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"तू जहाँ जहाँ चलेगा मेरा साया साथ होगा" इसी गीत की वजह से फ़िल्म का नाम ’साया’ से ’मेरा साया’ कर दिया गया


एक गीत सौ कहानियाँ - 86
 

'तू जहाँ जहाँ चलेगा मेरा साया साथ होगा...' 



रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना
रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'।इसकी 86-वीं कड़ी में आज जानिए 1966 की फ़िल्म ’मेरा साया’ के लोकप्रिय शीर्षक गीत "तू जहाँ जहाँ चलेगा, मेरा साया साथ होगा..." के बारे में जिसे लता मंगेशकर ने गाया था। गीत लिखा है राजा मेहन्दी अली ख़ाँ ने और संगीत दिया है मदन मोहन ने। 


 ’वो कौन थी’ फ़िल्म की ज़बरदस्त कामयाबी के बाद राज खोसला के दिमाग़ में एक और इसी तरह के
राज खोसला
सस्पेन्स थ्रिलर फ़िल्म के विचार चल रहे थे। ’वो कौन थी’ के निर्माता थे एन. एन. सिप्पी और निर्देशक थे राज खोसला। अगली फ़िल्म के लिए जब राज खोसला ने निर्माता प्रेम जी से बात की तो दोनों ने मिल कर ’साया’ शीर्षक से एक फ़िल्म के लिए काम करना शुरू कर दिया। कहानी तय हो गई। अब इस फ़िल्म के लिए भी एक हौन्टिंग् गीत की ज़रूरत थी बिल्कुल वैसे जैसे ’वो कौन थी’ में "नैना बरसे रिमझिम रिमझिम’ गीत था। एक बार फिर वो राजा मेहन्दी अली ख़ाँ, मदन मोहन और लता मंगेशकर की तिकड़ी को आज़माना चाहते थे। खोसला साहब इस बार चाहते थे कि फ़िल्म ’साया’ के इस हौन्टिंग् गीत में फ़िल्म का शीर्षक भी आए, यानी कि मुखड़े में "साया" शब्द ज़रूर आए। उनकी उम्मीदों पर खरा उतरते हुए "तू जहाँ जहाँ चलेगा, मेरा साया साथ होगा" गीत लिखा गया, रूहानी धुन बनी, और लता जी ने गाकर एक अद्‍भुत रचना की सृष्टि हुई। गीत रेकॉर्ड हो कर सेट पर पहुँचते ही पूरी यूनिट में हिट हो गया। गीत में "मेरा साया, मेरा साया" बार बार आने की वजह से सबकी ज़ुबान पर भी ये ही दो शब्द चढ़ गए। हर कोई "मेरा साया, मेरा साया" गाता हुआ दिखाई देने लगा सेट पर। तब राज खोसला के दिमाग़ में एक विचार आया कि क्यों ना फ़िल्म का नाम ’साया’ से बदलकर ’मेरा साया’ कर दिया जाए! सब ने उन्हें इसके लिए सम्मति दी और इस तरह से इस गीत की वजह से फ़िल्म का नाम ’साया’ से हो गया ’मेरा साया’।


और अब इस गीत के बनने की दिलचस्प कहानी। मदन मोहन इस गीत की धुन बना चुके थे। और राजा साहब
राजा मेहन्दी अली ख़ाँ और मदन मोहन
गीत लिखने में बहुत समय ले रहे थे। रेकॉर्डिंग् का व
क़्त करीब आता जा रहा था। मगर बोल अभी तक तैयार नहीं थे। एक दिन फ़िल्म के निर्माता प्रेम जी संगीतकार मदन जी से बोले कि "भई कब तक इन्तज़ार करेंगे, कुछ करो? मुझे इसी हफ़्ते में रेकॉर्डिंग करनी है।" मदन मोहन ने पैग़ाम भिजवाया राजा मेहन्दी अली ख़ाँ को। राजा साहब तशरीफ़ तो ले आए पर गीत लिख कर नहीं लाए थे, बल्कि बोले कि समझ में नहीं आ रहा है कि क्या लिखूँ। कुछ अच्छे बोल नहीं मिल रहे, कुछ अल्फ़ाज़ नहीं सज रहे, बात कुछ बन नहीं रही। राजा साहब की यह बात सुन कर सब चिन्ता में पड़ गए। सबके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ती देख सबको तसल्ली देने के लिए राजा साहब ने मदन मोहन से कहा, "भाई, टेन्शन मत लो, तुम धुन सुनाओ, अल्लाह ने चाहा तो इसी वक़्त कुछ लिख लिया जाएगा।" मदन जी हारमोनियम पर धुन गुनगुनाने लगे। राजा साहब सुनते रहे, उठ जाते, टहलते, दुबारा धुन गुनगुनाने को कहते। इस तरह से तक़रीबन आधा घंटा बीत गया। इधर निर्माता प्रेम जी यह समझ नहीं पा रहे थे कि जो गीत इतने दिनों में नहीं बन पाया, वह इस छोटी सी सिटिंग् में कैसे बन जाएगा? लेकिन तभी राजा साहब ने मदन मोहन को हारमोनियम बजाने से रोकते हुए कहा, "भाई, यह देखिये, यह देखिये, सुनिये मेरी बात! बोल आ रहे हैं, तू जहाँ जहाँ चलेगा, मेरा साया साथ होगा।"। मदन जी ने कहा कि लाइन तो अच्छी है, आगे की लाइनें भी बताइए? तो राजा साहब बोले कि आगे क्या, यही मुखड़ा है! सेकन्ड लाइन कुछ नहीं है, यही मुखड़ा है। एक ही लाइन का मुखड़ा है। अगर आगे भी कुछ चाहिए तो "मेरा साया मेरा साया मेरा साया" तीन बार जोड़ दो। मदन मोहन को राजा साहब की बात जम गई। मगर प्रेम जी घबरा गए कि ऐसे कैसे गाना बनने वाला है! वह भी फ़िल्म का टाइटल सॉंग्। उन्हें लगा कि राजा साहब इस गीत को गम्भीरता से नहीं ले रहे और ना ही उनसे कुछ हो पा रहा है। तब तक मदन मोहन ने राजा साहब के कहे अनुसार मुखड़े को अपनी धुन में फ़िट कर लिया और राजा साहब ने भी इस बीच पहला अन्तरा लिख डाला - "कभी मुझको याद करके जो बहेंगे तेरे आँसू, तो वहीं पे रोक लेंगे उन्हें आके मेरे आँसू, तू जिधर का रुख़ करेगा मेरा साया साथ होगा"। जब पू्रा गीत धुन के साथ सामने आया तब निर्माता प्रेम जी भी उछल पड़े, निर्देशक राज खोसला भी उछल पड़े, और इस तरह से यह क्लासिक गीत बना जो राग नन्द पर आधारित है। बस इतनी सी थी इस गीत के कहानी।

फिल्म - मेरा साया : "तू जहाँ जहाँ चलेगा..." : लता मंगेशकर 

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अब आप भी 'एक गीत सौ कहानियाँ' स्तंभ के वाहक बन सकते हैं। अगर आपके पास भी किसी गीत से जुड़ी दिलचस्प बातें हैं, उनके बनने की कहानियाँ उपलब्ध हैं, तो आप हमें भेज सकते हैं। यह ज़रूरी नहीं कि आप आलेख के रूप में ही भेजें, आप जिस रूप में चाहे उस रूप में जानकारी हम तक पहुँचा सकते हैं। हम उसे आलेख के रूप में आप ही के नाम के साथ इसी स्तम्भ में प्रकाशित करेंगे। आप हमें ईमेल भेजें soojoi_india@yahoo.co.in के पते पर।  


आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग: कृष्णमोहन मिश्र 




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