एक गीत सौ कहानियाँ - 85
'तू मेरा कौन लागे...'
हमारी फ़िल्मों में एकल और युगल गीतों की कोई कमी नहीं है। तीन, चार या उससे अधिक गायकों के गाये
गीतों की भी फ़ेहरिस्त काफ़ी लम्बी है। लेकिन अगर ऐसे गानें छाँटने के लिए कहा जाए जिनमें कुल तीन गायिकाओं की आवाज़ें हैं तो शायद गिनती उंगलियों पर ही की जा सकती है। दूसरे शब्दों में ऐसे गीत बहुत कम संख्या में बने हैं। आज हम एक ऐसे ही गीत की चर्चा कर रहे हैं जो बनी थी 1989 की फ़िल्म ’बटवारा’ के लिए। अलका याज्ञनिक, अनुराधा पौडवाल और कविता कृष्णमूर्ति का गाया "तू मेरा कौन लागे" गीत अपने ज़माने में काफ़ी लोकप्रिय हुआ था। इस गीत की चर्चा शुरू करने से पहले जल्दी जल्दी एक नज़र डाल लेते हैं तीन गायिकाओं के गाए फ़िल्मी गीतों के इतिहास पर। पहला गीत तो वही है जो फ़िल्म संगीत इतिहास का पहला पार्श्वगायन युक्त गीत है। 1935 की फ़िल्म ’धूप छाँव’ के गीत "मैं ख़ुश होना चाहूँ..." में संगीतकार रायचन्द बोराल ने तीन गायिकाओं - पारुल घोष, सुप्रभा सरकार और हरिमति दुआ को एक साथ गवाया था। 40 के दशक में 1945 की फ़िल्म ’ज़ीनत’ में एक ऐसी क़व्वाली बनी जिसमें केवल महिलाओं की आवाज़ें थीं, फ़िल्म संगीत के इतिहास में यह पहली बार था। मीर साहब और हाफ़िज़ ख़ाँ के संगीत में "आहें ना भरी शिकवे ना किए...", इस क़वाली में आवाज़ें थीं नूरजहाँ, ज़ोहराबाई अम्बालेवाली और कल्याणीबाई की। 50 के दशक में नौशाद साहब ने तीन गायिकाओं को गवाया महबूब ख़ान की बड़ी फ़िल्म ’मदर इण्डिया’ में। तीन मंगेशकर बहनों - लता, उषा और मीना ने इस गीत को गाया, बोल थे "दुनिया में हम आये हैं तो जीना ही पड़ेगा..."। 60 के दशक में पहली बार संगीतकार रवि ने लता, आशा और उषा को एक साथ गवाकर इतिहास रचा, फ़िल्म थी ’गृहस्थी’ और गाना था "खिले हैं सखी आज..."। इसके पाँच साल बाद 1968 में कल्याणजी-आनन्दजी ने फिर एक बार इन तीन बहनों को गवाया ’तीन बहूरानियाँ’ फ़िल्म के गीत "हमरे आंगन बगिया..." में। इसी साल कल्याणजी-आनन्दजी भाइयों ने मुबारक़ बेगम, सुमन कल्याणपुर और कृष्णा बोस की आवाज़ों में ’जुआरी’ फ़िल्म में एक गीत गवाया "नींद उड़ जाए तेरी चैन से सोने वाले" जो काफ़ी लोकप्रिय हुआ था। 70 के दशक में शंकर-जयकिशन ने एक कमचर्चित फ़िल्म ’दिल दौलत दुनिया’ के लिए एक दीपावली गीत रेकॉर्ड किया आशा भोसले, उषा मंगेशकर और रेखा जयकर की आवाज़ों में, "दीप जले देखो..."। और 80 के दशक में लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल ने 1982 की फ़िल्म ’जीवन धारा’ में पहली बार अनुराधा-अलका-कविता की तिकड़ी को पहली बार साथ में माइक के सामने ला खड़ा किया, गीत था "जल्दी से आ मेरे परदेसी बाबुल..."। और जब 1989 में ’बटवारा’ में एक ऐसे तीन गायिकाओं वाले गीत की ज़रूरत आन पड़ी तब लक्ष्मी-प्यारे ने फिर एक बार इसी तिकड़ी को गवाने का निर्णय लिया। 90 के दशक में इस तिकड़ी को राम लक्ष्मण ने ’हम साथ साथ हैं’ फ़िल्म के कई गीतों में गवाया जैसे कि "मय्या यशोदा...", "मारे हिवड़ा में नाचे मोर...", "हम साथ साथ हैं..."। इसी दशक में यश चोपड़ा की फ़िल्म ’डर’ में शिव-हरि ने लता मंगेशकर के साथ कविता कृष्णमूर्ति और पामेला चोपड़ा को गवाकर एक अद्भुत गीत की रचना की, बोल थे "मेरी माँ ने लगा दिये सोलह बटन मेरी चोली में..."। 2000 के दशक में भी तीन गायिकाओं के गाए गीतों की परम्परा जारी रही, अनु मलिक ने ’यादें’ फ़िल्म में अलका याज्ञनिक, कविता कृष्णमूर्ति और हेमा सरदेसाई से गवाया "एली रे एली कैसी है पहेली..."।
"तू मेरा कौन लागे" गीत में डिम्पल कपाडिया के लिए अलका याज्ञनिक, अम्रीता सिंह के लिए कविता
किशोर के साथ अनुराधा की दुर्लभ तसवीर, साथ में अमित कुमार और आशा |
फिल्म - बँटवारा : "तू मेरा कौन लागे..." : अनुराधा पौडवाल, अलका याज्ञिक, कविता कृष्णमूर्ति
अब आप भी 'एक गीत सौ कहानियाँ' स्तंभ के वाहक बन सकते हैं। अगर आपके पास भी किसी गीत से जुड़ी दिलचस्प बातें हैं, उनके बनने की कहानियाँ उपलब्ध हैं, तो आप हमें भेज सकते हैं। यह ज़रूरी नहीं कि आप आलेख के रूप में ही भेजें, आप जिस रूप में चाहे उस रूप में जानकारी हम तक पहुँचा सकते हैं। हम उसे आलेख के रूप में आप ही के नाम के साथ इसी स्तम्भ में प्रकाशित करेंगे। आप हमें ईमेल भेजें soojoi_india@yahoo.co.in के पते पर।
आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग: कृष्णमोहन मिश्र
Comments