 280वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक राग आधारित गीत का अंश
सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों
के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के इस अंक की पहेली के सम्पन्न होने के
बाद तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की तीसरी
श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – गीत के इस अंश को सुन का आपको किस राग का अनुभव हो रहा है?
2 – गीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए।
3 – इस गीत में कण्ठ-स्वर को पहचानिए और हमे इस गायक का नाम बताइए।
आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार, 6 अगस्त, 2016 की मध्यरात्रि से पूर्व तक अवश्य प्राप्त हो जाए। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम हम
‘स्वरगोष्ठी’ के 282वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और
प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
क्रमांक 278 की संगीत पहेली में हमने आपको मदन मोहन के संगीत निर्देशन में
बनी और 1972 में प्रदर्शित फिल्म ‘बावर्ची’ से एक राग आधारित गीत का एक
अंश सुनवा कर आपसे तीन प्रश्न पूछा था। आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का
उत्तर देना था। इस पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग – अल्हैया बिलावल, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है – ताल – तीनताल, सितारखानी और कहरवा तथा तीसरे प्रश्न का उत्तर है- स्वर – मन्ना डे।
इस बार की पहेली में छः प्रतिभागियों ने सही उत्तर देकर विजेता बनने का गौरव प्राप्त किया है। इस अंक से हमारे एक नये साथी भूपेन्द्र भी जुड़े हैं। हम उनका स्वागत करते हैं। पहेली का सही उत्तर देने वाले अन्य प्रतिभागी हैं - चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, और पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया। इन सभी विजेताओं ने दो-दो अंक अर्जित किये है। सभी विजेता प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रो,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ में आज से
हमारी श्रृंखला ‘पावस ऋतु के राग’ आरम्भ हो रही है। आज के अंक में आपने राग
मेघ मल्हार का रसास्वादन किया। श्रृंखला के अगले अंक में हम पावस ऋतु के
एक अन्य राग का परिचय प्राप्त करेंगे। ‘स्वरगोष्ठी’ साप्ताहिक स्तम्भ के
बारे में हमारे पाठक और श्रोता नियमित रूप से हमें पत्र लिखते है। हम उनके
सुझाव के अनुसार ही आगामी विषय निर्धारित करते है। हमारी अगली श्रृंखला के
लिए आप अपने सुझाव हमे भेज सकते हैं। श्रृंखला “पावस ऋतु के राग” के लिए आप
अपने सुझाव या फरमाइश ऊपर दिये गए ई-मेल पते पर शीघ्र भेजिए। हम आपकी
फरमाइश पूर्ण करने का हर सम्भव प्रयास करेंगे। आपको हमारी यह श्रृंखला कैसी
लगी? हमें ई-मेल अवश्य कीजिए। अगले रविवार को एक नए अंक के साथ प्रातः 8
बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत
करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
Comments
नमस्कार!
जुलाइ 30 के स्वरगोष्ठी अंक 280 पढनेके बाद आज तक कोइ अंक हमें देखनेमें नही आया। आशा रखती हूं कि आप इस रसप्रद संगीतमय स्वरगोष्ठीको आगे जारी रखेंगे।
आपकी किसी कठिनाइयोंमें हमारी अगर जरुरत है तो जरुर हमें बताइये। हम अपनी तरफसे पूरी कोशिश करेॅगे।
आभारके साथ,
विजया राजकोटीया